बिल की मुख्य विशेषताएं
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भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) आईपीसी के अधिकांश अपराधों को बरकरार रखती है। इसमें सामुदायिक सेवा को सज़ा के रूप में जोड़ा गया है।
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राजद्रोह अब अपराध नहीं है। इसके बजाय भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को नया अपराध बताया गया है।
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बीएनएस आतंकवाद को एक अपराध के रूप में जोड़ता है। इसे एक ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका उद्देश्य देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालना, आम जनता को डराना या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ना है।
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संगठित अपराध को अपराध के रूप में जोड़ा गया है। इसमें अपराध सिंडिकेट की ओर से किए गए अपहरण, जबरन वसूली और साइबर अपराध जैसे अपराध शामिल हैं। छोटे-मोटे संगठित अपराध भी अब अपराध हैं।
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जाति, भाषा या व्यक्तिगत विश्वास जैसे कुछ पहचान चिह्नों के आधार पर पांच या अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा हत्या सात साल से लेकर आजीवन कारावास या मौत तक की सज़ा के साथ एक अपराध होगा।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
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आईपीसी अनसाउंड माइंड (विकृत मस्तिष्क) वाले व्यक्ति को प्रॉसीक्यूशन से सुरक्षा देता है। बीएनएस इसे मेंटल इलनेस (मानसिक बीमारी) वाले व्यक्ति में बदलता है। मेंटल इलनेस की परिभाषा में मानसिक मंदता शामिल नहीं है और इसमें शराब और नशीली दवाओं की लत शामिल है। जबकि मानसिक मंदता से पीड़ित व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है, जो लोग स्वेच्छा से नशे में हैं, उन्हें दोषमुक्त किया जा सकता है।
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आतंकवाद की परिभाषा में ऐसा कार्य शामिल है जिसका उद्देश्य सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करना है। इससे स्थानीय स्तर पर शांति भंग करने को भी आतंकवाद की श्रेणी में रखा जा सकता है।
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आपराधिक जिम्मेदारी की आयु सात वर्ष बरकरार रखी गई है। आरोपी की परिपक्वता के आधार पर इसे 12 साल तक बढ़ाया जा सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय समझौतों की सिफ़ारिशों का उल्लंघन हो सकता है।
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कई अपराध विशेष कानूनों के साथ ओवरलैप होते हैं। कई मामलों में अलग-अलग दंड का प्रावधान है या वे अलग-अलग प्रक्रियाएं पेश करते हैं। इससे रेगुलेशन की कई व्यवस्थाएं, अनुपालन की अतिरिक्त लागत और कई आरोप लगाए जाने की आशंका हो सकती है।
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पहचान के कुछ आधारों पर पांच या अधिक लोगों के समूह द्वारा हत्या करने पर हत्या की तुलना में कम सज़ा का प्रावधान है।
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बीएनएस में आईपीसी का सेक्शन 377 मौजूद नहीं, जिसके कुछ हिस्सों को सर्वोच्च न्यायालय ने हटा दिया था। बीएनएस से इस सेक्शन को हटाने से पुरुषों के साथ बलात्कार और पशुओं के साथ यौन संबंध अपराध की श्रेणी से हट जाएंगे।
भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 भारत में फौजदारी अपराधों पर प्रमुख कानून है। इसके तहत आने वाले अपराधों में निम्नलिखित को प्रभावित करने वाले अपराध शामिल हैं: (i) मानव शरीर जैसे हमला और हत्या, (ii) संपत्ति जैसे जबरन वसूली और चोरी, (iii) सार्वजनिक व्यवस्था जैसे गैरकानूनी सभा और दंगा, (iv) सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा, शालीनता, नैतिकता और धर्म, (iv) मानहानि, और (v) राज्य के विरुद्ध अपराध। पिछले कुछ वर्षों में नए अपराधों को जोड़ने, मौजूदा अपराधों में संशोधन करने और सज़ा की मात्रा में बदलाव करने के लिए आईपीसी में संशोधन किए गए हैं।[1] न्यायालयों ने कुछ अपराधों जैसे समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से इंटरकोर्स, व्यभिचार और आत्महत्या के प्रयास को भी अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है।[2],[3],[4] कई राज्यों ने भी यौन अपराधों, वेश्यावृत्ति के लिए नाबालिगों को बेचने, भोजन और दवाओं में मिलावट और धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के लिए अलग-अलग दंड देने हेतु आईपीसी में संशोधन किया है।[5],[6],[7],[8] कई विधि आयोगों की रिपोर्ट्स में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों, खाद्य पदार्थों में मिलावट, मृत्युदंड सहित विषयों पर आईपीसी में संशोधन का सुझाव दिया है।[9], [10]
