बिल की मुख्य विशेषताएं
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इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 (संहिता) कंपनियों और व्यक्तियों की इनसॉल्वेंसी के रेज़ोल्यूशन के लिए एक समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करती है। यह बिल उन प्रक्रियागत विलंब और व्याख्या संबंधी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करता है जिनका सामना संहिता को करना पड़ा है।
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बिल स्पष्ट करता है कि वैधानिक बकाया राशि को सुरक्षित लेनदारों का दर्जा प्राप्त नहीं है। यह संहिता में दी गई समय-सीमा को और पुष्ट करता है।
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बिल दावों को स्वीकार/अस्वीकार करने और उनके मूल्य निर्धारण के संबंध में लिक्विडेटर की शक्तियों को समाप्त करता है। यह लेनदारों की समिति (सीओसी) को अधिकार देता है कि वह लिक्विडेटर को नियुक्त या उसे हटा सकती है और लिक्विडेशन की प्रक्रिया की निगरानी कर सकती है।
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बिल में लेनदारों की तरफ से शुरू की गई इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया (सीआईआईआरपी) को पेश किया गया है जिसके तहत चुनींदा वित्तीय संस्थानों द्वारा अदालत के बाहर इनसॉल्वेंसी की कार्यवाही शुरू की जा सकती है। इसके अलावा सीआईआईआरपी के दौरान कंपनी पर कंपनी का ही नियंत्रण बना रहता है।
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बिल केंद्र सरकार को ग्रुप इनसॉल्वेंसी और सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया से संबंधित नियम बनाने का अधिकार देता है।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
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लिक्विडेशन की प्रक्रिया के लिए संहिता दावों के संबंध में लिक्विडेटर को अर्ध-न्यायिक शक्तियां प्रदान करती है। यह दावों की अंतिमता सुनिश्चित करने के लिए है क्योंकि लिक्विडेशन के तहत परिसंपत्तियों के वितरण के बाद विभिन्न पक्षों के अधिकार समाप्त हो जाते हैं। लेकिन बिल लिक्विडेटर की इन शक्तियों को हटाता है और अब लिक्विडेटर को सीओसी की निगरानी में कार्य करना होगा।
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सीआईआईआरपी को केवल वही वित्तीय संस्थान शुरू कर सकते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया हो। यह अस्पष्ट है कि कुछ वित्तीय संस्थानों को दूसरों की तुलना में वरीयता क्यों दी जानी चाहिए।
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डीफॉल्ट होने पर सीआईआईआरपी को शुरू किया जा सकता है, जब वैल्यू में गिरावट पहले ही शुरू हो जाती है। इससे परिसंपत्तियों का अधिकतम मूल्य हासिल करने का संहिता का उद्देश्य कमज़ोर पड़ सकता है।
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अधिसूचित वित्तीय लेनदार के ऋण पर डीफॉल्ट होने पर सीआईआईआरपी को शुरू किया जा सकता है। अगर ऑपरेशनल या अन्य वित्तीय ऋण पर डीफॉल्ट पहले हो जाता है, और वे लेनदार पहले कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया शुरू करते हैं, तो वित्तीय लेनदार सीआईआईआरपी को शुरू नहीं कर पाएगा।
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बिल में सीओसी के गठन से पहले तथा रेज़ोल्यूशन प्लान के आमंत्रण के बाद इनसॉल्वेसी के आवेदन को वापस लेने की अनुमति नहीं है। इससे जल्दी और अदालतों के बाहर समझौतों की गुंजाइश कम होगी।
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यह बिल केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया के लिए नियम बना सकती है लेकिन वह इसके लिए स्पष्ट मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान नहीं करता। यह अत्यधिक अधिकार सौंपने जैसा हो सकता है।
भाग क: बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
