मंत्रालय: 
विधि एवं न्याय

अध्यादेश की मुख्‍य विशेषताएं

  • अध्यादेश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) एक्ट, 1991 में संशोधन करता है। यह दिल्ली विधानसभा की विधायी क्षमता से सेवाओं को हटाता है।
  • यह राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण की स्थापना करता है, जिसमें मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव, दिल्ली के प्रधान गृह सचिव शामिल हैं। प्राधिकरण अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग और अनुशासनात्मक मामलों के संबंध में उपराज्यपाल (एलजी) को सुझाव देगा।
  • अध्यादेश एलजी को राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण और दिल्ली विधानसभा को बुलाने, स्थगित करने और भंग करने सहित कई मामलों पर अपने विवेक का प्रयोग करने का अधिकार देता है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • अध्यादेश "सेवाओं" को दिल्ली विधानसभा के दायरे से बाहर करता है। सवाल यह है कि क्या अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन के बिना ऐसा बदलाव किया जा सकता है।
  • "सेवाओं" को विधानसभा के दायरे से बाहर करने से जवाबदेही की त्रिपक्षीय श्रृंखला टूट सकती है जो लोक सेवाओं, मंत्रियों, विधायिका और नागरिकों को जोड़ती है। यह संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है, जो मूलभूत संरचना के सिद्धांत का एक हिस्सा है।
  • कई मामलों में एलजी को पूर्ण विवेकाधिकार दिया गया है, जिसमें यह भी शामिल है कि विधानसभा कब बुलाई जाए। इसके यह मायने हैं कि मुख्यमंत्री अनिवार्य सरकारी काम के लिए जरूरी सत्र बुलाने में असमर्थ हो सकते हैं।

भाग क : अध्यादेश की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) राष्ट्रपति या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक द्वारा प्रत्यक्ष रूप से शासित होते हैं।[1]  हालांकि दिल्ली और पद्दूचेरी एक विधानमंडल और मंत्रिपरिषद वाले केंद्र शासित प्रदेश हैं।[2],[3] दिल्ली विधानसभा के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर, राज्य सूची और समवर्ती सूची के तहत आने वाले विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है।[4]  दिल्ली सरकार के पास समान विषयों पर कार्यकारी शक्तियां हैं। इसके अलावा संसद के पास भी राज्य और समवर्ती सूची के उन विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है, जो दिल्ली से संबंधित हैं। उपराज्यपाल (एलजी) को दिल्ली के प्रशासक के रूप में नामित किया गया है, जो दिल्ली के मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से काम करते हैं।[5]  राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) एक्ट, 1991 दिल्ली विधानसभा और दिल्ली सरकार के कामकाज के लिए रूपरेखा तैयार करता है।[6] यह विधानसभा की शक्तियों, एलजी की विवेकाधीन शक्तियों और एलजी को जानकारी प्रदान करने के मुख्यमंत्री के कर्तव्य को रेखांकित करता है।

दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच सत्ता के बंटवारे का सवाल कई मौकों पर सर्वोच्च न्यायालय में उठाया गया है।[7],[8],[9],[10]  मई 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच सेवाओं के नियंत्रण पर अपना फैसला सुनाया। न्यायालय के सामने सवाल यह था कि दिल्ली में सेवाओं और लोक सेवकों पर दिल्ली सरकार (निर्वाचित मुख्यमंत्री के नेतृत्व में) और उपराज्यपाल (केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त) में से किसका नियंत्रण होगा।

केंद्र सरकार ने दावा किया कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के कारण दिल्ली विधानसभा के पास सेवाओं पर कानून बनाने की शक्ति नहीं है। हालांकि दिल्ली सरकार ने इस विचार पर विरोध जताया। संविधान के तहत, सेवाएं राज्य सूची के अंतर्गत आती हैं।[11]  अदालत ने फैसला सुनाया कि दिल्ली में सेवाओं पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा। लेकिन उसके नियंत्रण में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि जैसे विषय नहीं होंगे जिन पर केंद्र सरकार के पास विशेष शक्तियां हैं। 2023 के इस फैसले ने 2018 के एक फैसले की भी पुष्टि की, जब सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि एलजी के पास स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्तियां नहीं हैं और वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह का पालन करने के लिए बाध्य हैं।8 अधिक जानकारी के लिए कृपया तालिका 1 देखें (पेज 4 पर)।

दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद 19 मई, 2023 को जीएनसीटीडी (संशोधन) अध्यादेश, 2023 को जारी किया गया। यह विधानसभा की विधायी क्षमता से सेवाओं को हटाने के लिए जीएनसीटीडी एक्ट, 1991 में संशोधन करता है। अध्यादेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है, जिसने याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी है।[12]   

मुख्य विशेषताएं

  • सेवाओं पर कानून बनाने की शक्तियां: अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि दिल्ली विधानसभा के पास 'सेवाओं' के विषय में कानून बनाने की शक्ति नहीं होगी, जो राज्य सूची के अंतर्गत आता है। सेवाओं में दिल्ली सरकार के कर्मचारियों की नियुक्ति और तबादले तथा विजिलेंस से संबंधित मामले शामिल हैं।
  • केंद्र सरकार सेवाओं में नियुक्त व्यक्तियों की सेवा शर्तों को अधिसूचित करेगी, जिसमें उनका कार्यकाल, योग्यता, वेतन, शक्तिंयां एवं कार्य और निलंबन शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण: अध्यादेश राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण की स्थापना करता है जोकि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) को सेवाओं से संबंधित मामलों पर सुझाव देगा। इनमें निम्नलिखित मामले शामिल हैं: (i) तबादले और तैनाती, (ii) विजिलेंस से संबंधित मामले, (iii) अनुशासनात्मक कार्यवाहियां, और (iv) अखिल भारतीय सेवाओं (भारतीय पुलिस सेवा को छोड़कर), और डीएएनआईसीएस के ग्रुप ए की अभियोजन स्वीकृति।
  • प्राधिकरण में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) अध्यक्ष के रूप में दिल्ली के मुख्यमंत्री, (ii) सदस्य सचिव के रूप में दिल्ली सरकार के प्रधान गृह सचिव, और (iii) सदस्य के रूप में दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव। केंद्र सरकार प्रधान सचिव और मुख्य सचिव, दोनों की नियुक्ति करेगी। प्राधिकरण के सभी निर्णय उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत के आधार पर लिए जाएंगे। एक बैठक के लिए कोरम दो व्यक्ति हैं।
  • लेफ्टिनेंट गवर्नर की शक्तियां: एक्ट के तहत ऐसे मामले, जिनमें एलजी अपने विवेक से कार्य कर सकते हैं, वे हैं: (i) दिल्ली विधानसभा की विधायी क्षमता के बाहर के मामले लेकिन जो एलजी को सौंपे गए हैं, या (ii) ऐसे मामले जहां उनसे कानून द्वारा अपने विवेक से कार्य करना या कोई न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्य करना अपेक्षित है। अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि ऐसे मामलों में एलजी अपने विवेक से कार्य करेंगे। अध्यादेश एलजी की विवेकाधीन भूमिका का दायरा बढ़ाता है, और उन्हें प्राधिकरण के सुझावों को मंजूरी देने या उन्हें पुनर्विचार के लिए वापस लौटाने की शक्तियां भी देता है। अगर एलजी और प्राधिकरण के विचारों में मतभेद होता है तो उस स्थिति में एलजी का निर्णय ही अंतिम होगा।
  • मंत्रियों द्वारा मामलों का निस्तारण: दिल्ली सरकार का कोई मंत्री अपने ध्यान में लाए गए मामलों के निपटान के संबंध में स्थायी आदेश जारी कर सकता है। आदेश संबंधित विभाग के सचिव के परामर्श से जारी किया जाना चाहिए। किसी भी आदेश को जारी करने से पहले कुछ मामलों को मुख्यमंत्री के माध्यम से एलजी को प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिन पर एलजी की राय ली जाएगी। इनमें निम्नलिखित को प्रभावित करने वाले प्रस्ताव शामिल हैं: (i) दिल्ली की शांति, (ii) दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार, सर्वोच्च न्यायालय, या अन्य राज्य सरकारों के बीच संबंध, (iii) विधानसभा को बुलाना, सत्रावसान और भंग करना, और (iv) वे मामले जिन पर एलजी को अपने विवेकाधिकार से आदेश देना है।
  • इसके अतिरिक्त संबंधित विभाग के सचिव को कुछ मामलों को एलजी, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के ध्यान में लाना चाहिए। इनमें ऐसे मामले शामिल हैं जो दिल्ली सरकार को केंद्र या किसी राज्य सरकार, सर्वोच्च न्यायालय या दिल्ली उच्च न्यायालय के साथ विवाद में ला सकते हैं।

