मंत्रालय: 
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • अनुसूची में दर्ज मामलों के संबंध में लोगों की पहचान स्थापित करने के लिए बिल डीएनए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को रेगुलेट करता है। इनमें आपराधिक मामले (जैसे भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत आने वाले अपराध), और पेरेंटेज संबंधी विवादों, आव्रजन या प्रवास, तथा मानव अंगों के प्रत्यारोपण संबंधी दीवानी मामले शामिल हैं।
     
  • बिल राष्ट्रीय डीएनए बैंक और क्षेत्रीय डीएनए बैंक की स्थापना करता है। हर डीएनए बैंक निम्नलिखित श्रेणियों के डेटा का रखरखाव करेंगे: (i) क्राइम सीन इंडेक्स, (ii) संदिग्ध व्यक्तियों (सस्पेक्ट्स) या विचाराधीन कैदियों (अंडरट्रायल्स) के इंडेक्स, (iii) अपराधियों के इंडेक्स, (iv) लापता व्यक्तियों के इंडेक्स, और (v) अज्ञात मृत व्यक्तियों के इंडेक्स।
     
  • बिल डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड की स्थापना करता है। किसी व्यक्ति की पहचान करने के लिए डीएनए सैंपल की जांच करने वाली हर डीएनए लेबोरेट्री को बोर्ड से एक्रेडेशन लेना होगा।  
     
  • किसी व्यक्ति के डीएनए सैंपल इकट्ठे करने के लिए उससे लिखित अनुमति लेने की जरूरत होगी। किसी अपराध के लिए सात वर्ष से अधिक की सजा या मृत्यु दंड पाने वाले व्यक्तियों के सैंपल इकट्ठा करने हेतु ऐसी सहमति की जरूरत नहीं है।
     
  • बिल पुलिस रिपोर्ट फाइल करने या न्यायालय के आदेश पर संदिग्ध व्यक्तियों के डीएनए प्रोफाइल को हटाने का प्रावधान करता है। इसी तरह न्यायालय के आदेश पर विचाराधीन कैदियों के प्रोफाइल भी हटाए जा सकते हैं। जबकि क्राइम सीन से संबंधित प्रोफाइल्स और लापता व्यक्तियों के इंडेक्स लिखित अनुरोध पर हटाए ही जाएंगे।   

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • अनुसूची में ऐसे दीवानी मामले दर्ज हैं जिनमें डीएनए प्रोफाइलिंग का इस्तेमाल किया जा सकता है। इनमें व्यक्तिगत पहचान स्थापित करने से संबंधित मामले शामिल हैं। मेडिकल या रिसर्च लेबोरेट्रीज़ में डीएनए टेस्टिंग को किसी व्यक्ति की पहचान के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह अस्पष्ट है कि क्या बिल ऐसी लेबोरेट्रीज़ को रेगुलेट करना चाहता है।
     
  • बिल के अनुसार, आपराधिक जांच और लापता व्यक्तियों की पहचान हेतु डीएनए प्रोफाइलिंग का इस्तेमाल करने से पहले सहमति लेनी जरूरी है। लेकिन दीवानी मामलों में डीएनए प्रोफाइलिंग के इस्तेमाल के लिए ऐसी जरूरत के बारे में कोई निर्देश नहीं दिया गया है।
     
  • डीएनए लेबोरेट्रीज़ से अपेक्षा की गई है कि वे डेटा बैंक्स से अपना डीएनए डेटा शेयर करेंगी। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या दीवानी मामलों के डीएनए प्रोफाइल्स को भी डेटा बैंक्स में स्टोर किया जाएगा। डेटा बैंक्स में इन डीएनए प्रोफाइल्स के स्टोरेज से निजता के अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) का उल्लंघन हो सकता है।
     
  • डीएनए लेबोरेट्रीज़ डीएनए प्रोफाइल्स तैयार करती हैं और फिर उन्हें डीएनए डेटा बैंक्स के साथ शेयर करती हैं। बिल उस प्रक्रिया को निर्दिष्ट करता है जिसके जरिए डेटा बैंक से डीएनए प्रोफाइल्स हटाए जा सकते हैं। हालांकि बिल डीएनए लेबोरेट्रीज़ से ऐसे प्रोफाइल्स को हटाने के संबंध में कोई निर्देश नहीं देता। यह कहा जा सकता है कि ऐसे प्रावधानों को बिल में शामिल किया जाए और उन्हें रेगुलेशंस पर न छोड़ा जाए।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (डीएनए) किसी कोशिका (सेल) के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले जेनेटिक इंस्ट्रक्शंस होते हैं। इन इंस्ट्रक्शंस को किसी जीव की वृद्धि और विकास के लिए इस्तेमाल किया जाता है। व्यक्ति का डीएनए विशिष्ट होता है, और डीएनए के भिन्न-भिन्न क्रमों के आधार पर लोगों को मैच किया जा सकता है और उन्हें चिन्हित किया जा सकता है।[1]  इस प्रकार डीएनए टेक्नोलॉजी को किसी व्यक्ति की पहचान को सही तरह से स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।1