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) आईपीसी का स्थान लेती है। यह बड़े पैमाने पर आईपीसी के प्रावधानों को बरकरार रखती है, कुछ नए अपराध जोड़ती है, अदालतों द्वारा रद्द किए गए अपराधों को हटाती है, और कई अपराधों के लिए दंड बढ़ाती है। गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी ने इस बिल की समीक्षा की थी।[11]
मुख्य विशेषताएं
बीएनएस के मुख्य बदलावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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शरीर के खिलाफ अपराध: आईपीसी हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, हमला करना और गंभीर चोट पहुंचाना जैसे कृत्यों को अपराध मानता है। बीएनएस ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है। इसमें संगठित अपराध, आतंकवाद और कुछ आधारों पर किसी समूह द्वारा हत्या या गंभीर चोट जैसे नए अपराध जोड़े गए हैं।
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महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध: आईपीसी बलात्कार, ताक-झांक, पीछा करना और किसी महिला के शील को भंग करने जैसे कृत्यों को अपराध मानता है। बीएनएस ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है। यह सामूहिक बलात्कार के मामले में पीड़िता को वयस्क के रूप में वर्गीकृत करने की सीमा को 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष करता है। यह किसी महिला के साथ धोखे से या झूठे वादे करके यौन संबंध बनाने को भी अपराध मानता है।
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राजद्रोह: बीएनएस राजद्रोह के अपराध को हटाता है। इसके बजाय यह निम्न को दंडित करता है: (i) फूट, सशस्त्र विद्रोह, या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करना या उत्तेजित करने का प्रयास करना, (ii) अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करना या (iii) भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालना। इन अपराधों में शब्दों या संकेतों का आदान-प्रदान, इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों का उपयोग शामिल हो सकता है।
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आतंकवाद: बीएनएस आतंकवाद को एक ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित करता है जिसका निम्नलिखित इरादा है: (i) देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालना, (ii) आम जनता को डराना या (iii) सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ना। आतंकवाद करने या आतंकवाद का प्रयास करने की सज़ा में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मौत या आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए का जुर्माना, अगर इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, या (ii) पांच साल से लेकर आजीवन कारावास और कम से कम पांच लाख रुपए का जुर्माना।
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संगठित अपराध: संगठित अपराध में अपहरण, जबरन वसूली, कॉन्ट्रैक्ट पर हत्या, जमीन पर कब्जा, वित्तीय घोटाले और अपराध सिंडिकेट की ओर से किए गए साइबर अपराध जैसे अपराध शामिल हैं। संगठित अपराध करने या उसका प्रयास करने पर निम्नलिखित दंड दिया जाएगा: (i) अगर इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो मौत या आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए का जुर्माना या (ii) पांच साल से लेकर आजीवन कारावास और कम से कम पांच लाख रुपए का जुर्माना।
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मॉब लिंचिंग: बीएनएस निर्दिष्ट आधारों पर पांच या अधिक लोगों द्वारा की गई हत्या या गंभीर चोट को अपराध के रूप में जोड़ता है। इन आधारों में नस्ल, जाति, लिंग, भाषा या व्यक्तिगत विश्वास शामिल हैं। ऐसी हत्या के लिए सज़ा कम से कम सात साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास या मौत तक है।
