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बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल भारतीय डाकघर एक्ट, 1898 का स्थान लेता है। यह एक्ट भारतीय डाक को रेगुलेट करता है, जोकि केंद्र सरकार का एक विभागीय उपक्रम है।

  • सरकार को पत्र भेजने पर विशेष विशेषाधिकार नहीं होगा। भारतीय डाक द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं नियमों के अंतर्गत निर्धारित की जाएंगी। 

  • डाक सेवा महानिदेशक को भारतीय डाक का प्रमुख नियुक्त किया जाएगा। उसके पास सेवाओं के शुल्क और डाक टिकटों की आपूर्ति सहित विभिन्न मामलों पर नियम बनाने की शक्तियां होंगी।

  • सरकार राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था सहित निर्दिष्ट आधारों पर भारतीय डाक के माध्यम से प्रेषित किसी वस्तु को इंटरसेप्ट कर सकती है।

  • भारतीय डाक अपनी सेवाओं के संबंध में नियमों के माध्यम से निर्धारित किसी भी दायित्व के अतिरिक्तअन्य कोई दायित्व नहीं लेगा।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल भारतीय डाक के माध्यम से प्रेषित वस्तुओं के इंटरसेप्शन के लिए प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट नहीं करता। सुरक्षा उपायों की कमी से बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तियों की प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।

  • इंटरसेप्शन के आधारों में इमरजेंसी’ शामिल है, जोकि संविधान के उपयुक्त प्रतिबंधों से इतर जा सकता है।

  • बिल भारतीय डाक को डाक सेवाओं में चूक के लिए जवाबदेही से छूट देता है। जवाबदेही केंद्र सरकार द्वारा नियमों के माध्यम से निर्धारित की जा सकती हैजो भारतीय डाक का प्रबंधन भी करती है। इससे हितों का टकराव हो सकता है।

  • बिल किसी भी अपराध और दंड को निर्दिष्ट नहीं करता है। उदाहरण के लिएकिसी डाक अधिकारी द्वारा डाक वस्तुओं को अनाधिकृत रूप से खोलने पर कोई कुपरिणाम नहीं होगा। इससे उपभोक्ताओं की प्राइवेसी के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

डाक सेवाएं संविधान की संघीय सूची के तहत आती हैं। भारतीय डाकघर एक्ट, 1898 केंद्र सरकार की डाक सेवाओं को रेगुलेट करता है।[1] यह केंद्र सरकार को पत्रों के प्रेषण में विशेष विशेषाधिकार देता है। डाक सेवाएं भारतीय डाक द्वारा प्रदान की जाती हैं जोकि एक विभागीय उपक्रम है।

कुछ पूर्व अवसरों पर, 1898 के एक्ट में महत्वपूर्ण संशोधन प्रस्तावित किए गए, हालांकि वे प्रभावी नहीं हुए।[2],[3],[4],5  1986 में संसद में एक बिल पारित किया गया, जिसमें संविधान के तहत मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंधों के साथ डाक के माध्यम से प्रेषित वस्तुओं के इंटरसेप्शन के आधारों को अनुरूप करने का प्रयास किया गया था। बिल को राष्ट्रपति की सम्मति नहीं मिली, और इसे वापस ले लिया गया। 2002 में एक और बिल पेश किया और इसे स्टैंडिंग कमिटी को भेजा गया। इसमें एक्ट के तहत निजी कुरियर सेवाओं को रेगुलेट करने वाले संशोधन शामिल थे।[5]  लेकिन बिल लैप्स हो गया। 2006 और 2011 में ड्राफ्ट बिल जारी किए गए जिनमें एक्ट के तहत निजी कुरियर सेवाओं को रेगुलेट करने वाले संशोधन प्रस्तावित थे।3,हालांकि संबंधित बिल संसद में पेश नहीं किए गए। 

2017 में केंद्र सरकार को शुल्क तय करने की शक्ति सौंपने के लिए कानून में संशोधन किया गया था।[6] पहले यह शक्ति संसद के पास थी। हाल ही में जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) एक्ट, 2023 ने कानून के तहत सभी अपराधों और दंडों को हटा दिया।[7] अगस्त 2023 में डाकघर बिल2023 को राज्यसभा में पेश किया गया। यह 1898 के एक्ट की जगह लेता है और इसका उद्देश्य भारतीय डाक को नागरिक-केंद्रित सेवा नेटवर्क के तौर पर विकसित करने के लिए विधायी ढांचे को सरल बनाना है।