आपराधिक जांच में डीएनए आधारित टेक्नोलॉजी की मदद ली जा सकती है। उदाहरण के लिए किसी अपराधी की पहचान के लिए क्राइम सीन पर उसके डीएनए को संदिग्ध व्यक्ति के डीएनए से मिलाया जा सकता है।[2] इसके अतिरिक्त डीएनए आधारित टेक्नोलॉजी आतंकवादी हमलों या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में पीड़ितों की पहचान करने में मदद करती है। उदाहरण के लिए 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमलों, 2004 में एशियाई सूनामी जैसी आपदाओं में पीड़ितों की पहचान करने के लिए डीएनए टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की गई थी।[3] साथ ही, डीएनए प्रोफाइलिंग को दीवानी मामलों, जैसे पेरेंटेज संबंधी विवादों में इस्तेमाल किया जा सकता है। 

वर्तमान में, लोगों की पहचान के लिए डीएनए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर कोई रेगुलेशन नहीं है। इससे पहले अनेक विशेषज्ञ समूहों, जिनमें लॉ कमीशन भी शामिल है, ने डीएनए टेक्नोलॉजी के प्रयोग और रेगुलेशन पर विचार किया है।[4]  कमीशन ने जुलाई 2017 में अपनी रिपोर्ट और ड्राफ्ट बिल भी सौंपा था।2 इस संबंध में डीएनए टेक्नोलॉजी (प्रयोग और लागू होना) रेगुलेशन बिल, 2018 को 9 अगस्त, 2018 में लोकसभा में पेश किया गया। बिल आपराधिक और दीवानी मामलों में किसी व्यक्ति की पहचान करने के उद्देश्य से डीएनए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को रेगुलेट करता है।    

प्रमुख विशेषताएं

  • डीएनए डेटा का इस्तेमाल: बिल अनुसूची में दर्ज मामलों के संबंध में लोगों की पहचान के लिए डीएनए टेस्टिंग को रेगुलेट करता है। इसमें भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत आने वाले आपराधिक मामले, साथ ही अनैतिक तस्करी (निवारण) एक्ट, 1956, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971, नागरिक अधिकार संरक्षण एक्ट, 1955 और मोटर वाहन एक्ट, 1988 के अंतर्गत आने वाले आपराधिक मामले शामिल हैं।
     
  • अनुसूची में कुछ दीवानी मामलों में डीएनए टेस्टिंग की अनुमति भी दी गई है। इनमें पेरेंटज, पेडिग्री (परिवार के दूसरे सदस्य), आव्रजन या प्रवास, सहायक प्रजनन तकनीकों, मानव अंगों के प्रत्यारोपण, तथा व्यक्तिगत पहचान को स्थापित करने से जुड़े मामले शामिल हैं।   

शारीरिक पदार्थ लेने से पहले व्यक्ति की सहमति  

  • अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसे अपराध में गिरफ्तार किया जाता है, जिसकी सजा सात वर्ष तक की है तो अधिकारियों को उसके शारीरिक पदार्थो को लेने से पहले उस व्यक्ति की लिखित अनुमति हासिल करनी होगी। अगर वह व्यक्ति अपनी सहमति नहीं देता, तो अधिकारी मेजिस्ट्रेट के पास जा सकते हैं। अगर मेजिस्ट्रेट को इस बात का विश्वास है कि कथित अपराध में उस व्यक्ति के शामिल होने या न होने की पुष्टि डीएनए से हो जाएगी तो वह उस व्यक्ति के शारीरिक पदार्थों को लेने का आदेश दे सकता है। अगर अपराध की सजा सात वर्षों से अधिक या मृत्यु है तो व्यक्ति की सहमति लेना जरूरी नहीं है।
     
  • अगर व्यक्ति पीड़ित है या लापता व्यक्ति का संबंधी है, तो अधिकारियों को शारीरिक पदार्थ लेने से पहले उनकी लिखित अनुमति हासिल करनी होगी। नाबालिग या विकलांग व्यक्ति के मामले में माता-पिता या अभिभावक की लिखित अनुमति लेना जरूरी है। अगर अनुमति नहीं मिलती तो अधिकारी मेजिस्ट्रेट के पास जा सकते हैं, जो कि उस व्यक्ति के शारीरिक पदार्थ लिए जाने का आदेश दे सकता है।

