अध्यादेश की मुख्य विशेषताएं
- इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते हैं जोकि किसी पदार्थ (प्राकृतिक या कृत्रिम) को गर्म करते हैं ताकि कश लेने के लिए वाष्प पैदा हो। इन ई-सिगरेट्स में निकोटिन और फ्लेवर हो सकते हैं और इनमें इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम के सभी प्रकार, हीट-नॉट बर्न उत्पाद और ई-हुक्का शामिल हैं।/
- अध्यादेश भारत में ई-सिगरेट्स के उत्पादन, व्यापार और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक का कारावास भुगतना पड़ेगा या एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा या दोनों सजा भुगतनी होगी।
- ई-सिगरेट्स के स्टॉक के स्टोरेज के लिए कोई व्यक्ति किसी स्थान का प्रयोग नहीं कर सकता। अगर कोई व्यक्ति ई-सिगेट्स का स्टॉक रखता है तो उसे छह महीने तक का कारावास भुगतना होगा या 50,000 रुपए तक का जुर्माना भरना होगा, या दोनों सजा भुगतनी पड़ेगी।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
- अध्यादेश ई-सिगरेट्स के व्यापार, विज्ञापन, स्टोरेज और परिवहन पर प्रतिबंध लगाता है, चूंकि अध्ययनों से संकेत मिलता है कि इनसे नए उपयोगकर्ता निकोटिन के प्रति आकर्षित हो सकते हैं। हालांकि कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि ई-सिगरेट्स परंपरागत सिगरेट्स से कम हानिकारक होती हैं और इससे धूम्रपान करने वालों को इस आदत को छोड़ने में मदद मिल सकती है।
भाग क : अध्यादेश की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
ई-सिगरेट्स बैटरी चालित उपकरण होते हैं जोकि किसी पदार्थ को गर्म करते हैं ताकि कश लेने के लिए वाष्प पैदा हो। ई-सिगरेट्स में निकोटिन और दूसरे रसायन हो सकते हैं। आम तौर से ई-सिगरेट्स का आकार परंपरागत तंबाकू उत्पाद (टोबैको प्रॉडक्ट्स) जैसा होता है (जैसे सिगरेट्स, सिगार या हुक्का) लेकिन उनका आकार रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं जैसा भी हो सकता है, जैसे पेन और यूएसबी मेमोरी स्टिक। परंपरागत सिगरेट्स से अलग ई-सिगरेट्स में तंबाकू नहीं होती। उल्लेखनीय है कि 2015 तक ई-सिगरेट उद्योग का वैश्विक बाजार 10 बिलियन USD अनुमानित था।3
भारत ने तंबाकू नियंत्रण पर डब्ल्यूएचओ फ्रेमवर्क कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं। इस कन्वेंशन को तंबाकू से जुड़ी महामारी के सार्वभौमिकीकरण के प्रतिक्रियास्वरूप तैयार किया गया था।[1] 2014 में इस कन्वेंशन ने सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों से कहा कि वे ई-सिगरेट्स के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने या उसे रेगुलेट करने पर विचार करें।[2] यह सलाह दी गई कि स्वास्थ्य पर ई-सिगरेट्स के नकारात्मक असर के सबूत मिल रहे हैं जोकि फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग और परंपरागत सिगरेट पीने से जुड़ी बीमारियों का कारण हो सकती है।[3] इसके बाद से ब्राजील, मैक्सिको, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे 30 से अधिक देशों ने ई-सिगरेट्स के उत्पादन, व्यापार और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाया।5 इसके अतिरिक्त युनाइटेड किंगडम, कनाडा और फ्रांस जैसे देशों ने ई-सिगेट्स के निर्माण, बिक्री, विज्ञापन और प्रयोग को रेगुलेट करने के लिए कानून बनाए हैं।