मुख्य विशेषताएं 

  • केंद्र सरकार के विशेष विशेषाधिकार: एक्ट में प्रावधान है कि जहां भी केंद्र सरकार डाकघर स्थापित करती हैउसे डाक द्वारा पत्र भेजने के साथ-साथ पत्र प्राप्त करनेएकत्र करनेभेजने और वितरित करने जैसी आकस्मिक सेवाओं का विशेष विशेषाधिकार होगा। बिल में ऐसे विशेषाधिकार शामिल नहीं हैं। एक्ट केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार डाक टिकट जारी करने का प्रावधान करता है। बिल में यह भी कहा गया है कि डाकघर को डाक टिकट जारी करने का विशेष विशेषाधिकार होगा।

  • निर्दिष्ट सेवाएंएक्ट डाकघर द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को निर्दिष्ट करता हैजिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पत्रपोस्टकार्ड और पार्सल सहित डाक वस्तुओं की डिलीवरीऔर (ii) मनी ऑर्डर। बिल में प्रावधान है कि डाकघर केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सेवाएं प्रदान करेगा।

  • महानिदेशक को सेवाओं के संबंध में नियम बनाने होंगे: एक्टसाथ ही बिलडाक सेवा महानिदेशक की नियुक्ति का प्रावधान करता है। एक्ट के तहतमहानिदेशक के पास डाक सेवाओं की डिलीवरी का समय और तरीका तय करने की शक्तियां हैं। बिल में प्रावधान है कि महानिदेशक डाक सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक किसी भी गतिविधि के संबंध में नियम बना सकता है। वह सेवा शुल्क, और डाक टिकटों एवं डाक स्टेशनरी की आपूर्ति और बिक्री के नियम भी बना सकता है।

  • डाक वस्तुओं को इंटरसेप्ट करने की शक्तियांएक्ट कुछ आधार पर डाक के माध्यम से भेजी जाने वाली वस्तुओं के इंटरसेप्शन की अनुमति देता है। किसी भी सार्वजनिक आपातकाल की स्थिति मेंया सार्वजनिक सुरक्षा या शांति के हित में इंटरसेप्शन किया जा सकता है। केंद्र सरकारराज्य सरकारों या उनके द्वारा विशेष रूप से अधिकृत कोई अधिकारी यह इंटरसेप्शन कर सकते हैं। प्रभारी अधिकारी ने जिस शिपमेंट को इंटरसेप्ट किया है, उसे जब्त या निस्तारित किया जा सकता है। अधिकारी के पास एक्ट या किसी अन्य कानून के तहत निषिद्ध वस्तुओं को ले जाने वाले शिपमेंट को खोलनेउसे जब्त करने या नष्ट करने की भी शक्तियां हैं।

  • इसके बजाय बिल में प्रावधान है कि डाक के माध्यम से भेजे जाने वाले शिपमेंट को निम्नलिखित आधार पर इंटरसेप्ट किया जा सकता है: (i) राज्य की सुरक्षा, (ii) दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, (iii) सार्वजनिक व्यवस्थाआपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षाऔर (iv) बिल या किसी अन्य कानून के प्रावधानों का उल्लंघन। एक अधिसूचना के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा अधिकार प्राप्त अधिकारी इंटरसेप्शन को अंजाम दे सकता है।

  • कानून के तहत निषिद्ध डाक वस्तुओं की जांच या शुल्क देयताएक्ट के तहतडाकघर का प्रभारी अधिकारी किसी शिपमेंट की जांच कर सकता है, अगर उसे संदेह है कि इसमें ऐसे सामान हैं जो निषिद्ध हैंया शुल्क का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं। बिल जांच की शक्तियों को हटाता है। इसके बजाय यह प्रावधान करता है कि ऐसे मामलों मेंकेंद्र सरकार डाकघर के एक अधिकारी को कस्टम्स अथॉरिटी या किसी अन्य निर्दिष्ट अथॉरिटी को शिपमेंट पहुंचाने का अधिकार दे सकती है। इसके बाद अथॉरिटी संबंधित वस्तु से निपटेगी।