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2016 में इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता लागू की गई थी, जिसका उद्देश्य कंपनियों और व्यक्तियों की इनसॉल्वेंसी से निपटने के लिए एक एकीकृत, समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करना है। इनसॉल्वेंसी का अर्थ है, ऋण चुकाने या वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में असमर्थता। इस संहिता का उद्देश्य इनसॉल्वेंट कंपनियों का पुनर्गठन करना है ताकि वे एक चालू व्यवसाय के रूप में कायम रहें। अगर ऐसा संभव न हो, तो संहिता में कंपनी के लिक्विडेशन का प्रावधान है। यह संहिता निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है: (क) परिसंपत्तियों का मूल्य अधिकतम करना, (ख) इनसॉल्वेंसी का समय पर और कुशलता से समाधान, और (ग) प्रक्रिया की पारदर्शिता और पूर्वानुमान। पर्सनल इनसॉल्वेंसी के प्रावधानों को अभी लागू किया जाना है। |
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तालिका 1: 30 जून, 2025 तक संहिता के तहत क्लोज किए गए सीआईआरपी मामलों के परिणाम
स्रोत: भारतीय इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी बोर्ड; पीआरएस। संहिता के तहत, कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया (सीआईआरपी) को वित्तीय लेनदार, ऑपरेशनल लेनदार या खुद कंपनी शुरू कर सकती है। वित्तीय लेनदार वह व्यक्ति या संस्थान होते हैं जिन्होंने कंपनी को ऋए दिए हों, जबकि ऑपरेशनल लेनदार वे होते हैं जिनकी वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति पर धनराशि बकाया होती है। एक करोड़ रुपए या उससे अधिक की धनराशि के डीफॉल्ट पर राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में सीआईआरपी के लिए आवेदन किया जा सकता है। सीआईआरपी के लिए रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल्स (आरपी) को नियुक्त किया जाता है। एक बार सीआईआरपी शुरू होने पर कंपनी का नियंत्रण कंपनी की जगह लेनदार को मिल जाता है। सभी वित्तीय लेनदारों वाली कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स (सीओसी) कारोबारी फैसले लेती है और एक रेज़ोल्यूशन प्लान चुनती है। रेज़ोल्यूशन प्लान में बताया जाता है कि कंपनी के ऋण को कैसे पुनर्गठित किया जाए या निपटाया जाए, ताकि कंपनी बची रहे। अगर एक समय सीमा में रेज़ोल्यूशन प्लान मंजूर नहीं होता, या सीओसी यह तय करती है कि कंपनी को बचाया नहीं जा सकता तो एनसीएलटी लिक्विडेशन का आदेश जारी कर देता है। लिक्विडेशन में कंपनी की परिसंपत्तियों को बेचा जाता है और निर्दिष्ट आदेश के अनुसार बिक्री की प्राप्तियों को वितरित किया जाता है। फिर कंपनी बंद कर दी जाती है। एनसीएलटी इस प्रक्रिया के प्रबंधन के लिए एक लिक्विडेटर की नियुक्ति करता है। आरपी और उसकी एजेंसियों को भारतीय इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी बोर्ड द्वारा रेगुलेट किया जाता है। एनसीएलटी के आदेशों के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकती है। जून 2025 में सीआरपीआई के 8,492 मामले दाखिल किए गए थे।[1] इनमें से 1,905 मामले जारी हैं, जबकि बाकी के क्लोज कर दिए गए हैं। जिन सीआईआरपी के बाद रेज़ोल्य़ून प्लान बनाया गया है, उन्हें पूरा होने में औसतन 602 दिन लगे, जबकि संहिता के तहत 330 दिन की समय सीमा है। लगभग 78% मौजूदा सीआईआरपी 270 दिनों से ज्यादा समय से चल रही हैं। निपटाए गए मामलों में स्वीकृत दावों का लगभग 33% और लिक्विडेशन मूल्य का 171% वसूल किया गया है। जिन सीआईआरपी के बाद लिक्विडेशन हुआ, उनमें सीआईआरपी में औसतन 512 दिन लगे। जून 2025 तक जिन कंपनियों का पूरी तरह से लिक्विडेशन हो चुका था, उनसे लिक्विडेशन मूल्य के 90% के बराबर वसूली हुई। इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) बिल, 2025 को 12 अगस्त, 2025 को लोकसभा में पेश किया गया। बिल का उद्देश्य प्रक्रियागत विलंब, रिकवरी के परिणामों की अनिश्चितता और न्यायिक फैसलों की अस्पष्टता को दूर करना है। बिल कंपनियों के लिए वैकल्पिक रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया तथा ग्रुप इनसॉल्वेंसी और सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया के लिए फ्रेमवर्क प्रदान करने का प्रयास भी करता है। बिल को लोकसभा की सिलेक्ट कमिटी (चेयर: श्री बैजयंत पांडा) को भेजा गया है। मुख्य विशेषताएं |