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सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: बीएनएस सर्वोच्च न्यायालय के कुछ फैसलों के अनुरूप है। इनमें व्यभिचार को अपराध के तौर नहीं शामिल किया गया है और आजीवन कारावास की सज़ा पाए व्यक्ति द्वारा हत्या या हत्या के प्रयास के लिए दंड के रूप में आजीवन कारावास (मृत्युदंड के अतिरिक्त) को शामिल किया गया है।
भाग ख : मुख्य मुद्दे और विश्लेषण
कुछ परिभाषाएं एप्लिकेबिलिटी से संबंधित चिंताएं पैदा कर सकती हैं
मानसिक बीमारी का आधार आपराधिक जिम्मेदारी के सामान्य अपवादों को मान्यता नहीं देता है
आईपीसी में कहा गया है कि विकृत दिमाग वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कोई भी कार्य अपराध नहीं है। बीएनएस ने इस प्रावधान को बरकरार रखा है, सिवाय इसके कि यह 'विकृत मस्तिष्क' शब्द को 'मानसिक बीमारी' से बदलता है। इसमें कहा गया है कि मानसिक बीमारी मानसिक स्वास्थ्य सेवा एक्ट, 2017 (एमएचए, 2017) में परिभाषित है। एमएचए, 2017 में मानसिक बीमारी को इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि यह सोच, ओरिएंटेशन या याददाश्त का एक विकार है जोकि वास्तविकता को पहचानने की क्षमता को गंभीर रूप से कमजोर कर देता है। परिभाषा स्पष्ट रूप से मानसिक बीमारी से मानसिक मंदता या दिमाग के अपूर्ण विकास को बाहर करती है। किसी को आपराधिक जिम्मेदारी से छूट देने के लिए मानसिक बीमारी की इस परिभाषा का उपयोग करने से मानसिक मंदता से पीड़ित व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1972 में 2008 में संशोधन किया गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ है या मानसिक मंदता से पीड़ित है (दोनों को व्यक्ति को बरी करने के कारणों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है)।[12]
एमएचए, 2017 के तहत मानसिक बीमारी की परिभाषा में मानसिक बीमारी के रूप में शराब और नशीली दवाओं की लत भी शामिल हैं। इसलिए अगर कोई शराबी नशे की हालत में कोई अपराध करता है, तो वह मानसिक बीमारी से बचाव का दावा करने में सक्षम हो सकता है। यह बचाव तब भी लागू हो सकता है जब उसने स्वेच्छा से शराब या नशीली दवाओं का सेवन किया हो। यह आईपीसी के तहत नशा करने पर सामान्य बचाव का खंडन करता है, जो केवल अनैच्छिक नशे के तहत किए गए कृत्यों को आपराधिक जिम्मेदारी से छूट देता है।[13] गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने अनसाउंड माइंड़ शब्द को वापस लाने का सुझाव दिया था।11
आतंकवाद को बहुत व्यापक रूप से परिभाषित किया जा सकता है
बीएनएस आतंकवाद को अपराध के रूप में जोड़ता है। यह आतंकवाद को एक ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित करता है जिसका निम्न इरादा है: (i) देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालना, (ii) आम जनता को डराना, या (iii) सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ना। आतंकवादी कृत्यों में निम्न शामिल हैं: (i) मौत, जीवन को ख़तरा या भय फैलाने के लिए हथियारों, बमों या खतरनाक पदार्थों का उपयोग करना, या (ii) संपत्ति को नष्ट करना या आवश्यक सेवाओं को बाधित करना। सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे को आतंकवादी कृत्य के रूप में शामिल करके, अपराधों की एक विस्तृत श्रृंखला को आतंकवादी कृत्यों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। इनमें सशस्त्र विद्रोह और राज्य के विरुद्ध युद्ध से लेकर दंगे और भीड़-हिंसा तक शामिल हो सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय (1960) ने सार्वजनिक व्यवस्था को स्थानीय स्तर पर शांति भंग होने के कारण होने वाली अव्यवस्था की गैरमौजूदगी माना था।[14] उसने ऐसी अव्यवस्था को क्रांति, संघर्ष और युद्ध जैसी राष्ट्रीय उथल-पुथल से अलग माना था, जिससे राज्य की सुरक्षा प्रभावित होने का खतरा होता है। बीएनएस में आतंकवादी कृत्यों में आम जनता को डराना भी शामिल है। गृह मामलों से संबंधित कमिटी (2023) ने आतंकवादी कृत्यों को वर्गीकृत करने में अस्पष्टताओं को दूर करने के लिए 'डराने' को परिभाषित करने का सुझाव दिया है।11
छोटे संगठित अपराध की परिभाषा में स्पष्टता का अभाव
