मंत्रालय: 
संचार एवं इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल को भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885 और भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट, 1933 के स्थान पर लाया गया है। 

  • निम्नलिखित के लिए केंद्र सरकार से पहले ऑथराइजेशन की जरूरत होगी: (i) दूरसंचार नेटवर्क की स्थापना और संचालन(ii) दूरसंचार सेवाएं देनाया (iii) रेडियो उपकरण रखना।

  • नीलामी के जरिए स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाएगा, निर्दिष्ट संस्थाओं और उद्देश्यों को छोड़कर, जिन्हें प्रशासनिक तरीके से आवंटित किया जाएगा।  

  • दूरसंचार को निर्दिष्ट आधार पर इंटरसेप्ट किया जा सकता है, जिसमें राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या अपराधों की रोकथाम शामिल है। इन्हीँ आधारों पर दूरसंचार सेवाओं को भी निलंबित किया जा सकता है। 

  • बिल में सार्वजनिक और निजी संपत्ति में दूरसंचार अवसंरचना स्थापित करने के लिए राइट ऑफ वे का इस्तेमाल करने हेतु एक व्यवस्था दी गई है।

  • केंद्र सरकार उपयोगकर्ताओं के संरक्षण के लिए उपाय कर सकती है, जैसे निर्दिष्ट संदेश प्राप्त करने के लिए पहले सहमति देना, और डू नॉट डिस्टर्ब रजिस्टर का निर्माण। 

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल में प्रावधान है कि इंटरसेप्शन की प्रक्रिया और उससे संबंधित सुरक्षा उपायों को केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा। प्रश्न यह है कि क्या इनसे संबंधित प्रावधान बिल में मौजूद होने चाहिए।  

  • बिल से बड़े पैमाने पर निगरानी संभव हो सकती हैऐसे उपाय आनुपातिकता के कारण प्राइवेसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर सकते हैं। 

  • बिल परिसर और वाहनों की तलाशी की शक्तियों के संबंध में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट नहीं करता है। 

  • उपयोगकर्ताओं के लिए बायोमेट्रिक सत्यापन की जरूरत आनुपातिक नहीं है, और इसलिए प्राइवेसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर सकती है।

  • दूरसंचार सेवाओं, जैसा कि बिल के तहत परिभाषित है, के दायरे में इंटरनेट आधारित सेवाएं आ सकती हैं।

  • बिल केंद्र सरकार को कई रेगुलेटरी कार्य सौंपता है। यह बिजली और वित्त जैसे क्षेत्रों से अलग हैजहां ये कार्य रेगुलेटर्स को सौंपे गए हैं।

  • सरकार एक अधिसूचना द्वारा बिल की तीसरी अनुसूची में अपराधों को जोड़संशोधित या हटा सकती है। प्रश्न यह है कि क्या ऐसे परिवर्तन केवल संसद के कानून के माध्यम से ही होने चाहिए।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारत में दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित तीन कानून हैं: (i) भारतीय टेलीग्राफ एक्ट1885जो टेलीग्राफ से संबंधित गतिविधियों और संचार के इंटरसेप्शन के लिए लाइसेंस प्रदान करता है, (ii) भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट1933 जो वायरलेस टेलीग्राफ उपकरणों पर कब्ज़े, यानी पोज़ेशन को रेगुलेट करता है, और (iii) टेलीग्राफ तार (गैरकानूनी कब्ज़ा) एक्ट, 1950 जो टेलीग्राफ के वायरों पर कब्ज़े को रेगुलेट करता है।[1],[2],[3] हाल ही में 1950 के एक्ट को निरसन एवं संशोधन एक्ट2023 के जरिए निरस्त कर दिया गया जिसे 17 दिसंबर2023 को सम्मति मिली है।[4]  इसके अलावाभारतीय दूरसंचार रेगुलेटरी अथॉरिटी (ट्राई) एक्ट1997 दूरसंचार रेगुलेटर के रूप में ट्राई की स्थापना करता है। ट्राई दूरसंचार क्षेत्र के लिए शुल्क को रेगुलेट करता है।[5]  ट्राई एक्ट ने दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय ट्रिब्यूनल (टीडीएसएटी) की भी स्थापना की है जो विवादों पर फैसला सुनाती है और अपीलों का निस्तारण करती है। लाइसेंस जारी करने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है।