  • दायित्व से छूट: एक्ट सरकार को डाक वस्तु के नुकसानगलत डिलीवरीदेरी या क्षति से संबंधित किसी भी दायित्व से छूट देता है। यह वहां लागू नहीं होता जहां दायित्व केंद्र सरकार द्वारा स्पष्ट शब्दों में लिया जाता है। अधिकारियों को भी ऐसे दायित्व से छूट दी गई है जब तक कि उन्होंने धोखाधड़ी या जानबूझकर कार्य नहीं किया हो। बिल इन प्रावधानों को बरकरार रखता है। इसमें यह भी प्रावधान है कि केंद्र सरकार नियमों के तहत भारतीय डाक सेवाओं के संबंध में दायित्व निर्धारित कर सकती है।

  • अपराध और सजा को हटानाएक्ट विभिन्न अपराधों और दंडों को निर्दिष्ट करता है जिन्हें जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) एक्ट, 2023 के तहत हटा दिया गया है। उदाहरण के लिएडाकघर के किसी अधिकारी द्वारा डाक वस्तुओं की चोरीहेराफेरी या नष्ट करने पर सात वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। कुछ प्रतिबंधित वस्तुओं को डाक के माध्यम से भेजने पर एक वर्ष तक की कैदजुर्माना या दोनों हो सकते हैं। बिल एक को छोड़कर किसी भी अपराध या परिणाम का प्रावधान नहीं करता है। उपयोगकर्ता किसी राशि का भुगतान नहीं करता, तो वह राशि भू-राजस्व के बकाये के रूप में वसूली योग्य होगी।

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

डाक सेवाओं का रेगुलेशन कुरियर सेवाओं से अलग

वर्तमान में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र द्वारा एक सी डाक सेवाओं के लिए अलग-अलग फ्रेमवर्क्स हैं। भारतीय डाकघर एक्ट, 1898 पत्रों को प्रेषित करने पर केंद्र सरकार का एकाधिकार स्थापित करता है। निजी कुरियर सेवाओं का रेगुलेशन फिलहाल किसी विशिष्ट कानून के तहत नहीं किया जाता।[8]  इससे कई किस्म के अंतर पैदा होते हैं। उदाहरण के लिए, 1898 का एक्ट भारतीय डाक के जरिए प्रेषित की जाने वाली वस्तुओं के इंटरसेप्शन के लिए फ्रेमवर्क प्रदान करता है। निजी कुरियर सेवाओं के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। दूसरा अंतर, उपभोक्ता संरक्षण के फ्रेमवर्क को लागू करने से संबंधित है। 1898 का एक्ट सरकार को सेवाओं में चूक की स्थिति में जवाबदेही से छूट देता है, जब तक कि यह जवाबदेही स्पष्ट शब्दों में न बताई गई हो। उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 2019 भारतीय डाक की सेवाओं पर लागू नहीं होता है, लेकिन वह निजी कुरियर सेवाओं पर लागू होता है।[9] 1898 के एक्ट की जगह लेने वाले डाकघर बिल, 2023 में इन प्रावधानों को बरकरार रखा गया है। हम यहां इन प्रावधानों से जुड़े कुछ मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।  

भारतीय डाक के जरिए प्रेषित वस्तुओं का इंटरसेप्शन

बिल सरकार को यह शक्ति देता है कि वह डाक द्वारा प्रेषित वस्तुओं का निम्नलिखित आधार पर इंटरसेप्शन कर सकती है: (i) राज्य की सुरक्षा, (ii) दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, (iii) सार्वजनिक व्यवस्था, (iv) इमरजेंसी, (v) सार्वजनिक सुरक्षाया (iv) बिल या किसी अन्य कानून के प्रावधानों का उल्लंघन। हम यहां दो संबंधित मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। 

प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों के अभाव में व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है

बिल डाक वस्तुओं के इंटरसेप्शन के खिलाफ कोई प्रक्रियागत सुरक्षा उपाय निर्दिष्ट नहीं करता। इससे प्राइवेसी, और बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है। टेलीकम्यूनिकेशन के इंटरसेप्शन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय (1996) ने कहा था कि इंटरसेप्शन की शक्ति को रेगुलेट करने के लिए एक न्यायसंगत और निष्पक्ष प्रक्रिया होनी चाहिए। अन्यथा, अनुच्छेद 19 (1) (बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में प्राइवेसी का अधिकार) के तहत नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना संभव नहीं है।[10]  इसके मद्देनजर अदालत ने कई सुरक्षा उपायों को अनिवार्य किया था, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) इंटरसेप्शन की जरूरत स्थापित करना, (ii) इंटरसेप्शन के आदेशों की वैधता को सीमित करना, (iii) उच्च स्तरीय अधिकारियों की तरफ से इंटरसेप्शन का अधिकार देना, और (iv) वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की अध्यक्षता वाली एक समीक्षा समिति द्वारा इंटरसेप्शन के आदेश की जांच करना।10