बीएनएस छोटे संगठित अपराध को अपराध के रूप में परिभाषित करता है। इसमें निम्न शामिल हैं: वाहन चोरी, जेबतराशी, सार्वजनिक परीक्षा प्रश्नपत्र बेचना, किसी गिरोह द्वारा किए गए किसी अन्य प्रकार के संगठित अपराध। इसके लिए इन्हें: (i) नागरिकों के बीच असुरक्षा की सामान्य भावना पैदा करनी चाहिए, और (ii) संगठित आपराधिक समूहों या गिरोहों (मोबाइल संगठित अपराध समूहों सहित) द्वारा किया जाना चाहिए। ऐसे अपराधों के लिए एक से सात साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। यह स्पष्ट नहीं है कि असुरक्षा की सामान्य भावनाओं का क्या मतलब है। इसके अलावा बीएनएस 'गिरोह', 'एंकर पॉइंट' और 'मोबाइल संगठित अपराध समूह' जैसे शब्दों को परिभाषित नहीं करता है। गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने प्रावधान को फिर से तैयार करने का सुझाव दिया है।11
अपराधों के लिए आयु संबंधी निर्देश
आपराधिक उत्तरदायित्व की न्यूनतम आयु कई अन्य न्यायक्षेत्रों की तुलना में अधिक है
आपराधिक जिम्मेदारी की उम्र उस न्यूनतम उम्र को कहा जाता है, जब से किसी बच्चे पर मुकदमा चलाया जा सकता है और किसी अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है। किशोरों के व्यवहार को प्रभावित करने वाली न्यूरोबायोलॉजिकल प्रक्रियाओं की समझ जब विकसित हुई तब यह सवाल खड़े हुए कि बच्चों को उनके कार्यों के लिए किस हद तक जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।[15] आईपीसी के तहत सात साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा किया गया कोई भी काम अपराध नहीं माना जाता है। अगर यह पाया जाता है कि बच्चे ने अपने आचरण की प्रकृति और परिणामों को समझने की क्षमता हासिल नहीं की है, तो आपराधिक जिम्मेदारी की आयु बढ़कर 12 वर्ष हो जाती है। बीएनएस ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है। 2007 में संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समिति ने विभिन्न देशों से कहा था कि वे आपराधिक जिम्मेदारी की आयु 12 वर्ष से अधिक करें।[16]
आपराधिक जिम्मेदारी की उम्र अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। उदाहरण के लिए, जर्मनी में आपराधिक जिम्मेदारी की उम्र 14 वर्ष है, जबकि इंग्लैंड और वेल्स में यह 10 वर्ष है।[17],[18] स्कॉटलैंड में आपराधिक जिम्मेदारी की उम्र 12 वर्ष है।[19]
बच्चों के विरुद्ध समान अपराधों के लिए पीड़ित की आयु सीमा भिन्न-भिन्न है
बीएनएस बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में उच्च दंड का प्रावधान करता है। ज्यादातर मामलों में, इसमें प्रावधान है कि 18 वर्ष से कम उम्र के पीड़ित के साथ बच्चे जैसा व्यवहार किया जाएगा। महिलाओं और बच्चों से बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के लिए सज़ा अलग-अलग है। हालांकि बलात्कार के विभिन्न अपराधों के लिए पीड़िता के नाबालिग होने की सीमा और परिणामस्वरूप दंड अलग-अलग होता है। सामूहिक बलात्कार के लिए, दंड इस आधार पर भिन्न होता है कि पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक है या कम। हालांकि बलात्कार के लिए सज़ा इस आधार पर अलग-अलग होती है कि पीड़िता की उम्र 12 साल से कम है, 12 से 16 साल के बीच है या उससे अधिक है। यह यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण एक्ट, 2012 के साथ असंगत है, जो 18 वर्ष से कम उम्र के सभी व्यक्तियों को नाबालिगों के रूप में वर्गीकृत करता है।
इसके अतिरिक्त बीएनएस के तहत, बच्चों के खिलाफ कुछ अपराधों के लिए पीड़ित की आयु सीमा 18 वर्ष नहीं है। जैसे माता-पिता से चोरी करने के इरादे से बच्चे का अपहरण केवल 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे पर लागू होता है। यानी 11 साल के बच्चे के अपहरण की सज़ा एक वयस्क के अपहरण के समान ही है। इसके अलावा, बीएनएस ने किसी विदेशी महिला को दूसरे देश से आयात करने के अपराध के लिए आईपीसी से 21 वर्ष की आयु बरकरार रखी है। हालांकि लड़कों के लिए, इसमें 18 वर्ष की आयु सीमा जोड़ी गई है। गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने बच्चे को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करने का सुझाव दिया है।11
बीएनएस और विशेष कानूनों के बीच ओवरलैप
अन्य विशेष कानूनों के साथ अपराधों का दोहराव
जब आईपीसी लागू किया गया था, तो इसमें सभी फौजदारी अपराधों को शामिल किया गया था। समय के साथ, विशिष्ट विषयों और संबंधित अपराधों के समाधान के लिए विशेष कानून बनाए गए हैं। इनमें से कुछ अपराधों को बीएनएस से हटा दिया गया है। जैसे वज़न और माप से संबंधित अपराधों को लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट, 2009 में शामिल किया गया था और बीएनएस से हटा दिया गया है। हालांकि कई अपराध बरकरार रखे गए हैं (कुछ उदाहरणों के लिए नीचे तालिका 1 देखें)। बीएनएस संगठित अपराध और आतंकवाद जैसे कुछ नए अपराध भी जोड़ता है जो पहले से ही विशेष कानूनों के अंतर्गत आते हैं। कानूनों में इस तरह के ओवरलैप के कारण अतिरिक्त अनुपालन का बोझ और लागत हो सकती है। इससे एक ही अपराध के लिए अलग-अलग दंड प्रदान करने वाले कई कानून भी बन सकते हैं। ऐसे अपराधों को हटाने से दोहराव, संभावित विसंगतियां और कई रेगुलेटरी व्यवस्थाएं दूर हो सकती हैं।