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सीआईआरपी को दाखिल करना: संहिता में कहा गया है कि अगर डीफॉल्ट साबित हो जाता है, आवेदन पूरा हो जाता है और प्रस्तावित आरपी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित नहीं है, तो एनसीएलटी सीआईआरपी को स्वीकार कर सकता है। एनसीएलटी आवेदन प्राप्त होने के 14 दिनों के भीतर आदेश पारित करेगा। बिल उपरोक्त शर्तों के पूरा होने पर आवेदन को स्वीकार करना अनिवार्य बनाता है। वह निर्दिष्ट करता है कि: (i) किसी आवेदन को अस्वीकार करने के लिए किसी अन्य आधार पर विचार नहीं किया जा सकता है, (ii) अगर 14 दिनों के भीतर कोई आदेश पारित नहीं होता है, तो एनसीएलटी को लिखित में कारण दर्ज करने होंगे और (ii) वित्तीय संस्थानों के रिकॉर्ड डीफॉल्ट का पर्याप्त प्रमाण होंगे।
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आवेदन की वापसी: बिल में इनसॉल्वेंसी के आवेदन को वापस लेने की अनुमति है, लेकिन सीओसी के बनने के बाद और रेज़ोल्यूशन प्लान के पहले आमंत्रण से पहले। आवेदन वापस लेने के लिए सीओसी के 90% सदस्यों की मंजूरी जरूरी होगी। इस समय सीओसी के गठन से पहले और रेज़ोल्यूशन प्लान के पहले आमंत्रण के बाद आवेदन वापस लेने की अनुमति है। बिल में शेयरधारकों के विशेष प्रस्ताव द्वारा स्वैच्छिक लिक्विडेशन को वापस लेने की अनुमति है और अगर जरूरी हो तो दो-तिहाई मूल्य के ऋणदाताओं के प्रस्ताव द्वारा इसे वापस लिया जा सकता है।
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लिक्विडेशन के दौरान सीओसी की भूमिका: बिल सीओसी की शक्ति देता है कि वह लिक्विडेशन की निगरानी कर सकती है। तब स्टेकहोल्डर कंसल्टेशन कमिटी (एससीसी) का गठन किया जाता है जिसमें सभी लेनदार, कर्मचारी और लिक्विडेशन के दौरान शेयरधारक/पार्टनर शामिल होते हैं। लिक्विडेटर को मुख्य फैसलों पर एससीसी की सलाह लेनी होती है। हालांकि उसकी सलाह लिक्विडेटर के लिए बाध्यकारी नहीं होती। बिल में यह प्रावधान भी है कि आरपी खुद लिक्विडेटर के तौर पर नियुक्त नहीं होगा। सीओसी के प्रस्ताव पर लिक्विडेटर की नियुक्ति होगी। सीओसी लिक्विडेटर की जगह भी ले सकती है।
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लिक्विडेशन के लिए समय सीमा: बिल में यह भी कहा गया है कि एनसीएलटी को आवेदन या सूचना की तारीख से 30 दिनों के भीतर लिक्विडेशन का आदेश पारित करना होगा। इसमें यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि लिक्विडेशन की कार्यवाही 180 दिनों में पूरी होनी चाहिए, जिसे 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। बिल में यह भी कहा गया है कि स्वैच्छिक लिक्विडेशन की कार्यवाही एक वर्ष के भीतर पूरी होनी चाहिए।
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प्रतिभूति हित और वैधानिक बकाया: बिल स्पष्ट करता है कि 'प्रतिभूति हित' में कानूनी प्रावधानों के आधार पर सृजित प्रतिभूति हित शामिल नहीं है। इसके अतिरिक्त सरकारी बकाया को 'प्रतिभूत लेनदार' का दर्जा प्राप्त नहीं है। कंपनी की उन परिसंपत्तियों पर लेनदार के कानूनी अधिकार को ‘प्रतिभूति हित’ कहा जाता है जोकि कोलेट्रल के रूप में काम करता है।
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सीआईआईआरपी को पेश करना: बिल में लेनदार की तरफ से शुरू की गई इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया को पेश किया गया है। सीआईआईआरपी निम्नलिखित प्रकार से सीआईआरपी से अलग है: (i) इसे सिर्फ निदिष्ट वित्तीय लेनदारों की तरफ से शुरू किया जा सकता है, (ii) इसे अदालत के बाहर शुरू किया जाता है, जब कम से कम 51% (ऋण के मूल्य के अनुसार) अधिसूचित वित्तीय लेनदार इस पर सहमत हों, और (iii) सीआईआईआरपी के दौरान कंपनी का प्रबंधन कंपनी के पास ही बना रहेगा, जिसकी निगरानी आरपी द्वारा की जाएगी। सीआईआईआरपी को 150 दिनों के भीतर समाप्त होना चाहिए, जिसे 45 दिनों के लिए बढ़ाया जा सकता है। सीओसी किसी भी समय सीआईआईआरपी को सीआईआरपी में परिवर्तित करने का निर्णय ले सकती है तथा उस परिवर्तन के लिए एनसीएलटी से आदेश मांग सकती है।
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सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी: बिल केंद्र सरकार को सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया के प्रबंधन और संचालन के तरीके और शर्तें निर्धारित करने का अधिकार देता है।
