बिल की मुख्य विशेषताएं
- बिल कहता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जोकि न तो पूरी तरह से महिला है और न ही पुरुष, अथवा वह महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन है, अथवा न तो महिला है और न ही पुरुष। इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति का लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता और जिसमें ट्रांस-मेन (परा-पुरुष), ट्रांस-विमेन (परा-स्त्री) और इंटरसेक्स भिन्नताओं एवं लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति भी आते हैं।
- एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान को मान्यता देने और बिल के तहत प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने के लिए पहचान का सर्टिफिकेट हासिल करना होगा।
- ऐसा सर्टिफिकेट उसे स्क्रीनिंग कमिटी के सुझाव पर जिला अधिकारी द्वारा प्रदान किया जाएगा। इस कमिटी में मेडिकल ऑफिसर, साइकोलॉजिस्ट या साइकैट्रिस्ट, जिला कल्याण अधिकारी, एक सरकारी अधिकारी और एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति शामिल होगा।
- बिल शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से किए जाने वाले भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश देता है कि इन क्षेत्रों में कल्याण योजनाओं की व्यवस्था की जाए।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भीख मंगवाने, उन्हें सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने से रोकने, उनका शारीरिक और यौन उत्पीड़न करने, इत्यादि अपराधों के लिए दो वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि अपने लिंग की स्वयं पहचान करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और स्वायत्तता के अधिकार का ही एक हिस्सा है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति की हकदारी की पात्रता साबित करनी है तो उस व्यक्ति के लिंग को निर्धारित करने के लिए वस्तुनिष्ठ मानदंड की जरूरत पड़ सकती है।
- बिल कहता है कि एक व्यक्ति को ‘स्वयं अनुभव की गई’ लिंग पहचान का अधिकार होगा। लेकिन वह ऐसे किसी अधिकार को अमल में लाने के संबंध में कोई प्रावधान नहीं करता। जिला स्क्रीनिंग कमिटी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान से जुड़े सर्टिफिकेट जारी करेगी।
- बिल में 'ट्रांसजेंडर व्यक्तियों’ की परिभाषा, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और भारत के विशेषज्ञों द्वारा स्वीकृत की गई परिभाषा से भिन्न है।
- बिल 'ट्रांसजेंडर व्यक्तियों’ की परिभाषा में ‘ट्रांस-मेन’, ‘ट्रांस-विमेन’ और ‘इंटरसेक्स भिन्नताओं’ एवं ‘लिंग विलक्षणताओं’ जैसे शब्दों को शामिल करता है। लेकिन बिल में इन शब्दों की व्याख्या नहीं की गई है।
- वर्तमान में देश में जितने भी आपराधिक और व्यक्तिगत कानून हैं, उनमें ‘पुरुष’ और ‘महिला’ के लिंगों को मान्यता दी गई है। यह अस्पष्ट है कि ऐसे कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर कैसे लागू होंगे जो इन दोनों लिंगों में से किसी से आइडेंटिफाई नहीं करते।
भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ‘ट्रांसजेंडर’ एक अंब्रेला टर्म है जिसमें वे सभी लोग शामिल हैं जिनकी लिंग की अनुभूति जन्म के समय उन्हें नियत किए गए लिंग से मेल नहीं खाती।[1] उदाहरण के लिए पुरुष के तौर पर जन्म लेने वाला व्यक्ति दूसरे लिंग यानी महिला से आइडेंटिफाई कर सकता है। [2]2011 की जनगणना के अनुसार, जो लोग ‘पुरुष’ या ‘महिला’ के तौर पर नहीं, ‘अन्य’ के तौर पर खुद को आइडेंटिफाई करते हैं, उनकी संख्या 4,87,803 है (कुल जनसंख्या का 0.04% भाग)। ‘अन्य’ की श्रेणी में ट्रांसजेंडर व्यक्ति शामिल हैं और यह श्रेणी उन सभी लोगों पर लागू होती है जो खुद को पुरुष या महिला के तौर पर आइडेंटिफाई नहीं करते। [3]
