मंत्रालय: 
ग्रामीण विकास

बिल की मुख्य विशेषताएँ

  • यह बिल 2013 में पास मुख्य अधिनियम (एक्ट) में संशोधन करता है।
     
  • सरकार इस बिल में परियोजनाओं की पाँच श्रेणियों में निम्न जरूरतों से छूट प्रदान करती है: (i) सामाजिक प्रभाव का आकलन, (ii) एक से अधिक फसल वाली भूमि के अधिग्रहण पर प्रतिबंध, और (iii) निजी परियोजनाओं और सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPPs) परियोजनाओं के लिए सहमति।
     
  • परियोजनाओं की पाँच श्रेणियाँ इस प्रकार से हैं: (i) रक्षा, (ii) ग्रामीण मूलभूत सुविधाएं, (iii) सस्ते आवास, (iv) औद्योगिक गलियारे, और (v) मूलभूत सुविधाएं जिनमें PPPs शामिल हैं जहां भूमि की मालिक सरकार हो।
     
  • यदि पाँच वर्ष पहले भूमि का आबंटन किया गया हो और मुआवज़ा नहीं दिया गया हो या मालिकाना हक (पज़ेशन) नहीं लिया गया हो, तब यह अधिनियम पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिवली) तौर पर लागू होता है। इस बिल में पाँच वर्ष की अवधि को गिनते समय ऐसी किसी अवधि को बाहर रखा गया है जिसके दौरान न्यायालय ने अधिग्रहण पर रोक लगाई हो।
     
  • एक्ट सरकारी विभाग के किसी अपराध के लिए उस विभाग के प्रमुख को दोषी मानता है। बिल में इस प्रावधान को निकाल दिया गया है, और किसी सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति की ज़रुरत को जोड़ दिया गया है।

प्रमुख मुद्दे व विश्लेषण

  • पाँच प्रकार की परियोजनाओं को सामाजिक प्रभाव आकलन, एक से अधिक फसल वाली भूमि के अधिग्रहण पर प्रतिबंध, और सहमति के प्रावधानों से छूट प्राप्त है। यह व्यापक है और इसके दायरे में अनेक सार्वजनिक उद्देश्य वाली परियोजनाएं आ सकती हैं।  
  • एक्ट के तहत PPP परियोजनाओं के लिए 70% भूमिधारकों की सहमति, और निजी परियोजनाओं के लिए 80% भूमिधारकों की सहमति की ज़रुरत है। अधिग्रहण ख़रीदारी से भिन्न होता है, इसका अर्थ है कि भूमि मालिक अपनी भूमि का त्याग नहीं करना चाहते थे। इसलिए उनकी सहमति की ज़रुरत अव्यवहारिक हो सकती है। साथ ही, यह स्पष्ट नहीं है सहमति की ज़रुरत परियोजना के मालिक पर क्यों निर्भर करती है।
     
  • बिल में संशोधनों द्वारा अधिग्रहण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का प्रस्ताव दिया गया है। हालांकि, बिल में बदलावों से 50 माह की अधिग्रहण सीमा घट कर 42 माह रह जाएगी।
     
  • विभाग के प्रमुख को दोषी मानने वाले प्रावधान को हटाने, और किसी सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति लेने की अतिरिक्त ज़रुरत उन्हें जवाबदेह ठहराने की प्रक्रिया में रुकावट बन सकती है।
     
  • सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा निर्णय का संदर्भ लेते हुए 2014 तक दायर मामलों में पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिवली) प्रावधान में किया गया बदलाव अप्रभावी हो सकता है।

भाग अ: बिल की मुख्य विशेषताएँ

संदर्भ

भूमि अधिग्रहण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति की निजी भूमि का अनिवार्य रूप से अधिग्रहण कर लिया जाता है। यह भूमि खरीदने की प्रक्रिया से अलग होता है, जिसमें इच्छुक विक्रेता और इच्छुक खरीदार आपसी रूप से स्वीकार्य शर्तों पर अनुबंध करते हैं।  अधिग्रहण में भूमि मालिक के पास भूमि छोड़ने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं होता, और उसे जबरन अपनी भूमि छोड़नी पड़ती है। इसलिए, अधिग्रहण की प्रक्रिया निजी भूमि के मालिक के संपत्ति अधिकार रद्द कर देती है। ऐसा तभी न्यायसंगत होता है जब किसी व्यक्ति के भू-स्वामित्व अधिकारों को रद्द करने से जनता को बहुत बड़ा फायदा होता हो। 