डीएनए लेबोरेट्रीज़ का एक्रेडेशन

  • कोई भी लेबोरेट्री जो किसी व्यक्ति की पहचान को स्थापित करने के लिए डीएनए टेस्टिंग और उसका आकलन करती है (अनुसूची में दर्ज मामलों के संबंध में) तो उसे डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड से एक्रेडेशन लेना होगा। यह एक्रेडेशन दो वर्ष तक वैध होगा।
     
  • बोर्ड निम्नलिखित कारणों से यह एक्रेडेशन रद्द कर सकता है, (i) अगर लेबोरेट्री डीएनए टेस्टिंग करने में असफल होती है, या (ii) एक्ट के प्रावधानों या एक्रेडेशन से जुड़ी शर्तों को पूरा करने में असफल होती है। एक्रेडेशन रद्द होने पर केंद्र सरकार या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी अन्य अथॉरिटी के समक्ष अपील की जा सकती है।
     
  • प्रत्येक डीएनए लेबोरेट्री से यह अपेक्षा की जाती है कि वह डीएनए सैंपल्स को इकट्ठा करने, उन्हें स्टोर करने, उनकी टेस्टिंग और आकलन में गुणवत्ता आश्वासन के मानदंडों का पालन करेगी।

डीएनए डेटा बैंक

  • केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक और प्रत्येक राज्य के लिए, या अगर जरूरी हुआ तो दो या उससे अधिक राज्यों के लिए क्षेत्रीय डीएनए बैंक स्थापित करेगी।
     
  • प्रत्येक डेटा बैंक से अपेक्षा की जाती है कि वे निम्नलिखित श्रेणियों के डेटा का रखरखाव करेंगे: (i) क्राइम सीन इंडेक्स, (ii) संदिग्ध व्यक्तियों (सस्पेक्ट्स) या विचाराधीन कैदियों (अंडरट्रायल्स) के इंडेक्स, (iii) अपराधियों के इंडेक्स, (iv) लापता व्यक्तियों के इंडेक्स, और (v) अज्ञात मृत व्यक्तियों के इंडेक्स।

डेटा बैंकों को डीएनए डेटा देना

  • सभी डीएनए लेबोरेट्रीज़ अपना डेटा राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डेटा बैंकों को देंगी।
     
  • आपराधिक मामलों में लेबोरेट्री से यह अपेक्षा की जाती है कि डीएनए डेटा बैंकों को डीएनए प्रोफाइल देने के बाद जांच अधिकारी को बायोलॉजिकल सैंपल लौटा दिया जाए। दूसरे मामलों में लेबोरेट्री सैंपल को नष्ट कर देगी और संबंधित व्यक्ति को इसकी सूचना देगी।

डीएनए प्रोफाइल्स को हटाना

  • व्यक्ति के लिखित अनुरोध करने पर डीएनए डेटा बैंकों में क्राइम सीन इंडेक्स या लापता व्यक्तियों के इंडेक्स से डीएनए प्रोफाइल हटाए जाएंगे। संदिग्ध व्यक्ति के डीएनए प्रोफाइल को पुलिस रिपोर्ट फाइल करने या न्यायालय के आदेश के बाद हटाया जाएगा। विचाराधीन कैदियों के मामले में डीएनए प्रोफाइल न्यायालय के आदेश के बाद हटाए जाएंगे।

वन-टाइम कीबोर्ड सर्च

  • बिल आपराधिक जांच के लिए इकट्ठे किए गए किसी भी डीएनए सैंपल के लिए वन-टाइम कीबोर्ड सर्च की अनुमति देता है। इसका अर्थ यह है कि इंडेक्स और डीएनए सैंपल की सूचनाओं के बीच तुलना की जा सकती है लेकिन सैंपल की सूचना इंडेक्स में शामिल नहीं होगी।

डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड

  • बिल डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड का प्रावधान करता है जो डीएनए डेटा बैंकों और डीएनए लेबोरेट्रीज़ को सुपरवाइज करेगा। बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सचिव को बोर्ड का एक्स ऑफिशियो चेयरपर्सन बनाया जाएगा।
     
  • बोर्ड में 12 अतिरिक्त सदस्य होंगे जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बायोलॉजिकल साइंसेज़ के विशेषज्ञ, (ii) नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) का डायरेक्टर जनरल, (iii) सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन, सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिटिंग एंड डायग्नॉस्टिक्स, सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री के डायरेक्टर्स, और (iv) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य।
     