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2016-17 के अनुसार, भारत में लगभग 3% वयस्क (15 वर्ष और उससे अधिक) ई-सिगेट्स के बारे में जानते थे और 0.02% ई-सिगरेट्स पीते थे।[4] अगस्त, 2018 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्यों को यह सुझाव देते हुए एक एडवाइजरी जारी की कि उन्हें किसी नई ई-सिगरेट को मंजूरी नहीं देनी चाहिए और मौजूदा ई-सिगरेट्स की बिक्री और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।[5] इस एडवाइजरी के आधार पर दिल्ली, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सहित 16 राज्यों ने ई-सिगरेट्स पर प्रतिबंध लगा दिया।[6] मई 2019 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने सुझाव दिया कि भारत में ई-सिगरेट्स पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।7 इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स पर प्रतिबंध (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, स्टोरेज और विज्ञापन) अध्यादेश, 2019 जारी किया गया।
प्रमुख विशेषताएं
- इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स: अध्यादेश इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स (ई-सिगरेट्स) की परिभाषा ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के रूप में करता है जोकि किसी पदार्थ (प्राकृतिक या कृत्रिम) को वाष्प पैदा करने के लिए गर्म करता है ताकि कश लिया जा सके। इन ई-सिगरेट्स में निकोटिन और फ्लेवर हो सकते हैं और इनमें इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम के सभी प्रकार, हीट-नॉट बर्न उत्पाद, ई-हुक्का और ऐसे ही दूसरे उपकरण शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि ई-सिगरेट्स की परिभाषा में ऐसे मेडिकल उत्पाद शामिल नहीं हैं जिन्हें औषधि और प्रसाधन एक्ट, 1940 के अंतर्गत लाइसेंस दिया जाता है।
- ई-सिगरेट्स पर प्रतिबंध: अध्यादेश भारत में ई-सिगरेट्स के उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक का कारावास भुगतना पड़ेगा या एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा या दोनों सजा भुगतनी होगी। एक बार से अधिक बार अपराध करने पर तीन वर्ष तक का कारावास भुगतना पड़ेगा और पांच लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा।
- ई-सिगरेट्स का स्टोरेज: ई-सिगरेट्स के स्टॉक के स्टोरेज के लिए कोई व्यक्ति किसी स्थान का प्रयोग नहीं कर सकता। अगर कोई व्यक्ति ई-सिगरेट्स का स्टॉक रखता है तो उसे छह महीने तक का कारावास भुगतना होगा या 50,000 रुपए तक का जुर्माना भरना होगा, या दोनों सजा भुगतनी पड़ेगी।
- अध्यादेश के लागू होने के बाद (यानी 18 सितंबर, 2019) ई-सिगरेट्स का मौजूदा स्टॉक रखने वालों को इन स्टॉक्स की घोषणा करनी होगी और उन्हें अधिकृत अधिकारी के निकटवर्ती कार्यालय में जमा कराना होगा। यह अधिकृत अधिकारी पुलिस अधिकारी (कम से कम सब इंस्पेक्टर स्तर का) या केंद्र या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई अन्य अधिकारी हो सकता है।
- अधिकृत अधिकारियों के अधिकार: अगर अधिकृत अधिकारी यह मानता है कि अध्यादेश के किसी प्रावधान का उल्लंघन हुआ है तो वह ऐसे किसी भी स्थान की तलाशी ले सकता है जहां ई-सिगरेट्स का व्यापार, उत्पादन, स्टोरेज या विज्ञापन किया जाता है। इस तलाशी के दौरान अधिकृत अधिकारी ई-सिगरेट्स से संबंधित किसी भी रिकॉर्ड या संपत्ति को जब्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त वह इस अपराध से संबंधित किसी व्यक्ति को हिरासत में ले सकता है। अगर तलाशी के दौरान मिली संपत्ति या रिकॉर्ड्स को जब्त करना संभव न हो तो अधिकृत अधिकारी ऐसी संपत्ति, स्टॉक्स या रिकॉर्ड्स को जब्त करने के आदेश दे सकता है।
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
ई-सिगरेट्स पर प्रतिबंध लगाने के तर्क