भारतीय डाकघर (संशोधन) बिल, 1986 में ऐसा ही एक क्लॉज था।[11]  इस बिल को संसद के दोनों सदनों में पारित कर दिया गया और दिसंबर 1986 में राष्ट्रपति की सम्मति के लिए भेजा गया। हालांकि राष्ट्रपति ज़ैल सिंह ने जुलाई 1987 में पद छोड़ने तक न तो बिल पर अपनी सम्मति दी, और न ही उसे संसद को लौटाया। इसके बाद राष्ट्रपति वेंकटरमन ने जनवरी 1990 में इसे पुनर्विचार के लिए संसद को लौटाया और 2002 में वाजपेयी सरकार ने इस बिल को वापस ले लिया।5,[12]

इमरजेंसी का आधार संविधान के तहत स्वीकृत उपयुक्त प्रतिबंधों से परे जा सकता है

बिल में इमरजेंसी के आधार पर डाक वस्तुओं के इंटरसेप्शन की अनुमति है। 1898 के एक्ट में इंटरसेप्शन के लिए पब्लिक इमरजेंसी (सार्वजनिक आपातकाल) के लिए ऐसा ही आधार है। विधि आयोग (1968) ने 1898 के एक्ट की समीक्षा करते हुए कहा था कि इमरजेंसी शब्द की स्पष्ट रूप से व्याख्या नहीं की गई है, इसलिए यह इंटरसेप्शन के लिए व्यापक आधार प्रदान करता है। उसने यह भी कहा था कि डाक वस्तुओं के इंटरसेप्शन के कुछ मामलों में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हो सकता है, जैसे जब उसमें पत्र, किताबें, पोस्टकार्ड और समाचार पत्र हों।[13] उसने कहा था कि पब्लिक इमरजेंसी इंटरसेप्शन के लिए संविधान के तहत अनुमत आधार नहीं हो सकती, जब तक कि इससे राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या संविधान में निर्दिष्ट अन्य आधार प्रभावित नहीं होते। सर्वोच्च न्यायालय (2015) ने कहा था कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने वाले मनमाने आधार असंवैधानिक हैं।[14]

सेवाओं में चूक की स्थिति में दायित्वों से छूट

बिल में कहा गया है कि किसी भी अन्य कानून के लागू होने के बावजूदभारतीय डाक द्वारा प्रदान की गई सेवा के संबंध में भारतीय डाक कोई दायित्व नहीं लेगा। हालांकि केंद्र सरकार नियमों के माध्यम से किसी सेवा के संबंध में दायित्व निर्धारित कर सकती है। प्रश्न यह है कि क्या बिल में खुद ही दायित्व का प्रावधान होना चाहिए।

1898 के एक्ट के कार्यान्वयन की समीक्षा करते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण समिति (2023) ने कहा था कि उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 2019 सरकार की डाक सेवाओं पर लागू नहीं होता।9  बिल 1898 के एक्ट के तहत दायित्वों से संबंधित प्रावधानों को बरकरार रखता है। इसका अर्थ यह है कि भारतीय डाक की डाक सेवाओं के उपभोक्ताओं के अधिकार पर्याप्त रूप से संरक्षित नहीं होंगे। केंद्र सरकार द्वारा नियमों के माध्यम से दायित्व निर्दिष्ट किए जा सकते हैं, जोकि भारतीय डाक का प्रशासन करता है। इससे हितों का टकराव हो सकता है।  

बिल के तहत फ्रेमवर्क, रेलवे के मामले में लागू कानून से भिन्न हैं। रेलवे भी केंद्र सरकार की तरफ से प्रदान की जाने वाली वाणिज्यिक सेवा है। रेलवे दावा ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 सेवाओं में चूक के लिए भारतीय रेलवे के खिलाफ शिकायतों के निवारण के लिए ट्रिब्यूनल्स की स्थापना करता है।[15] इनमें माल की हानिक्षति या डिलीवरी न होनाऔर किराए या माल पर रीफंड जैसी शिकायतें शामिल हैं।

सभी अपराधों और दंड को हटाना

जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) एक्ट, 2023 में 1898 के एक्ट के तहत सभी अपराधों और दंड को हटा दिया गया है।7  इनमें डाकघर के अधिकारियों द्वारा किए गए विभिन्न अपराध शामिल थे। बिल इस स्थिति को बरकरार रखता हैयानी यह किसी भी अपराध और दंड का प्रावधान नहीं करता है। प्रश्न यह है कि क्या यह उचित है?