  • बोर्ड के कामकाज में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) गुणवत्ता नियंत्रण के साथ-साथ डीएनए लेबोरेट्रीज़ और डीएनए डेटा बैंक्स को सुपरवाइज करना, (ii) डीएनए लेबोरेट्रीज़ को एक्रेडेशन देना, और (iii) डीएनए से संबंधित मामलों में कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार करना। इसके अतिरिक्त बोर्ड डीएनए सैंपलों के इस्तेमाल और उनके आकलन के संबंध में निजता कायम रखने के लिए केंद्र सरकार को सुझाव देगा।
     
  • बोर्ड से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि डेटा बैंकों, डेटा लेबोरेट्रीज़ में मौजूद डेटा प्रोफाइल्स और दूसरे लोगों की डेटा प्रोफाइल्स को गोपनीय रखा जा रहा है। डीएनए डेटा को सिर्फ लोगों की पहचान के लिए ही इस्तेमाल किया जा सकता है।  

अपराध और सजा

  • विभिन्न अपराधों के लिए निम्नलिखित सजा विनिर्दिष्ट है, जैसे: (i) डीएनए बैंक से सूचना का अनाधिकृत खुलासा, (ii) अधिकार के बिना डेटा बैंक से सूचना हासिल करना, या (iii) अधिकार के बिना डीएनए सैंपल का इस्तेमाल करना। इनके लिए तीन वर्ष तक के कारावास की सजा है और एक लाख रुपए तक का जुर्माना। इसके अतिरिक्त बायोलॉजिकल सबूतों में जान-बूझकर छेड़छाड़ करने या उन्हें नष्ट करने पर पांच वर्ष तक के कारावास की सजा है, साथ ही दो लाख रुपए तक का जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

मेडिकल या रिसर्च के उद्देश्य से डीएनए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल वाले प्रावधान को बिल में शामिल किया जा सकता है

बिल का लंबा शीर्षक बताता है कि इसका उद्देश्य अपराधियों, पीड़ितों, लापता और मृत लोगों की पहचान करने के लिए डीएनए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को रेगुलेट करना है।[5] हालांकि बिल अनुसूची में दर्ज कुछ दीवानी मामलों के लिए डीएनए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की अनुमति देता है। इनमें पेरेंटेज विवाद, पेडिग्री, आव्रजन या प्रवास, सहायक प्रजनन तकनीक और मानव अंगों का प्रत्यारोपण जैसे मामले शामिल हैं। विशेष रूप से अनुसूची में व्यक्तिगत पहचान स्थापित करने जैसे मुद्दों के लिए डीएनए की टेस्टिंग करना शामिल है।  

बिल कहता है कि अनुसूची में दर्ज मामलों में किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिए डीएनए सैंपल का आकलन करने वाली किसी भी लेबोरेट्री को डीएनए टेस्टिंग के लिए डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड से एक्रेडेशन लेना होगा। इस समय लेबोरेट्रीज़ मेडिकल या रिसर्च के उद्देश्य से भी डीएनए टेस्टिंग करती हैं। उदाहरण के लिए डायग्नॉस्टिक लेबोरेट्रीज़ यह जांच करने के लिए मेडिकल टेस्टिंग करती हैं कि क्या किसी व्यक्ति को कोई विशेष रोग, जैसे कैंसर या अल्जाइमर्स है। इन लेबोरेट्रीज़ में की गई डीएनए टेस्टिंग को किसी व्यक्ति की पहचान करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।[*]  जैसा कि बिल के लंबे शीर्षक में उसका उद्देश्य प्रकट होता है, यह अस्पष्ट है कि क्या बिल उन डीएनए लेबोरेट्रीज़ को रेगुलेट करने का इरादा रखता है जो मेडिकल और डायग्नॉस्टिक उद्देश्यों के लिए डीएनए टेस्टिंग करती हैं।

बिल में दीवानी मामलों को शामिल करना

सिविल मामलों में डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए व्यक्ति की सहमति का उल्लेख नहीं है

बिल कहता है कि अगर आपराधिक जांच या लापता व्यक्तियों की पहचान के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग का इस्तेमाल किया जाता है तो उस व्यक्ति की सहमति ली जाएगी। अपराध के पीड़ितों और अपराध के लिए गिरफ्तार व्यक्ति के डीएनए सैंपल लेने से पहले उनकी लिखित अनुमति लेनी होगी। लेकिन अगर मामला सिविल हो तो डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए ऐसी अनुमति लेने के संबंध में कोई निर्देश नहीं दिया गया है।