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समूह की इनसॉल्वेंसी: यह बिल केंद्र सरकार को ग्रुप इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया के लिए नियम निर्धारित करने का अधिकार देता है। नियमों में ऐसे देनदारों के लिए एक सामान्य पीठ, प्रक्रियाओं के बीच समन्वय, सामान्य इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल्स और कंपनी के सीओसीज़ की एक समिति का प्रावधान किया जा सकता है।
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गारंटर की परिसंपत्तियां: यह बिल किसी लेनदार को, जो किसी गारंटर की परिसंपत्ति पर प्रतिभूति हित रखता है और किसी भी कानून के तहत उस परिसंपत्ति पर कब्ज़ा कर चुका है, उस परिसंपत्ति को कॉरपोरेट कंपनी की सीआईआरपी के हिस्से के रूप में हस्तांतरित करने का अधिकार देता है। ऐसा केवल सीओसी की स्वीकृति से ही किया जा सकता है। जहां गारंटर इनसॉल्वेंसी या बैंकरप्सी की प्रक्रिया से भी गुज़र रहा हो, वहां गारंटर के लेनदारों की मंजूरी भी जरूरी होगी।
ख: मुख्य मुद्दे और विश्लेषण
लिक्विडेशन की प्रक्रिया का पुनर्गठन
बिल सीओसी को लिक्विडेशन की प्रक्रिया के संचालन की निगरानी का अधिकार देता है। इसमें प्रावधान है कि लिक्विडेटर की नियुक्ति सीओसी के प्रस्ताव पर की जाएगी। सीओसी, अपने 66% सदस्यों की स्वीकृति से लिक्विडेशन के दौरान लिक्विडेटर की जगह भी ले सकती है। बिल में लिक्विडेटर को दावों को एकजुट करने, उन्हें सत्यापित, मंजूर या नामंजूर करने तथा उनका मूल्य निर्धारित करने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है।
सीआईआरपी से लेकर लिक्विडेशन तक सीओसी की भूमिका का विस्तार
संहिता का मुख्य उद्देश्य समयबद्ध तरीके से कॉरपोरेट कंपनी का इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन करना है। उसकी प्राथमिकता कॉरपोरेट कंपनी को पुनर्जीवित रखना है ताकि वह एक चालू व्यवसाय के रूप में कायम रहे। यहां लिक्विडेशन आखिरी उपाय होता है।[2] परिसंपत्तियों की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए समय सीमा निर्दिष्ट की गई है। इसके लिए संहिता सीआईआरपी के तहत सीओसी द्वारा रेज़ोल्यूशन की निगरानी का प्रावधान करती है। अगर निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर रेज़ोल्यूशन नहीं होता है तो कंपनी लिक्विडिटी में चली जाती है। एनसीएलटी द्वारा लिक्विडेटर की नियुक्ति की जाती है। लिक्विडेटर के पास दावों पर फैसला लेने और परिसंपत्तियों का वितरण करने की अर्ध न्यायिक शक्तियां होती हैं। लिक्विडेटर को नियुक्त करने या उसके फैसलो की निगरानी करने में लेनदारों की कोई भूमिका नहीं होती।
संहिता के दो चरण हैं, जब कॉरपोरेट कंपनी पर नियंत्रण, एक इकाई से दूसरी को सौंप दिया जाता है। सीआईआरपी के शुरू होने पर, प्रबंधन (इक्विटी धारक) आरपी (जो लेनदारों का एक एजेंट होता है) को कार्यभार सौंप देता है। अगर सीओसी निर्धारित समय के भीतर रेज़ोल्यूशन प्लान को मंजूरी नहीं दे पाती है, तो कंपनी का नियंत्रण एक अर्ध-न्यायिक व्यक्ति (लिक्विडेटर) को सौंप दिया जाता है, जिसकी नियुक्ति एनसीएलटी करती है। बिल इस दूसरे चरण में संशोधन करता है और लिक्विडेशन की प्रक्रिया में भी सीओसी को शामिल करता है। इसके अतिरिक्त बिल सीओसी को यह अधिकार देता है कि वह लिक्विडेटर को नियुक्त कर सकती है, और उसे हटा सकती है। सीओसी लिक्विडेटर के फैसलों की निगरानी भी कर सकती है।
दूसरे क्षेत्राधिकारों में भी लेनदार लिक्विडेशन के दौरान कुछ किस्म की सुपरवाइजरी या सलाहकारी भूमिका निभाते हैं। यूके में लेनदारों को लिक्विडेशन कमिटी नियुक्त करने की अनुमति है जोकि लिक्विडेटर की कुछ शक्तियों को मंजूर करती है।[3],[4] हांगकांग में एक लिक्विडेटर न्यायालय में यह आवेदन कर सकता है कि कुछ लेनदारों या अंशदाताओं को नियुक्त करे, जोकि निरीक्षण समिति का गठन करें। यह समिति लिक्विडेटर को सलाह देगी और उसे सुपरवाइज करेगी और लिक्विडेटर की कुछ शक्तियों को मंजूर करेगी।[5] यूएस में चैप्टर 7 (लिक्विडेशन) में असुरक्षित लेनदारों की समिति के गठन का प्रावधान है।[6] जर्मन इनसॉल्वेंसी कोड के तहत क्रेडिटर्स की कमिटी जिसमें लेनदार और कर्मचारियों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, एक प्रारंभिक इनसॉल्वेंसी लिक्विडेटर को नामित करती है।[7] यह कमिटी इनसॉल्वेंसी लिक्विडेटर को सुपरवाइज करती है और महत्वपूर्ण कानूनी कार्यों के लिए अपनी सहमति देती है जैसे कंपनी की परिसंपत्तियों की बिक्री, उधारियां, और बड़ी राशि से जुड़े मुकदमे।