1885 का एक्ट टेलीग्राफ सेवाओं को रेगुलेट करता हैजिसमें तारों या रेडियो तरंगों पर प्रतीकात्मक कोड में संदेश भेजना शामिल है जिन्हें टेलीग्राम कहा जाता है (2013 में भारत में टेलीग्राफ सेवाएं बंद कर दी गई थीं)।[6] तब से संचार प्रौद्योगिकी काफी विकसित हो गई है, ताकि टेक्स्टवॉयसइमेज और वीडियो इनफॉरमेशन का रियल टाइम ट्रांसमिशन किया जा सके। इनसे कई तरह की सेवाओं को बढ़ावा मिला है जिनमें वॉयस कॉलिंगएसएमएसरेडियो ब्रॉडकास्टिंगटेलीविजन, और मैसेजिंग और वीडियो कॉलिंग के लिए इंटरनेट-आधारित संचार सेवाएं शामिल हैं। इस दौरान 1885 के एक्ट के ही जरिए दूरसंचार सेवाओं का रेगुलेशन होता रहा।

एक और तरक्की यह हुई है कि विभिन्न प्रौद्योगिकियों में समान प्रकार की सेवाएं प्रदान करने की क्षमता है। उदाहरण के लिएकेबल टेलीविजन नेटवर्क का उपयोग इंटरनेट सेवाएं प्रदान करने के लिए किया गया हैऔर इंटरनेट का उपयोग पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग तक पहुंच प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। दूरसंचार विभाग ने पाया है कि टेलीग्राफ के दौर के बाद से दूरसंचार की प्रकृतिइसके उपयोग और प्रौद्योगिकियों में बड़े पैमाने पर बदलाव आया है। इसलिएदूरसंचार क्षेत्र के लिए कानूनी और रेगुलेटरी ढांचे का पुनर्गठन जरूरी है।6

2001 में लोकसभा में पेश किया गया कम्युनिकेशन कन्वर्जेंस बिल ऐसी ही एक कोशिश थी।[7] तीनों टेलीग्राफ कानूनोंट्राई एक्ट और केबल टेलीविजन नेटवर्क (रेगुलेशन) एक्ट1995 के स्थान पर इसे लाया गया था। सूचना प्रौद्योगिकी संबंधित स्टैंडिंग कमिटी ने इस बिल की समीक्षा की थी।7  13वीं लोकसभा के भंग होने के साथ यह बिल लैप्स हो गया। सितंबर 2022 को दूरसंचार विभाग ने सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं के लिए भारतीय दूरसंचार बिल2020 का ड्राफ्ट जारी किया।[8] 18 दिसंबर2023 में दूरसंचार बिल2023 को लोकसभा में पेश किया गया।[9]  बिल दो टेलीग्राफ कानूनों का स्थान लेता है और दूरसंचार क्षेत्र के लिए एक रेगुलेटरी ढांचा प्रदान करता है। 

मुख्य विशेषताएं

  • दूरसंचार से संबंधित गतिविधियों के लिए ऑथराइजेशन: निम्नलिखित के लिए केंद्र सरकार से पहले ऑथराइजेशन की जरूरत होगी: (i) दूरसंचार सेवाएं देना, (ii) दूरसंचार नेटवर्क की स्थापनासंचालनरखरखाव या विस्तार करनाया (iii) रेडियो उपकरण रखना। मौजूदा लाइसेंस उस अवधि तक वैध रहेंगे, जिसके लिए उन्हें प्रदान किया गया है। अगर अवधि निर्दिष्ट नहीं है तो वे पांच वर्ष तक वैध रहेंगे।

  • स्पेक्ट्रम का आवंटन: स्पेक्ट्रम को नीलामी द्वारा आवंटित किया जाएगासिवाय निर्दिष्ट उपयोगों को छोड़कर, जहां इसे प्रशासनिक आधार पर आवंटित किया जाएगा। इनमें निम्नलिखित उद्देश्य शामिल हैं: (i) राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा, (ii) आपदा प्रबंधन, (iii) मौसम की भविष्यवाणी, (iv) परिवहन, (v) सैटेलाइट सेवाएं जैसे डीटीएच और सैटेलाइट टेलीफोनीऔर (vi) बीएसएनएलएमटीएनएल और सार्वजनिक प्रसारण सेवाएं। केंद्र सरकार किसी भी फ्रीक्वेंसी रेंज का उद्देश्य दोबारा तय कर सकती है या उसे दोबारा आवंटित कर सकती है। केंद्र सरकार किसी भी स्पेक्ट्रम की शेयरिंग, ट्रेडिंग, लीजिंग और उसे सरेंडर करने की अनुमति दे सकती है।

