मंत्रालय: 
विधि एवं न्याय

बिल की मुख्‍य बातें

  • बिल एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट 1968 में संशोधन कर एनिमी प्रॉपर्टी पर सभी अधिकार, टाइटल और हित कस्टोडियन में निहित करता है।
     
  • बिल एनिमी द्वारा 1968 के एक्ट के तहत एनिमी प्रॉपर्टी के हस्‍तांतरण को रद्द करता है। यह निर्णय 1968 से पहले या बाद में हुए हस्‍तांतरण पर भी लागू होगा।
     
  • बिल सिविल अदालतों और अन्‍य अथॉरिटीज़ को एनिमी प्रॉपर्टी  से संबंधित कोई भी विवाद लेने से मना करता है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • 1968 का एक्ट एनिमी से अन्‍य व्‍यक्तियों को एनिमी प्रॉपर्टी के हस्‍तांतरण की अनुमति देता है। बिल ऐसे सभी हस्‍तांतरणों को रद्द करता है। ऐसा करना संविधान के अनुच्‍छेद 14 का उल्‍लंघन और मनमानी हो सकता है।
     
  • बिल सिविल अदालतों को एनिमी प्रॉपर्टी से जुड़े विवादों को सुनवाई के लिए लेने से रोकता है। यह किसी वैकल्पिक न्‍यायिक समाधान (जैसे-ट्रिब्यूनल) का प्रावधान नहीं करता। इस प्रकार यह पीड़ित लोगों के लिए न्‍यायिक उपायों का सहारा लेने या अदालतों तक जाने को सीमित कर देता है।

भाग क : बिल की प्रमुख बातें

संदर्भ

1961 में चीन तथा 1965 और 1971 में पाकिस्‍तान के साथ युद्ध छिड़ने के बाद केंद्र सरकार ने इन देशों के नागरिकों की प्रॉपर्टी 1962 और 1971 के भारत रक्षा कानून के तहत अपने अधिकार में ले ली थी। इन प्रॉपर्टीज को ‘एनिमी प्रॉपर्टी’ कहा गया और इन्‍हें केंद्र सरकार के कार्यालय ‘एनिमी प्रॉपर्टी के कस्टोडियन’ में निहित कर दिया गया। एनिमी प्रॉपर्टी  के रेगुलेशन के लिए एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट 1968 लागू किया गया।

पिछले कुछ वर्षों में कस्टोडियन की शक्तियों और एनिमी प्रॉपर्टी पर एनिमी के अधिकारों को लेकर अनेक विवाद अदालत तक पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 के एक फैसले में कहा कि कस्टोडियन एनिमी प्रॉपर्टी का ट्रस्‍टी है और इसके प्रबंध के लिए उत्‍तरदायी है, तथा प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक एनिमी और उसके कानूनी वारिसों का है।[1]  इस निर्णय को रद्द करने के लिए 2010 में एक अध्‍यादेश लाया गया जो बाद में अप्रभावी हो गया। 7 जनवरी, 2016 को इसी उद्देश्‍य से फिर अध्‍यादेश लाया गया। इसके बाद एनिमी प्रॉपर्टी  (संशोधन और वैलिडेशन) बिल 2016 लोकसभा में रखा और पारित किया गया। अभी राज्‍यसभा की सिलेक्ट कमिटी इसकी समीक्षा कर रही है। इस बीच, 1968 के एक्ट में संशोधन करने वाला अध्‍यादेश 2 अप्रैल, 2016 को फिर जारी किया गया।[2]  

प्रमुख विशेषताएं

यह बिल एनिमी प्रॉपर्टी के सारे अधिकार स्‍वामित्‍व कस्टोडियन में निहित करने और एनिमी का मालिकाना हक समाप्‍त करने के लिए 1968 के एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट में संशोधन करता है। बिल के कुछ प्रावधान 1968 से ही लागू माने जाएंगे।

एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट, 1968

एनिमी प्रॉपर्टी (संशोधन और वैलिडेशन) बिल, 2016

एनिमी की परिभाषा

·   कोई भी देश, व्‍यक्ति या कंपनी जिसे 1962 और 1971 के भारत रक्षा कानूनों के अंतर्गत एनिमी घोषित किया गया हो। इसमें भारत का नागरिक शामिल नहीं है।