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

अध्यादेश संविधान का उल्लंघन हो सकता है

अध्यादेश दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण में दो तरह से संशोधन करता है। सबसे पहले, अध्यादेश दिल्ली विधानसभा की विधायी क्षमता से सेवाओं को हटाता है। चूंकि दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियां विधानसभा की विधायी शक्तियों के समान हैं, इसलिए दिल्ली सरकार का सेवाओं पर नियंत्रण नहीं होगा।

[13]  दूसरा, अध्यादेश तीन सदस्यीय प्राधिकरण बनाता है जिसके पास दिल्ली में अधिकारियों के तबादलों को नियंत्रित करने की शक्ति होगी। प्राधिकरण के दो सदस्य (मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव) केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति हैं, और वास्तव में दिल्ली के मुख्यमंत्री को आउटवोट (यानी मतदान की स्थिति में अधिक वोट से पराजित) कर सकते हैं। अध्यादेश की ये विशेषताएं निम्नलिखित संवैधानिक मुद्दे उठाती हैं:

अध्यादेश दिल्ली विधानसभा की शक्तियों में संशोधन करता है जोकि संविधान में निर्दिष्ट हैं

संविधान के अनुच्छेद 239एए के अनुसार, दिल्ली विधानसभा के पास राज्य सूची और समवर्ती सूची के तहत आने वाले विषयों पर कानून बनाने की शक्तियां हैं। इनमें: (i) पुलिस, (ii) सार्वजनिक व्यवस्था, और (iii) भूमि जैसे विषय अपवाद हैं।4 संसद दिल्ली के संबंध में राज्य सूची के तहत आने वाले विषयों पर भी कानून बना सकती है, और राज्य के कानूनों के प्रतिकूल होने की स्थिति में ये कानून मान्य होंगे।[14]  अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि दिल्ली विधानसभा के पास 'सेवाओं' के विषय में कानून बनाने की शक्ति नहीं होगी, जो राज्य सूची के अंतर्गत आता है। ऐसा करने से, अध्यादेश प्रभावी रूप से उन विषयों का विस्तार करता है जिन पर दिल्ली विधानसभा कानून नहीं बना सकती है, और इसलिए यह संवैधानिक ढांचे को बदल सकता है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या संसद एक सामान्य कानून के माध्यम से संविधान में संशोधन कर सकती है। इसके अलावा संशोधन एक अध्यादेश के माध्यम से लाया गया है। संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत, एक संवैधानिक संशोधन की शुरुआत केवल संसद में बिल पेश करके ही की जा सकती है।[15] 

हालांकि संविधान संसद को यह अधिकार देता है कि वह ऐसे कानून बना सकती है जो दिल्ली विधानसभा की शक्तियों से संबंधित प्रावधानों को प्रभावी बनाएं या उसके पूरक हों।[16]  ऐसे कानून को संविधान में संशोधन नहीं माना जाएगा, भले ही वह संविधान के किसी प्रावधान में संशोधन करता हो या उसमें संशोधन करने का प्रभाव रखता हो।[17] सवाल यह है कि क्या दिल्ली विधानसभा की शक्तियों को कम करना, प्रावधानों के "पूरक" बनने के समान होगा। यदि यह एक स्वीकार्य संशोधन है, तो इसका अर्थ यह है कि संसद का एक सामान्य कानून पूरी राज्य सूची को दिल्ली विधानसभा के दायरे से बाहर कर सकता है। इससे दिल्ली विधानसभा और दिल्ली सरकार निरर्थक हो जाएगी।

केंद्र सरकार को दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण देने से मूलभूत संरचना का उल्लंघन हो सकता है

अगर यह बदलाव संवैधानिक संशोधन बिल के जरिए किया गया तो भी एक समस्या हो सकती है। चूंकि यह मूलभूत संरचना का उल्लंघन हो सकता है। "सेवाएं" राज्य सूची के अन्य विषयों जैसे स्वास्थ्य या बाज़ार मेलों से बहुत अलग हैं। अगर सरकार का सेवाओं पर नियंत्रण नहीं है, तो वह किसी भी क्षेत्र में कोई भी कार्यक्रम लागू नहीं कर सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय ने 2023 के हालिया फैसले में इस सिद्धांत को समझाया है।13 उसने कहा है कि लोकतांत्रिक सरकार जवाबदेही की त्रिपक्षीय श्रृंखला पर टिकी हुई है: (i) लोक सेवक मंत्रियों के प्रति जवाबदेह हैं, (ii) मंत्री विधायिका के प्रति जवाबदेह हैं, और (iii) विधायिका मतदाताओं के प्रति जवाबदेह है।13 उसने कहा कि लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को अपनी सरकार की सेवा में तैनात सरकारी अधिकारियों पर नियंत्रण रखने और उन्हें जवाबदेह बनाए रखने में सक्षम होना चाहिए।13  जवाबदेही की त्रिपक्षीय श्रृंखला की पहली कड़ी को तोड़कर, अध्यादेश संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के विपरीत हो सकता है। 