2013 में सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित मुद्दों की जांच करने के लिए एक्सपर्ट कमिटी का गठन किया। 2 कमिटी ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक लांछन और भेदभाव का सामना करना पड़ता है जोकि उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार और सरकारी दस्तावेजों तक पहुंच को प्रभावित करता है। 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को मान्यता दी कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पुरुष, महिला या तीसरे लिंग के रूप में स्वयं को आइडेंटिफाई करने का अधिकार है।[4] इसके अतिरिक्त न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कानूनी मान्यता प्रदान करें, सामाजिक लांछन और भेदभाव जैसी समस्याओं का हल करें और उनके सामाजिक कल्याण के लिए योजनाएं तैयार करें।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अधिकारों की गारंटी देने और उनके लिए कल्याणकारी उपाय करने के उद्देश्य से श्री तिरुचि सिवा ने 2014 में राज्यसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया। [5] 2015 में इस बिल को राज्यसभा में पारित किया गया लेकिन वर्तमान में यह बिल लोकसभा में लंबित है। अगस्त, 2016 में सरकार ने लोकसभा में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2016 पेश किया। इस बिल को सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी को रेफर किया गया है।
प्रमुख विशेषताएं
ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषा
- बिल कहता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जोकि (i) न तो पूरी तरह से महिला है और न ही पुरुष, (ii) महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन है, या (iii) न तो महिला है और न ही पुरुष। इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति का लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता और जिसमें ट्रांस-मेन (परा-पुरुष), ट्रांस-विमेन (परा-स्त्री) और इंटरसेक्स भिन्नताओं और लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति भी आते हैं।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति की पहचान से जुड़ा सर्टिफिकेट
- बिल के तहत स्वीकृत ट्रांसजेंडर व्यक्ति को स्वतः अनुभव की जाने वाली लिंग पहचान का अधिकार होना चाहिए।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति को पहचान से जुड़ा एक सर्टिफिकेट हासिल करना होगा जोकि उसे बिल के तहत प्रदत्त अधिकार प्रदान करेगा और ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में उसकी पहचान को मान्यता देने का प्रमाण होगा।
- इस सर्टिफिकेट को हासिल करने का आवेदन जिला अधिकारी (डीएम) को किया जाएगा। डीएम इस आवेदन को जिला स्क्रीनिंग कमिटी को रेफर करेगा।
- जिला स्क्रीनिंग कमिटी में निम्नलिखित सदस्य होंगे : (i) चीफ मेडिकल ऑफिसर, (ii) जिला सामाजिक कल्याण अधिकारी, (iii) साइकोलॉजिस्ट या साइकैट्रिस्ट, (iv) ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रतिनिधि, और (v) सरकारी अधिकारी। कमिटी के सुझावों के आधार पर डीएम ‘ट्रांसजेंडर’ की पहचान वाला सर्टिफिकेट जारी करेगा।
- इस सर्टिफिकेट के आधार पर ट्रांसजेंडर व्यक्ति का लिंग सभी सरकारी दस्तावेजों में दर्ज होगा।
- अगर लिंग में किसी प्रकार का परिवर्तन होता है तो ट्रांसजेंडर व्यक्ति उसी प्रक्रिया का पालन करते हुए संशोधित सर्टिफिकेट के लिए आवेदन कर सकता है, जो उसने पहचान संबंधी सर्टिफिकेट को हासिल करने से लिए अपनायी थी।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भेदभाव पर प्रतिबंध