  • इंटरसेप्शन और तलाशी का अधिकार: दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच संदेशों या संदेशों की एक श्रेणी को कुछ आधारों पर इंटरसेप्टमॉनिटर या ब्लॉक किया जा सकता है। ऐसी कार्रवाइयां सार्वजनिक सुरक्षा या सार्वजनिक आपातकाल के हित में आवश्यक या उचित होनी चाहिएऔर निर्दिष्ट आधारों के हित में होनी चाहिए जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) राज्य की सुरक्षा, (ii) अपराधों को उकसाए जाने से रोकनाया (iii) सार्वजनिक व्यवस्था। ये कार्रवाइयां प्रक्रियाओं, सुरक्षात्मक उपायों और अवधि का विषय होंगी, जिन्हें निर्दिष्ट किया जा सकता है। इसी आधार पर दूरसंचार सेवाओं को निलंबित किया जा सकता है। सरकार किसी भी सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा की स्थिति में किसी भी दूरसंचार अवसंरचनानेटवर्क या सेवाओं को अस्थायी रूप से अपने कब्जे में ले सकती है। सरकार द्वारा अधिकृत कोई अधिकारी अनाधिकृत दूरसंचार नेटवर्क या उपकरण रखने के लिए परिसरों या वाहनों की तलाशी ले सकता है।

  • उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा: केंद्र सरकार उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा के लिए उपाय प्रदान कर सकती है जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) विज्ञापन जैसे निर्दिष्ट संदेश प्राप्त करने के लिए पूर्व सहमति, (ii) ‘डू नॉट डिस्टर्ब रजिस्टर्स का निर्माण और (iii) मालवेयर या निर्दिष्ट संदेशों की रिपोर्ट करने के लिए उपयोगकर्ताओं को एक व्यवस्था प्रदान करना। दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने वाली इकाइयों को शिकायतों के पंजीकरण और निवारण के लिए एक ऑनलाइन व्यवस्था स्थापित करनी होगी।

  • राइट टू वेसुविधा प्रदाता दूरसंचार अवसंरचना स्थापित करने के लिए सार्वजनिक या निजी संपत्ति में राइट टू वे की मांग कर सकते हैं। जहां तक संभव हो, राइट टू वे भेदभावरहित और गैर-विशिष्ट आधार पर दिया जाना चाहिए।

  • ट्राई की नियुक्तियांबिल ट्राई एक्ट में संशोधन करता है, जिससे निम्नलिखित संभव हो सकता है: (i) कम से कम 30 वर्ष के पेशेवर अनुभव वाला व्यक्ति अध्यक्ष के रूप में काम कर पाए, और (ii) कम से कम 25 वर्ष के पेशेवर अनुभव वाले व्यक्ति सदस्य के रूप में काम कर पाएं।

  • डिजिटल भारत निधि1885 के एक्ट के तहत वंचित क्षेत्रों में दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने के लिए यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड की स्थापना की गई है। बिल इस प्रावधान को बरकरार रखता है और इस फंड का नाम बदलकर डिजिटल भारत निधि करता है। इसके अलावा अनुसंधान और विकास के लिए इसके उपयोग की अनुमति देता है।

  • अपराध और दंडबिल विभिन्न क्रिमिनल और सिविल अपराधों को निर्दिष्ट करता है। ऑथराइजेशन के बिना दूरसंचार सेवाएं प्रदान करनाया दूरसंचार नेटवर्क या डेटा तक अनाधिकृत पहुंच प्राप्त करनातीन साल तक की कैददो करोड़ रुपए तक के जुर्माने या दोनों से दंडनीय है। ऑथराइजेशन के नियमों और शर्तों का उल्लंघन करने पर पांच करोड़ रुपए तक का सिविल जुर्माना लगाया जा सकता है। अनाधिकृत उपकरण रखने या अनाधिकृत नेटवर्क या सेवा का उपयोग करने पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।