अध्यादेश ई-सिगरेट्स के निर्माण, व्यापार और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है। ई-सिगरेट्स ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते हैं जोकि किसी पदार्थ (प्राकृतिक या कृत्रिम) को वाष्प पैदा करने के लिए गर्म करते हैं ताकि कश लिया जा सके। इन ई-सिगरेट्स में निकोटिन और दूसरे रसायन हो सकते हैं। डब्ल्यूएचओ और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), दोनों ने खास तौर से यह कहा है कि ई-सिगरेट्स के इस्तेमाल का सेहत पर नकारात्मक असर होता है और इससे हृदय और सांस संबंधी रोग हो सकते हैं।3,[7] दूसरी तरफ कुछ अध्ययनों में यह कहा गया है कि ई-सिगरेट्स परंपरागत सिगरेट्स से कम हानिकारक होती हैं और इनसे लोगों को धूम्रपान छोड़ने में मदद मिल सकती है।8,9
पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (2018) और युनाइटेड स्टेट्स नेशनल एकैडेमिक्स ऑफ साइंसेज़, इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन (2018) के अनुसार, ई-सिगरेट्स परंपरागत सिगरेट्स से कम हानिकारक होती हैं।[8],[9] उनमें टार और कार्बन मोनोऑक्साइड नहीं होता क्योंकि उसमें ज्वलन (कम्बशन) यानी जलने की प्रक्रिया नहीं होती। किसी पदार्थ को जलाने से विषैले पदार्थ पैदा होते हैं। इसलिए परंपरागत सिगरेट के स्थान पर ई-सिगरेट्स पीने से धूम्रपान करने वाले लोग अनेक विषैले पदार्थों और कार्सिनोजेन्स (कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों) से बच सकते हैं।9 युनाइटेड किंगडम में एक क्लिनिकल ट्रायल में पाया गया कि निकोटिन के रिप्लेसमेंट्स जैसे पैचेज़ और गम्स का इस्तेमाल करने वालों के मुकाबले ई-सिगरेट्स का इस्तेमाल करने वाले लोगों में धूम्रपान छोड़ने की दुगुनी संभावना थी।[10] हालांकि अभी इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि ई-सिगरेट्स का सेहत पर कितना असर होता है और इसके दीर्घकालीन प्रभाव क्या हैं।5,7,11
दूसरी तरफ विशेषज्ञों ने कहा कि निकोटिन और दूसरे रसायनों वाली ई-सिगरेट्स के इस्तेमाल से मानव शरीर पर प्रतिकूल असर हो सकता है।7निकोटिन तंबाकू उत्पादों का एडिक्टिव कंपोनेंट (व्यसनकारी) होता है।7,[11]नशे की लत के अतिरिक्त निकोटिन के दूसरे असर भी होते हैं। गर्भावस्था के दौरान अजन्मे बच्चे के विकास पर उसका बुरा असर होता है और यह हृदय रोग का कारण बनता है। डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि फ्लेवरिंग और जबरदस्त प्रचार के जरिए युवाओं को ई-सिगरेट्स बड़ी मात्रा में बेची जा रही हैं। इस नतीजा यह हुआ है कि युवाओं में ई-सिगरेट्स का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। उदाहरण के लिए यूएसए में ई-सिगरेट्स पीने वाले युवाओं का प्रतिशत 2011 में 1.5% से बढ़कर 2018 में 20.8% हो गया।[12] अनेक विशेषज्ञों का कहना है कि निकोटिन के सेवन से युवाओं के मस्तिष्क के विकास पर दीर्घकालीन प्रभाव हो सकता है, उनकी सीखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है और व्यग्रता संबंधी विकार हो सकते हैं।3,7,11 निकोटिन के अतिरिक्त ई-सिगरेट्स के कारट्रिज में रसायन, फ्लेवरिंग और धातुएं होती हैं जिन्हें कैंसर और हृदय, फेफड़ों और मस्तिष्क की बीमारियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है।7हालांकि ई-सिगरेट्स को परंपरागत सिगरेट्स के विकल्प के तौर पर देखा जा सकता है, इनसे युवाओं को निकोटिन के अधिक हानिकारक प्रकार का इस्तेमाल करने का मौका मिल सकता है या वे परंपरागत सिगरेट पीना शुरू कर सकते हैं।11