- बिल ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है जिसमें निम्नलिखित के संबंध में सेवा प्रदान करने से इनकार करना या अनुचित व्यवहार करना शामिल हैः (i) शिक्षा, (ii) रोजगार, (iii) स्वास्थ्य सेवा, (iv) सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध उत्पादों और सुविधाओं तक पहुंच, (v) कहीं आने-जाने (मूवमेंट) का अधिकार (vi) किसी प्रॉपर्टी को किराए पर लेने या उसका स्वामित्व हासिल करने का अधिकार, (vii) सार्वजनिक या निजी पद को ग्रहण करने का अवसर, और (viii) किसी ऐसे सरकारी या निजी प्रतिष्ठान तक पहुंच जिसकी कस्टजी में कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति रहता है।
- किसी सरकारी और निजी प्रतिष्ठान द्वारा किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ रोजगार संबंधी मामलों में भेदभाव करना प्रतिबंधित है, इसमें भर्ती और पदोन्नति शामिल है। अगर प्रतिष्ठान में 100 से अधिक व्यक्ति कार्यरत हैं तो उसे बिल के प्रावधानों के तहत शिकायतों का समाधान करने के लिए एक व्यक्ति को निर्दिष्ट करना होगा।
रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित लाभ
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को जीविकोपार्जन की सुविधा देने और उन्हें सहयोग देने के लिए केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा योजनाएं और कार्यक्रम तैयार किए जाएंगे। इसमें व्यावसायिक प्रशिक्षण और स्वरोजगार शामिल है।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कदम उठाए जाएंगे जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अलग एचआईवी सर्विलांस सेंटर; (ii) सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी और हारमोनल थेरेपी काउंसिलिंग; (iii) चिकित्सा पाठ्यक्रम की समीक्षा; और (iv) एक व्यापक बीमा योजना।
- शिक्षण संस्थान भेदभाव किए बिना ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समावेशी शिक्षा और खेल, मनोरंजन एवं आराम के अवसर प्रदान करेंगे।
राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित नीतियों और विधानों पर केंद्र सरकार को परामर्श देने के लिए एक राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद (एनसीटी) का गठन किया जाएगा। यह परिषद सरकारी नीतियों की निगरानी और मूल्यांकन करेगी।
- एनसीटी में निम्नलिखित के प्रतिनिधि शामिल होंगे : (i) सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण, स्वास्थ्य, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, (ii) नीति आयोग, (iii) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग (iv) राज्य सरकार, (v) ट्रांसजेंडर समुदाय के नामित सदस्य और (vi) गैर सरकारी संगठनों के विशेषज्ञ।
अपराध और दंड
- बिल निम्नलिखित को अपराध के रूप में मान्य करता है : (i) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भीख मंगवाना, बलपूर्वक या बंधुआ मजदूरी करवाना (इसमें सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनिवार्य सरकारी सेवा शामिल नहीं है), (ii) उन्हें सार्वजनिक स्थान का प्रयोग करने से रोकना, (iii) उन्हें परिवार, गांव इत्यादि में निवास करने से रोकना, और (iv) उनका शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक और आर्थिक उत्पीड़न करना।
- ऐसे अपराधों के लिए छह महीने से लेकर दो वर्ष तक का कारावास हो सकता है और जुर्माना भरना पड़ सकता है।
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
ट्रांसजेंडर की पहचान को मान्यता देना
हक पाने के लिए पहचान खुद तय करना बनाम पात्रता का वैरिफिकेशन कराना
सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि अपने लिंग की स्वयं पहचान करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वायत्तता के अधिकार का ही एक हिस्सा है। 4इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पुरुष, महिला या तीसरे लिंग के रूप में स्वयं को आइडेंटिफाई करने के अधिकार को बहाल रखा था। इससे गरिमा और सम्मान के साथ उनके जीने के अधिकार की रक्षा होगी।