  • एडजुडिकेशन की प्रक्रियाकेंद्र सरकार बिल के तहत सिविल अपराधों की जांच करने और आदेश पारित करने के लिए एक एडजुडिकेटिंग अधिकारी की नियुक्ति करेगी। अधिकारी संयुक्त सचिव और उससे उच्च पद का होना चाहिए। एडजुडिकेटिंग अधिकारी के आदेशों के खिलाफ 30 दिनों के भीतर निर्दिष्ट अपील समिति के समक्ष अपील की जा सकती है। इस समिति के सदस्य कम से कम अतिरिक्त सचिव स्तर के अधिकारी होंगे। नियमों और शर्तों के उल्लंघन के संबंध में समिति के आदेशों के खिलाफ अपील 30 दिनों के भीतर टीडीएसएटी में दायर की जा सकती है।

भाग खमुख्य मुद्दे और विश्लेषण

संचार का इंटरसेप्शन

बिल में प्रावधान है कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच संदेशों या संदेशों की एक श्रेणी को कुछ आधारों पर इंटरसेप्टमॉनिटर या ब्लॉक किया जा सकता है। ये आधार हैं: (i) राज्य की सुरक्षा का हित, (ii) दूसरे देशों के साथ मित्रवत संबंध, (iii) सार्वजनिक व्यवस्था, या (iv) अपराधों को उकसाए जाने से रोकना। ऐसे ही आधार पर दूरसंचार सेवाओं को निलंबित किया जा सकता है (इंटरनेट शटडाउन)। ये कार्रवाइयां प्रक्रियाओं, सुरक्षात्मक उपायों और अवधि का विषय होंगी। इन प्रावधानों से संबंधित मुद्दों पर हम यहां चर्चा कर रहे हैं। 

क्या प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय बिल में प्रदान किए जाने चाहिए 

प्रक्रियाएं और सुरक्षा उपाय सरकार की कार्रवाइयों से व्यक्तियों के मौलिक अधिकार की रक्षा करते हैं।[10]  इसलिएयह प्रश्न किया जा सकता है कि उन्हें बिल में निर्दिष्ट करने की बजाय क्या नियमों में प्रदत्त किया जाना जाहिए जिन्हें सरकार जारी करती है। उदाहरण के लिएआधार से संबंधित आइडेंटिटी इनफॉरमेशन और प्रमाणीकरण रिकॉर्ड के खुलासे के मामले में सुरक्षा उपाय आधार एक्ट2016 में दिए गए हैं।[11]  एक्ट कई विवरण देता है जैसे: (i) कौन निर्देश जारी कर सकता है, (ii) निर्देश की समीक्षा की प्रक्रियाऔर (iii) उनकी एप्लिकेबिलिटी की अवधि।

क्या इंटरसेप्शन के लिए निगरानी की स्वतंत्र व्यवस्था जरूरी है 

वर्तमान में भारतीय टेलीग्राफ एक्ट1885 के तहत जारी नियम संचार के इंटरसेप्शन की प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट करते हैं।[12]  बिल में प्रावधान है कि मौजूदा नियम लागू रहेंगे। 1885 के एक्ट के तहत नियम पीयूसीएल बनाम भारत संघ (1996) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप बनाए गए थे।10 इंटरसेप्शन के निर्देशों की समीक्षा के लिए ये नियम एक समिति का गठन करते हैं जिसमें सिर्फ वरिष्ठ सरकारी अधिकारी होते हैं। प्रश्न यह है कि क्या निगरानी की यह व्यवस्था सरकार की कार्रवाइयों के खिलाफ उपयुक्त सुरक्षा उपाय है। यह सेपरेशन ऑफ पावर्स यानी शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के प्रतिकूल हो सकता है। 