2018 के निर्णय में जिस सिद्धांत को समझाया गया था, 2023 का निर्णय उसी को दोहराता है। वह यह है कि मंत्री अपने संबंधित विभाग में सरकारी अधिकारियों द्वारा किए गए प्रत्येक कार्य के लिए विधायिका के समक्ष जिम्मेदारी लेते हैं।8 हालांकि अध्यादेश के तहत, दिल्ली के मंत्री नौकरशाही संबंधी विलंब के लिए अपने सरकारी अधिकारियों को जिम्मेदार नहीं ठहरा पाएंगे।

एलजी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए मजबूर नहीं हो सकते हैं  

अनुच्छेद 239एए के अनुसार, एलजी को अपने विवेक से कार्य करने के अलावा, मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा।5,8 जीएनसीटीडी कार्य संचालन नियम, 1993 में प्रावधान है कि किसी भी आदेश को जारी करने से पहले कुछ मामलों को मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के माध्यम से एलजी को प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिन पर एलजी की राय ली जाएगी।[18]  इन मामलों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) दिल्ली की शांति, (ii) दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार, सर्वोच्च न्यायालय, या अन्य राज्य सरकारों के बीच संबंध, और (iii) विधानसभा को बुलाना, सत्रावसान और भंग करना। अध्यादेश उल्लिखित मामलों का विस्तार करते हुए इसमें केंद्र सरकार के साथ दिल्ली सरकार के संबंधों को भी शामिल करता है। इसके अतिरिक्त यह एलजी की शक्तियों का विस्तार करता है क्योंकि अब इन मामलों में पर उनकी एकमात्र विवेकाधीन शक्ति होगी। अगर एलजी और मुख्यमंत्री के बीच मतभेद होता है तो एलजी की राय को प्राथमिकता दी जाएगी।

ये प्रावधान इस सिद्धांत का उल्लंघन कर सकते हैं कि एलजी उन मामलों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करेंगे जो मंत्रिपरिषद की कार्यकारी क्षमता के भीतर आते हैं। प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के 2018 के फैसले का भी खंडन करते हैं जिसमें कहा गया था कि निर्णय लेने की शक्ति निर्वाचित सरकार के पास है।8 

उदाहरण के लिए 1991 के एक्ट के तहत, एलजी के पास विधानसभा को बुलाने, स्थगित करने और भंग करने की शक्ति है।हालांकि वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य है क्योंकि यह कार्य उसके विवेकाधीन शक्तियों के अंतर्गत नहीं है। अध्यादेश एलजी को मंत्रिपरिषद के निर्णय को रद्द करने और इन मामलों पर एकमात्र विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति देता है। इसका मतलब यह है कि मुख्यमंत्री किसी भी जरूरी सरकारी कामकाज के लिए विधानसभा का सत्र नहीं बुला सकेंगा।

अध्यादेश में कुछ शब्द अस्पष्ट हैं

एलजी की एकमात्र विवेकाधीन शक्तियां

एक्ट के तहत, ऐसे मामले जहां एलजी अपने विवेक से कार्य कर सकते हैं, वे इस प्रकार हैं: (i) दिल्ली विधानसभा की विधायी क्षमता के बाहर के मामले लेकिन जो एलजी को सौंपे गए हैं, या (ii) ऐसे मामले जहां उनसे कानून द्वारा अपने विवेक से कार्य करना या कोई न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्य करना अपेक्षित है। अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि इन मामलों में एलजी स्वविवेक से कार्य करेंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि एलजी का 'स्वविवेक', 'विवेक' से कैसे भिन्न है।

एलजी के संज्ञान में लाए गए कुछ मामलों के मानदंड व्यापक हो सकते हैं

अध्यादेश के तहत संबंधित विभाग के सचिव को कुछ मामलों को एलजी, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के संज्ञान में लाना होगा। इनमें ऐसे मामले शामिल हैं जो दिल्ली सरकार को केंद्र या किसी राज्य सरकार, सर्वोच्च न्यायालय या दिल्ली उच्च न्यायालय के साथ विवाद में ला सकते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि किन मामलों को विवादास्पद माना जाएगा।