·   बिल इन्‍हें शामिल करने के लिए 1968 की परिभाषा में पूर्व प्रभाव से संशोधन करता है: (i)  एनिमी के कानूनी वारिस यदि वे भारत के नागरिक हों तो भी; (ii) वे एनिमी जिन्‍होंने अपनी नागरिकता बदल ली है, (iii) एनिमी कंपनियां जिनमें भारतीय भागीदार हैं।

एनिमी प्रॉपर्टी को कस्टोडियन में निहित किया जाना

·   1962 और 1971 के भारत रक्षा कानून के तहत एनिमी प्रॉपर्टी कस्टोडियन में निहित करना 1968 के एक्ट में भी जारी रहेगा। हालांकि एक्ट के तहत निहित करने को परिभाषित नहीं किया गया है।

·   पूर्ववर्ती प्रभाव से 1968 से लागू करता है: (i)  एनिमी प्रॉपर्टी कस्टोडियन में ही निहित रहेगी, एनिमी की मृत्‍यु होने या कानूनी वारिस के भारतीय होने की स्थिति में भी; (ii) ऐसी प्रॉपर्टीज पर उत्‍तराधिकार कानून लागू नहीं होगा और (iii) ‘निहित’ होने  का अर्थ है कि एनिमी प्रॉपर्टी पर सभी अधिकार और मालिकाना हक कस्टोडियन के पास होंगे।

कस्टोडियन के अधिकार

·   केवल कुछ परिस्थितियों में एनिमी प्रॉपर्टी बेच सकता है (जैसे, एनिमी या उसके परिवार के रखरखाव के लिए)

·   कस्टोडियन को अनधिकृत कब्‍जा करने वालों को निकालने, गैर-कानूनी निर्माण हटाने जैसे अधिकार नहीं देता।

·   कस्टोडियन किसी भी परिस्थिति में, केंद्र सरकार द्वारा तय समय सीमा में एनिमी प्रॉपर्टी को बेच सकता है।

·   कस्टोडियन को कब्‍जा करने वालों को निकालने और गैर-कानून निर्माण हटाने जैसे अधिकार देने के लिए 1968 के एक्ट और 1971 के सार्वजनिक परिसर एक्ट में संशोधन करता है।

एनिमी द्वारा एनिमी प्रॉपर्टी का हस्‍तांतरण

·   ऐसा करने की अनुमति देता है, जब तक कि यह सार्वजनिक हित के खिलाफ न हो और कस्टोडियन में प्रॉपर्टी को निहित किए जाने से रोकने के उद्देश्‍य से न किया गया हो।

·   ऐसे सभी हस्‍तांतरणों पर पूर्ववर्ती प्रभाव से ही पाबंदी लगाता है। 1968 के पहले या बाद के ऐसे सभी हस्‍तांतरण रद्द माने जाएंगे।

 सिविल अदालतों के अधिकार क्षेत्र की पाबंदी

·   न्‍यायालय के अधिकार क्षेत्र की कोई पाबंदी नहीं।

·  सिविल अदालतें एनिमी प्रॉपर्टी से संबंधित विवादों की सुनवाई नहीं करेंगी।

     

स्रोत: एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट, 1968; एनिमी प्रॉपर्टी (संशोधन और वैलिडेशन) बिल, 2016; पीआरएस.

भाग ख:  प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

1968 से या इसके पहले हो चुका एनिमी प्रॉपर्टी का हस्‍तांतरण रद्द होगा

1968 का एक्ट एनिमी को एनिमी प्रॉपर्टी के हस्‍तांरण या बिक्री की अनुमति देता है, सिवाय इसके कि ऐसा करना सार्वजनिक हित के खिलाफ हो या प्रॉपर्टी को कस्टोडियन के पास जाने से रोकने के उद्देश्‍य से ऐसा किया गया हो। बिल इस प्रावधान को बदल कर कहता है कि एनिमी को 1968 से पहले या बाद में (पूर्ववर्ती प्रभाव से) एनिमी प्रॉपर्टी  के हस्‍तांतरण का अधिकार नहीं होगा। इसका अर्थ हुआ कि यदि एनिमी ने किसी अन्‍य व्‍यक्ति को एनिमी प्रॉपर्टी बेच दी है, तो यह बिक्री रद्द मानी जाएगी। इसी के साथ यदि एनिमी से एनिमी प्रॉपर्टी खरीदने वाले व्‍यक्ति ने बाद में यह प्रॉपर्टी बेच दी, तो ऐसा हस्‍तांतरण भी रद्द माना जाएगा। इसी प्रकार यह बिल पूर्ववर्ती प्रभाव से स्‍वामित्‍व अधिकार समाप्‍त कर देता है। यहां यह दलील दी जा सकती है कि यह ‘मनमाना’ है और संविन के अनुच्‍छेद-14 का उल्‍लंघन करता है। धारा-14 राज्‍य की मनमान कार्रवाई से संरक्षण और समानता का अधिकार देती है।[3]