तालिका 1: आईपीसी, बीएनएस और विशेष कानूनों के बीच ओवरलैप के उदाहरण
बीएनएस/बीएनएसएस |
विशेष कानून |
बिक्री के लिए खाद्य या पेय पदार्थ में मिलावट |
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6 महीने तक की कैद, 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों। असंज्ञेय, जमानत योग्य। (आईपीसी सेक्शन 272, 273; बीएनएस क्लॉज 272, 273) |
खाद्य सुरक्षा और सुरक्षा एक्ट, 2006: असुरक्षित भोजन के निर्माण, भंडारण, बिक्री के लिए आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए तक का जुर्माना। क्षति के अनुपात में सज़ा (सेक्शन 59) |
दवाओं में मिलावट और मिलावटी दवाओं की बिक्री |
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मिलावट करने पर एक साल तक की कैद, 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। मिलावटी दवाओं की बिक्री पर 6 महीने तक की कैद, 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। असंज्ञेय, जमानत योग्य। (आईपीसी सेक्शन 274, 275; बीएनएस क्लॉज 274, 275) |
ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940: मिलावटी दवाओं के सेवन से मौत या गंभीर चोट लगने पर 10 साल से लेकर आजीवन कारावास और कम से कम 10 लाख रुपए या जब्त की गई दवाओं के मूल्य का तीन गुना, जो भी अधिक हो, का जुर्माना हो सकता है। अन्य मामलों में, जुर्माना 3-5 साल की कैद और कम से कम 1 लाख रुपए या जब्त की गई दवाओं के मूल्य का तीन गुना, जो भी अधिक हो, जुर्माना है। (सेक्शन 27) |
गैरकानूनी अनिवार्य श्रम |
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एक साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों। संज्ञेय, जमानत योग्य। (आईपीसी सेक्शन 374; बीएनएस क्लॉज 144) |
बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) एक्ट, 1976: 3 वर्ष तक कारावास और 2,000 रुपए तक जुर्माना। (सेक्शन 16, 17, 18) |
बच्चे को छोड़ना |
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12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को छोड़ने वाले माता-पिता या अभिभावक को 7 साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है। संज्ञेय, जमानत योग्य। (आईपीसी सेक्शन 317; बीएनएस क्लॉज 91) |
किशोर न्याय एक्ट, 2015: किसी बच्चे को परित्याग करने या परित्याग के लिए खरीदने पर 3 साल तक की कैद, 1 लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है। अपने नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण बच्चे को छोड़ने वाले जैविक माता-पिता को छूट है। (सेक्शन 75) |
लापरवाही से गाड़ी चलाना |
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6 महीने तक की कैद, 1,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। संज्ञेय, जमानत योग्य, कंपाउंडेबल। (आईपीसी सेक्शन 279; बीएनएस क्लॉज 279) |
मोटर वाहन एक्ट, 1988: पहले अपराध के लिए सज़ा: 6 महीने तक कारावास और/या 5,000 रुपए तक जुर्माना। तीन साल के भीतर अगला अपराध: 2 साल तक की कैद और/या 10,000 रुपए तक का जुर्माना। संज्ञेय, जमानत योग्य, कंपाउंडेबल। (सेक्शन 184) |
स्रोत: आईपीसी, बीएनएस, विभिन्न विशेष कानून; पीआरएस।
संगठित अपराध और आतंकवाद से संबंधित अपराधों को जोड़ना
वर्तमान में संगठित अपराध और आतंकवादी कृत्य आईपीसी के अंतर्गत शामिल नहीं हैं। आतंकवादी कृत्य गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) एक्ट, 1967 (यूएपीए) के अंतर्गत आते हैं। संगठित अपराध राज्य कानूनों जैसे महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण एक्ट, 1999 (मकोका) और कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान द्वारा लागू समान कानूनों के अंतर्गत आता है।[20] बीएनएस में संगठित अपराध और आतंकवाद दोनों से संबंधित अपराध जोड़े गए हैं। संगठित अपराध को बीएनएस में एक अपराध के रूप में जोड़ने से वह अंतर दूर हो जाता है क्योंकि ये अपराध सभी राज्यों में हो सकते हैं, जिनमें वे राज्य भी शामिल हैं जिन्होंने कोई विशेष कानून नहीं बनाया है। हालांकि इससे उन राज्यों में कानूनों का दोहराव भी पैदा होता है जहां पहले से ही ऐसे विशेष कानून हैं। