मंत्रालय: 
जल संसाधन
  • जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने 14 मार्च, 2017 को लोकसभा में अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) बिल, 2017 पेश किया। बिल अंतरराज्यीय नदी जल विवाद एक्ट, 1956 में संशोधन करता है।
     
  • विवाद निवारण समिति : एक्ट के तहत जब राज्य सरकार की ओर से जल विवाद से संबंधित कोई शिकायत केंद्र सरकार को मिलती है तो केंद्र सरकार प्रभावित राज्यों से विवाद को हल निकालने के लिए बातचीत करने का आग्रह कर सकती है। अगर बातचीत से इस विवाद का हल नहीं निकलता तो केंद्र सरकार को ऐसी किसी शिकायत के मिलने के एक वर्ष के भीतर जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन करना होता है।
     
  • बिल इस प्रावधान को हटाता है और यह प्रावधान करता है कि केंद्र सरकार विवाद निवारण समिति (डीआरसी) का गठन करेगी ताकि दोस्ताना तरीके से राज्यों के बीच के जल विवादों को सुलझाया जा सके। डीआरसी को केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए एक वर्ष का समय मिलेगा जिसे अधिकतम छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकेगा।
     
  • डीआरसी के सदस्य : डीआरसी में संबंधित क्षेत्रों के ऐसे लोगों को सदस्य के रूप में चुना जाएगा, जिन्हें केंद्र सरकार विवाद का निवारण करने के लिए उपयुक्त समझे।
     
  • ट्रिब्यूनल : अगर डीआरसी के जरिए विवाद का हल नहीं निकले, तो बिल के अनुसार, उस पर निर्णय लेने के लिए (एड्जुडिकेशन के लिए) अंतरराज्यीय नदी जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया जाए। इस ट्रिब्यूनल की कई शाखाएं हो सकती हैं।
     
  • सभी मौजूदा ट्रिब्यूनलों को भंग कर दिया जाएगा और उन ट्रिब्यूनलों में निर्णय लेने के लिए जो मामले लंबित पड़े होंगे, उन्हें नए गठित ट्रिब्यूनल में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
     
  • ट्रिब्यूनल की संरचना : ट्रिब्यूनल में चेयरपर्सन, वाइस चेयरपर्सन और अधिकतम छह नामित सदस्य होंगे (सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के जज) जिन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित किया जाएगा। केंद्र सरकार कार्यवाही के दौरान खंडपीठ को सलाह देने के लिए सेंट्रल वॉटर इंजीनियरिंग सर्विस के दो विशेषज्ञों को असेसर के रूप में नियुक्त कर सकती है, जोकि चीफ इंजीनियर के पद से निचले स्तर के अधिकारी नहीं होने चाहिए।
     
  • ट्रिब्यूनल को निर्णय लेने के लिए प्रदत्त समय : एक्ट के तहत किसी भी जल विवाद ट्रिब्यूनल को तीन वर्ष की अवधि के अंदर किसी विवाद पर अपना फैसला देना होता है। इस अवधि को अधिकतम दो वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है। बिल के तहत प्रस्तावित ट्रिब्यूनल को दो वर्षों की अवधि के अंदर विवाद पर अपना फैसला देना होगा। इस अवधि को अधिकतम एक वर्ष के लिए और बढ़ाया जा सकता है।
     
  • एक्ट के तहत अगर राज्य और विचार करने के लिए किसी मामले को दोबारा ट्रिब्यूनल के पास भेजता है तो ट्रिब्यूनल को अपनी रिपोर्ट एक वर्ष के अंदर केंद्र सरकार को सौंपनी होगी। इस एक वर्ष की अवधि को केंद्र सरकार उस अवधि तक के लिए बढ़ा सकती है, जो उसे जरूरी लगे। बिल इस प्रावधान में संशोधन करता है और कहता है कि यह अवधि अधिक से अधिक छह महीने हो सकती है।
     
  • ट्रिब्यूनल का फैसला : एक्ट के तहत, ट्रिब्यूनल का फैसला केंद्र के सरकारी गजट में प्रकाशित होना चाहिए। प्रकाशन के बाद इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के समान ही लागू माना जाएगा।
     
  • बिल में सरकारी गजट में फैसले के प्रकाशन की जरूरत को हटा दिया गया है। बिल में यह भी कहा गया है कि ट्रिब्यूनल की खंडपीठ का फैसला अंतिम और विवाद में शामिल सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी होगा। इसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के समान ही लागू माना जाएगा।
     
  • डेटा बैंक और सूचनाओं का रखरखाव : एक्ट के तहत केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक नदी बेसिन से जुड़े डेटा बैंक और सूचना प्रणाली का रखरखाव करेगी। बिल के तहत केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक नदी बेसिन से जुड़े डेटा बैंक और सूचना प्रणाली का रखरखाव करने के लिए एक एजेंसी को नियुक्त या अधिकृत करेगी।
     
  • नियम बनाने का अतिरिक्त अधिकार : बिल केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि पानी की कमी के कारण उत्पन्न होने वाली तनावपूर्ण स्थिति में वह जल वितरण से संबंधित नियम बना सकती है।

 

 

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