डीएनए डेटा बैंक में सिविल मामलों से संबंधित प्रोफाइलिंग का स्टोरेज

बिल के अंतर्गत डीएनए लेबोरेट्रीज़ से यह अपेक्षा की जाती है कि वे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डीएनए डेटा बैंकों को अपने डेटा देंगी। यह स्पष्ट नहीं है कि इन लेबोरेट्रीज़ ने सिविल मामलों में जिन डीएनए प्रोफाइल्स को टेस्ट किया है, क्या उन्हें भी डीएनए डेटा बैंक को दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि बिल सिविल मामलों के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग के स्टोरेज के बारे में डेटा बैंकों में किसी इंडेक्स को स्पष्ट नहीं करता। इसके अतिरिक्त डेटा बैंक से सिविल मामलों के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग को हटाए जाने के लिए कोई प्रावधान नहीं है।  

अगर सिविल मामलों से संबंधित डीएनए प्रोफाइलिंग को डीएनए डेटा बैंक में स्टोर किया जाता है तो यह निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार को मूलभूत अधिकार बनाने के लिए संविधान की विवेचना की है।[6]  न्यायालय ने कहा था कि इस अधिकार का उल्लंघन तीन परिस्थितियों में किया जा सकता है। ये परिस्थितियां निम्नलिखित हैं: (i) किसी कानून के द्वारा, (ii) उस कानून का उद्देश्य जनहित हो, और (iii) यह जनहित निजता के उल्लंघन के अनुपात में हो।6  चूंकि डेटा बैंकों में सिविल मामलों (जैसे पेटरनिटी के मुकदमे) के लिए डीएनए प्रोफाइल्स का स्टोरेज जनहित के उद्देश्य को पूरा नहीं करता, इसीलिए यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। 

डीएनए प्रोफाइल्स में पहचान के अतिरिक्त दूसरी सूचना हो सकती है

बिल के अनुसार, डीएनए प्रोफाइल वह होता है जिसे किसी व्यक्ति की पहचान करने के लिए डीएनए सैंपल के आकलन के बाद तैयार किया जाता है। डीएनए सैंपल उस व्यक्ति की पहचान के अतिरिक्त दूसरी सूचनाएं प्रदान कर सकता है। बिल यह निर्दिष्ट नहीं करता कि दूसरी अतिरिक्त सूचनाओं को डीएनए प्रोफाइल में शामिल नहीं किया जाएगा।

जबकि डीएनए व्यक्ति की पहचान को स्थापित कर सकता है, उसका आकलन करने से व्यक्ति की मेडिकल और शारीरिक विशेषताओं से संबंधित सूचना भी मिल सकती है, जोकि उसकी प्राइवेसी को प्रभावित कर सकती है।1,2,3  उदाहरण के लिए डीएनए के एक विशिष्ट अंश से भी किसी व्यक्ति की पहचान हेतु डीएनए प्रोफाइलिंग की जा सकती है। इससे व्यक्ति की किसी अतिरिक्त सूचना का खुलासा नहीं होता। इस प्रकार की प्रोफाइलिंग युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका और युनाइटेड किंगडम सहित अनेक देशों में की जाती है।[7],[8]  दक्षिण अफ्रीका और आयरलैंड जैसे देशों के कानून निर्दिष्ट करते हैं कि किसी व्यक्ति के डीएनए प्रोफाइल में मेडिकल या शारीरिक विशेषताएं शामिल नहीं होंगी।[9],[10]  उल्लेखनीय है कि 2017 के ड्राफ्ट बिल पर लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि डीएनए के सिर्फ एक अंश, जो पहचान से संबंधित सूचना प्रदान करता है, को प्रोफाइलिंग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।2लेकिन इसे बिल में विनिर्दिष्ट नहीं किया गया।           

डीएनए प्रोफाइल्स को हटाना

लापता व्यक्तियों से संबंधित प्रोफाइल्स को केवल लिखित अनुरोध पर हटाना

तालिका 1: डीएनए प्रोफाइल्स को हटाने की प्रक्रिया

इंडेक्स

हटाने की प्रक्रिया

क्राइम सीन इंडेक्स

लिखित अनुरोध

संदिग्ध का इंडेक्स

पुलिस रिपोर्ट फाइल करना या न्यायालय का आदेश

विचाराधीन कैदियों का इंडेक्स 

न्यायालय का आदेश

लापता व्यक्तियों का इंडेक्स

लिखित अनुरोध

अज्ञात मृत व्यक्तियों का इंडेक्स

कोई प्रावधान नहीं

Sources: DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill, 2018; PRS

बिल कहता है कि पुलिस रिपोर्ट फाइल करने या न्यायालय के आदेश के बाद संदिग्ध व्यक्ति के प्रोफाइल को राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक से हटा दिया जाएगा। इसी प्रकार न्यायालय के आदेश के बाद विचाराधीन कैदी के प्रोफाइल को भी हटा दिया जाएगा। हालांकि लापता व्यक्तियों के इंडेक्स से प्रोफाइल को हटाने के लिए निदेशक की लिखित अनुमति की जरूरत होगी। यह कहा जा सकता है कि लिखित अनुमति के अतिरिक्त, इन प्रोफाइल्स को पुलिस द्वारा केस बंद करने पर भी हटाया जा सकता है। साथ ही, बिल अज्ञात मृत व्यक्तियों के डीएनए प्रोफाइल्स को हटाने का प्रावधान नहीं करता।  