भारत में, भूमि अधिग्रहण समवर्ती (कन्करन्ट) विषय है, जिसके ऊपर केंद्र व राज्य का नियंत्रण होता है। भूमि अधिग्रहण का निर्धारण मुख्य रूप से भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा पाने का अधिकार और पारदर्शिता अधिनियम 2013 (2013 एक्ट) को ध्यान में रख कर किया जा रहा है।  इसे भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 (1894  एक्ट) के स्थान पर लाया गया है। अनेक राज्यों ने भी भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक्ट तैयार किए हैं।

2013 एक्ट 1894 एक्ट से अनेक मायनों में अलग है।  इसमें 'सार्वजनिक उद्देश्य' की परिभाषा को सीमित किया गया है अर्थात वे परियोजनाएं जिनके लिए भूमि अधिग्रहण किया जा सकता है।  इसके तहत सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) या किसी निजी कंपनी की परियोजना के लिए भूमि मालिकों की सहमति की ज़रुरत थी।  मुआवज़ा बाज़ार की मौजूदा दरों का दो से चार गुणा तय किया गया था और प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए न्यूनतम मानदंड तय किए गए थे। एक्ट में परियोजना के संभावित फ़ायदों और सामाजिक लागतों के बीच तुलना करने के लिए सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) की भी ज़रुरत थी।

दिसंबर 2014 में, 2013 एक्ट में संशोधन के लिए एक अध्यादेश (ऑर्डिनेंन्स) लागू किया गया था। अध्यादेश को संशोधित रूप में अप्रैल 2015 में और दोबारा मई 2015 में लागू किया गया। अप्रैल अध्यादेश के स्थान पर भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा पाने का अधिकार और पारदर्शिता (द्वितीय संशोधन) बिल, 2015 को 11 मई, 2015 में लोक सभा में पेश किया गया था जिसे विस्तृत जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के पास विचारार्थ भेजा गया था।   

मुख्य विशेषताएँ

तालिका 1: 2013 एक्ट के प्रावधानों की तुलना में 2015 बिल में प्रस्तावित मुख्य बदलाव1

मामला

भूमि अधिग्रहण एक्ट, 2013

भूमि अधिग्रहण (द्वितीय संशोधन) बिल, 2015

सहमति

·     सरकारी परियोजनाओं के लिए किसी सहमति की ज़रुरत नहीं है।

·     सार्वजनिक-निजी भागीदारी वाली परियोजनाओं के लिए 70% भूमि मालिकों की सहमति की ज़रुरत।

·     निजी परियोजनाओं के लिए 80% भूमि मालिकों की सहमति की ज़रुरत।

·     पाँच प्रकार की परियोजनाओं को सहमति लेने की ज़रुरत से बाहर रखा गया है: (i) रक्षा, (ii) ग्रामीण मूलभूत सुविधाएं, (iii) सस्ते आवास, (iv) सरकार/सरकारी उपक्रमों द्वारा स्थापित औद्योगिक गलियारे, गलियारे के सड़क/रेलवे के दोनों ओर एक किलोमीटर तक, और (v) मूलभूत सुविधाएं जिनमें वे PPP शामिल हैं जहां सरकार  भूमि की मालिक हो।

सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA)

·     सभी परियोजनाओं के लिए SIA अनिवार्य है सिवाय: (i) तत्कालिकता (अरजेंसी) या (ii) सिंचाई परियोजनाएं जहां पर्यावरण के प्रभाव के आकलन की ज़रुरत होती है।

·     सरकार उक्त पाँच प्रकार की परियोजनाओं को SIA से छूट दे सकती है।

·     सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि भूमि का अधिग्रहण न्यूनतम ज़रुरत के मानदंड के हिसाब से किया जा रहा हो।

सिंचित एक से अधिक फसल वाली भूमि

·     सिंचित एक से अधिक फसल वाली सिंचित भूमि का अधिग्रहण राज्य सरकार द्वारा निर्धारित तय सीमा से आगे नहीं किया जा सकता है। 

·     सरकार उक्त पाँच प्रकार की परियोजनाओं को इस प्रावधान से छूट दे सकती है।

·     सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि भूमि का अधिग्रहण न्यूनतम ज़रुरत के मानदंड के हिसाब से किया जा रहा हो।

भूमि अधिग्रहण पर नियंत्रण करने वाले 13 अन्य कानूनों के मुआवज़ा और पुनर्वास और पुनर्स्थापना प्रावधान

·     13 कानूनों (जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग एक्ट, 1956 और रेलवे एक्ट, 1989) को इस एक्ट के प्रावधानों से छूट प्राप्त है। 

·     इन कानूनों के मुआवज़ा और पुनर्वास और पुनर्स्थापना प्रावधानों को 1 जनवरी, 2015 तक इस एक्ट के साथ तालमेल में लाया जाएगा।

