मंत्रालय: 
नागरिक उड्डयन
बिल की मुख्‍य विशेषताएं
  • बिल एयरक्राफ्ट एक्ट, 1934 का स्थान लेने का प्रयास करता है। इसमें एक्ट के अधिकतर प्रावधानों को बरकरार रखा गया है।

  • एक्ट निम्नलिखित की स्थापना करता है: (i) रेगुलेटरी काम करने और सुरक्षा की निगरानी करने के लिए डीजीसीए, (ii) सुरक्षा की देखरेख करने के लिए बीसीएएस, और (iii) विमान दुर्घटनाओं की जांच के लिए एएआईबी। केंद्र सरकार इन निकायों की निगरानी करेगी। वह उनके आदेशों की समीक्षा या उनमें बदलाव कर सकती है। बिल में इन प्रावधानों को बरकरार रखा गया है।

  • एक्ट एयरक्राफ्ट्स की कई गतिविधियों को रेगुलेट करता है, जिनमें उनकी मैन्यूफैक्चरिंग, स्वामित्व, इस्तेमाल और व्यापार शामिल हैं। बिल में यह प्रावधान शामिल है, साथ ही इसमें एयरक्राफ्ट डिजाइन के रेगुलेशन का प्रावधान भी किया गया है।

  • अपराधों में एयरक्राफ्ट को खतरनाक तरीके से उड़ाना, एयरक्राफ्ट में हथियार या विस्फोटक ले जाना और हवाई अड्डों के पास कचरा जमा करना या पशुओं की हत्या शामिल है। इन अपराधों पर तीन वर्ष तक की कैद हो सकती है, एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना हो सकता है, या दोनों सजा हो सकती हैं।

  • बिल के तहत नियमों के उल्लंघन पर जुर्माने से संबंधित फैसलों के खिलाफ दूसरी अपील का प्रावधान भी किया गया है। 

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • 1994 में नागरिक उड्डयन क्षेत्र को निजी एयरलाइन ऑपरेटर्स के लिए खोला गया था। दूसरे क्षेत्रों, जैसे दूरसंचार, बिजली और बीमा में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति 1991 में मिली थी। इन सभी क्षेत्रों में स्वतंत्र रेगुलेटर्स हैं। उनसे अलग, डीजीसीए सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र नहीं है।

  • बिल में सरकार को यह शक्ति दी गई है कि वह कुछ मामलों में क्षतिपूर्ति निर्धारित करने के लिए एक आर्बिट्रेटर को नियुक्त कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि एक पक्ष के लिए आर्बिट्रेटर की एकतरफा नियुक्ति की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

  • बिल के तहत केंद्र सरकार को कुछ नियमों के उल्लंघन के लिए आपराधिक दंड निर्दिष्ट करने का विवेकाधिकार दिया गया है। यह शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ हो सकता है।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारत में नागरिक उड्डयन क्षेत्र को प्रशासित करने वाले प्रमुख कानून इस प्रकार हैं: (i) एयरक्राफ्ट एक्ट, 1934, और (ii) एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एईआरए) एक्ट, 2008। 1934 का एक्ट नागरिक उड्डयन से संबंधित विभिन्न गतिविधियों, और हवाई अड्डों की लाइसेंसिंग को रेगुलेट करता है। 2008 के एक्ट में हवाई अड्डों की एयरोनॉटिक सेवाओं के लिए शुल्क को रेगुलेट करने और उनके प्रदर्शन मानकों की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र अथॉरिटी की स्थापना की गई है।