डीएनए लेबोरेट्रीज़ के लिए प्रोफाइल्स हटाना जरूरी नहीं

बिल कहता है कि विभिन्न इंडेक्स में स्टोर किए गए डीएनए प्रोफाइल्स को लिखित अनुरोध, न्यायालय के आदेश या पुलिस रिपोर्ट फाइल करने पर राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक के निदेशक द्वारा हटा दिया जाएगा (विवरण के लिए तालिका 1 देखें)। उल्लेखनीय है कि पहले लेबोरेट्रीज़ डीएनए तैयार करती हैं और फिर उन्हें डीएनए बैंकों को देती हैं। बिल डीएनए लेबोरेट्रीज़ से प्रोफाइल्स हटाने की अपेक्षा नहीं करता। डीएनए डेटा बैंक्स और लेबोरेट्रीज़ से प्रोफाइल्स हटाने के मानदंडों को रेगुलेशंस पर छोड़ दिया गया है। यह कहा जा सकता है कि डीएनए लेबोरेट्रीज़ द्वारा प्रोफाइल्स हटाने से संबंधित प्रावधानों को बिल में विनिर्दिष्ट किया जाना चाहिए।

प्रोफाइल्स हटाने पर शिकायत निवारण की कोई व्यवस्था नहीं

बिल में प्रावधान है कि उपरिलिखित तालिका 1 में निर्धारित प्रक्रिया के आधार पर राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक के निदेशक द्वारा डीएनए प्रोफाइल्स हटाए जाएंगे। हालांकि अगर राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक के निदेशक द्वारा डीएनए बैंक्स से प्रोफाइल्स नहीं हटाए जाते तो बिल इस संबंध में किसी शिकायत निवारण व्यवस्था को स्पष्ट नहीं करता।

गिरफ्तारी पर लिखित अनुमति से डीएनए सैंपल्स लेना, अपर्याप्त हो सकता है

अगर किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध में गिरफ्तार किया जाता है जिसके लिए उसे सात वर्ष तक की सजा मिलती है तो जांच अधिकारों को उसका डीएनए सैंपल लेने से पहले उसकी लिखित अनुमति लेनी होगी। लेकिन बिल ऐसे कोई सुरक्षात्मक उपाय पेश नहीं करता, जोकि यह सुनिश्चित करें कि यह अनुमति स्वैच्छिक है। दूसरी कई प्रक्रियाओं में, जैसे अपराध को कबूल करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 ऐसे सुरक्षात्मक उपाय प्रदान करती है जिसमें बयान मेजिस्ट्रेट के सामने दिया जाता है (पुलिस के सामने नहीं)।[11] 

फोटोग्राफ या वीडियो से डीएनए सैंपल्स लेने का अर्थ स्पष्ट नहीं  

डीएनए प्रोफाइल्स लोगों से लिए गए डीएनए सैंपल्स से तैयार किए जाते हैं। बिल डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए सैंपल्स जमा करने के स्रोतों की सूची प्रदान करता है। इनमें बायोलॉजिकल पदार्थ, जैसे खून के नमूने, बाल, और माउथ स्वैब (लार से लिपटा कॉटन या गॉज) शामिल हैं। लेकिन बिल शरीर के अंगों के फोटोग्राफ्स या वीडियो रिकॉर्डिंग्स को भी सैंपल जमा करने का स्रोत बताता है। यह अस्पष्ट है कि फोटोग्राफ या वीडियो रिकॉर्डिंग से डीएनए सैंपल कैसे जमा किए जा सकते हैं।

फिंगरप्रिंट्स और डीएनए प्रोफाइलिंग के बीच तुलना

वर्तमान में किसी अपराध के लिए अपराधी ठहराए गए व्यक्ति की पहचान करने के लिए फिंगरप्रिटिंग का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि फिंगरप्रिटिंग के इस्तेमाल से संबंधित रेगुलेशंस और बिल में डीएनए प्रोफाइलिंग से संबंधित प्रावधान अलग-अलग हैं। उदाहरण के लिए कम से कम एक वर्ष या उससे अधिक के सश्रम कारावास वाले अपराधों के लिए फिंगरप्रिंट्स लिए जा सकते हैं, जबकि डीएनए सैंपल लेने के लिए अपराधों की कोई न्यूनतम सीमा नहीं है। निम्नलिखित तालिका 2 में फिंगरप्रिटिंग से संबंधित रेगुलेशंस और बिल के प्रावधानों के बीच तुलना की गई है।