·     13 कानूनों के मुआवज़ा और पुनर्वास और पुनर्स्थापना प्रावधान इस एक्ट के साथ तालमेल में हैं।

सरकार द्वारा अपराध

·     यदि किसी सरकारी विभाग द्वारा कोई अपराध होता हो, उस विभाग के प्रमुख को दोषी माना जाएगा जब तक वह यह नहीं दिखाता कि उसने अपराध होने से रोकने के लिए पूरा प्रयास किया।

·     बिल में इस प्रावधान को हटा दिया गया है।

·     बिल में एक प्रावधान जोड़ा गया है जो बताता है कि किसी सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा चलाने से पहले सरकार की पूर्व अनुमति की ज़रुरत होगी।

पूर्वव्यापी आवेदन

·     2013 एक्ट उस मामले में लागू होगा जहां 2013 एक्ट आरंभ होने से पाँच या उससे अधिक वर्ष पहले आबंटन किया गया हो, लेकिन भूमि का मालिकाना हक नहीं लिया गया है या मुआवज़ा नहीं दिया गया है।

·     पूर्वव्यापी आवेदन के लिए समय अवधि की गणना करते समय उस अवधि को गिना नहीं जाएगा जिसके कारण कार्यवाही रुकी हुई हो: (i) न्यायालय के स्टे ऑर्डर के कारण, या (ii) ट्रिब्यूनल के अधिनिर्णय में निर्धारित अवधि के लिए, या (iii) किसी ऐसी अवधि के लिए जब मालिकाना हक ले लिया गया हो लेकिन मुआवज़ा न्यायालय या किसी नामित खाते में जमा कर दिया गया हो

गैर-उपयोगी भूमि की वापसी

·     यदि एक्ट के तहत अधिग्रहित भूमि मालिकाना हक लेने की तिथि से पाँच वर्ष के लिए गैर-उपयोगी रहती हो, उसे असली मालिकों या लैंड बैंक को वापस कर दिया जाना चाहिए।

·     वह अवधि जिसके बाद गैर-उपयोगी भूमि को वापस किया जाना होगा वह (i) पाँच वर्ष, या (ii) परियोजना की स्थापना के समय निर्धारित अवधि के बाद की होगी।

निजी 'कंपनी' से निजी 'संस्था' में बदलाव

·     कंपनीज़ एक्ट, 1956 में या सोसाइटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत परिभाषित निजी कंपनी के जैसी।

·     'निजी कंपनी' शब्द बदल कर 'निजी संस्था' हो गया है जिसे सरकारी संस्था के सिवाय किसी अन्य संस्था के रूप में परिभाषित किया गया है, और जिसमें, निजी स्वामित्व, भागीदारी, कंपनी, निगम, गैर-लाभकारी आदि शामिल हैं।  

पुनर्वास और पुनर्स्थापना पर निर्णय

·     प्रभावित परिवार के एक सदस्य को रोज़गार देना शामिल है।

·     स्पष्ट करता है कि इसमें 'खेती मजदूर के प्रभावित परिवार के एक सदस्य को रोज़गार' देना शामिल किया जाना चाहिए।

भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना प्राधिकरण

·     यदि कोई एक्ट के तहत दिये गए निर्णय से संतुष्ट नहीं हो, वे भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना (एलएआरआर) प्राधिकरण के पास जा सकते हैं।

·     यह जोड़ता है कि एलएआरआर प्राधिकरण को कलेक्टर से संदर्भ लेने और सभी संबंधित पार्टियों को सूचना देने के बाद उस जिले में सुनवाई का आयोजन करना चाहिए जहां भूमि अधिग्रहण किया जा रहा हो।

बंजर भूमि का सर्वेक्षण

·     कोई प्रावधान नहीं।

·     सरकार को अपनी बंजर भूमि का सर्वेक्षण करना चाहिए और उसका एक रिकॉर्ड कायम रखना चाहिए।

स्रोत: भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा पाने का अधिकार और पारदर्शिता अधिनियम, 2013; भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा पाने का अधिकार और पारदर्शिता (द्वितीय संशोधन) बिल, 2015; पीआरएस

भाग ब: प्रमुख मुद्दे व विश्लेषण

एक्ट के कुछ निश्चित प्रावधानों में से पाँच प्रकार की परियोजनाओं को बाहर रखा गया है