1934 के एक्ट को 2020 में संशोधित किया गया था ताकि निम्नलिखित को वैधानिक मान्यता दी जा सके: (i) रेगुलेटरी काम करने और सुरक्षा की निगरानी के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए), (ii) सुरक्षा की देखरेख करने के लिए नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस), और (iii) विमान दुर्घटनाओं की जांच के लिए विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी)। अगस्त 2013 में भारतीय नागरिक उड्डयन प्राधिकरण बिल, 2013 को पेश किया गया ताकि सुरक्षा के लिए एक स्वतंत्र रेगुलेटर की स्थापना की जा सके।[1]  हालांकि 15वीं लोकसभा के भंग होने के साथ बिल लैप्स हो गया। भारतीय वायुयान विधेयक, 2024 को 31 जुलाई, 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था और यह लोकसभा में 9 अगस्त, 2024 को पारित कर दिया गया। यह बिल 1934 के एक्ट का स्थान लेता है। इसमें एक्ट के तहत रेगुलेटरी संरचना को बरकरार रखा गया है। 

मुख्य विशेषताएं

  • अथॉरिटीज़: एक्ट तीन प्राधिकरणों की स्थापना करता है, जो इस प्रकार हैं: (i) रेगुलेटरी काम करने और सुरक्षा की निगरानी के लिए डीजीसीए, (ii) सुरक्षा की देखरेख करने के लिए बीसीएएस, और (iii) विमान दुर्घटनाओं की जांच के लिए एएआईबी। केंद्र सरकार इन प्राधिकरणों को निर्देश जारी कर सकती है और उनके आदेशों की समीक्षा कर सकती है। बिल इन प्रावधानों को बरकरार रखता है। इसमें यह जोड़ा गया है कि डीजीसीए या बीसीएएस के आदेशों के खिलाफ केंद्र सरकार के समक्ष अपील की जा सकती है। इसके बाद अपील की अनुमति नहीं है। 

  • एयरक्राफ्ट के डिजाइन का रेगुलेशन: एक्ट विमानों से संबंधित कई गतिविधियों को रेगुलेट करता है जैसे मैन्यूफैक्चरिंग, उपयोग, संचालन और व्यापार। बिल इन प्रावधानों को बरकरार रखता है। इसमें विमानों के डिजाइन को रेगुलेट करने का प्रावधान भी जोड़ा गया है।

  • नियम बनाने की शक्तियां: यह एक्ट केंद्र सरकार को कई मामलों पर नियम बनाने का अधिकार देता है जैसे: (i) विमानों से संबंधित विशिष्ट गतिविधियों का रेगुलेशन और लाइसेंसिंग, प्रमाणन और निरीक्षण से संबंधित मामले, (ii) हवाई परिवहन सेवाओं का रेगुलेशन, और (iii) 1944 के अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संबंधी कन्वेंशन का कार्यान्वयन। बिल में इन प्रावधानों को बरकरार रखा गया है और यह जोड़ा गया है कि केंद्र सरकार अंतर्राष्ट्रीय टेलीकम्यूनिकेशन कन्वेंशन के तहत रेडियो टेलीफोन ऑपरेटर सर्टिफिकेट और लाइसेंस पर नियम बना सकती है।

  • अपराध और दंड: बिल कई अपराधों और दंड को निर्दिष्ट करता है। निम्नलिखित अपराधों पर दो वर्ष तक की कैद, एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना या दोनों की सजा भुगतनी पड़ सकती हैं: (i) विमान में कुछ प्रतिबंधित वस्तुओं, जैसे हथियार और विस्फोटक, को ले जाभुगतने पड़ सकते हैं  कर दिया गया। यह बिल 1934 के एक्ट का स्थान लेता हैष इसमें एक्ट के त्ने से संबंधित नियमों का उल्लंघन, (ii) विमान को ऐसे उड़ाना, जिससे किसी व्यक्ति या संपत्ति को खतरा पैदा हो, और (iii) डीजीसीए और बीसीएएस के निर्देशों का अनुपालन न करना। हवाई अड्डों के पास जानवरों का वध और कचरा फेंकने को प्रतिबंधित करने वाले नियमों के उल्लंघन पर तीन वर्ष तक की कैद, एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना या दोनों भुगतने पड़ेंगे।