कुछ मामलों में, जहां व्यक्ति को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की जानकारी है, वह अदालतों के सामने इस उल्लंघन को चुनौती दे सकता है। ऐसे मामलों में निम्नलिखित का उल्लंघन शामिल हो सकता है: (i) अवैध गिरफ्तारी के जरिए जीवन और स्वतंत्रता का अधिकारया (ii) यूज़र-जनरेटेड कंटेंट या इंटरनेट के निलंबन के जरिए भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार। हालांकि संचार के इंटरसेप्शन या निगरानी के मामले मेंऐसे आदेशों की प्रकृति के कारणप्रभावित व्यक्ति को कभी भी अपने मौलिक अधिकारों के संभावित उल्लंघन के बारे में पता नहीं चल सकता है। इसलिए वह संभावित अवैधता के लिए ऐसे आदेशों को चुनौती नहीं दे सकता। यह तर्क दिया जा सकता है कि ऐसे मामलों मेंप्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय सख्त होने चाहिए।

पीयूसीएल के फैसले में इस प्रश्न पर चर्चा की गई थी कि क्या इंटरसेप्शन के लिए न्यायिक निगरानी जरूरी होनी चाहिए। न्यायालय ने कहा था कि न्यायिक जांच क़ानून के माध्यम से प्रदान की जाए। सिर्फ कार्यकारी निगरानी का सुझाव देते हुए न्यायालय ने युनाइटेड किंगडम के कम्यूनिकेशंस एक्ट1985 का उल्लेख किया था। युनाइटेड किंगडम ने अपने 1985 के एक्ट के स्थान पर एक नया कानून बनाया है जिसमें यह कहा गया है कि ऐसी कार्रवाइयों के लिए ज्यूडीशियल कमीश्नर की मंजूरी जरूरी है।[13] इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में इंटरसेप्शन के लिए ज्यूडीशियल ऑथराइजेशन की जरूरत होती है।[14]  

बिल से बड़े पैमाने पर निगरानी की जा सकती हैऐसे उपाय प्राइवेसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर सकते हैं

बिल में प्रावधान है कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच संदेशों या संदेशों की एक श्रेणी को कुछ आधारों पर इंटरसेप्टमॉनिटर या ब्लॉक किया जा सकता है। ये कार्रवाइयां केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट प्रक्रिया और सुरक्षात्मक उपायों का विषय होंगी। इस आधार का ऐसे सारे संचार को इंटरसेप्ट करने या उनकी निगरानी करने का आदेश दिया जा सकता है, जहां किसी खास शब्द या शब्द समूह का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे आदेश के लिए सभी उपयोगकर्ताओं के सभी संचार की निगरानी करनी होगी। ऐसी निगरानी करने पर सभी उपयोगकर्ताओं के संचार की गोपनीयता का स्तर कम हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है (2017) कि प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन ऐसे दखल की जरूरत के अनुपात में होना चाहिए।[15] अपराधों को उकसाए जाने से रोकने के लिए ऐसी निगरानी की जरूरत हो सकती है। अगर किसी जांच के लिए संदेशों का पता लगाना जरूरी है, तो दूरसंचार नेटवर्क के सभी उपयोगकर्ताओं के संचार की गोपनीयता के स्तर को कम करने की जरूरत पड़ सकती है। इसलिएइससे यह प्रश्न उठता है कि क्या ऐसी कार्रवाइयों को उद्देश्य के अनुरूप माना जा सकता है।

तलाशी और जब्ती की शक्तियों के संबंध में सुरक्षा उपाय निर्दिष्ट नहीं हैं

बिल केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत किसी भी अधिकारी को निर्दिष्ट आधार पर किसी परिसर या वाहन की तलाशी लेने की अनुमति देता है। अधिकारी के पास यह मानने का कारण होना चाहिए कि अपराध करने के लिए उपयोग किए गए अनाधिकृत दूरसंचार उपकरण या नेटवर्क को रखा या छुपाया गया है। अधिकारी ऐसे उपकरण या नेटवर्क को अपने कब्जे में भी ले सकता है। बिल न तो ऐसी कार्रवाइयों के खिलाफ प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट करता हैन ही यह प्रावधान करता है कि ऐसे सुरक्षा उपाय निर्धारित किए जाएंगे।