एक्ट के प्रावधानों में से परियोजनाओं की अनेक श्रेणियों को बाहर रखा गया है

2013 एक्ट के तहत, भूमि का अधिग्रहण केवल उन्हीं परियोजनाओं के लिए किया जा सकता है जिनका कोई "सार्वजनिक उद्देश्य" हो, जिन्हें एक्ट में परिभाषित किया गया है। यह निर्धारित करने के लिए कि ऐसी परियोजनाओं के संभावित लाभ सामाजिक लागतों से अधिक हैं सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) की ज़रुरत होगी। यदि अधिग्रहण की जाने वाली भूमि एक से अधिक फसल वाली भूमि है, तब ऐसी अधिग्रहित भूमि का कुल क्षेत्रफल राज्य सरकार द्वारा तय सीमा से कम होना चाहिए।  इसके अलावा, सार्वजनिक निजी परियोजनाओं (PPP) और निजी कंपनियों के लिए अधिग्रहित किसी भूमि के लिए क्रमशः 70% और 80% भूमि मालिकों की सहमति की ज़रुरत होगी।

बिल के तहत सरकारी परियोजनाओं की पाँच श्रेणियों में निम्न जरूरतों से छूट है: (i) SIA, (ii) एक से अधिक फसल वाली भूमि के अधिग्रहण पर प्रतिबंध, और (iii) PPPs और निजी परियोजनाओं के लिए सहमति। परियोजनाओं की पाँच श्रेणियाँ इस प्रकार से हैं: (i) रक्षा, (ii) ग्रामीण मूलभूत सुविधाएं, (iii) सस्ते आवास, (iv) औद्योगिक गलियारे, और (v) मूलभूत सुविधाएं जिनमें PPP शामिल हैं जहां सरकार भूमि की मालिक हो।

इन पाँच छूट प्राप्त श्रेणियों के दायरे में ऐसी अनेक परियोजनाएं आ सकती हैं जिनके लिए भूमि अधिग्रहण की ज़रुरत पड़ सकती है। तालिका 2 में 2013 एक्ट के तहत 'सार्वजनिक उद्देश्य' वाली परियोजनाओं की तुलना ऐसी परियोजनाओं के साथ की गई है जिन्हें बिल के तहत ऊपर बताई गई तीन शर्तों से छूट प्राप्त हो सकती है।

तालिका 2: एक्ट के तहत ‘सार्वजनिक उद्देश्य’ और बिल के तहत कुछ निश्चित ज़रुरतों से छूट प्राप्त परियोजनाएं

वे परियोजनाएं जिनके लिए 2013 एक्ट के तहत भूमि का अधिग्रहण किया जा सकता है

2015 बिल के तहत छूट प्राप्त परियोजनाएं

वे परियोजनाएं जिनके लिए 2013 एक्ट के तहत ज़रुरतें लागू होंगी

·    सशस्त्र बलों से संबंधित सामरिक उद्देश्य, या राष्ट्रीय सुरक्षा, भारत की सुरक्षा, या राज्य पुलिस के लिए ज़रूरी कोई कार्य

·   राष्ट्रीय सुरक्षा या भारत की रक्षा के ज़रूरी परियोजनाएं जिनमें रक्षा या रक्षा उत्पादन के लिए तैयारी शामिल हों

·   राज्य पुलिस से संबंधित परियोजनाएं

 

·    कृषि-प्रसंस्करण, जल संचय, औद्योगिक गलियारों, सरकारी योजनाओं, आदि से संबंधित मूलभूत सुविधाओं वाली परियोजनाएं* 

·   मूलभूत सुविधा संबंधी परियोजनाएं जिनमे PPPs शामिल हैं जहां भूमि की मालिक सरकार है।

·   सरकार द्वारा स्थापित औद्योगिक गलियारे और उसके उपक्रम (उस मामले में अधिग्रहित भूमि नियत रेलवे लाइन या सड़कों के दोनों ओर एक किलोमीटर तक होगी)

·   विद्युतीकरण सहित ग्रामीण मूलभूत सुविधाएं

·   नियत रेलवे लाइन या सड़कों के एक किलोमीटर से परे अधिग्रहित किसी भूमि के लिए औद्योगिक गलियारे 

·    ग्राम स्थलों या शहरी इलाकों में किसी स्थल का योजनाबद्ध विकास

·   मूलभूत सुविधा संबंधी परियोजनाएं जिसमें PPPs के तहत परियोजनाएं शामिल हैं जहां सरकार भूमि का स्वामित्व जारी रखती है।

·   विद्युतीकरण सहित ग्रामीण मूलभूत सुविधाएं

·   वे आइटम जो मूलभूत सुविधाओं के तहत नहीं आती हों अर्थात निजी अस्पताल, निजी शिक्षण संस्थाएं और निजी होटल। 

·    परियोजना से प्रभावित परिवारों के लिए परियोजना

·   सस्ते आवास और गरीबों के लिए आवास

 

·   सस्ते आवास और गरीबों के लिए आवास के अलावा परियोजना से प्रभावित परिवारों के लिए कोई परियोजना

·    आय समूहों का आवास, जैसा सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है