तालिका 2: फिंगरप्रिंट कानून और बिल के बीच तुलना

प्रावधान

फिंगरप्रिंटिंग कानून

डीएनए बिल, 2018

व्यक्ति की सहमति

·    कोई प्रावधान नहीं

·    सात वर्ष तक के दंडनीय अपराधों के लिए डीएनए सैंपल जमा करने हेतु लिखित अनुमति जरूरी है।

·    सात वर्ष से अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए ऐसी अनुमति जरूरी नहीं है।

·    अगर अनुमति नहीं मिलती, तो मेजिस्ट्रेट डीएनए सैंपल लेने के आदेश दे सकता है।  

जिन अपराधों के लिए फिंगरप्रिंट/डीएनए सैंपल लेने की अनुमति है

·    कम से कम एक वर्ष या उससे अधिक के दंडनीय अपराध के लिए अपराधी ठहराया गया या गिरफ्तार व्यक्ति।

·    भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत गिरफ्तार कोई व्यक्ति।

·    अपराधों की कोई न्यूनतम सीमा विनिर्दिष्ट नहीं। 

नष्ट करना या हटाना

·    व्यक्ति के छूट जाने या न्यायालय द्वारा उसे बरी कर दिए जाने पर उसके फिंगरप्रिंट्स को नष्ट कर किया जाता है।

·    न्यायालय के आदेश या पुलिस रिपोर्ट फाइल करने पर संदिग्धों या विचाराधीन कैदियों के डीएनए प्रोफाइल्स को हटाया जाएगा।

·    क्राइम सीन या लापता व्यक्तियों के प्रोफाइल्स को लिखित अनुरोध पर हटाया जाएगा।

Sources: The Identification of Prisoners Act, 1920; The DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill, 2018; PRS.

 अनुलग्नक

निम्नलिखित तालिका में डीएनए टेक्नोलॉजी (प्रयोग और लागू होना) रेगुलेशन बिल, 2018 की तुलना अन्य देशों के डीएनए कानूनों से की गई है।

तालिका 3: डीएनए कानूनों के बीच अंतरराष्ट्रीय तुलना

 

यूएसए

यूके

दक्षिण अफ्रीका

आयरलैंड

भारत (प्रस्तावित बिल)

डीएनए लेने का उद्देश्य

·    आपराधिक जांच

·    लापता और मृत लोगों की पहचान

·    आपराधिक जांच

·   लापता और मृत लोगों की पहचान

·   आपराधिक जांच

·   लापता और मृत लोगों की पहचान

·   आपराधिक जांच

·   लापता और मृत लोगों की पहचान

·   आपराधिक जांच

·   लापता और मृत लोगों की पहचान

·   दीवानी मामले

संदिग्धों से डीएनए सैंपल लेने की प्रक्रिया

·    फेडरेल अपराधों के लिए सैंपल तब लिए जा सकते हैं जब किसी व्यक्ति को अपराधी ठहराया जाता है

·    हर राज्य में भिन्न प्रक्रिया

·    अपराधी ठहराए जाने पर चीक स्वैब लिया जाता है

·    अंतरंग सैंपलों के लिए सहमति और अनुज्ञा जरूरी होती है

·    गिरफ्तार करने पर चीक स्वैब लिया जा सकता है

·    अंतरंग सैंपल सिर्फ मेडिकल प्रैक्टीशनर द्वारा लिया जा सकता है

·    इंस्पेक्टर के आदेश पर चीक स्वैब लिया जा सकता है

·    अंतरंग सैंपलों के लिए सहमति जरूरी होती है

·    सैंपल हेतु लिखित अनुमति जरूरी 

·    मेजिस्ट्रेट सैंपल लेने के आदेश दे सकता है

·    सात वर्ष से अधिक की सजा होने पर सहमति लेना जरूरी नहीं 

प्रोफाइल्स को हटाना/बरकरार रखना

·    एक न्यायालय द्वारा दोषी साबित होने के बाद दूसरे न्यायालय द्वारा सजा मुक्त लोगों के प्रोफाइल्स को हटा दिया जाता है

·    इल्जाम खारिज होने पर व्यक्ति के प्रोफाइल को हटा दिया जाता है

·    हर राज्य में अलग-अलग

·   दोष साबित न होने पर व्यक्तियों के प्रोफाइल्स को तीन वर्षों तक बरकरार रखा जा सकता है