  • बिल केंद्र सरकार को निम्नलिखित से संबंधित नियमों के उल्लंघन पर दीवानी या फौजदारी सजा निर्दिष्ट करने का विवेकाधिकार भी देता है: (i) एयरक्राफ्ट्स से संबंधित गतिविधियों, जैसे डिजाइन, मैन्यूफैक्चरिंग, इस्तेमाल और व्यापार का रेगुलेशन, (ii) अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन का कार्यान्वयन, (iii) दुर्घटनाओं की जांच, (iv) सार्वजनिक स्वास्थ्य का संरक्षण, और (v) एयरक्राफ्ट को रोकने (डीटेन करने) की शक्तियां। दीवानी सजा एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। फौजदारी सजा दो वर्ष की कैद, एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।

  • दंड पर निर्णय: एक्ट केंद्र सरकार को नियमों के उल्लंघन के लिए जुर्माना लगाने की अनुमति देता है। यह केंद्र सरकार को दंड के निर्णय के लिए एक अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार देता है। यह अधिकारी भारत सरकार के उप सचिव या उससे उच्च पद का होना चाहिए। अधिनिर्णय (एडजुडिकेटिंग) अधिकारी के फैसलों की अपील अपीलीय अधिकारी के समक्ष की जा सकती है, जो अधिनिर्णय अधिकारी से उच्च पद का होना चाहिए। बिल इस प्रावधान को बरकरार रखता है और इसमें अपील का एक अतिरिक्त स्तर जोड़ता है। प्रथम अपीलीय अधिकारी के फैसलों के खिलाफ द्वितीय अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपील की जाएगी। द्वितीय अपीलीय अधिकारी प्रथम अपीलीय अधिकारी से उच्च पद का अधिकारी होना चाहिए।

 

भाग ख: मुख्य मुद्दे और विश्लेषण

डीजीसीए प्रत्यक्ष सरकारी नियंत्रण के तहत बरकरार रहेगा

एक्ट रेगुलेटरी कामकाज करने और सुरक्षा की निगरानी के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) की स्थापना करता है।[2] केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अधिकारी डीजीसीए का प्रमुख होगा।केंद्र सरकार डीजीसीए पर निगरानी रखेगी।2 वह डीजीसीए के आदेशों में बदलाव कर सकती है या उसे रद्द कर सकती है, और डीजीसीए के लिए उसके निर्देश बाध्यकारी होंगे।बिल इन प्रावधानों को बरकरार रखता है। एक्ट के ही समान, बिल निम्नलिखित निर्दिष्ट नहीं करता: (i) महानिदेशक की क्वालिफिकेशंस, (ii) उसके चयन का तरीका, या (iii) उसकी सेवा की अवधि। इस प्रकार डीजीसीए किसी सरकारी विभाग के समान है और सरकार से स्वतंत्र होकर फैसले नहीं कर सकता है। यह रेगुलेटरी ढांचा अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों से भिन्न है जहां निजी क्षेत्र की मौजूदगी है, जैसे दूरसंचार, बिजली और बीमा। एयरलाइन्स के लिहाज से, यात्री और कार्गो सेगमेंट में पूरी तरह से निजी करियर्स की सेवाएं प्रदान की जा रही हैं।[3] 

नागरिक उड्डयन के समान, दूरसंचार, बिजली और बीमा क्षेत्रों को, जहां पहले सरकारी एकाधिकार था, 1991 के बाद से निजी भागीदारी के लिए मुक्त कर दिया गया। इस बदलाव के साथ कानून के जरिए स्वतंत्र क्षेत्रीय रेगुलेटर भी स्थापित किए गए।[4],[5],[6]  ये रेगुलेटर्स निम्नलिखित को निर्धारित करते हैं: (i) लाइसेंस हासिल करने के लिए जरूरी शर्तें, (ii) सेवाओं के मूल्य निर्धारण के दिशानिर्देश, (iii) उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान का तरीका, और (v) निजी ऑपरेटर्स के लिए एक निष्पक्ष प्रणाली। स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए इन निकायों के सदस्यों की तकनीकी क्वालिफिकेशन, शर्तें और सेवा अवधि कानून द्वारा स्पष्ट की गई हैं।4,रेगुलेटर्स के फैसलों के खिलाफ अपीलीय ट्रिब्यूनल के समक्ष अपील की जा सकती है।4,5 ओईसीडी (2016) ने कहा था कि निम्नलिखित के कारण बाजार विफलताओं को रोकने के लिए स्वतंत्र रेगुलेटर्स की स्थापना की जाती है: (i) ब्यूरोक्रेटिक प्रभाव, (ii) तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव, और (iii) सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के बीच हितों का टकराव।[7]  उसने कहा था कि कार्यकाल सुरक्षित होने से वे क्षेत्र को राजनैतिक और आर्थिक व्यापार चक्रों के उतार-चढ़ाव से बचा पाएंगे।7  