·   सस्ते आवास और गरीबों के लिए आवास

·   आवास जो (i) सस्ता नहीं हो और (ii) ऐसे आय समूहों के लिए जिनका निर्धारण सरकार द्वारा नहीं किया गया हो

·    गरीबों या भूमिहीनों को आवास

·   सस्ते आवास और गरीबों के लिए आवास

·   कोई नहीं

स्रोत: भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा पाने का अधिकार और पारदर्शिता अधिनियम, 2013; भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा पाने का अधिकार और पारदर्शिता (द्वितीय संशोधन) बिल, 2015; पीआरएस

सूचना: *वे परियोजनाएं शामिल हैं जो: (क) आर्थिक मामला विभाग द्वारा अधिसूचना (सं 13/6/2009-INF) में सूचीबद्ध हैं, (जैसे परिवहन, ऊर्जा, पानी व स्वच्छता, संचार, एवं कोल्ड चेन, उर्वरक, फसल के बाद मूलभूत सुविधा, औद्योगिक पार्कों और SEZs आदि के लिए सामान्य मूलभूत सुविधा सहित सामाजिक व वाणिज्य मूलभूत सुविधा) लेकिन जिनमें से निजी अस्पतालों, शिक्षण संस्थाओं और होटलों को बाहर रखा गया है (ख) जिनमें कृषि-प्रसंस्करण, कृषि निवेश शामिल हैं, (ग) औद्योगिक गलियारों और राष्ट्रीय निवेश और प्रबंधन क्षेत्रों के लिए, (घ) जल संचय के लिए, (ङ) सरकार द्वारा सहायता प्राप्त या प्रबंधित योजनाओं के लिए, (च) खेल सुविधाओं के लिए, और (छ) केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य मूलभूत सुविधा।

पाँच प्रकार की छूट प्राप्त परियोजनाओं में स्पष्टता की कमी

बिल में 2013 एक्ट के कुछ निश्चित प्रावधानों में से परियोजनाओं की निम्न श्रेणियों को बाहर रखा गया है: (i) रक्षा, (ii) ग्रामीण मूलभूत सुविधाएं, (iii) सस्ते आवास, (iv) औद्योगिक गलियारे, और (v) मूलभूत सुविधाएं जिनमें PPPs शामिल हैं जहां भूमि की मालिक  सरकार है। 

हालांकि, (क) ग्रामीण मूलभूत सुविधा, (ख) सस्ता आवास, (ग) गरीब लोग, (घ) औद्योगिक गलियारे जैसे शब्दों को 2013 एक्ट में परिभाषित नहीं किया गया है और इनके अर्थ असपष्ट हैं।

साथ ही, बिल में परियोजनाओं की एक श्रेणी जिसे छूट प्राप्त है, वह है "मूलभूत सुविधा संबंधी परियोजनाएं जिसमें PPPs के तहत परियोजनाएं शामिल हैं जहां भूमि की मालिक  सरकार है"। यहाँ "शामिल" शब्द का अर्थ असपष्ट है।  अर्थात, यह असपष्ट है कि क्या यह छूट सभी मूलभूत सुविधा परियोजनाओं के लिए है या केवल उन PPP परियोजनाओं के लिए है जिनमें सरकार भूमि का स्वामित्व जारी रखती है।

सहमति प्रावधान

2013 एक्ट के तहत PPP परियोजनाओं के मामले में 70% भूमि मालिकों की और निजी संस्थाओं के मामले में 80% भूमि मालिकों की सहमति की ज़रुरत है। सरकारी परियोजनाओं के लिए किसी सहमति की ज़रुरत नहीं है। बिल के तहत पाँच प्रकार की परियोजनाओं के लिए भूमि मालिकों की सहमति प्राप्त करने की ज़रुरत नहीं है।

सहमति की ज़रुरत अव्यवहारिक हो सकती है।

भूमि अधिग्रहण से पहले भू-मालिकों से सहमति की ज़रूरत के सिद्धांत में एक बुनियादी कमी है। अधिग्रहण ख़रीदारी से अलग होता है। एक इच्छुक ख़रीदार और इच्छुक विक्रेता के बीच लेनदेन का नतीजा पारस्परिक रूप से स्वीकार्य शर्तों पर ख़रीदारी होता है। भूमि का अधिग्रहण तब होता है जब भूमि मालिक भूमि को छोड़ना नहीं  चाहता। ऐसी स्थिति में, भूमि अधिग्रहण के लिए उसकी सहमति की अपेक्षा करना अव्यवहारिक हो सकता है।