लिक्विडेटर की अर्ध न्यायिक शक्तियों को समाप्त करना
दावों के संबंध में लिक्विडेटर की शक्तियों को समाप्त करने का लिखित उद्देश्य यह है कि सीआईआरपी और लिक्विडेशन के बीच की गतिविधियों में डुप्लिकेशन को रोका जा सके। हालांकि आरपी और लिक्विडेटर की दावों से संबंधित भूमिका एक जैसी नहीं है। लिक्विडेटर की एडजुडिकेटिंग शक्तियां दावों को अंतिम रूप देती हैं, जोकि जरूरी हो सकता है, चूंकि एक बार परिसंपत्तियों का वितरण होने के बाद लिक्विडेशन से सभी पक्षों के अधिकार समाप्त हो जाते हैं।
संहिता के तहत लिक्विडेटर न सिर्फ एक पैसिव एडमिनिस्ट्रेटर होता है, बल्कि उसे दावों को मंजूर या नामंजूर करने और प्रस्तुत दावों का मूल्य निर्धारित करने की अर्ध-न्यायिक शक्तियां भी प्राप्त हैं। इसके विपरीत, सीआईआरपी के दौरान आरपी के पास सिर्फ दावों को सत्यापित करने का अधिकार है। स्विस रिबन्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस अंतर पर गौर किया था।[8] दावों के संबंध में आरपी और लिक्विडेटर भिन्न-भिन्न विषयों पर विचार करके फैसले लेते हैं। आरपी दावों की एक सूची के साथ रेज़ोल्यूशन प्लान्स को आमंत्रित करता है। वितरण के तरीके सहित रेज़ोल्यूशन प्लान को मंजूरी देने का निर्णय सीओसी का होता है। लिक्विडेशन का उद्देश्य कंपनी को समाप्त करना और प्राप्त राशि को लेनदारों के बीच बांटना होता है। लिक्विडेटर को यह सुनिश्चित करना होगा कि वितरण के लिए दावों को सही ढंग से क्रमबद्ध किया गया है।
सीआईआईआरपी को पेश करना
बिल कंपनियों के इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन के लिए एक वैकल्पिक प्रक्रिया प्रदान करता है, जिसे सीआईआईआरपी कहा जाता है। इस प्रक्रिया को सिर्फ निर्दिष्ट वित्तीय लेनदारों द्वारा शुरू किया जा सकता है। सीआईआईआरपी में अदालत से बाहर इनसॉल्वेंसी प्रक्रियाओं को शुरू करना शामिल है। इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए ऐसे कम से कम 51% लेनदारों की सहमति (ऋण के मूल्य के अनुसार) आवश्यक है। सीआईआईआरपी के दौरान कंपनी का प्रबंधन कंपनी के पास ही रहेगा, जो आरपी की निगरानी के अधीन होगा। सीओसी के फैसले के आधार पर सीआईआईआरपी को किसी भी समय सीआईआरपी में तब्दील किया जा सकता है।
सीआईआईआरपी को चुनींदा वित्तीय संस्थानों द्वारा ही शुरू किया जा सकता है, इस तरह कुछ को वरीयता मिलेगी
सीआईआईआरपी को केवल वही वित्तीय लेनदार शुरू कर सकते हैं जो एक विशिष्ट वर्ग के वित्तीय संस्थानों से संबंधित हैं और जिन्हें केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया हो। वित्तीय संस्थानों को सीआईआईआरपी शुरू करने का अधिकार देने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि इस प्रक्रिया का उपयोग पर्याप्त वित्तीय विशेषज्ञता और निगरानी रखने वाले लेनदारों द्वारा किया जाए। हालांकि इसे केवल कुछ अधिसूचित वर्गों के संस्थानों तक सीमित करने का औचित्य स्पष्ट नहीं है। इससे कुछ लेनदारों को दूसरों की तुलना में प्राथमिकता मिल सकती है। संबंधित अधिसूचना जारी होने पर इस मुद्दे की जांच जरूरी हो सकती है।
दूसरे क्षेत्राधिकारों में व्यापक नजरिया अपनाया जाता है। यूके में एक कंपनी, उसके निदेशक या सुरक्षित लेनदार, जिनके पास कंपनी की पूरी या काफी हद तक पूरी संपत्ति (क्वालिफाइंग फ्लोटिंग चार्ज होल्डर) का प्रभार है, अदालत के हस्तक्षेप के बिना एक प्रशासक नियुक्त कर सकते हैं।[9],[10] यूएस में कुछ मानदंड पूरे करने वाले असुरक्षित लेनदार चैप्टर 11 (पुनर्गठन) याचिका दायर कर सकते हैं।[11]
डीफॉल्ट ही प्रक्रिया को शुरू करने का कारण, इससे अधिकतम मूल्य हासिल करने का उद्देश्य कमज़ोर हो सकता है
संहिता के तहत, डीफॉल्ट होने पर इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। सीआईआईआरपी भी डीफॉल्ट होने पर ही शुरू होती है। डीफॉल्ट को ऋण (वित्तीय या ऑपरेशनल) का भुगतान न करने के रूप में परिभाषित किया जाता है, जब वह देय हो जाता है। इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया का एक प्रमुख उद्देश्य यह है कि परिसंपत्तियों का अधिकतम मूल्य प्राप्त किया जाए। हालांकि एक बार डीफॉल्ट होने के बाद, आमतौर पर वैल्यू गिरना शुरू हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वसूलियां कम हो जाती हैं।
