कैग की रिपोर्ट का सारांश
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भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने 10 अगस्त, 2023 को 'भारतमाला परियोजना के चरण-I के कार्यान्वयन' पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट जारी की। आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने अक्टूबर 2017 में राष्ट्रीय राजमार्गों (एनएच) के विकास के लिए भारतमाला परियोजना को मंजूरी दी थी। कार्यक्रम के चरण I का उद्देश्य आर्थिक गलियारों, फीडर सड़कों और एक्सप्रेसवे को विकसित करना है।
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कार्यक्रम की कार्यान्वयन एजेंसियों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), (ii) राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) और (iii) राज्य लोक निर्माण विभाग। ऑडिट के दायरे में भारतमाला की योजना, वित्तीय प्रबंधन, कार्यान्वयन और निगरानी की समीक्षा शामिल थी। कैग के प्रमुख निष्कर्ष और सुझाव इस प्रकार हैं:
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भारतमाला के तहत शामिल मौजूदा राजमार्ग: भारतमाला चरण I के तहत एनएचएआई को 70,050 किमी के राष्ट्रीय राजमार्ग विकसित करने हैं। हालांकि कैग ने पाया कि इसमें से 49%, यानी 34,972 किलोमीटर को भारतमाला को मंजूरी मिलने से पहले ही विभिन्न राजमार्ग योजनाओं के तहत विकसित या आवंटित कर दिया गया था। इन योजनाओं को आगे विकसित करने का कोई प्रस्ताव नहीं था। कैग ने सुझाव दिया कि ऐसे राष्ट्रीय राजमार्गों को भारतमाला के लक्ष्य से हटा दिया जाए।
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पिछली समस्याओं को दुरुस्त किए बिना ली गईं परियोजनाएं: कैग ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (एनएचडीपी) की मौजूदा अधूरी परियोजनाओं को भारतमाला के तहत शामिल किया गया लेकिन उनकी मौजूदा समस्याओं को दूर नहीं किया गया। उदाहरण के लिए, बिहार और झारखंड सीमा पर राजमार्ग नवंबर 2021 तक पूरा होना था, लेकिन मार्च 2023 तक केवल 62% परियोजना ही पूरी हुई थी। देरी के कारणों में राइट ऑफ वे न मिलना और वन भूमि पर लंबित विवाद शामिल हैं। कैग ने सुझाव दिया कि भारतमाला एनएचडीपी घटक के तहत किसी भी शेष परियोजना को आवंटित करने से पहले मौजूदा समस्याओं को हल किया जाना चाहिए।
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फाइनांसिंग मॉडल के उपयोग में भिन्नताएं: इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को लागू करने के लिए वित्तपोषण के विभिन्न मॉडल हैं। कैग ने पाया कि भारतमाला के तहत बनाए जाने वाले 23,268 किलोमीटर एनएच में बिल्ट ऑपरेट ट्रांसफर (बीओटी-टोल) मोड के तहत केवल 1.8% का निर्माण किया गया, जबकि इसके तहत 10% निर्माण स्वीकृत था। 48% का निर्माण इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (ईपीसी) मॉडल के तहत किया गया था, और 50% का निर्माण हाइब्रिड एन्युटी मॉडल (एचएएम) के तहत किया गया था। इन मोड्स के लिए अनुमोदित प्रतिशत क्रमशः 30% और 60% थे।
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परियोजनाओं की प्राथमिकता: कैग ने गौर किया कि व्यवस्थित प्राथमिकता पद्धति का अभाव है औऱ परियोजना को समाप्त करने की कोई स्पष्ट समय सीमा भी नहीं है। मार्च 2023 तक, 11 उच्च प्राथमिकता वाले बीपीपी-I गलियारों की लंबाई का 46% आवंटित नहीं किया गया था। कैग ने सुझाव दिया कि मंत्रालय सीमित धन का कुशल उपयोग करने के लिए सीसीईए द्वारा अनुमोदित मानदंडों के आधार पर परियोजनाओं को प्राथमिकता दे।
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धनराशि का प्रबंधन: कैग ने स्वीकृत लागतों में वृद्धि और लागत अनुमानों में महत्वपूर्ण बदलावों पर गौर किया। मार्च 2023 तक सीसीईए-अनुमोदित परियोजना का 76% प्रदान किया जा चुका है, जबकि सीसीईए-अनुमोदित धनराशि का 158% स्वीकृत किया जा चुका है। परियोजना की प्रति किमी लागत 14 करोड़ रुपए से बढ़कर 24 करोड़ रुपए हो गई। इसके अतिरिक्त अन्य योजनाओं के लिए स्वीकृत 1.57 लाख करोड़ रुपए की धनराशि का उपयोग भारतमाला के तहत उपलब्धियों की रिपोर्ट करने के लिए किया जा रहा था। यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक योजना के लिए जारी धनराशि को दूसरी योजना के लिए इस्तेमाल न किया जाए, कैग ने सुझाव दिया कि योजना-वार जारी धनराशि की मैपिंग की जाए। मंत्रालय ने उत्तर दिया कि इससे परियोजना-वार एकाउंटिंग सुव्यवस्थित होगी।
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एनएचएआई परियोजनाओं का मूल्यांकन और अनुमोदन: सीसीईए के अनुसार, भारतमाला के तहत सभी परियोजनाओं का मूल्यांकन परियोजना मूल्यांकन और तकनीकी जांच समिति द्वारा किया जाना चाहिए। कैग ने 50 परियोजनाओं का सैंपल लिया जिनमें से 35 ने समिति द्वारा किसी भी मूल्यांकन के बिना टेंडर नोटिस जारी किए। उसने सुझाव दिया कि जांच सुनिश्चित करने के लिए परियोजना मूल्यांकन और अनुमोदन तंत्र की सरकार द्वारा व्यापक समीक्षा की जानी चाहिए।
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टेंडरिंग और ठेकेदारों के चयन में अनियमितताएं: कैग को ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले जिनमें कार्यान्वयन एजेंसियों ने ऐसे अयोग्य बोलीदाताओं का चयन किया जो टेंडर की शर्तों को पूरा नहीं करते थे या जिन्होंने फर्जी दस्तावेज पेश किए थे। उसने यह भी कहा कि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट या गलत रिपोर्ट तैयार किए बिना टेंडर नोटिस जारी किए गए थे। कैग ने टेंडरिंग में विसंगतियों की जांच करने और दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने का सुझाव दिया। उसने यह सुझाव भी दिया कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बोलियों का मूल्यांकन ई-टेंडरिंग पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन किया जाए।
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