हालांकि, जहां अधिकतर भूमि मालिक अपनी भूमि छोड़ने के इच्छुक हों, लेकिन परियोजना केवल कुछ भूमि मालिकों के कारण रुकी हुई हो, उन मामलों में भूमि अधिग्रहण के समय सहमति की ज़रुरत को सही ठहराया जा सकता है।  भूमि अधिग्रहण (संशोधन) बिल, 2007 जो निरस्त हो चुका है, उसमें एक वैकल्पिक समाधान का सुझाव दिया गया था।[1] उसके अनुसार यदि बातचीत के माध्यम से 70% आवश्यक भूमि को खरीद लिया गया हो, तब भूमि के शेष हिस्से का अधिग्रहण किया जा सकता है। अधिग्रहित भूमि के लिए मुआवज़े का आधार खरीदी गई भूमि की कीमतें होंगी। यह तरीका अधिग्रहित भूमि के लिए मुआवज़े को बाज़ार की कीमतों से जोड़ता है (जिसका निर्धारण उन भू-मालिकों के साथ बातचीत के माध्यम से किया जा सकता है जिन्होने उनके हिस्से की भूमि को बेच दिया था)।

सहमति की ज़रुरत से कुछ निश्चित परियोजनाओं को बाहर रखने का तर्क 

बिल पाँच प्रकार की परियोजनाओं को सहमति की ज़रुरत से बाहर रखता है और ऊपर तालिका 2 में दिखाए अनुसार कुछ परियोजनाओं के लिए ज़रुरत को कायम रखता है। इस भेद के पीछे का तर्क असपष्ट है अर्थात क्यों कुछ परियोजनाओं के लिए भू-मालिकों से सहमति की ज़रुरत है जबकि अन्य को इससे छूट प्राप्त है।

साथ ही, भूमि अधिग्रहण को नियंत्रित करने वाले विभिन्न कानूनों में सहमति की ज़रुरत एक समान नहीं है।  2013 एक्ट के प्रावधानों में 13 कानूनों (जो भूमि अधिग्रहण को भी नियंत्रित करते हैं) को छूट प्राप्त है लेकिन इस बात की ज़रूरत है कि इन कानूनों के मुआवजा और R&R प्रावधानों का तालमेल 1 जनवरी, 2015 तक 2013 एक्ट के साथ बिठाया जाए। छूट प्राप्त 13 कानूनों में राष्ट्रीय राजमार्ग एक्ट, 1956, रेलवे एक्ट, 1989, कोयला युक्त क्षेत्रों का अधिग्रहण और विकास एक्ट, 1957, परमाणु ऊर्जा एक्ट, 1962 आदि शामिल हैं। इनमें से अधिकतर कानूनों के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए सहमति की ज़रुरत नहीं है। इसलिए, यदि किसी विशेष परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण 2013 एक्ट के तहत किया गया हो तब सहमति की ज़रुरत है लेकिन यदि 13 कानूनों में से किसी एक के तहत किया गया हो, तब सहमति की ज़रुरत नहीं होगी। 

आवश्यक सहमति का स्तर 2013 एक्ट के तहत परियोजना के स्वामित्व के अनुसार भिन्न है।

एक्ट के तहत यह स्पष्ट नहीं है क्यों आवश्यक सहमति का स्तर परियोजना के स्वामित्व, अर्थात सरकारी, निजी या सार्वजनिक-निजी के अनुसार भिन्न है।  भूमि मालिक के दृष्टिकोण से भूमि अधिग्रहण के बाद परियोजना का संचालन कौन करता है इस बात का कोई मतलब नहीं रहता।  उसे परियोजना के मालिक पर ध्यान दिये बगैर,  मुआवज़े और अन्य लाभ की समान रकम प्राप्त होगी।  यह स्पष्ट नहीं है क्यों सहमति की ज़रुरत प्रत्येक परियोजना के लिए एक समान नहीं होनी चाहिए।

सहमति के लिए सीमा

2013 एक्ट में सहमति के लिए दो अलग सीमाएं तय की गई हैं - PPPs के लिए 70% और निजी संस्थाओं के लिए 80%।  हालांकि, 2013 एक्ट या 2015 बिल सहमति की इस सीमा के लिए कोई तर्क प्रदान नहीं करता है। यह बात भी स्पष्ट नहीं है कि सहमति की ज़रुरत के लिए उचित सीमा क्या होगी। 2011 बिल जो बाद में 2013 एक्ट बन गया, उसकी जांच के दौरान, विद्युत मंत्रालय ने 50% सीमा का सुझाव दिया, महाराष्ट्र सरकार ने 51% का जबकि एक अन्य गवाह (समिति रिपोर्ट में उसकी पहचान नहीं की गई है) ने 100% का सुझाव दिया।[2]    

भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में लिए जाने वाले समय में मामूली बदलाव