सर्वोच्च न्यायालय (1959) ने कहा है कि चूंकि कोई तलाशी बेहद मनमानी प्रकृति की होती हैइसलिए इसकी प्रकृति पर कड़ी वैधानिक शर्तें लगाई जाती हैं।[16]  इस प्रकार दंड प्रक्रिया संहिता1973 (सीआरपीसी) जैसे कानून कुछ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट करते हैं।[17]  इनमें तलाशी लेने वाले अधिकारी से यह अपेक्षा करना शामिल है: (i) तलाशी को अधिकृत करने वाला वारंट दिखाएऔर (ii) दो स्वतंत्र व्यक्तियों को तलाशी की कार्रवाई को देखने की अनुमति दे। सीआरपीसी के तहत अधिकारी से यह भी अपेक्षा की जाती है कि: (i) जब्त की गई सभी वस्तुओं की एक सूची बनाए और (ii) इस सूची पर गवाहों के हस्ताक्षर कराए। परिसर में रहने वालों को तलाशी में भाग लेने और जब्त की गई वस्तुओं की सूची की एक प्रति प्राप्त करने का अधिकार है। खाद्य सुरक्षा और मानक एक्ट2006 और भारतीय मानक ब्यूरो एक्ट2016 जैसे अन्य कानून भी तलाशी की शक्ति प्रदान करते हैं और निर्दिष्ट करते हैं कि सीआरपीसी के तहत प्रक्रिया लागू होगी।[18],[19]  

बायोमेट्रिक सत्यापन की जरूरत

बिल में प्रावधान है कि दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को किसी भी सत्यापन योग्य बायोमेट्रिक-आधारित पहचान के माध्यम से अपने उपयोगकर्ताओं की पहचान सत्यापित करनी होगी। यह शर्त आनुपातिक नहीं हो सकती हैऔर प्राइवेसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर सकती है।

बायोमेट्रिक जानकारी पर्सनल डेटा है और इसका कलेक्शन और उपयोग प्राइवेसी के मौलिक अधिकार के जरिए संरक्षित है। इसकी प्रकृति को देखते हुए बायोमेट्रिक डेटा को संवेदनशील पर्सनल डेटा भी माना जाता है।[20]  सर्वोच्च न्यायालय (2017) ने माना है कि प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन करने वाले किसी भी उपाय को कुछ कसौटियों पर खरा उतरना होगा। इसका एक वैध उद्देश्य होना चाहिए और उपाय लक्ष्य के अनुपात में होना चाहिए।[21]  सेवाओं के आपूर्ति के समय संबंधित व्यक्ति की पहचान का सत्यापन जरूरी हो सकता है, कि कोई अपराध तो नहीं किया गया है। प्रश्न यह है कि क्या बायोमेट्रिक आधारित पहचान की जरूरत इस उद्देश्य के अनुरूप है। यह तर्क दिया जा सकता है कि सिम कार्ड जारी करते समय पहचान का पता लगाने हेतु कम दखल वाले साधन मौजूद हैं। उदाहरण के लिएइस समय रेगुलेशंस के तहत सिम कार्ड खरीदने के लिए पैन कार्ड या वोटर आईडी जैसी सरकारी आइडेंटिटी का इस्तेमाल किया जा सकता है।[22]    

आधार (जोकि एक बायोमेट्रिक आधारित आईडी है) को मोबाइल नंबरों से लिंक करने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय (2018) ने कहा था कि उपाय गैर आनुपातिक है और अनुचित सरकारी बाध्यता।15 अदालत ने कहा था कि मुट्ठी भर लोग सिम कार्ड का दुरुपयोग करते हैं, इस आधार पर पूरी आबादी के निजी जीवन में घुसपैठ नहीं की जा सकती।”15 

दूरसंचार सेवाओं के दायरे में इंटरनेट आधारित सेवाएं आ सकती हैं

बिल में दूरसंचार नेटवर्क स्थापित करने और संचालित करने के साथ-साथ दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार के ऑथराइजेशन की जरूरत है। दूरसंचार को ताररेडियोऑप्टिकल या अन्य इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक प्रणालियों द्वारा किसी भी संदेश के ट्रांसमिशनएमिशन या रिसेप्शन के रूप में परिभाषित किया गया है। बिल के तहत संदेश या मैसेज का अर्थ दूरसंचार के माध्यम से भेजा गया कोई साइनसिग्नलराइटिंगटेक्स्टइमेजसाउंड, वीडियोडेटा स्ट्रीमइंटेलिजेंस या इनफॉरमेशन है। इस प्रकारदूरसंचार सेवाएं इंटरनेट का उपयोग करके प्रदान की जाने वाली सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर कर सकती हैं जैसे मैसेजिंगकॉलिंग और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग। इनमें ताररेडियो या ऑप्टिकल फाइबर द्वारा टेक्स्टऑडियो या वीडियो का ट्रांसमिशन भी शामिल है। बिल ऐसी सेवाओं को स्पष्ट रूप से अपने दायरे से बाहर नहीं करता हैये पहले से ही सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट2000 के अंतर्गत आते हैं।[23]  