नागरिक उड्डयन उद्योग में प्रमुख हवाई अड्डों पर एयरोनॉटिकल सेवाओं के शुल्क और प्रदर्शन मानकों को रेगुलेट करने के लिए एक स्वतंत्र रेगुलेटर है, एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एईआरए)।[8]  एईआरए के आदेशों के खिलाफ अपील के लिए स्वतंत्र ट्रिब्यूनल है- द टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटेलमेंट एंड अपेलेट ट्रिब्यूनल।8 2008 में पारित एक्ट के तहत एईआरए का गठन किया गया था।

क्षतिपूर्ति की राशि निर्धारित करने के लिए आर्बिट्रेशन

एक्ट सरकार को शक्ति देता है कि वह हवाई अड्डे से एक निर्दिष्ट दूरी के भीतर आने वाली इमारतों, संरचनाओं या पेड़ों को तोड़ने या उसमें बदलाव करने का निर्देश जारी कर सकती है।प्रभावित होने वाले लोग (उनके ओनर) क्षतिपूर्ति के पात्र हैं जिसे परस्पर समझौते से निर्धारित किया जाएगा।अगर इस पर सहमति नहीं बनती है तो सरकार किसी आर्बिट्रेटर को नियुक्त कर सकती है।यह आर्बिट्रेटर ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है, या उसके लिए क्वालिफाइड है।बिल इन प्रावधानों को बरकरार रखता है। यहां हम इन प्रावधानों पर चर्चा कर रहे हैं।

आर्बिट्रेटर की एकतरफा नियुक्ति करने की शक्ति समानता के अधिकार का उल्लंघन हो सकती है

सर्वोच्च न्यायालय (2014) ने कहा है कि किसी एक पक्ष द्वारा आर्बिट्रेटर की एकतरफा नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है।[9] उसने कहा था कि किसी एक पक्ष को एकमात्र आर्बिट्रेटर को एकतरफा नियुक्त करने की अनुमति देने वाले क्लॉज से उस आर्बिट्रेटर की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर संदेह पैदा हो सकता है।9 उसने कहा था कि यह वैसे ही है, जैसे कोई अपने हित में किसी न्यायाधीश की नियुक्ति करे।मध्यस्थता और सुलह एक्ट, 1996 के तहत पक्षों की परस्पर सहमति से आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की जाती है।[10]  बिल में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बिल के तहत आर्बिट्रेशन में मध्यस्थता और सुलह एक्ट, 1996 लागू नहीं होगा।

बिल मध्यस्थता और सुलह एक्ट, 1996 को लागू करने से मना करता है जोकि दूसरे कानूनों से अलग है

रेलवे एक्ट, 1989 और राष्ट्रीय राजमार्ग एक्ट, 1956 में क्षतिपूर्ति निर्धारण के लिए ऐसी ही प्रक्रिया दी गई है।[11],[12]  ये दोनों कानून केंद्र सरकार को यह शक्ति देते हैं कि वह क्षतिपूर्ति की राशि पर सहमति न बनने की स्थिति में आर्बिट्रेटर की नियुक्ति कर सकती है।11,12  हालांकि इन कानूनों में कहा गया है कि एक्ट के तहत आर्बिट्रेशन के प्रत्येक मामले में 1996 का एक्ट लागू होगा।11,12 मेट्रो रेलवे के मामले में मेट्रो रेलवे (निर्माण कार्य) एक्ट, 1978 में मूल रूप से क्षतिपूर्ति की राशि पर असहमति की स्थिति में आर्बिट्रेटर की नियुक्ति का प्रावधान था।[13]  इसके बाद 1982 में इसमें संशोधन किया गया ताकि आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया को अपीलीय अथॉरिटी के समक्ष अपील से बदल दिया जाए।13  तीनों कानूनों के तहत क्षतिपूर्ति का निर्धारण बिल के तहत आपसी समझौते की बजाय, सरकार द्वारा नियुक्त अथॉरिटी द्वारा किया जाता है।11,12,13