इसके अतिरिक्त न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे शिक्षण संस्थानों और सरकारी कार्यालयों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करें और उनके लिए सामाजिक कल्याण योजनाएं तैयार करें। इस संबंध में यह दलील दी जा सकती है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए निर्धारित लाभों को हासिल करने हेतु आवेदकों की पात्रता के सत्यापन के मानदंड वस्तुनिष्ठ होने चाहिए। अगर लिंग पहचान का निर्धारण स्वयं करना ही लाभ प्राप्त करने का एकमात्र मानदंड होगा तो अन्य द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।
बिल में भेदभाव से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की रक्षा करने और उनके लिए स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोजगार से संबंधित कल्याणकारी योजनाओं का प्रावधान है। इसके तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान को मान्यता देने के लिए बिल स्व अनुभव की जाने वाली लिंग पहचान और स्क्रीनिंग प्रक्रिया, दोनों का प्रावधान करता है। इससे निम्नलिखित समस्या उत्पन्न हो सकती है।
‘स्वतः अनुभव की जाने वाली लिंग पहचान’ का अर्थ और प्रभाव अस्पष्ट है
बिल कहता है कि पहचान के लिए जिला स्क्रीनिंग कमिटी द्वारा जारी किए गए सर्टिफिकेट के आधार पर किसी व्यक्ति को ‘ट्रांसजेंडर’ के तौर पर मान्यता दी जाएगी। यह सर्टिफिकेट ‘ट्रांसजेंडर’ की पहचान का प्रमाण होगा और इसके माध्यम से बिल के तहत अधिकार प्रदान किए जाएंगे। हालांकि बिल यह भी कहता है कि ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में मान्यता प्राप्त व्यक्ति को ‘स्वयं अनुभव की जाने वाली’ लिंग पहचान का अधिकार होगा। चूंकि बिल के तहत पहचान से जुड़ा सर्टिफिकेट हासिल करना एक अनिवार्यता है, यह स्पष्ट नहीं है कि ‘स्वयं अनुभव की जाने वाली’ लिंग पहचान जैसे शब्द किस बात पर जोर देते हैं औऱ इसे कैसे लागू किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि अगर ट्रांसजेंडर व्यक्ति को पहचान से जुड़ा सर्टिफिकेट जारी करने से इनकार किया जाता है, तो इस स्थिति में बिल में जिला स्क्रीनिंग कमिटी के इस निर्णय के खिलाफ अपील करने या इसकी समीक्षा करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति’ की परिभाषा
बिल कहता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जोकि (i) न तो पूरी तरह से महिला है और न ही पुरुष, (ii) महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन है, या (iii) न तो महिला है और न ही पुरुष। इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति का लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता। बिल यह भी कहता है कि इसमें ट्रांस-मेन, ट्रांस-विमेन और इंटरसेक्स भिन्नताओं और लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति भी आते हैं। इस परिभाषा से कुछ समस्याएं हो सकती हैं।
‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति’ की परिभाषा में निर्धारित मानदंड अस्पष्ट हैं
बिल में अपेक्षा की गई है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने के लिए कोई व्यक्ति (i) न तो पूरी तरह से महिला हो और न ही पुरुष, (ii) महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन हो, या (iii) न तो महिला हो और न ही पुरुष। लेकिन बिल यह स्पष्ट नहीं करता कि क्या ‘पुरुष’ और ‘महिला’ जैसे शब्द उस बायोलॉजिकल सेक्स की तरफ संकेत करते हैं जिसमें मानव शरीर की रचना और गुण सूत्र यानी क्रोमोजोम्स शामिल हैं। या फिर ‘पुरुष’ और ‘महिला’ किसी व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक लिंग अनुभूति का भी संकेत देते हैं जिसमें यह भी शामिल है कि कोई व्यक्ति किस प्रकार की अनुभूति, पहचान और अभिव्यक्ति को चुनता है।
ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य के लिए विश्व प्रोफेशनल एसोसिएशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन जैसी अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ संस्थाओं का कहना है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति है जिसकी लिंग अनुभूति जन्म के समय नियत किए गए लिंग से मेल नहीं खाती। उल्लेखनीय है कि ऐसी संस्थाएं ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की परिभाषा में किसी बायोलॉजिकल मानदंड को प्रस्तुत नहीं करतीं।
अंतरराष्ट्रीय मानकों के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय, सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय की एक्सपर्ट कमिटी और 2014 के प्राइवेट मेंबर बिल ने केवल मनोवैज्ञानिक मानदंड के आधार पर ‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति’ की परिभाषा तय की है। 2016 का बिल इन परिभाषाओं से भिन्न परिभाषा देता है। नीचे दी गई तालिका 1 में इन परिभाषाओं के बीच तुलना की गई है।
तालिका 1: विभिन्न विशेषज्ञ संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत की गई परिभाषाओं के बीच तुलना
सुप्रीम कोर्ट (2014)4 |
एक्सपर्ट कमिटी (2014)2 |
प्राइवेट मेंबर बिल (2014)5 |
सरकार का बिल (2016) |
§ ऐसे व्यक्ति जिनकी लिंग पहचान उनके बायोलॉजिकल सेक्स से मेल नहीं खाती।
|
§ ऐसे व्यक्ति जिनकी लिंग अनुभूति जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाती, § वे अपने लिंग को विभिन्न शब्दों और नामों से अभिव्यक्त करते हैं। |
§ ऐसे व्यक्ति जिनकी लिंग अनुभूति जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाती, § इसमें ट्रांस मेन, ट्रांस विमेन, लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति शामिल हैं। |
§ ऐसे व्यक्ति जोकि (i) न तो पूरी तरह से महिला हैं और न ही पुरुष, (ii) महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन हैं, या (iii) न तो महिला है और न ही पुरुष, और § जिनकी लिंग अनुभूति जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाती। § इसमें ट्रांस मेन, ट्रांस विमेन, इंटरसेक्स भिन्नताओं और लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति शामिल हैं। |
Sources: National Legal Services Authority vs. Union of India (2014); Report of the Expert Committee on the Issues relating to Transgender Persons (2014); The Rights of Transgender Persons Bill, 2014; The Transgender Persons (Protection of Rights) Bill, 2016; PRS.
‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति’ की परिभाषा में कुछ शब्दों की व्याख्या नहीं की गई है
बिल में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की परिभाषा में ‘ट्रांस-मेन’, ‘ट्रांस-विमेन’ और ‘इंटरसेक्स भिन्नता’ एवं ‘लिंग विलक्षणता’ जैसे शब्दों को शामिल किया गया है। लेकिन इन शब्दों को स्पष्ट नहीं किया गया है। इसलिए यह अस्पष्ट है कि इन शब्दों के दायरे में कौन व्यक्ति आएंगे।
मौजूदा कानूनों में ट्रांसजेंडर व्यक्ति और उनकी स्थिति
वर्तमान में विभिन्न आपराधिक और दीवानी कानूनों में लिंग की दो श्रेणियों, यानी पुरुष और महिला को मान्यता प्राप्त है। इन कानूनों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट, 2005 और हिंदू उत्तराधिकार एक्ट, 1956 शामिल हैं जिनमें लिंग विशिष्ट प्रावधान हैं। बिल तीसरे लिंग, यानी ‘ट्रांसजेंडर’ को मान्यता देता है। हालांकि बिल यह स्पष्ट नहीं करता कि उपरिलिखित कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर किस प्रकार लागू होंगे। नीचे दी गई तालिका 2 में उन कानूनी प्रावधानों की सूची है जिनका कार्यान्वयन लिंग विशिष्ट है।