मंत्रालय द्वारा बिल पर एक स्पष्टीकरण टिप्पणी व्यक्त करती है कि 2013 एक्ट में बदलाव ज़रूरी हैं क्योंकि अनेक राज्यों और मंत्रालयों ने एक्ट लागू करने में कठिनाई की बात कही है।[3] नोट में यह तर्क दिया गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास परियोजनाओं में तेज़ी आनी चाहिए और ऐसी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में आने वाली प्रक्रियात्मक कठिनाइयों पर विचार किया जाना चाहिए। 

2013 एक्ट के तहत, अधिग्रहण प्रक्रिया को पूरा करने के लिए ज़रूरी न्यूनतम समय 50 माह है। बिल में प्रस्तावित बदलाव इस समय को घटा कर 42 माह करता हैं। 

तालिका 3: LARR एक्ट, 2013 के तहत निर्दिष्ट भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में किए गए बदलाव

2013 एक्ट में रेखांकित क्रमबद्ध चरण*

LARR एक्ट, 2013 में निर्धारित समय सीमा

LARR (द्वितीय संशोधन) बिल, 2015

SIA

6 माह

सरकारी अधिसूचना के माध्यम से SIA प्रावधान (और सहमति की ज़रुरत) में से पाँच प्रकार की परियोजनाओं को बाहर रखा जा सकता है**

विशेषज्ञ समूह द्वारा SIA का मूल्यांकन

2 माह (समूह के गठन से)

सरकार द्बारा भूमि अधिग्रहण और SIA के लिए प्रस्ताव की जांच

कोई समय सीमा निर्धारित नहीं

भूमि अधिग्रहण के लिए आरंभिक अधिसूचना

12 माह (विशेषज्ञ समूह द्वारा SIA के मूल्यांकन से) लेकिन सरकार द्वारा विस्तार किया जा सकता है

कोई बदलाव नहीं

भूमि अधिग्रहण के लिए घोषणा

12 माह (आरंभिक अधिसूचना से) लेकिन सरकार द्वारा विस्तार किया जा सकता है

कोई बदलाव नहीं

भूमि अधिग्रहण का निर्णय (मुआवजा)

12 माह (घोषणा से) लेकिन सरकार द्वारा विस्तार किया जा सकता है

कोई बदलाव नहीं

भूमि का अधिग्रहण

6 माह (निर्णय से)***

कोई बदलाव नहीं

भूमि के कब्जे के लिए कुल समय (बिना विस्तार)

 

50 माह

42 माह

स्रोत: भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा पाने का अधिकार और पारदर्शिता एक्ट 2013।

नोट: *इस गणना द्वारा माना जाता है कि क्रमबद्ध प्रक्रिया का प्रत्येक हिस्सा 2013 एक्ट के तहत स्वीकृत अधिकतम समय लेगा।  कुछ अन्य ज़रुरतएँ हैं जो इस तालिका में रेखांकित चरणों के समानांतर चलती हैं।  ध्यान दिया जाना चाहिए कि 2013 एक्ट द्वारा कुछ प्रक्रियाओं के लिए समय सीमा के विस्तार को स्वीकृति है, और बिल में इन प्रावधानों को कायम रखा गया है।

**2013 एक्ट के तहत SIA के साथ ही भूमि मालिकों की सहमति आवश्यक थी।  

***भूमि का मालिकाना हक मुआवज़े के भुगतान के बाद दिया जाएगा (निर्णय से 3 माह की सीमा के साथ) और पुनर्वास के आर्थिक पहलुओं को प्रदान किया गया है (निर्णय से 6 माह की समय सीमा के साथ)।

सरकारी कर्मचारियों की जवाबदेही

2013 एक्ट के तहत, यदि सरकारी विभाग से कोई अपराध होता है तो उस विभाग के प्रमुख को दोषी माना जाएगा जब तक वह यह नहीं दिखाता कि उसने अपराध होने से रोकने के लिए पूरा प्रयास किया। यह कंपनी के निदेशकों और फर्म के पार्टनरों के प्रावधानों के अनुरूप है। बिल में इस प्रावधान को हटा दिया गया है। इसलिए विभाग प्रमुख, विभाग द्वारा किए गए अपराध के लिए अपने आप ही जवाबदेह नहीं माना जाएगा। 

इसके अलावा बिल में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है जो बताता है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी 2013 एक्ट के तहत अपराध करता है, तब उसके ऊपर मुकदमा चलाने से पहले सरकार की पूर्व अनुमति की ज़रुरत होगी। बिल में किए गए ये दोनों बदलाव एक्ट के तहत किए गए अपराधों के लिए सरकारी कर्मचारी को जवाबदेह करने की सीमा को बढ़ाते हैं।