उल्लेखनीय है कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2016-17 के अनुसार, भारत में तंबाकू के उपभोग में 2009-10 में गिरावट आई। आईसीएमआर का कहना है कि तंबाकू के उपभोग में गिरावट और उसके नियंत्रण के उपायों के मद्देनजर एक अनप्रूवेन (यानी जिसके फायदों को अब तक साबित नहीं किया गया है) उत्पाद को शुरू करने की कोई जरूरत नहीं है।7
ई-सिगरेट्स के रेगुलेशन पर अन्य देशों का दृष्टिकोण
2014 में तंबाकू नियंत्रण पर डब्ल्यूएचओ फ्रेमवर्क कन्वेंशन ने सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों से कहा था कि वे स्वास्थ्य पर ई-सिगरेट्स के नुकसान को कम करने के लिए उन्हें प्रतिबंधित या रेगुलेट करने पर विचार करें।[13] हालांकि भारत ने इस अध्यादेश में ई-सिगरेट्स के निर्माण, व्यापार और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाया है, दूसरे कई देशों ने ई-सिगरेट्स के रेगुलेशन पर अलग-अलग किस्म की पहल की है। वर्तमान में ब्राजील, मैक्सिको और थाईलैड जैसे 30 से अधिक देशों ने ई-सिगरेट्स के निर्माण, व्यापार और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाया है।5 इसके अतिरिक्त सिंगापुर और कंबोडिया ने ई-सिगरेट्स को रखने को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया है।
दूसरी तरफ जिन 98 देशों, जैसे युनाइटेड किंगडम, कनाडा और फ्रांस ने ई-सिगरेट्स पर प्रतिबंध न लगाने का फैसला किया, उन्हें डब्ल्यूएचओ ने निम्न का सुझाव दिया है: (i) ऐसे उपाय किए जाएं कि धूम्रपान न करने वाले लोग और युवा ई-सिगरेट पीना शुरू न करें, (ii) ई-सिगरेट्स के एक्सपोजर से यूजर्स और नॉन यूजर्स की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जाए, (iii) सेहत पर ई-सिगरेट्स के असर के बारे में अप्रामाणित दावों को रोका जाए, और (iv) ई-सिगेरट से संबंधित सभी व्यावसायिक हितों से तंबाकू नियंत्रण गतिविधियों की रक्षा की जाए।13
विभिन्न देशों ने इन उपायों को लागू करने के लिए कई रेगुलेटरी व्यवस्थाएं की हैं जैसे ई-सिगरेट्स को तंबाकू उत्पादों में शामिल करना, इन्हें अवयस्कों को न बेचना, सार्वजनिक स्थानों पर इस्तेमाल करने से रोकना, और ई-सिगरेट्स में निकोटिन की मात्रा को रेगुलेट करना। उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ के टोबैको प्रॉडक्ट्स डायरेक्टिव में मैन्यूफैक्चर्स से कहा गया है कि वे ई-सिगरेट्स में निकोटिन की मात्रा को 20 मिग्रा/मिली पर सीमित करें।[14] इसके अतिरिक्त ई-सिगरेट्स के साथ स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी देना अनिवार्य है जिसमें उपभोक्ताओं को यह सलाह दी जाएगी कि इनमें निकोटिन है और इन्हें नॉन स्मोकर्स को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार युनाइटेड किंगडम में ई-सिगरेट्स के पैकेट पर उत्पाद की सामग्रियों की सूची, उनमें निकोटिन का कंटेंट, तथा प्रतिकूल प्रभावों, उसके व्यसनकारी और विषैले होने की सूचना होनी चाहिए।[15] युनाइटेड स्टेट्स के कई स्टेट्स जैसे न्यूयॉर्क, मिशिगन, मैसाच्यूसेट्स ने फ्लेवर वाली ई-सिगरेट्स पर प्रतिबंध लगाया है। अगले पेज पर तालिका 1 में अध्यादेश की तुलना अंतरराष्ट्रीय रेगुलेशंस से की गई है।
अनुलग्नक: अंतरराष्ट्रीय कानूनों से अध्यादेश की तुलना
तालिका 1 में अन्य देशों के कानूनों और रेगुलेशंस से अध्यादेश के प्रावधानों की तुलना की गई है।
तालिका 1: अंतरराष्ट्रीय रेगुलेशंस की तुलना
मानदंड |
यूएसए |
युनाइटेड किंगडम |
कनाडा |
सिंगापुर |
फ्रांस |
भारत (अध्यादेश) |
रेगुलेशन का दायरा |
· निर्माण, व्यापार, विज्ञापन और पैकेजिंग का रेगुलेशन। · न्यूयॉर्क, मिशिगन, मैसाच्यूसेट्स, ओरेगन और मोन्टाना जैसे स्टेट्स में फ्लेवर वाली ई-सिगरेट्स प्रतिबंधित। |
