मंत्रालय: 
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
  • आयुष राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाईक ने 7 जनवरी, 2019 को राज्यसभा में राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग बिल, 2019 को पेश किया। यह बिल भारतीय मेडिकल सेंट्रल काउंसिल एक्ट, 1970 को रद्द करता है और ऐसी चिकित्सा शिक्षा प्रणाली का प्रावधान करता है जो निम्नलिखित सुनिश्चित करे: (i) भारतीय चिकित्सा प्रणाली के उच्च स्तरीय मेडिकल प्रोफेशनल्स पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हों, (ii) भारतीय चिकित्सा प्रणाली के मेडिकल प्रोफेशनल्स नवीनतम चिकित्सा अनुसंधानों को अपनाएं, (iii) मेडिकल संस्थानों का समय-समय पर मूल्यांकन किया जाए, और (iv) एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली मौजूद हो। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग की स्थापना: बिल राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग (एनसीआईएसएम) की स्थापना का प्रावधान करता है। एनसीआईएसएम में 29 सदस्य होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। एक सर्च कमिटी चेयरपर्सन, पार्ट टाइम सदस्यों और एनसीआईएसएम के अंतर्गत गठित चार स्वायत्त बोर्ड्स के प्रेज़िडेंट्स के नामों का सुझाव केंद्र सरकार को देगी। इन अधिकारियों का कार्यकाल अधिकतम चार वर्ष होगा। सर्च कमिटी में पांच सदस्य होंगे, जिनमें कैबिनेट सेक्रेटरी और केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन विशेषज्ञ (इनमें से दो को भारतीय चिकित्सा प्रणाली के किसी एक क्षेत्र में अनुभव प्राप्त होना चाहिए) होंगे।
     
  • एनसीआईएसएम के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) चेयरपर्सन, (ii) आर्युवेद बोर्ड के प्रेज़िडेंट, (iii) यूनानी, सिद्ध और सोवा- रिग्पा बोर्ड के प्रेज़िडेंट, (iv) भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए मेडिकल एसेसमेंट और रेटिंग बोर्ड के प्रेज़िडेंट, (v) आयुष मंत्रालय में आर्युवेद के एडवाइजर या ज्वाइंट सेक्रेटरी इन-चार्ज, और (vi) आयुर्वेद के पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर्स द्वारा निर्वाचित तीन सदस्य (पार्ट टाइम)। इसके अतिरिक्त सिद्ध, यूनानी एवं सोवा-रिग्पा चिकित्सा प्रणाली के पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर अपने बीच से तीन अन्य सदस्यों को चुनेंगे। प्रत्येक प्रणाली के एक प्रैक्टीशनर को आयोग के सदस्य के तौर पर बिल में विनिर्दिष्ट मंडलीय क्षेत्रों से चुना जाएगा।
     
  • इसके अतिरिक्त बिल के पारित होने के तीन वर्षों के भीतर राज्य सरकारों द्वारा भारतीय चिकित्सा प्रणाली की राज्य आयुर्विज्ञान परिषदों की स्थापना की जाएगी।
     
  • राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग के कार्य: एनसीआईएसएम के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) भारतीय चिकित्सा प्रणाली के मेडिकल संस्थानों और मेडिकल प्रोफेशनल्स को रेगुलेट करने के लिए नीतियां बनाना, (ii) स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित मानव संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी जरूरतों का मूल्यांकन करना, (iii) यह सुनिश्चित करना कि राज्य आर्युविज्ञान परिषदें बिल के रेगुलेशंस का पालन कर रही हैं, अथवा नहीं, (iv) बिल के अंतर्गत गठित स्वायत्त बोर्डों के बीच समन्वय स्थापित करना।
     
  • स्वायत्त बोर्ड: बिल एनसीआईएसएम की निगरानी में कुछ स्वायत्त बोर्डों का गठन करता है। ये बोर्ड हैं: (i) आयुर्वेद बोर्ड और यूनानी, सिद्ध एवं सोवा-रिग्पा बोर्ड: यह मेडिकल संस्थानों की स्थापना से संबंधित मानदंडों, पाठ्यक्रमों और दिशानिर्देशों को तैयार करेगा और अपने संबंधित विषयों में अंडरग्रैजुएट एवं पोस्ट ग्रैजुएट स्तर पर मेडिकल क्वालिफिकेशन को मान्यता प्रदान करेगा, (ii) भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिए मेडिकल एसेसमेंट और रेटिंग बोर्ड: यह मेडिकल संस्थानों की रेटिंग और मूल्यांकन की प्रक्रिया को निर्धारित करेगा और इसके पास न्यूनतम मानदंडों का पालन करने वाले संस्थानों पर मौद्रिक जुर्माना लगाने का अधिकार होगा। यह बोर्ड नए आयुर्विज्ञान संस्थानों की स्थापना की अनुमति भी देगा, और (iii) एथिक्स और मेडिकल रेजिस्ट्रेशन बोर्ड: यह बोर्ड भारतीय चिकित्सा प्रणाली के सभी लाइसेंसशुदा मेडिकल प्रैक्टीशनर्स का राष्ट्रीय रजिस्टर रखेगा और उनके पेशेवर आचरण को रेगुलेट करेगा। जिन लोगों के नाम इस रजिस्टर में दर्ज होंगे, केवल उन्हें ही भारतीय चिकित्सा प्रणाली की प्रैक्टिस करने की अनुमति होगी।
     
  • भारतीय चिकित्सा प्रणाली सलाहकार परिषद: बिल के अंतर्गत केंद्र सरकार भारतीय चिकित्सा प्रणाली सलाहकार परिषद की स्थापना करेगी। इस परिषद के माध्यम से राज्य/केंद्र शासित प्रदेश एनसीआईएसएम के समक्ष अपने विचारों और चिंताओं को प्रस्तुत करेंगे। इसके अतिरिक्त परिषद एनसीआईएसएम को मेडिकल शिक्षा के न्यूनतम मानदंडों को निर्धारित करने और उन्हें बरकरार रखने के उपाय सुझाएगी।
     
  • प्रवेश परीक्षाएं: बिल द्वारा रेगुलेटेड सभी मेडिकल संस्थानों में भारतीय चिकित्सा प्रणाली के प्रत्येक विषय में अंडर ग्रैजुएट कोर्स में प्रवेश के लिए परीक्षा ली जाएगी, जिसे यूनिफॉर्म नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट कहा जाएगा। एनसीआईएसएम इन सभी मेडिकल संस्थानों में प्रवेश के लिए एक समान काउंसिलिंग के तरीके को विनिर्दिष्ट करेगा। बिल मेडिकल संस्थानों से ग्रैजुएट होने वाले विद्यार्थियों के लिए अंतिम वर्ष में एक समान राष्ट्रीय एग्जिट टेस्ट का प्रस्ताव रखता है जिससे उन्हें प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिलेगा। इसके अतिरिक्त सभी मेडिकल संस्थानों में भारतीय चिकित्सा प्रणाली के प्रत्येक विषय में पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स में प्रवेश के लिए अलग से परीक्षा ली जाएगी, जिसे पोस्ट-ग्रैजुएट नेशनल एंट्रेंस टेस्ट कहा जाएगा।
     
  • बिल भारतीय चिकित्सा प्रणाली के प्रत्येक विषय में उन पोस्ट-ग्रैजुएट विद्यार्थियों के लिए नेशनल टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट का प्रस्ताव भी रखता है जो उस खास विषय में शिक्षण को अपना पेशा बनाना चाहते हैं।

 

 

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