·   बरी होने की स्थिति में प्रोफाइल्स हटाए जाते हैं

·   तीन वर्ष से अधिक समय तक प्रोफाइल्स बरकरार नहीं रखे जा सकते

·   बरी होने की स्थिति में तीन महीने के अंदर प्रोफाइल्स हटाए जाते हैं

·   संदिग्धों या विचाराधीन कैदियों के प्रोफाइल्स को न्यायालय के आदेश या पुलिस रिपोर्ट पर हटाया जा सकता है

·   लिखित अनुरोध पर क्राइम सीन या लापता व्यक्तियों के इंडेक्स को हटाया जा सकता है

डीएनए प्रोफाइल से पहचान के अतिरिक्त सूचना

·    कोई प्रावधान नहीं

·    कोई प्रावधान नहीं

·    प्रोफाइल में शारीरिक या मेडिकल सूचना नहीं हो सकती

·    डीएनए के पहचान से संबंधित हिस्से से प्रोफाइल निकाला जाता है

·    कोई प्रावधान नहीं 

डेटाबेस और डीएनए साइंस का रेगुलेशन

·    फेडरेल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन द्वारा डीएनए डेटाबेस का प्रबंधन

·    डीएनए एडवाइजरी बोर्ड फॉरेंसिक लैब के लिए मानदंडों का सुझाव देता है

·    फॉरेंसिक इनफॉरमेशन डेटाबेस स्ट्रैटेजी बोर्ड द्वारा डीएनए डेटाबेस का प्रबंधन

·    फॉरेंसिक साइंस रेगुलेटर फॉरेंसिक साइंस सर्विसेज़ के मानदंडों को सुनिश्चित करता है  

·    एक प्राधिकृत अधिकारी द्वारा डेटाबेस का रखरखाव

·    नेशनल फॉरेंसिक ओवरसाइट एंड एथिक्स बोर्ड डीएनए डेटाबेस और डीएनए प्रोफाइलिंग से संबंधित प्रक्रियाओं की निगरानी करता है

·    फॉरेंसिक साइंस आयरलैंड (एफएसआई) के निदेशक डीएनए डेटाबेस प्रणाली को ऑपरेट करते हैं

·    एफएसआई डीएनए प्रोफाइलिंग से संबंधित प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार होती है

·    डीएनए डेटाबेस सिस्टम ओवरसाइट कमिटी, डीएनए डेटाबेस के कामकाज की निगरानी करती है 

·    राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक का प्रबंधन करने के लिए निदेशक

·    डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड लैब्स की निगरानी करता है और डीएनए डेटा बैंक को सलाह देता है

Sources: United States: DNA Identification Act, 1994,DNA Arrestee Laws, National Conference of State Legislatures; United Kingdom: Police and Criminal Evidence Act, 1984, Criminal Justice and Public Order Act, 1994, Protection of Freedoms Act, 2012, National DNA Database Strategy Board Annual Reports; South Africa: Criminal Procedure Act, 1977, South African Police Service Act, 1995; Ireland: Criminal Justice (Forensic Evidence and DNA Database System) Act, 2014; India: DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill, 2018; PRS.

 

[*] उदाहरण के लिए बीआरसीए1 जीन में म्यूटेशंस का आकलन करके ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाया जा सकता है। इस टेस्ट में डीएनए के बड़े भागों का आकलन किया जाता है, जोकि किसी व्यक्ति की पहचान के लिए पर्याप्त सूचना प्रदान कर सकते हैं।  

 

[1]. “DNA Technology in Forensic Science, Committee on DNA Technology in Forensic Science, United States of America, 1992.

[2]. “Report No. 271: Human DNA Profiling- A draft Bill for the Use and Regulation of DNA-Based Technology, Law Commission of India, July 2017, http://lawcommissionofindia.nic.in/reports/Report271.pdf.

[3]. “Nothing to Hide, nothing to fear?, Human Genetics Commissions, United Kingdom, November 2009.

[4]. Statement of Objects and Reasons, DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill, 2018.

[5]. Long Title, DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill, 2018, http://www.prsindia.org/uploads/media/DNA/DNA%20Bill,%202018.pdf

[6]. Justice K. S. Puttaswamy and Ors. vs Union of India and Ors, AIR 2017 SC 4161.  

[7]. Maryland vs King, Supreme Court of the United States, October 2012.

[8]. National DNA Database, NDNAD Strategy Board, Annual Report 2007-09, United Kingdom.

[9]. Section 36A(1)(fC), Criminal Procedure Act, 1977, South Africa.  

[10]. Section 2(1), Criminal Justice (Forensic Evidence and DNA Database System) Act, 2014, Ireland.

[11]. Section 164, Code of Criminal Procedure, 1973.

 

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