एक्ट के तहतकिसी डाक अधिकारी द्वारा डाक वस्तुओं को अवैध रूप से खोलने पर दो साल तक की कैदजुर्माना या दोनों का दंड था। डाक अधिकारियों के अलावा अन्य व्यक्तियों को भी मेल बैग खोलने के लिए दंडित किया गया था। इसके विपरीत बिल के तहत ऐसे कार्य करने पर कोई कुपरिणाम नहीं होगा। इससे व्यक्तियों की प्राइवेसी के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। डाक सेवाओं से संबंधित विशिष्ट उल्लंघन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) जैसे अन्य कानूनों के तहत शामिल नहीं हैं। आईपीसी ऐसे अपराधों को केवल तभी दंडित करता है, जब वे चोरी या हेराफेरी (सेक्शन 403 और 461) के साथ हो।[16]

कुछ मामलों में परिणामों में स्पष्टता की कमी

बिल में कहा गया है कि कोई भी अधिकारी भारतीय डाक सेवा के संबंध में कोई दायित्व नहीं लेगा। यह छूट वहां लागू नहीं होगी, जहां अधिकारी ने धोखाधड़ी से काम किया हो या जानबूझकर सेवा की हानिदेरी या गलत डिलीवरी की हो। हालांकि बिल में यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि यदि कोई अधिकारी ऐसा कृत्य करता है तो उसके क्या परिणाम होंगे। जन विश्वास एक्ट के तहत संशोधन से पहले1898 के एक्ट के तहत इन अपराधों के लिए दो साल तक की कैदजुर्माना या दोनों की सजा हो सकती थी।

भारतीय डाक को वित्तीय मदद

बिल के वित्तीय ज्ञापन में कहा गया है कि बिल को लागू करने से भारत की समेकित निधि (कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया) से कोई आवर्ती या गैर-आवर्ती व्यय नहीं होगा। हालांकि भारतीय डाक लगातार घाटे में रही है जिसकी भरपाई भारत की समेकित निधि से की गई है। तालिका में प्रदर्शित किया गया है कि पिछले पांच वर्षों में डाक विभाग को कितनी बजटीय सहायता दी गई है।

तालिका 1: डाक विभाग को बजटीय सहायता 

वर्ष

बजटीय सहायता (करोड़ रुपए में)

2019-20

15,544

2020-21

18,593

2021-22

19,746

2022-23 (संशोधित अनुमान)

23,656

2023-24 (बजटीय अनुमान)

25,814

स्रोत: विभिन्न वर्षों के केंद्रीय बजट दस्तावेज; पीआरएस।

 

4. Highlights of the Draft 2011 Bill, India Post.

6. Section 133, The Finance Act, 2017.

8. Lok Sabha Unstarred Question No. 3963, Ministry of Communications, July 17, 2019. 

9. Yogesh Kumar vs Superintendent, Indian Postal Department, Revision Petition 3246 Of 2016, National Consumer Disputes Redressal Commission, March 9, 2023.

10. People’s Union for Civil Liberties vs The Union of India, WP (Civil) 105 of 2004, Supreme Court, December 18, 1996.

11. The Indian Post Office (Amendment) Bill, 1986 replaced Section 26 with the following: "26. The Central Government or the State Government or any officer specially authorised in this behalf by the Central or the State Government, may, if satisfied that it is necessary or expedient so to do in the interests of public safety or tranquillity, the sovereignty and integrity of India, the security of the State, friendly relations with foreign States or public order or for preventing incitement to the commission of any offence, or on the occurrence of any public emergency, by order in writing, direct that any postal article or class or description of postal articles in the course of transmission by post, shall be intercepted or detained or shall be disposed of in such manner as the authority issuing the order, may direct.".

[12]“No, Mr President”, AG Noorani, Hindustan Times, July 26, 2006.

13. Thirty Eighth Report on The Indian Post Office Act, 1898, Law Commission of India (1968).

14. Shreya Singhal vs The Union of India, WP (Criminal) 167 of 2012, Supreme Court, March 24, 2015.

16. Sections 403 and 461, The Indian Penal Code, 1860.

 

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