बिल का नजरिया भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885 से अलग है।1 1885 के एक्ट के तहत टेलीग्राफ की स्थापनारखरखाव और संचालन के लिए लाइसेंस की आवश्यकता होती है। यह टेलीग्राफ को मैसेज के ट्रांसमिशन के लिए उपयोग किए जाने वाले अपलायंसइंस्ट्रूमेंटमैटेरियल या एपरेटस के रूप में परिभाषित करता है। इस प्रकार 1885 के एक्ट में संचार के वहन यानी कैरिएज के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती है।1  इसमें कम्युनिकेट किए गए कंटेंट को शामिल नहीं किया गया है। यह केंद्र सरकार को टेलीग्राफ ऑपरेटरों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए कीमतों को रेगुलेट करने का अधिकार देता है।

रेगुलेटरी कामकाज सौंपना

बिल में प्रावधान है कि केंद्र सरकार दूरसंचार से संबंधित गतिविधियों के लिए ऑथराइजेशन देगी और स्पेक्ट्रम आवंटित करेगी। केंद्र सरकार के सचिव ऑथराइजेशन या आवंटन के नियमों और शर्तों के उल्लंघनों की जांच करेंगे और शिकायतों की सुनवाई करेंगे (ट्राई एक्ट1997 के तहत स्थापित टीडीएसएटी के समक्ष अपील की जाएगी)। केंद्र सरकार दूरसंचार उपकरणनेटवर्क और सेवाओं के लिए विभिन्न मानक और अनुरूपता आकलन भी निर्दिष्ट कर सकती है। इस प्रकार कई रेगुलेटरी काम केंद्र सरकार द्वारा किए जाएंगे। यह प्रस्ताव बिजली और वित्त जैसे क्षेत्रों से अलग हैजहां संबंधित रेगुलेटर्स सीईआरसी और सेबी को ऐसे ही काम सौंपे गए हैं।[24],[25]

वर्तमान में ट्राई दूरसंचार क्षेत्र के लिए रेगुलेटरी संस्था है। इसके कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) दूरसंचार सेवाओं के लिए शुल्क को रेगुलेट करना, (ii) नए सेवा प्रदाताओं के समय और उनके प्रवेश और लाइसेंसिंग के नियमों और शर्तों जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार को सुझाव देना, और (iii) सेवा की गुणवत्ता के मानकों को निर्दिष्ट करना। ट्राई एक्ट1997 भी टीडीएसएटी की स्थापना करता है। यह ट्राई के निर्देशों के खिलाफ अपील की सुनवाई करता हैऔर लाइसेंसकर्ता और लाइसेंसधारीऔर टेलीग्राफ अथॉरिटी और किसी अन्य व्यक्ति के बीच के विवादों सहित कुछ विवादों पर भी निर्णय देता है। उल्लेखनीय है कि कम्युनिकेशन कन्वर्जेंस बिल, 2001 में यह प्रावधान था कि भारतीय संचार आयोग (जो ट्राई की जगह लेता) को लाइसेंस जारी करनेविवादों पर निर्णय लेने और नेटवर्क अवसंरचना सुविधाओं के तकनीकी मानकों को निर्दिष्ट करने का अधिकार दिया जाए।7 

अपराध और दंड

क्या अधिसूचना के माध्यम से अपराधों को संशोधित करने की शक्तियां उचित हैं 

बिल की तीसरी अनुसूची में कुछ सिविल अपराधों और दंडों को निर्दिष्ट किया गया है। बिल केंद्र सरकार को अनुसूची में संशोधन करने का अधिकार देता है। इसमें आगे निर्दिष्ट किया गया है कि अनुसूची में जुर्माना 10 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होगा। इसलिएबिल केंद्र सरकार को एक अधिसूचना के माध्यम से अनुसूची में अपराधों को जोड़नेसंशोधित करने या हटाने की अनुमति देता है। प्रश्न यह है कि क्या ऐसे बदलाव केवल संसद के कानून के जरिए ही किए जाने चाहिए।