नियमों के जरिए आपराधिक दंड, शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विरुध हो सकते हैं

बिल कहता है कि कुछ विशिष्ट प्रावधानों के तहत अधिसूचित नियमों के उल्लंघन पर केंद्र सरकार द्वारा आपराधिक दंड के जरिए दंडित किया जा सकता है। यह सजा दो वर्ष तक कैद, एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। ये नियम गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला से संबंधित हैं, जैसे: (i) एयरक्राफ्ट्स से संबंधित गतिविधियों, जैसे डिजाइन, मैन्यूफैक्चरिंग, इस्तेमाल और व्यापार का रेगुलेशन, (ii) अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन का कार्यान्वयन, (iii) दुर्घटनाओं की जांच, (iv) सार्वजनिक स्वास्थ्य का संरक्षण, और (v) एयरक्राफ्ट को रोकने (डीटेन करने) की शक्तियां। इस प्रकार बिल केंद्र सरकार को यह तय करने का विवेकाधिकार देता है कि कौन सा उल्लंघन एक फौजदारी अपराध है और इस पर फौजदारी सजा दी जाएगी। कार्यपालिका को ये शक्तियां सौंपने से शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या सरकार को यह जिम्मेदारी सौंपने की बजाय विधायिका को फौजदारी अपराधों और उनके लिए दंड का निर्धारण करना चाहिए।

कुछ नियमों के उल्लंघन पर बिल में ही दंड को निर्दिष्ट किया गया है। इनमें निम्नलिखित से संबंधित नियमों का उल्लंघन शामिल है: (i) विमान में हथियार, विस्फोटक या दूसरी खतरनाक वस्तुओं को ले जाना, और (ii) हवाई अड्डों के 10 किलोमीटर के दायरे में कचरा जमा होना। रेलवे और मेट्रो रेलवे के कानूनों के तहत, सभी अपराध और दंड एक्ट में सूचीबद्ध हैं।11,[14]


[4].  Section 3, The Telecom Regulatory Authority of India Act, 1997, https://trai.gov.in/sites/default/files/The_TRAI_Act_1997.pdf.

[5].  Section 3, The Insurance Regulatory and Development Authority of India Act, 1999, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/1893/1/A1999_41.pdf.

[6].  Section 3, The Electricity Regulatory Commissions Act, 1998, https://cercind.gov.in/electregucommiact1998.pdf.

[7].  Being an Independent Regulator, The Governance of Regulators, OECD Publishing, Paris. http://dx.doi.org/10.1787/9789264255401-en.

[8].  Section 3, The Airports Economic Regulatory Authority of India Act, 2008, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2090/1/A2008-27.pdf.

[9]. Central Organisation for Railway Electrification vs M/s ECI SPIC SMO MCML (JV), Supreme Court of India, November 8, 2024, https://api.sci.gov.in/supremecourt/2019/28531/28531_2019_1_1502_57055_Judgement_08-Nov-2024.pdf.

[10]. The Arbitration and Conciliation Act, 1996, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/1978/3/a1996-26.pdf.

[12]. Section 3(G), The National Highways Act, 1956, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/1651/1/AAA1956____48.pdf.

[13]. Section 14, The Metro Railways (Construction of Works) Act, 1978, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/1737/1/197833.pdf.

[14]. Chapter XI, The Metro Railways (Operation and Maintenance) Act, 2002, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2008/3/2002-60.pdf.

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