· निर्माण, व्यापार, विज्ञापन, पैकेजिंग और सामग्रियों को रेगुलेट करता है। · ई- सिगरेट्स को मेडिकल उत्पाद के रूप में लाइसेंस। |
· निर्माण, व्यापार, विज्ञापन और पैकेजिंग को रेगुलेट करता है। · ई- सिगरेट्स को थेराप्यूटिक उत्पाद के रूप में लाइसेंस। |
· आयात, विज्ञापन, बिक्री, खरीद और रखने पर प्रतिबंध लगाता है। |
· निर्माण, व्यापार, विज्ञापन, पैकेजिंग और सामग्रियों को रेगुलेट करता है। · ई- सिगरेट्स को मेडिकल उत्पाद के रूप में लाइसेंस कर सकता है। |
· निर्माण, व्यापार और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है। |
अवयस्कों को बेचने पर पाबंदी |
· हां। |
· हां। |
· हां। |
· हां। |
· हां। |
· हां। |
प्रयोग करने पर पाबंदी |
· नहीं। |
· नहीं। |
· सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर पाबंदी। |
· लागू नहीं होता। |
· सार्वजनिक परिवहन, कार्यस्थलों और अवयस्कों वाली जगहों पर पाबंदी। |
· लागू नही होता। |
उत्पाद पर रेगुलेशन |
· सामग्रियों, निकोटिन की मात्रा और संभावित खतरों की समीक्षा और उनका रेगुलेशन। |
· निकोटिन की मात्रा 20 मिग्रा प्रति मिली तक। · कुछ एडिक्टिव्स और सामग्रियों पर प्रतिबंध जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं। |
· एमिनो एसिड्स, कैफीन और कलरिंग एजेंट्स जैसे विशिष्ट एडेक्टिव्स, सामग्रियों पर प्रतिबंध। · सिर्फ विशिष्ट फ्लेवर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। |
· लागू नहीं होता। |
· निकोटिन की मात्रा 20 मिग्रा प्रति मिली तक। · स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले कुछ एडिक्टिव्स, सामग्रियों पर प्रतिबंध। · उपभोक्ता संहिता के अंतर्गत सुरक्षा संबंधी शर्तों का पालन करना होगा। |
· लागू नहीं होता। |
विज्ञापन |
· झूठे और भ्रामक विज्ञापनों पर प्रतिबंध। · मुफ्त सैंपल नहीं दे सकते। |
· प्रतिबंधित। |
· कोई नहीं। |
· प्रतिबंधित। |
· प्रतिबंधित। |
· प्रतिबंधित। |
पैकेजिंग के नियम |
· अनिवार्य चेतावनी, जिसमें उत्पाद में निकोटिन होने का उल्लेख हो। |
· उत्पाद में निकोटिन की सूचना वाली अनिवार्य चेतावनी। · स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव, सामग्रियों की सूचना और एडिक्टिव वस्तुओं की सूची का खुलासा करना जरूरी। |
· अनिवार्य चेतावनी। · स्वास्थ्य पर ई-सिगरेट्स और उनके वाष्प के असर के संबंध में जानकारी देना जरूरी। |
· लागू नहीं होता। |
· अनिवार्य चेतावनी, जिसमें उत्पाद में निकोटिन होने का उल्लेख हो। · स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव, सामग्रियों की सूचना और एडिक्टिव वस्तुओं की सूची का खुलासा करना जरूरी। |
· लागू नहीं होता। |
रखने पर पाबंदी |
· नहीं। |
· नहीं। |
· नहीं। |
· हां। |
· नहीं। |
· नहीं। |
Sources: Canada: The Tobacco and Vaping Products Act, 1997; UK: The Tobacco and Related Products Regulations 2016; EU: Directive 2014/40/EU of the European Parliament and of the Council; Singapore: Tobacco (Control of Advertisements and Sale) Act, 2011; France: Administrative Order of March 21, 2016 to Code of Public Health.; Administrative Order of May 19, 2016 to Code of Public Health; EU: Directive 2014/40/EU of the European Parliament and of the Council India: The Prohibition of Electronic Cigarettes (Production, Manufacture, Import, Export, Transport, Sale, Distribution, Storage and Advertisement) Ordinance, 2019
[1]. The WHO Framework Convention on Tobacco Control: An Overview, https://www.who.int/fctc/about/WHO_FCTC_summary_January2015.pdf?ua=1.