क्या अधिसूचित संख्या से अधिक सिम कार्ड का उपयोग करने को अपराध बनाना उचित है 

बिल में सिविल अपराधों में से एक है, अधिसूचित संख्या से अधिक सब्सक्राइबर आइडेंटिटी मॉड्यूल (सिम कार्ड) का उपयोग। इस अपराध के लिए जुर्माना पहले अपराध के लिए 50,000 रुपए तक और प्रत्येक बाद के अपराध के लिए दो लाख रुपए तक है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या किसी व्यक्ति द्वारा उपयोग किए जाने वाले सिम कार्ड की संख्या पर कोई कानूनी सीमा होनी चाहिए।

ड्राफ्टिंग के मुद्दे

बिल में ड्राफ्टिंग से संबंधित कुछ मुद्दे हैं, जिन्हें तालिका 1 में प्रदर्शित किया गया है।  

तालिका 1दूरसंचार बिल, 2023 में ड्राफ्टिंग के मुद्दे

क्लॉज

मुद्दे

39, 59(डी)(ii) 

ट्राई एक्ट में संशोधन करने वाले क्लॉज में कहा गया है कि टीडीएसएटी एडजुडिकेटिंग अधिकारी या निर्दिष्ट अपील समिति के फैसलों के खिलाफ निर्णय दे सकती है। इसी के साथ बिल में प्रावधान है कि एडजुडिकेटिंग अधिकारी के फैसलों के खिलाफ निर्दिष्ट अपील समिति में अपील की जाएगी।

20(2), 21, 22(3), 42(4)

बिल में राष्ट्रीय सुरक्षा और राज्य की सुरक्षा जैसे शब्दों का परस्पर उपयोग किया गया है। संविधान राज्य की सुरक्षा शब्द का इस्तेमाल करता है।

18(1), 18(3)

राइट ऑफ वे से संबंधित विवाद निवारण वाले क्लॉज में सरकार को अनुमति दी गई है कि वह जिला मेजिस्ट्रेट के अलावा किसी अन्य अथॉरिटी को नियुक्त कर सकती है जिसके पास विवाद को हल करने की विशेष शक्तियां होंगी। हालांकि यह क्लॉज कहता है कि मेजिस्ट्रेट द्वारा विवाद का निर्धारण अंतिम होगा। इसमें किसी अन्य अथॉरिटी का कोई संदर्भ नहीं है।

स्रोत: 18 दिसंबर, 2023 को लोकसभा में पेश दूरसंचार बिल, 2023

 

4. The First Schedule, The Repealing and Amending Act, 2023.  

[6]. “Explanatory note to the Draft Indian Telecommunication Bill, 2022”, Department of Telecommunications, September 21, 2022.  

[7]Report of the Standing Committee on Information Technology on the Communication Convergence Bill, 2001. 

[8]Draft Indian Telecommunication Bill, 2022, Department of Telecommunications, September 21, 2022.

10. People’s Union for Civil Liberties vs The Union of India, WP (Civil) 105 of 2004, Supreme Court, December 18, 1996.

11. Section 33, .The Aadhaar Act, 2016.

[13]. Part-2: Lawful Interception of Communications, Investigatory Powers Act, 2016, United Kingdom. 

[15]Justice K.S. Puttaswamy (Retd) vs Union of India, W.P.(Civil) No 494 of 2012, Supreme Court of India, September 26, 2018. 

16. The State of Rajasthan vs Rehma, Criminal Appeal No. 39 of 1958, Supreme Court, October 14, 1959.  

[21]Justice K.S. Puttaswamy (Retd) vs. Union of India, W.P. (Civil) No 494 of 2012, Supreme Court of India, August 24, 2017. 

[22].  List of Acceptable Documents as Proof of Identity and Proof of Address, Department of Telecommunications, October, 2016.  

24. Section 79, The Electricity Act, 2003

25. Section 11, The Securities and Exchange Board Act, 1992

 

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