उल्लेखनीय है कि विभिन्न कानूनों के लिंग पहचान पर आधारित कार्यान्वयन के कारण समान अपराधों के लिए दंड अलग-अलग हो सकते हैं। उदाहरण के लिए प्रस्तुत बिल के तहत यौन उत्पीड़न के लिए निर्धारित दंड (दो वर्ष तक) के मुकाबले आईपीसी के तहत महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों के लिए दिया जाने वाला दंड (उम्रकैद तक) बहुत अधिक है।[6]
तालिका 2: भारत में लिंग विशिष्ट कानून और प्रक्रियाएं
कानून |
लिंग विशिष्ट प्रावधान |
आपराधिक कानून |
|
भारतीय दंड संहिता, 1860 |
· शील भंग करने के आशय से किसी महिला पर हमला करने पर दंड, · वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से अवयस्क महिला को बेचने पर दंड, · किसी पुरुष द्वारा किसी महिला का बलात्कार, · किसी महिला के शील को अपमानित करने के लिए प्रयोग किए गए शब्द, भाव-भंगिमा या कार्य; · महिला के पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता, · दहेज हत्या, जहां किसी महिला की मृत्यु पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता के कारण हुई हो। |
आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 |
· गिरफ्तार की गई महिला की तलाशी किसी महिला द्वारा ही की जाएगी, वह भी उसकी शिष्टता का पूरा ध्यान रखते हुए, · अवैध तरीके से हिरासत में ली गई महिलाओं को रिहा करने का अधिकार, · बलात्कार की पीड़ित, जोकि महिला होनी चाहिए, की चिकित्सकीय जांच की मांग। |
महिलाओं का अशोभनीय चित्रण (निषेध) एक्ट, 1986 |
· पब्लिकेशन के विभिन्न प्रकारों में महिलाओं के अशोभनीय चित्रण पर प्रतिबंध। |
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण एक्ट, 2005 |
· घरेलू संबंध में और कथित घरेलू हिंसा से महिलाओं को संरक्षण। |
दीवानी कानून |
|
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण (निवारण, निषेध और निदान) एक्ट, 2013 |
· कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ संरक्षण। |
हिंदू विवाह एक्ट, 1955 |
· पुरुष और महिला के बीच विवाह को मान्यता। |
विशेष विवाह एक्ट, 1954 |
· पुरुष और महिला के बीच विवाह को मान्यता। |
हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण एक्ट, 1956 |
· बच्चे को गोद लेने के संबंध में पुरुष और महिला के लिए अलग-अलग मानदंड। |
हिंदू उत्तराधिकार एक्ट, 1956 |
· वसीयत के अभाव में, ‘वारिस’ शब्द उत्तराधिकार के उद्देश्य से पुरुष या महिला, किसी को भी को संदर्भित करता है। |
मुसलिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 |
· महिलाओं की ‘विशेष संपत्ति’ को स्पष्ट करता है, जिसमें विरासत में हासिल की गई या अनुबंध, उपहार में मिली व्यक्तिगत संपत्ति शामिल है। |
अन्य कानून |
|
खान एक्ट, 1952 |
· ग्राउंड लेवल से नीचे के क्षेत्रों में महिलाओं के कार्य करने पर प्रतिबंध, · ग्राउंड लेवल से ऊपर सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक महिलाओं को कार्य करने की अनुमति। |
कारखाना एक्ट, 1948 |
· महिलाओं को किसी कारखाने में केवल सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे के बीच कार्य करने की अनुमति। |
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट, 2013 |
· एक्ट कहता है कि राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से सबसे बड़ी उम्र की महिला ही किसी पात्र परिवार की मुखिया मानी जाएगी। |
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट, 2005 |
· एक्ट कहता है कि अगर इस एक्ट के तहत महिलाओं ने पंजीकरण कराया है और वे काम करना चाहती हैं तो उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी (कम से कम एक तिहाई महिला लाभार्थी होने ही चाहिए)। |
कंपनी एक्ट, 2013 |
· एक्ट के तहत प्रत्येक कंपनी के निदेशक बोर्ड में कम से कम एक महिला निदेशक होनी चाहिए। |
Sources: Various central laws; [7] PRS.