[2]. Report of the sixth session of the Conference of the Parties to the WHO Framework Convention on Tobacco Control Moscow, Russian Federation, October 2014, https://www.who.int/fctc/cop/sessions/COP6_report_FINAL_04122014.pdf?ua=1.
[3]. Electronic Nicotine Delivery Systems and Electronic Non-Nicotine Delivery Systems (ENDS/ENNDS), World Health Organisation, August 2016, https://www.who.int/fctc/cop/cop7/FCTC_COP_7_11_EN.pdf.
[4]. Global Adult Tobacco Survey India, 2016-2017, Second Round, Ministry of Health and Family Welfare, http://cancerindia.org.in/wp-content/uploads/2018/09/GATS__2_India-Report.pdf.
[5]. Advisory on Electronic Nicotine Delivery Systems including e-Cigarettes, Heat-Not-Burn devices, Vape, e-Sheesha, e-Nicotine Flavoured Hookah, Ministry of Health and Family Welfare, August 8, 2018, https://mohfw.gov.in/sites/default/files/ADVISORY%20ON%20ELECTRONIC%20NICOTINE%20DELIVERY%20SYSTEMS%20ENDS.pdf
[6]. Lok Sabha, Unstarred Question No. 5550, ‘Sale of e-Cigarettes’, Ministry of Health and Family Welfare, July 26, 2019.
[7]. White Paper on Electronic Nicotine Delivery System, Indian Council of Medical Research, May 29, 2019, http://www.ijmr.org.in/documents/IndianJMedRes_whitepaper.pdf.
[8]. Report No. 7 of session 2017-19, “E-cigarettes”, Science and Technology Committee, House of Commons, July 2018, https://publications.parliament.uk/pa/cm201719/cmselect/cmsctech/505/505.pdf.
[9]. Public Health Consequences of E-cigarettes, National Academies of Sciences, Engineering and Medicine, 2018, https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/29894118.
[10]. A Randomized Trial of E-Cigarettes versus Nicotine-Replacement Therapy, The New England Journal of Medicine, February 2019, https://www.nejm.org/doi/full/10.1056/NEJMoa1808779.
[11]. WHO Report on the Global Tobacco Epidemic, 2019, https://apps.who.int/iris/bitstream/handle/10665/326043/9789241516204-eng.pdf?ua=1.
[12]. 2018 NYTS Data: A Startling Rise in Youth E-cigarette Use, https://www.fda.gov/tobacco-products/youth-and-tobacco/2018-nyts-data-startling-rise-youth-e-cigarette-use.
[13]. Report of the sixth session of the Conference of the Parties to the WHO Framework Convention on Tobacco Control Moscow, Russian Federation, October 2014, https://www.who.int/fctc/cop/sessions/COP6_report_FINAL_04122014.pdf?ua=1.
[14]. Directive 2014/40/EU of the European Parliament and of the Council, https://ec.europa.eu/health/sites/health/files/tobacco/docs/dir_201440_en.pdf.
[15]. The Tobacco and Related Products Regulations 2016, Governmentt of United Kingdom, http://www.legislation.gov.uk/uksi/2016/507/contents/made.
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।