कुछ क्षेत्राधिकारों में कंपनी की इनसॉल्वेंसी से पहले ही इनसॉल्वेंसी या पुनर्गठन शुरू हो सकता है। यूके में एक क्वालिफाइंग फ्लोटिंग चार्ज होल्डर को कुछ शर्तों को पूरा करने पर 'अदालत के बाहर' एक प्रशासक नियुक्त करने का अधिकार है।[12] सिक्योरिटी की शर्तों के उल्लंघन में कई बातें शामिल हैं, ऋण समझौतों के अनुरूप कुछ सॉल्वेंसी अनुपातों या इंश्योरेंस को बहाल न रखा। इससे कंपनियां स्ट्रेस के शुरुआती चरण में इसके तहत आ सकती हैं, इसके बावजूद वे तकनीकी रूप से इनसॉल्वेंट नहीं कहलाएं। जर्मनी में एक निवारक पुनर्गठन तंत्र है जो तब शुरू होता है, जब कंपनी 24 महीनों के भीतर अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हो जाती है।[13],[14]
अन्य लेनदारों द्वारा सीआईआईआरपी से पहले सीआईआरपी शुरू करने की आशंका
बिल में प्रावधान है कि सीआईआईआरपी केवल अधिसूचित वित्तीय लेनदार द्वारा ही शुरू की जा सकी है, और केवल तभी, जब ऐसे लेनदार को दिए गए ऋण पर डीफॉल्ट हुआ हो। बिल में निर्दिष्ट किया गया है कि एक बार कंपनी के लिए सीआईआरपी शुरू हो जाती है और वह जारी रहती है तो उसके खिलाफ सीआईआईआरपी शुरू नहीं की जा सकती। कोई कंपनी अधिसूचित वित्तीय लेनदार (लेनदारों) को देय ऋण का भुगतान न करने से पहले किराया, टैक्स, वेतन, देय व्यापारिक खातों जैसे भुगतान करना बंद कर सकती है। ऐसे मामलों में, ऑपरेशनल लेनदार, वित्तीय लेनदार (लेनदारों) को सीआईआईआरपी शुरू करने का मौका मिलने से पहले ही सीआईआरपी शुरू कर सकते हैं।
30 जून, 2025 तक 8,487 सीआईआरपी शुरू की गई थीं।[15] इनमें से 47.2% वित्तीय लेनदारों द्वारा दायर की गई थीं, जबकि 46.7% ऑपरेशनल लेनदारों द्वारा दायर की गई थीं। संहिता के तहत, सभी लेनदार (वित्तीय या ऑपरेशनल) एक ही प्रक्रिया, यानी सीआईआरपी शुरू करते हैं। इसके विपरीत सीआईआईआरपी एक अलग प्रक्रिया है जो केवल सीमित श्रेणी के वित्तीय संस्थानों के लिए उपलब्ध है।
वापसी की गुंजाइश कम करने से अदालत के बाहर समझौतों की गुंजाइश भी कम होगी
बिल में सीओसी के गठन के बाद और रेज़ोल्यूशन प्लान के पहले आमंत्रण से पहले इनसॉल्वेंसी के आवेदन को वापस लेने की अनुमति है। आवेदन वापस लेने के लिए सीओसी के 90% सदस्यों की सहमति जरूरी है। वापसी की गुंजाइश को कम करने से अधिकतम मूल्य हासिल करने का उद्देश्य कमज़ोर पड़ता है।
संहिता कहती है कि सीओसी के 90% सदस्यों की मंजूरी के साथ इनसॉल्वेंसी का आवेदन वापस लिया जा सकता है। आईबीबीआई द्वारा जारी सीआईआरपी रेगुलेशंस के तहत इनसॉल्वेंसी के आवेदन को निम्नलिखित के जरिए वापस लिया जा सकता है: (क) आवेदक द्वारा सीओसी के गठन से पहले, या (ख) सीओसी के गठन के बाद, उसके 90% सदस्यों की स्वीकृति से।[16] अगर आरपी की तरफ से रेज़ोल्यूशन प्लान के पहले आमंत्रण के बाद आवेदन वापस लेने की मांग की जाती है तो आवेदक को वापसी को उचित साबित करने के कारण बताने होंगे।
स्विस रिबन्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय (2019) ने स्पष्ट किया था कि अगर सीओसी का गठन अभी तक नहीं हुआ है, तो कोई पक्ष एनसीएलटी के पास जा सकता है। यह ट्रिब्यूनल एनसीएलटी नियम, 2016 के नियम 11 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करके वापसी के आवेदन को मंजूर या नामंजूर कर सकता है।[17],[18]
बिल मामले को जल्दी निपटाने, यानी सीओसी के गठन से पहले, की गुंजाइश को सीमित करता है। वह रेज़ोल्यूशन प्लान के आमंत्रण के बाद आवेदन की वापसी को भी सीमित करता है। अगर सीओसी के 90% सदस्य, अपनी व्यावसायिक समझ का प्रयोग करते हुए, रेज़ोल्यूशन प्लांस के आमंत्रण के बाद सीआईआरपी को वापस लेने के पक्ष में हैं तो यह स्पष्ट नहीं है कि इसकी अनुमति क्यों नहीं दी जानी चाहिए। इनसॉल्वेंसी की संरचना के तहत किसी कंपनी की परिसंपत्तियों की अधिक से अधिक कीमत हासिल करने का प्रयास किया जाता है। अगर यह कीमत औपचारिक प्रक्रिया के बाहर पक्षों के बीच समझौते के जरिए हासिल की जा सकती है, तो वहां ऐसे समझौतों को प्रतिबंधित करने के सीमित कारण हो सकते हैं। अदालत के बाहर समझौतों की गुंजाइश को कम करने से कंपनी और लेनदारों की लागत भी बढ़ जाती है और अदालतों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। दिसंबर 2024 तक एनसीएलटी के पास 20,484 मामले लंबित थे।[19] इनमें कंपनी एक्ट के तहत 8,133 मामले और आईबीसी के तहत 12,351 मामले शामिल हैं। 30 जून, 2025 तक 1,191 सीआईआरपी आवेदन वापस ले लिए गए जो सभी स्वीकृत सीआईआरपी आवेदनों का 14% था।[20] इनमें से 70% आवेदन ऑपरेशनल देनदारों द्वारा शुरू की गई सीआईआरपी के लिए थे। 78% में 10 करोड़ रुपए से कम के दावे शामिल थे, जो यह दर्शाता है कि आम तौर पर कम राशि का दावे करने वाले ऐसा आवेदन करते हैं।
सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी के लिए स्पष्ट फ्रेमवर्क का अभाव
बिल में केवल एक सक्षम प्रावधान का प्रस्ताव है जो केंद्र सरकार को सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी के लिए नियम बनाने का अधिकार देता है। इसमें प्रावधान है कि केंद्र सरकार सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया के प्रबंधन और संचालन के तरीके और शर्तें निर्धारित कर सकती है। यह सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया के लिए कोई व्यापक रूपरेखा निर्धारित नहीं करता है। यह अत्यधिक अधिकार सौंपने के बराबर हो सकता है।
वर्तमान में संहिता के सेक्शन 234 के तहत, केंद्र सरकार संहिता के प्रावधानों को लागू करने के लिए किसी अन्य देश के साथ द्विपक्षीय समझौता कर सकती है। अब तक ऐसे किसी समझौते पर हस्ताक्षऱ नहीं किए गए हैं। इनसॉल्वेंसी लॉ कमिटी (2018) ने कहा था कि आईबीसी (सेक्शन 234) के तहत मौजूदा प्रावधान तदर्थ प्रकृति के हैं और लेनदारों, कंपनियों और अदालतों के लिए देरी और अनिश्चितता के कारण बनते हैं।[21] आपसी समझौते होने पर प्रत्येक देश के साथ बातचीत लंबी हो सकती है।[22] कमिटी ने संहिता में कॉरपोरेट कंपनियों के लिए एक अलग भाग जेड को शामिल करने का सुझाव दिया था। उसने सीमा-पारीय इनसॉल्वेंसी पर यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल कानून के आधार पर कुछ संशोधनों के साथ इस सेक्शन का ड्राफ्ट तैयार किया था। इस ड्राफ्ट में निम्नलिखित विषयों को शामिल करते हुए एक रूपरेखा प्रदान की गई थी: इसका दायरा, एप्लिकेबिलिटी, विदेशी प्रक्रियाओं की मान्यता, घरेलू अदालतों तक पहुंच, संहिता के तहत राहत उपाय, और कार्यान्वयन एवं निगरानी। यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल कानून को 60 देशों में अपनाया गया है।[23]
हालांकि बिल केंद्र सरकार को नियम बनाने की शक्ति प्रदान करके इन सभी शक्तियों को अधीनस्थ विधानों को सौंपता है, जबकि संहिता में कोई स्पष्ट मार्गदर्शक सिद्धांत नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, बिल में कहा गया है कि नियम संहिता या कंपनी एक्ट, 2013 के अंतर्गत एक्ट और नियमों के कार्यान्वयन के लिए किसी भी प्रावधान में संशोधन, अपवाद या अनुकूलन का प्रावधान कर सकते हैं। यह सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुरूप नहीं हो सकता है। 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा था कि आवश्यक विधायी कार्य, जिनमें विधायी नीति का निर्धारण और आचरण के नियम के रूप में उसका निर्माण शामिल है, विधायिका द्वारा किसी और को सौंपा नहीं जा सकता। न्यायालय ने यह टिप्पणी की थी कि विधायिका अनुमत सीमा से आगे बढ़कर यह कार्य किसी इकाई को सौंप सकती है, अगर: (i) वह कोई नीति निर्धारित ही न करे, (ii) वह अपनी नीति को अस्पष्ट और सामान्य शब्दों में घोषित करे, (iii) वह कार्यपालिका के मार्गदर्शन के लिए कोई मानक निर्धारित न करे, और (iv) अगर वह अधीनस्थ विधान पर नियंत्रण अपने पास सुरक्षित रखे बिना, कार्यपालिका को अपने द्वारा निर्धारित नीति में परिवर्तन या संशोधन करने का मनमाना अधिकार प्रदान करे।[24]
[1]. Insolvency and Bankruptcy News, April - June 2025, Insolvency and Bankruptcy Board of India, https://ibbi.gov.in/uploads/publication/3694d8874ee2ac5802de48d293ad5802.pdf.
[2]. Para 11-12, Writ Petition (Civil) No 99 of 2018, Swiss Ribbons Pvt. Ltd. & Anr. versus Union of India & Ors, https://ibbi.gov.in/webadmin/pdf/order/2019/Jan/25th-Jan-2019-in-the-matter-of-Swiss-Ribbons-Pvt.-Ltd.-and-Anr-Writ-Petition-Civil-No.37-99-100-115-459-598-775-822-849-and-1221-2018-In-Special-Leave-Petition-Civil-No.28623-of-2018_2019-01-25-13-58.pdf.