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायिका को पूर्ववर्ती प्रभाव से कानून लागू करते समय ‘घटनाक्रम’ और एक महत्‍वपूर्ण समय अवधि के दौरान मिले संवैधानिक अधिकारों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।[4]  ऐसा करना मनमाना और तर्कहीन हो सकता है और इसीलिए संविधान की धारा-14 का उल्‍लंघन है।4  यह सिद्धांत लागू करते हुए तर्क दिया जा सकता है कि बिल की धारा-6 संविधान की धारा-14 का उल्‍लंघन करती है। ऐसा इसलिए कि यह प्रावधान उन सभी व्‍यक्तियों का मालिकाना हक ले लेता है जिन्‍होंने किसी समय वास्‍तव में एनिमी प्रॉपर्टी बेची और खरीदी थी।

पीड़ित व्‍यक्तियों के लिए सीमित न्‍यायिक उपचार

यह बिल 1968 के एक्ट में संशोधन कर सिविल अदालतों और अन्‍य अथॉरिटीज़ को एनिमी प्रॉपर्टी से संबंधित विवादों को दर्ज करने से प्रतिबंधित करता है। इसमें कस्टोडियन या केंद्र सरकार की कार्रवाई से जुड़े विवाद भी शामिल हैं। और फिर, यह ऐसे विवादों को निपटाने के लिए किसी वैकल्पिक न्‍यायिक उपचार (जैसे ट्रिब्यूनल) का भी प्रावधान नहीं करता। एकमात्र न्‍यायिक उपचार जो उपलब्‍ध हो सकता है, वह है संविधान की धारा 226 के तहत हाई कोर्ट तक पहुंच के लिए ‘रिट’ उपचार।[5] ‘रिट’ उपाय एक असाधारण उपचार है, जो अपने संवैधानिक और कानूनी अधिकारों को लागू करने या लोकसेवकों को अपनी ड्यूटी निभाने को बाध्‍य करने के लिए सभी व्‍यक्तियों को उपलब्‍ध है।5हालांकि यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि यह उपचार एनिमी प्रॉपर्टी से संबंधित सभी पीड़ितों को मिलेगा या नहीं।

उदाहरण के तौर पर एक एनिमी प्रॉपर्टी X ने Y को बेची गई। बिल की धारा 6 के अनुसार Y का कोई स्‍वामित्‍व-अधिकार नहीं रहेगा, क्‍योंकि ये सभी अधिकार अब कस्टोडियन के पास हैं। Y अब X से क्षतिपूर्ति के लिए अदालत तक जाना चाहेगा। हालांकि यह उपचार अब उपलब्‍ध नहीं है, क्‍योंकि बिल की नई धारा 18- B सिविल अदालतों को एनिमी प्रॉपर्टी से संबंधित विवाद लेने से मना करती है। ऐसे में Y के पास एकमात्र न्‍यायिक उपचार संविधान की धारा 226 के तहत बच जाता है। हालांकि धारा 226 के तहत न्‍यायिक उपचार दो पक्षों के बीच बिल्‍कुल निजी अनुबंधों को लागू कराने में उपयोग नहीं किया जा सकता।’5  इस प्रकार Y के पास कोई न्‍यायिक आधार नहीं रह जाता।

 

[1].  Union of India vs Raja Mohammed Amir Mohammad Khan, AIR 2005 SC 4383.

[2].  Enemy Property (Amendment and Validation) Second Ordinance, 2016.

[3].  Article 14 of the Constitution; DD Basu (2007), “Commentary on the Constitution of India”, Volume 1, Pg. 969-972.

[4].  State of Gujarat vs Raman Lal Keshav Lal Soni and Others, AIR 1984 SC 161.

[5].  Article 226 of the Constitution; DD Basu (2010), “Commentary on the Constitution of India”, Volume 6, Pg. 6480-6484.

 

यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार की गयी थी।  हिंदी में इसका अनुवाद किया गया है।  हिंदी रूपांतर में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।