इसके अलावा यह प्रावधान विभाग के सचिवों को संबंधित मंत्री से परामर्श किए बिना कुछ मामलों को सीधे एलजी, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के पास लाने में सक्षम बनाता है। इससे नियंत्रण की सामान्य श्रृंखला टूट जाएगी क्योंकि मंत्रालय से संबंधित मुद्दों पर संबंधित मंत्री का कोई इनपुट नहीं होगा। यह कैबिनेट की सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत के भी खिलाफ जा सकता है।

तालिका 1:दिल्ली पर प्रमुख कानूनों और फैसलों का क्रम

वर्ष

घटनाक्रम

1956

  • राज्य पुनर्गठन एक्ट पारित किया गया। दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में वर्गीकृत किया गया।

1991-92

  • दिल्ली को विधानमंडल वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिए 69वां संवैधानिक संशोधन (अनुच्छेद 239एए) पारित किया गया।
  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) एक्ट, 1991 पारित किया गया।
  • 70वां संवैधानिक संशोधन पारित हो गया जिसमें यह प्रावधान था कि संसद के कुछ कानूनों (अनुच्छेद 239एए में संशोधन) को संविधान में संशोधन नहीं माना जाएगा।

2015

  • गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी की और दिल्ली विधानसभा से सेवाओं पर नियंत्रण छीना और एलजी को उसके संबंध में केंद्र सरकार के कार्यों का निर्वहन करने का अधिकार दे दिया।

2016

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि सेवाएं दिल्ली विधानसभा और कार्यपालिका के दायरे से बाहर हैं।

2018

  • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि एलजी को दिल्ली के मंत्रिपरिषद की "सहायता और सलाह" पर कार्य करना चाहिए।

2019

  • दो न्यायाधीशों की पीठ ने सेवाओं के मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए खंडित फैसला दिया।

2021

  • केंद्र सरकार ने जीएनसीटीडी एक्ट, 1991 में संशोधन किया, उन मामलों की सूची का विस्तार किया जिनमें एलजी की राय अनिवार्य थी। संशोधन में बताया गया कि एलजी किस प्रकृति के बिल्स को राष्ट्रपति को भेज सकते हैं।

2023

  • सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को दिया।
  • केंद्र सरकार ने दिल्ली विधानमंडल के दायरे से "सेवाओं" को बाहर करते हुए जीएनसीटीडी एक्ट, 1991 में संशोधन के लिए एक अध्यादेश जारी किया।

स्रोत: राज्य पुनर्गठन एक्ट, 1956, संविधान (साठवां संशोधन) एक्ट, 1991, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार एक्ट, 1991, संविधान (सत्तरवां संशोधन) एक्ट, 1992, एस.ओ. 1368(ई), अधिसूचना, गृह मंत्रालय, 26 मई 2015, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 5888/2015 राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ, 2016, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार एक्ट (संशोधन) एक्ट, 2021, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार एक्ट (संशोधन) अध्यादेश, 2023, एनसीटी दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (2018), एनसीटी दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (2023); पीआरएस।

 

[1]. Article 239, The Constitution of India.

[2]. Clause 2(a), Article 239AA, The Constitution of India.

[3]. Article 239 A, The Constitution of India.

[4]. Clause 3(a), Article 239AA, The Constitution of India.

[5]. Clause 4, Article 239AA, The Constitution of India

[7]. Writ Petition (civil), No. 7887 of 2015, Rajendra Prasad vs Govt of NCTD, Delhi High Court, August 4, 2016.

[8]. Civil Appeal No 2357 of 2017, Government of NCT of Delhi vs Union of India, Supreme Court, July 04, 2018.

[9]. Civil Appeal No 2357 of 2017, Government of NCT of Delhi vs Union of India, Supreme Court, February 14, 2019.

[10]. Civil Appeal No 2357 of 2017, Government of NCT of Delhi vs Union of India, Supreme Court, May 06, 2022.

[11]. Entry 41, List II, Seventh Schedule, The Constitution of India.

[13]. Civil Appeal No 2357 of 2017, Government of NCT of Delhi vs Union of India, Supreme Court, May 11, 2023.

[14]. Clause 3(c), Article 239AA, The Constitution of India.

[15]. Article 368, The Constitution of India.

[16]. Clause 7(a), Article 239AA, The Constitution of India.

[17]. Clause 7(b), Article 239AA, The Constitution of India.

[18]. Rule 23, The Transaction of Business of the Government of National Capital Territory of Delhi Rules, 1993.

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