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य बिल, 2023 (बीएसबी) जो क्रमशः आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य एक्ट, 1872 की जगह लेते हैं, इन अपराधों के लिए एक अलग आपराधिक प्रक्रिया प्रदान नहीं करते हैं। संगठित अपराध और आतंकवाद पर विशेष कानूनों में सामान्य आपराधिक प्रक्रिया से कई भिन्नताएं हैं। वे अभियुक्तों के लिए कुछ सुरक्षा उपाय हटाते हैं, जैसे जमानत की शर्तें और पुलिस में कबूलनामे की स्वीकार्यता। यूएपीए के तहत मामलों की सुनवाई राष्ट्रीय जांच एजेंसी एक्ट, 2008 के तहत की जाती है, जो ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित करती है।[21] बीएनएसएस के तहत, आतंकवाद के मामलों की सुनवाई सत्र न्यायालयों में की जाएगी। इसके परिणामस्वरूप समान अपराधों के लिए अलग-अलग जांच और ट्रायल प्रक्रियाएं होंगी। गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने बीएनएसएस में संगठित अपराध के लिए विशेष आपराधिक प्रक्रियाएं प्रदान करने का सुझाव दिया है।11
पहचान के कुछ आधारों पर एक समूह द्वारा हत्या
बिल कुछ आधारों पर पांच या अधिक व्यक्तियों द्वारा की गई हत्या के लिए अलग दंड निर्दिष्ट करता है। इस अपराध के लिए कम से कम सात साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास या मौत तक की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है। आधार नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या कोई अन्य आधार हैं।
इस अपराध में हत्या के समान इरादे और परिणाम शामिल हैं, जिसका आईपीसी में पहले से ही प्रावधान है। इन निर्दिष्ट आधारों पर किसी समूह द्वारा हत्या के लिए न्यूनतम दंड हत्या के लिए दंड, जो कि मौत या आजीवन कारावास है, से कम है। जुर्माने में अंतर का औचित्य स्पष्ट नहीं है। गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने क्लॉज से सात साल की कैद को हटाने का सुझाव दिया।11 बिल जाति और भाषा जैसे पहचान चिह्नों को निर्दिष्ट करता है, लेकिन धर्म को निर्दिष्ट नहीं करता है।
महिलाओं के साथ अपराध
बीएनएस ने बलात्कार से संबंधित आईपीसी के प्रावधानों को बरकरार रखा है। इसमें महिलाओं के साथ अपराधों में सुधार पर न्यायमूर्ति वर्मा समिति (2013) और सर्वोच्च न्यायालय के कई सुझावों को शामिल नहीं किया गया है। इनमें से कुछ का उल्लेख हम नीचे कर रहे हैं।
तालिका 2: महिलाओं से होने वाले अपराधों के संबंध में सुझाव
सुझाव |
बीएनएस में शामिल है अथवा नहीं |
बलात्कार (आईपीसी सेक्शन 375)- बलात्कार केवल योनि, मुंह या गुदा में प्रवेश तक सीमित नहीं होना चाहिए। यौन प्रकृति के किसी भी गैर-सहमति प्रवेश को बलात्कार की परिभाषा में शामिल किया जाना चाहिए। वैवाहिक बलात्कार का अपवाद हटाया जाना चाहिए।9 |
नहीं। मूल प्रावधान क्लॉज 63 में बरकरार रखा गया है। |
महिला के शील को भंग करने के लिए शब्द, इशारा या कार्य (आईपीसी सेक्शन 509)- सेक्शन को निरस्त किया जाना चाहिए। 'छेड़छाड़' का अपराध आईपीसी के सेक्शन 354 (सेक्शन 73) के तहत आरोपित किया जा सकता है। आईपीसी से 'महिलाओं के शील' शब्द हटाएं।9 |
नहीं, मूल प्रावधान क्लॉज 78 में बरकरार रखा गया है। |
महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग (आईपीसी सेक्शन 354बी)- जुर्माने को कम से कम पांच साल से लेकर 10 साल तक की कैद तक बढ़ाया जाना चाहिए।[22] |
नहीं, जुर्माना कम से कम तीन साल से लेकर सात साल तक की कैद है (क्लॉज 75)। |
व्यभिचार (आईपीसी सेक्शन 497)- यह सेक्शन अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है। यह लैंगिक रूढ़िवादिता के आधार पर पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर पैदा करता है, और मनमाना है। व्यभिचार को अपराध नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।3 |
हां। व्यभिचार को छोड़ दिया गया है। हालांकि बीएनएस ने आईपीसी के सेक्शन 498 (क्लॉज 83) को बरकरार रखा है जो एक पुरुष को दूसरे पुरुष की पत्नी को लुभाने के लिए दंडित करता है ताकि वह किसी भी व्यक्ति के साथ संभोग कर सके। |
स्रोत: एंडनोट्स देखें; पीआरएस
राजद्रोह के पहलुओं को बरकरार रखा गया है
