- विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान बिल, 2025 को 15 दिसंबर, 2025 को लोकसभा में पेश किया गया। इस बिल का उद्देश्य उच्च शिक्षा के लिए एक रेगुलेटरी निकाय की स्थापना करना है। यह निकाय निम्नलिखित मौजूदा निकायों का स्थान लेगा: (i) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), (ii) अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई), और (iii) राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई)। यह बिल इन निकायों के गठन से संबंधित तीन कानूनों को निरस्त करता है। कानूनी और चिकित्सा शिक्षा को बिल के दायरे से बाहर रखा गया है। इनका रेगुलेशन अलग-अलग कानूनों के तहत जारी रहेगा।
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विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान: बिल के तहत उच्च शिक्षा के लिए सर्वोच्च रेगुलेटरी निकाय के रूप में विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (आयोग) की स्थापना की गई है। आयोग में निम्नलिखित तीन परिषदें होंगी: (i) नियामक परिषद, जो उच्च शिक्षा के लिए एक सामान्य रेगुलेटर के रूप में कार्य करेगी, (ii) प्रत्यायन परिषद, जो प्रत्यायन, यानी एक्रेडेशन प्रणाली की देखरेख करेगी, और (iii) मानक परिषद, जो शैक्षणिक मानकों का निर्धारण करेगी। आयोग के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उच्च शिक्षा और अनुसंधान के लिए रणनीतिक दिशा प्रदान करना, (ii) उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआईज़) को बड़े बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों में बदलने के लिए एक रोडमैप विकसित करना, और (iii) शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए योजनाओं का सुझाव देना। आयोग समन्वय सुनिश्चित करने के लिए परिषदों को निर्देश दे सकता है। यह परिषदों के सुचारू संचालन के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान करेगा।
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वर्तमान में यूजीसी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान भी देता है। बिल के तहत, आयोग या उसकी परिषदों के पास उच्च शिक्षा संस्थानों के वित्तपोषण के संबंध में कोई अधिकार नहीं होंगे।
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परिषदों की संरचना: प्रत्येक परिषद का नेतृत्व एक अध्यक्ष करेगा और परिषद में अधिकतम 14 सदस्य होंगे। परिषदों के अध्यक्ष उच्च शिक्षा या अनुसंधान के क्षेत्र में प्रतिष्ठित और प्रख्यात व्यक्ति होंगे और उनके पास कम से कम 10 वर्षों का प्रोफेसर के समकक्ष अनुभव होना अनिवार्य है। परिषदों के सदस्यों में प्रख्यात विशेषज्ञ, केंद्रीय उच्च शिक्षा विभाग द्वारा नामित एक सदस्य और अन्य दो परिषदों द्वारा नामित सदस्य शामिल होंगे। नियामक परिषद और मानक परिषद में राज्य सरकारों द्वारा बारी-बारी से एक-एक नामित सदस्य भी शामिल होंगे।
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परिषद के अध्यक्षों और पूर्णकालिक सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक खोज एवं चयन समिति की अनुशंसाओं के आधार पर की जाएगी। समिति में दो प्रख्यात विशेषज्ञ और केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा सचिव शामिल होंगे। प्रख्यात विशेषज्ञों में से एक समिति का नेतृत्व करेगा।
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आयोग की संरचना: आयोग में एक अध्यक्ष और 12 सदस्य होंगे। अध्यक्ष एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होंगे जिनकी नियुक्ति मानद क्षमता में की जाएगी। आयोग के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) तीनों परिषदों के अध्यक्ष, (ii) केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा सचिव, (iii) पांच प्रख्यात विशेषज्ञ, और (iv) राज्य के उच्च शिक्षा संस्थानों के दो प्रख्यात शिक्षाविद। अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार की अनुशंसाओं पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
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सेवा की शर्तें: आयोग के अध्यक्ष और परिषदों के अध्यक्षों की नियुक्ति प्रारंभ में तीन वर्ष की अवधि के लिए की जाएगी, जिसे पांच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। आयोग और परिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति तीन वर्ष के लिए की जाएगी। ये सभी सदस्य एक और कार्यकाल के लिए पुनर्नियुक्ति के पात्र होंगे। इसके अतिरिक्त, आयोग के अध्यक्ष को छोड़कर सभी मामलों में आयु सीमा 70 वर्ष होगी। राज्य सरकारों द्वारा नियामक एवं मानक परिषदों के लिए नामित व्यक्तियों की नियुक्ति एक वर्ष की अवधि के लिए की जाएगी। केंद्र सरकार वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें निर्धारित करेगी।
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उच्च शिक्षा संस्थानों पर दंड: नियामक परिषद कानून के उल्लंघन के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों पर दंड लगा सकती है। दंड 10 लाख रुपए से 70 लाख रुपए तक हो सकता है। नियामक परिषद केंद्र या राज्य सरकारों को निम्नलिखित सुझाव भी दे सकती है: (i) दोषी व्यक्ति को नौकरी से हटाना, (ii) उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता के स्तर की समीक्षा और संशोधन करना, (iii) अनुदान रोकना, (iv) डिग्री प्रदान करने के अधिकार में संशोधन करना, (v) संबद्धता रद्द करना, या (vi) उच्च शिक्षा संस्थान को बंद करने का आदेश देना। पूर्व अनुमति के बिना विश्वविद्यालय की स्थापना कम से कम दो करोड़ रुपए से दंडनीय होगी। नियामक परिषद केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित तरीके से एक अधिनिर्णय (एडजुडिकेटरी) तंत्र स्थापित करेगी।
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अपील: केंद्र सरकार के समक्ष आयोग और परिषदों के निर्णयों के विरुद्ध अपील दायर की जा सकेगी।
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