[3]. Section 101, Chapter IV, Insolvency Act 1986, United Kingdom, https://www.legislation.gov.uk/ukpga/1986/45/contents.
[4]. Chapter 9, The Insolvency (England and Wales) Rules, 2016, United Kingdom, https://www.legislation.gov.uk/uksi/2016/1024/contents.
[5]. Sections 194, 199(2) and 200, Cap. 32 Companies (Winding Up and Miscellaneous Provisions) Ordinance, Hong Kong, https://www.elegislation.gov.hk/hk/cap32.
[6]. Section 705, 11 U.S. Code Chapter 7 – Liquidation, United States of America, https://www.law.cornell.edu/uscode/text/11/chapter-7/subchapter-I.
[7]. Sections 56a, 67, 69 and 160, Insolvency Code (Insolvenzordnung, InsO), Germany, https://www.gesetze-im-internet.de/englisch_inso/englisch_inso.html.
[8]. Para 58-61, Writ Petition (Civil) No 99 of 2018, Swiss Ribbons Pvt. Ltd. & Anr. versus Union of India & Ors, Supreme Court of India, January 25, 2019, https://ibbi.gov.in/webadmin/pdf/order/2019/Jan/25th-Jan-2019-in-the-matter-of-Swiss-Ribbons-Pvt.-Ltd.-and-Anr-Writ-Petition-Civil-No.37-99-100-115-459-598-775-822-849-and-1221-2018-In-Special-Leave-Petition-Civil-No.28623-of-2018_2019-01-25-13-58.pdf.
[9]. Para 14, Schedule B1, Insolvency Act 1986, United Kingdom, https://www.legislation.gov.uk/ukpga/1986/45/contents.
[10]. The Insolvency (England and Wales) Rules, 2016, United Kingdom, https://www.legislation.gov.uk/uksi/2016/1024/contents.
[11]. 11 U.S. Code Chapter 11 – Reorganization, United States of Amercia, https://www.law.cornell.edu/uscode/text/11/chapter-11.
[12]. Para 15, Schedule B1, Insolvency Act 1986, United Kingdom, https://www.legislation.gov.uk/ukpga/1986/45/schedule/B1.
[13]. Act on the Stabilisation and Restructuring Framework for Businesses, Germany, https://www.gesetze-im-internet.de/starug/.
[14]. Directive (EU) 2019/1023 of the European Parliament and of the Council, European Union, https://eur-lex.europa.eu/eli/dir/2019/1023/oj/eng.
[15]. Table 3, Insolvency and Bankruptcy News, April - June 2025, Insolvency and Bankrupcty Board of India, https://ibbi.gov.in/uploads/publication/3694d8874ee2ac5802de48d293ad5802.pdf.
[16]. Regulation 30A, Insolvency and Bankruptcy Board of India (Insolvency Resolution Process for Corporate Persons), Regulations, 2016, Insolvency and Bankruptcy Board of India, https://ibbi.gov.in/uploads/legalframwork/2020-08-17-234040-pjor6-59a1b2699bbf87423a8afb5f5c2a0a85.pdf.
[17]. Para 52, Writ Petition (Civil) No 99 of 2018, Swiss Ribbons Pvt. Ltd. & Anr. versus Union of India & Ors, Supreme Court of India, January 25, 2019, https://ibbi.gov.in/webadmin/pdf/order/2019/Jan/25th-Jan-2019-in-the-matter-of-Swiss-Ribbons-Pvt.-Ltd.-and-Anr-Writ-Petition-Civil-No.37-99-100-115-459-598-775-822-849-and-1221-2018-In-Special-Leave-Petition-Civil-No.28623-of-2018_2019-01-25-13-58.pdf.
[18]. Rule 11, National Company Law Tribunal Rules, 2016, https://nclt.gov.in/sites/default/files/Act%26rules/Rules_NCLT_latest_0.pdf.
[19]. Starred Question No. 222, Lok Sabha, Answered on March 17, 2025, https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/184/AS222_n4MMkm.pdf?source=pqals.
[20]. Insolvency and Bankruptcy News, April - June 2025, Insolvency and Bankruptcy Board of India, https://ibbi.gov.in/uploads/publication/3694d8874ee2ac5802de48d293ad5802.pdf.
[21]. Report of the Insolvency Law Committee on Cross Border Insolvency, Ministry of Corporate Affairs, October 2018, https://ibbi.gov.in/uploads/resources/Report_on_Cross%20Border_Insolvency.pdf.
[22]. Economic Survey of India 2021-22, Ministry of Finance, Government of India, https://www.indiabudget.gov.in/budget2022-23/economicsurvey/doc/echapter.pdf.
[23]. Status: UNCITRAL Model Law on Cross-Border Insolvency (1997), United Nations Commission on Cross-Border Insolvency, as accessed on October 10, 2025, https://uncitral.un.org/en/texts/insolvency/modellaw/cross-border_insolvency/status.
[24]. Para 15, Civil Appeals Nos. 212-215, Gwalior Rayon Silk Mfg. (Wvg.) Co. Ltd. v. Asstt. Commissioner of Sales Tax and Others, Supreme Court of India, December 21, 1973.
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