परिशिष्ट: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय, 2014 के बिल और एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट के साथ 2016 के बिल की तुलना
सर्वोच्च न्यायालय, सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय की एक्सपर्ट कमिटी और राज्यसभा में पारित 2014 के प्राइवेट मेंबर बिल में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित विभिन्न पहलुओं की समीक्षा की गई। तालिका 3 इन सुझावों के साथ 2016 के बिल के प्रावधानों की तुलना करती है।
तालिका 3 : सर्वोच्च न्यायालय के फैसले, प्राइवेट मेंबर बिल (2014) और एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट के साथ 2016 के बिल की तुलना
प्रावधान |
सुप्रीम कोर्ट (2014) |
एक्सपर्ट कमिटी (2014) |
प्राइवेट मेंबर बिल (2014) |
सरकारी बिल (2016) |
‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति’ की परिभाषा |
· ऐसा व्यक्ति जिसकी लिंग पहचान, लिंग अभिव्यक्ति या व्यवहार उसके बायोलॉजिकल सेक्स के साथ मेल नहीं खाता। |
· ऐसा व्यक्ति जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग के अलग है। |
· एक ऐसा व्यक्ति, जिसकी लिंग अनुभूति जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाती, · इसमें ट्रांस मेन, ट्रांस विमेन, लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति और सामाजिक-सांस्कृतिक वाली विभिन्न पहचान वाले व्यक्ति शामिल हैं। |
· ऐसे व्यक्ति है जोकि: (i) न तो पूरी तरह से महिला हैं और न ही पुरुष, या (ii) महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन हैं, या (iii) न तो महिला है और न ही पुरुष, और · जिनकी लिंग अनुभूति जन्म के समय नियत किए गए लिंग से मेल नहीं खाती और जिसमें ट्रांस मेन, ट्रांस विमेन, इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले और लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति शामिल हैं। |
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान |
· पुरुष, महिला या तीसरे लिंग के रूप में खुद को आइडेंटिफाई करने वाले ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कानूनी मान्यता। |
· एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को खुद को पुरुष, महिला या ट्रांसजेंडर कहने का विकल्प होगा। |
· कोई प्रावधान नहीं। |
· ट्रांसजेंडर के तौर पर मान्यता प्राप्त व्यक्ति को स्वयं अनुभव की गई लिंग पहचान का अधिकार होगा। · ‘ट्रांसजेंडर’ की पहचान का सर्टिफिकेट जिला अधिकारी द्वारा जारी किया जाएगा जोकि स्क्रीनिंग कमिटी के सुझावों पर आधारित होगा। · अगर लिंग में किसी प्रकार का परिवर्तन होगा तो समान प्रक्रिया का पालन करते हुए संशोधित सर्टिफिकेट हासिल किया जा सकता है। |
भेदभाव पर प्रतिबंध |
· केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा झेले जाने वाले सामाजिक लांछन और भेदभाव की समस्या को हल करें। |
· निम्नलिखित में भेदभाव न बरतने का सुझाव: (i) परिवार; (ii) शिक्षण संस्थान; (iii) स्वास्थ्य सेवा; (iv) सामाजिक कल्याण; (v) आश्रय और निवास। |
· ‘भेदभाव’ का अर्थ है, किसी व्यक्ति की लिंग पहचान के कारण उस पर ऐसा कोई प्रतिबंध लगाना, जोकि उसके मानवाधिकार और स्वतंत्रता को प्रभावित करे। |
· निम्नलिखित क्षेत्रों के संबंध में भेदभाव न करना प्रतिबंधित हैः (i) शिक्षा; (ii) रोजगार; (iii) स्वास्थ्य सेवा; (iv) सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध उत्पादों तक पहुंच; (v) कहीं आने-जाने का अधिकार, और (vi) संपत्ति हासिल करने का अधिकार। |
कल्याणकारी योजनाएं |
· केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि आवास और रोजगार जैसे क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए योजना तैयार की जाएं। |