आईपीसी राजद्रोह को सरकार के प्रति घृणा, अवमानना, या उत्तेजक असंतोष लाने या लाने का प्रयास करने के रूप में परिभाषित करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान पीठ द्वारा समीक्षा किए जाने तक राजद्रोह के अपराध पर रोक लगा दी है।[23] बीएनएस इस अपराध को हटाता है। इसके बजाय, यह एक प्रावधान जोड़ता है जो निम्नलिखित को दंडित करता है: (i) अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, या विध्वंसक गतिविधियों के लिए उकसाना या उकसाने का प्रयास करना, (ii) अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को बढ़ावा देना, या (iii) भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालना। इन अपराधों में शब्दों या संकेतों का आदान-प्रदान, इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों का उपयोग शामिल हो सकता है। यह तर्क दिया जा सकता है कि नया प्रावधान राजद्रोह के अपराध के कुछ पहलुओं को बरकरार रखता है और उन कृत्यों की सीमा को विस्तृत करता है जिन्हें भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरे के रूप में देखा जा सकता है। 'विध्वंसक गतिविधियां' जैसे शब्द भी परिभाषित नहीं हैं, और यह स्पष्ट नहीं है कि कौन सी गतिविधियां इस मानदंड को पूरा करेंगी।
1962 में सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह को उन कृत्यों तक सीमित कर दिया था जो सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने या हिंसा भड़काने का इरादा या प्रवृत्ति रखते हैं।[24] उल्लेखनीय है कि बीएनएस में राजद्रोह शब्द का उल्लेख नहीं है लेकिन इसके बावजूद बीएनएसएस में बीएनएस (सेक्शन 150, 195, 297) में 'राजद्रोह के मामलों' का संदर्भ मौजूद है।
एकांत कारावास मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है
आईपीसी उन अपराधों के लिए एकांत कारावास की अनुमति देता है जिनमें कठोर कारावास की सज़ा होती है। ऐसे अपराधों में आपराधिक साजिश, यौन उत्पीड़न, अपहरण या हत्या के लिए अपहरण शामिल हैं। बीएनएस ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है। जेल एक्ट, 1894, जो एकांत कारावास की भी अनुमति देता है, कई राज्य कानूनों द्वारा अपनाया गया है।[25] एकांत कारावास पर प्रावधान न्यायालय के फैसलों और विशेषज्ञों के सुझावों के के अनुरूप नहीं हैं।
सर्वोच्च न्यायालय (1979) ने कहा है कि कैदियों को एकांत कक्षों में धकेलने जैसे उपाय उन्हें अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित करते हैं।[26] 1971 में विधि आयोग ने आईपीसी से एकांत कारावास को हटाने का कहा था। यह कहा गया कि ऐसी कैद आधुनिक सोच के अनुरूप नहीं और इसे किसी भी आपराधिक अदालत द्वारा सज़ा के तौर पर नहीं दिया जाना चाहिए।[27] 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने विधि आयोग के सुझाव को मानते हुए कहा था कि एकांत कारावास सिर्फ असाधारण मामलों में दी जानी चाहिए।[28]
सामुदायिक सेवा का दायरा अस्पष्ट है
बीएनएस दंड के रूप में सामुदायिक सेवा को शामिल करता है। यह इस सज़ा को निम्न अपराधों तक बढ़ाता है: (i) 5,000 रुपए से कम मूल्य की संपत्ति की चोरी, (ii) एक लोक सेवक को रोकने के इरादे से आत्महत्या का प्रयास, और (iii) सार्वजनिक स्थल पर नशे में दिखना और परेशानी का कारण बनना। बीएनएस यह परिभाषित नहीं करता है कि सामुदायिक सेवा में क्या शामिल होगा और इसे कैसे लागू किया जाएगा। गृह मामलों से संबंधित कमिटी (2023) ने 'सामुदायिक सेवा' की अवधि और प्रकृति की परिभाषा देने का सुझाव दिया था।11
ड्राफ्टिंग से संबंधित मुद्दे
बीएनएस में ड्राफ्टिंग से संबंधित कई मुद्दे हैं। हम यहां उनका उल्लेख कर रहे हैं:
तालिका 3: छूटने वाले अपराध, ड्राफ्टिंग से संबंधित मुद्दे और पुराने ढंग के उदाहरण
छूटने वाले अपराध |
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आईपीसी सेक्शन 375 और 377 |
सेक्शन 375 किसी महिला के साथ बलात्कार को अपराध के रूप में निर्दिष्ट करता है। सेक्शन 377 "किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के खिलाफ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संभोग" को अपराध निर्दिष्ट करता है; सर्वोच्च न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंध को बाहर करने के लिए इसके कुछ हिस्सों को रद्द कर दिया था। इसका मतलब यह था कि किसी वयस्क पुरुष के साथ जबरन संबंध बनाना अपराध है, वैसे ही किसी जानवर के साथ संबंध बनाना भी अपराध है। बच्चों से बलात्कार चाहे उनका जेंडर कोई भी हो, पॉक्सो एक्ट, 2012 के तहत अपराध है। बीएनएस में सेक्शन 377 नहीं है। यानी किसी वयस्क पुरुष का बलात्कार किसी भी कानून में अपराध नहीं होगा, न ही किसी पशु के साथ संभोग अपराध होगा। गृह मामलों से संबंधित कमिटी (2022) ने इस प्रावधान को फिर से लागू करने का सुझाव दिया है। |