यहाँ यह जानना ज़रूरी होगा कि यह लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट, 2013 से अलग है, जो किसी सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा चलाने से पहले पूर्व अनुमति की ज़रुरत को रद्द करता है। उस एक्ट के तहत मुकदमे की अनुमति देने का अधिकार लोकपाल (न की सरकार) को है।[4] 

एक्ट की पूर्वव्यापी उपयुक्तता (रेट्रोस्पेक्टिवली ऐप्लकबिलटी)

2013 एक्ट के अनुसार बिल के प्रावधान भूमि अधिग्रहण एक्ट, 1894 के तहत आरंभ किए गए किसी अधिग्रहण पर लागू होंगे यदि वे दो शर्तों को पूरा करते हों: (क) 2013 एक्ट के आरंभ होने से पाँच या उससे अधिक वर्ष पहले 1894 एक्ट की धारा 11 के तहत मंजूरी दी गई हो, और (ख) मालिकाना हक नहीं लिया गया हो या मुआवज़ा अदा नहीं किया गया हो।

बिल में दो प्रावधान जोड़े गए हैं जिनके अनुसार पाँच वर्ष की अवधि को गिनते समय ऐसी किसी अवधि को बाहर रखा जाना चाहिए जिसके दौरान न्यायालय ने रोक लगाई हो या ज़मीन ले ली हो लेकिन मुआवज़ा न्यायालय या किसी नामित खाते में जमा कर दिया गया हो। 

जनवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में, कोर्ट ने कहा कि मुकदमा करने वाले व्यक्ति के मूल अधिकारों का निर्धारण मुकदमा करने की तारीख पर लागू कानून द्वारा किया जाना चाहिए न की निर्णय देने की तारीख के समय लागू कानून के अनुसार।[5] कोर्ट ने माना कि कानून में किया गया कोई भी बदलाव भावी होगा जब तक कानून के पूर्वव्यापी संचालन के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं हो।  बिल द्वारा जोड़ा गया प्रावधान यह नहीं बताता कि वह पूर्वव्यापी तौर पर लागू होगा। इसलिए अध्यादेश के प्रावधान ऐसे किसी मुकदमे पर लागू नहीं होंगे जिसे पहले अध्यादेश अर्थात 1 जनवरी, 2015 के आरंभ होने से पूर्व स्थापित किया गया हो।   

नागालैंड राज्य पर एक्ट की उपयुक्तता

2013 एक्ट की धारा 1(2) कहती है कि एक्ट पूरे भारत पर लागू होता है सिवाय जम्मू कश्मीर राज्य के। संविधान की धारा 371ए के अनुसार, भूमि और उसके संसाधनों के स्वामित्व और ट्रांसफर से संबंधित संसद का एक्ट नागालैंड राज्य पर लागू नहीं होगा जब तक नागालैंड की विधान सभा किसी प्रस्ताव द्वारा ऐसा करने का निर्णय नहीं लेती हो।

इस मामले पर ग्रामीण विकास पर स्थायी समति ने ध्यान दिलाया था जिसने 2011 बिल (जो 2013 एक्ट बना), और साथ ही भूमि अधिग्रहण बिल, 2007 (जो रद्द हो गया) की जांच की थी।  भूमि संसाधन विभाग ने सहमति दी कि नागालैंड राज्य के पास बिल की उपयुक्तता पर निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार है।[6]

हालांकि 2013 एक्ट को इस संबंध में बिना उचित संशोधनों के पास कर दिया गया था और 2013 एक्ट का सेक्शन 1 संविधान के इस मत को नहीं दर्शाता है। मौजूदा बिल भी 2013 एक्ट और संविधान के मत के बीच तालमेल लाने के लिए किसी संशोधन का प्रस्ताव नहीं रखता है।

 

[1]. Clause 5 (v) (f) (iii) of the Land Acquisition (Amendment) Bill 2007.

[2]. Standing Committee on Rural Development 2011-12, Report No. 31, paragraphs 4.40 and 4.41.

[3]. Information Note on Ordinance to amend the RFCTLARR Act, 2013; Ministry of Rural Development; http://dolr.nic.in/dolr/downloads/pdfs/RFCTLARR%20Act%20(Amendment)%20Ordinance,%202014%20-%20Information%20Note.pdf.

[4]. The Lokpal and Lokayuktas Act, 2013, Clause 23.

[5]. Karnail Kaur and Ors Vs State of Punjab and Ors, Civil Appeal no. 7424 of 2013.

[6]. Standing Committee on Rural Development 2011-12, Report No. 35, paragraphs 3.53 and Standing Committee on Rural Development 2008-09, Report No. 39, paragraphs 3.49 to 3.51.

 

यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार की गयी थी।  हिंदी में इसका अनुवाद किया गया है।  हिंदी रूपांतर में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।