· निम्नलिखित से संबंधित योजनाओं का सुझाव: (i) शिक्षा; (ii) ऋण अनुदान; (iii) पेंशन; और (iv) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कार्य करने वाले संगठनों को सहायतानुदान। |
· निम्नलिखित के संबंध में योजनाओं के प्रावधान की जरूरत: (i) पेंशन;(ii) बेरोजगारी भत्ता; (iii) फ्री सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी जैसे स्वास्थ्य कार्यक्रम; (iv) बीमा। |
· निम्नलिखित के संबंध में योजनाओं के प्रावधान की जरूरत: (i) पुनर्वास; (ii) जीविकोपार्जन के लिए सहयोग; (iii) स्वास्थ्य सेवा की सुविधाएं; और (iv) बीमा। |
आरक्षण |
· निम्नलिखित में आरक्षण के प्रावधान का निर्देश: (i) शिक्षण संस्थान, और (ii) केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सरकारी नियुक्ति। |
· कोई सुझाव नहीं। |
· सभी सरकारी शिक्षण संस्थानों और कार्यालयों में दो प्रतिशत सीटों के आरक्षण की अपेक्षा। |
· कोई प्रावधान नहीं। |
शिकायत निवारण और दंड |
· निर्णय में यह मुद्दा शामिल नहीं। |
· कोई सुझाव नहीं। |
· विशेष ट्रांसजेंडर अधिकार न्यायालयों का गठन। · अपराधों के लिए दंड का निर्धारण न्यायालयों द्वारा। · द्वेषपूर्ण संभाषण (कैद और जुर्माना) और सूचना प्रदान न करने की स्थिति में दंड (जुर्माना) का निर्धारण। |
· शिकायत निवारण के लिए कोई व्यवस्था स्पष्ट नहीं। · निम्नलिखित के लिए दंड (कैद और जुर्माना) निर्धारित: (i) ट्रांसजेंडर व्यक्ति से भीख मंगवाना, (ii) उसे सार्वजनिक स्थान का प्रयोग करने से रोकना, और (iii) शारीरिक, यौन और मौखिक उत्पीड़न। |
Sources: National Legal Services Authority vs. UoI (2014); Report of the Expert Committee (2014); The Rights of Transgender Persons Bill, 2014; The Transgender Persons (Protection of Rights) Bill, 2016; PRS.
[1]. “Transgender persons”, World Health Organisation, http://www.who.int/hiv/topics/transgender/en/.
[2]. Report of the Expert Committee on the Issues relating to Transgender Persons, Ministry of Social Justice and Empowerment, January 27, 2014, http://socialjustice.nic.in/writereaddata/UploadFile/Binder2.pdf.
[3]. Primary Census Abstract Data for Others (India & States/UTs), Census 2011.
[4]. National Legal Services Authority vs. Union of India [(2014) 5 SCC 438].
[5]. The Rights of Transgender Persons Bill, 2014, Private Member Bill, August 24, 2015, http://164.100.47.4/BillsTexts/LSBillTexts/Asintroduced/210_2016_LS_Eng.pdf.
[6]. Sections 354, 354A, 354B, 375, Indian Penal Code, 1860.
[7]. Sections 354, 372, 375, 509, 498A, 304B, Indian Penal Code, 1860; Sections 51, 98, 164A, Code of Criminal Procedure, 1973; Indecent Representation of Women (Prohibition) Act, 1986; Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005; Sexual Harassment of Women At Workplace (Prevention, Prohibition, Redressal) Act, 2013; Section 7, Hindu Marriage Act, 1955; Section 4, Special Marriage Act, 1954; Sections 7,8, Hindu Adoptions and Maintenance Act, 1956; Section 3, Hindu Succession Act, 1956; Section 2, Muslim Personal Law (Shariat) Application Act, 1937; Section 46, The Mines Act, 1952; Section 66, Factories Act, 1948; Section 13, National Food Security Act, 2013; Section 5, National Rural Employment Guarantee Act, 2005; Section 149, The Companies Act, 2013.
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