ड्राफ्टिंग से संबंधित मुद्दे |
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क्लॉज |
मुद्दे |
23 |
नशे में कोई कृत्य करना। आईपीसी (सेक्शन 85) ने किसी व्यक्ति के लिए एक सामान्य अपवाद दिया है, अगर वह नशे में है और सही और गलत के बीच अंतर करने में असमर्थ है, बशर्ते कि वह व्यक्ति अनजाने में या जबरन नशे में था। बीएनएस "बशर्ते कि" को "जब तक" से बदलता है; इसका तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति स्वेच्छा से नशा करता है, उसे दोषमुक्त कर दिया जाएगा। |
150 |
आईपीसी के सेक्शन 124ए को प्रतिस्थापित करता है, और "राजद्रोह" शब्द को हटा देता है। स्पष्टीकरण (संभवतः यह कहना कि क्या अपराध नहीं होगा) एक अधूरा वाक्य है। |
पुराने ढंग के संदर्भ (जिन्हें आधुनिक जीवन के उदाहरणों से बदलने की जरूरत हो सकती है) |
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127 |
उदाहरण: (बी) जेड एक रथ पर सवार है। ए, जेड के घोड़ों को मारता है, और इस प्रकार उनकी गति तेज़ कर देता है। यहां ए ने जानवरों को अपनी गति बदलने के लिए प्रेरित करके जेड की गति में परिवर्तन किया है। इसलिए ए ने जेड पर बल प्रयोग किया है; और अगर ए ने जेड की सहमति के बिना यह इरादा रखते हुए या यह जानते हुए किया है कि वह जेड को घायल कर सकता है, डरा सकता है या परेशान कर सकता है, तो ए ने जेड पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है। अन्य उदाहरण पालकी (क्लॉज 127 में उदाहरण सी) और तोपों (क्लॉज 100 में उदाहरण डी) से संबंधित हैं। |
स्रोत: बीएनएस, आईपीसी; पीआरएस।
[1]. The Criminal Law (Amendment) Act, 2018, The Criminal Law (Amendment) Act, 1983, The Criminal Law (Amendment) Act, 2013.
[2]. WP (Criminal) No. 76 of 2016, Navtej Singh Johar & Ors vs. Union of India, Supreme Court, September 6, 2018.
[3]. WP (Criminal) No. 194 of 2017, Joseph Shine vs. Union of India, Supreme Court, September 27, 2018.
[4]. 1994 AIR 1844, R. Pathinam vs. Union of India, Supreme Court, April 26 1994.
[5]. The Indian Penal Code (Tamil Nadu Amendment) Act, 2021.
[6]. The Indian Penal Code (Andhra Pradesh Amendment) Act, 1991.
[7]. Criminal Laws (Rajasthan Amendment) Bill, 2018
[8]. Indian Penal Code (Punjab Amendment) Bill, 2018.
[9]. Report of the Committee on Amendments to Criminal Law, 2013 (Verma Committee).
[10]. Report 264, Law Commission of India, 2017; Report 262, Law Commission of India, 2015.
[11]. Report No. 246, The Bharatiya Nyaya Sanhita, Standing Committee on Home Affairs, Rajya Sabha, November 10, 2023
[12]. Section 330, The Code of Criminal Procedure, 1973.
[13]. Section 85, Indian Penal Code, 1860.
[14]. 1960 AIR 633, The Superintendent Central Jail, Fatehgarh vs. Ram Manohar Lohia, Supreme Court, January 21, 1960.
[15]. PostNote 588, Age of Criminal Responsibility, Parliamentary Office of Science and Technology, The United Kingdom, June 2018.
[16]. Report of the Committee on Rights of the Child, United Nations.
[17]. Section 19, The German Criminal Code, 1998.
[18]. “Age of criminal responsibility”, The Government of the United Kingdom.
[19]. “If a young person gets in trouble with the police”, The Government of Scotland.
[20]. Maharashtra Control of Organized Crime Act, 1999, Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime Act, 2015.
[22]. Report No. 167, The Criminal Law (Amendment) Bill, 2012, Standing Committee on Home Affairs, Rajya Sabha, March 4, 2013.
[23]. Writ Petition (Civil) No. 682/2021, SG Vombatkere vs. Union of India, Supreme Court, September 12, 2021.
[24]. 1962 AIR, Kedar Nath Singh vs. State of Bihar, Supreme Court, January 20, 1962.
[25]. Section 29, Prisons Act, 1894.
[26]. 1980 AIR 1579, Sunil Batra(II) vs. Delhi Administration, Supreme Court, December 20, 1979.
[27]. Report No. 42, Law Commission of India, 1971.
[28]. 1978 AIR 1675, Sunil Batra vs. Delhi Administration and Ors, Supreme Court, August 30, 1978.
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