महिलाओं और बच्चों के लिए राज्य स्तरीय पहल की कमी को दूर करने और उनके कल्याण हेतु न्यायसंगत कानून, नीतियों और कार्यक्रमों के निर्माण के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का गठन किया गया था।[1] यह महिलाओं और बच्चों के विकास के लिए नोडल मंत्रालय है। इसके तहत कल्याण सेवाएं, लैंगिक संवेदीकरण और रोजगार सृजन हेतु महिलाओं को प्रशिक्षण जैसी पहल शामिल हैं। मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे कई कार्यक्रम स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास और महिलाओं की सुरक्षा के क्षेत्रों में विकासात्मक कार्यक्रमों के पूरक की भूमिका निभाते हैं।
इस नोट में 2023-24 के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रस्तवित व्यय, वित्तीय रुझानों और मंत्रालय की योजनाओं एवं कार्यक्रमों से संबंधित मुद्दों की समीक्षा की गई है।
2023-24 में वित्तीय आवंटन
2023-24 में मंत्रालय को 25,449 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 6% अधिक है।[2] मंत्रालय के कुल व्यय का लगभग 99.8% राजस्व व्यय है।
तालिका 1: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए बजट आवंटन (करोड़ रुपये में)
2021-22 वास्तविक |
2022-23 संअ |
2023 24 बअ |
22-23 संअ की तुलना में 23024 बअ में परिवर्तन का % |
|
राजस्व |
21,655 |
23,911 |
25,444 |
6% |
पूंजी |
- |
2 |
5 |
154% |
कुल |
21,655 |
23,913 |
25,449 |
6% |
नोट: BE- बजट अनुमान; RE- संशोधित अनुमान
स्रोत: मांग संख्या 101, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, केंद्रीय बजट 2023-24; पीआरएस।
रेखाचित्र 1: विभिन्न वर्षों में व्यय (करोड़ रुपये में)
नोट: 2022-23 के लिए व्यय संशोधित अनुमान है और 2023-24 के लिए बजट अनुमान। अन्य सभी वर्ष के लिए वास्तविक व्यय हैं।
स्रोत: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, विभिन्न वर्षों के लिए अनुदान मांग; पीआरएस।
2016-17 और 2021-22 के बीच, मंत्रालय द्वारा वास्तविक व्यय 4.2% की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा है।
अनेक वर्षों से धनराशि का पूरा उपयोग नहीं हो रहा
2016-22 और 2021-22 के बीच सभी वर्षों में, मंत्रालय द्वारा वास्तविक व्यय मांग से कम था (रेखाचित्र 2)। उदाहरण के लिए, 2019-20 में मंत्रालय को 29,165 करोड़ रुपये आवंटित किए गए और वित्तीय वर्ष में 23,165 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया। बजटीय अनुमानों और वास्तविक व्यय में 6,000 करोड़ रुपये का अंतर वर्ष के लिए अप्रयुक्त धन का 21% है।[3] 2016-17 और 2020-21 के बीच, यह स्थिति बदतर हुई। महिलाओं और बच्चों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा कि धनराशि का कम इस्तेमाल या तो खराब वित्तीय योजना का संकेत देता है या योजना, कार्यान्वयन और निगरानी की कमी का।3 यह कहा गया कि कोविड-19 महामारी के कारण 2020-21 में धनराशि के पूरा उपयोग न हो पाने को आंशिक रूप से समझा जा सकता है। कमिटी ने मंत्रालय से उचित वित्तीय योजना बनाने और योजनाओं के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की सिफारिश की।
रेखाचित्र 2: धनराशि का उपयोग न होना
नोट: 2022-23 के आंकड़े संशोधित अनुमान हैं।
स्रोत: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय 2017-18 और 2023-24 के बीच अनुदान मांग; पीआरएस।
केंद्रीय बजट में मंत्रालय के आवंटन का हिस्सा कई वर्षों से कम हो रहा है
मानव संसाधन विकास संबंधी स्टैंडिंग (2020) ने कहा कि केंद्रीय बजट में मंत्रालय के आवंटन का हिस्सा पिछले पांच वर्षों में लगभग 1% पर अपरिवर्तित रहा है।[4] कमिटी ने कहा कि ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में महिलाएं और बच्चे अभी भी मानव और सामाजिक विकास में पीछे हैं। मंत्रालय यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुंच हो। इसलिए केंद्रीय बजट में मंत्रालय का हिस्सा बढ़ाया जाना चाहिए। कमिटी की रिपोर्ट के बाद से बजट में मंत्रालय की हिस्सेदारी घट गई है। 2023-24 में मंत्रालय को आवंटन कुल केंद्रीय बजट का 0.6% है। 2022-23 से मंत्रालय का आवंटन कुल केंद्रीय बजट का 0.6% रहा है।
रेखाचित्र 3: केंद्रीय बजट के प्रतिशत के रूप में मंत्रालय का बजट आवंटन
स्रोत: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय 2015-16 और 2023-24 के बीच अनुदान मांग, 2015-16 और 2023-24 के बीच केंद्रीय बजट दस्तावेज; पीआरएस।
मुख्य योजनाओं के लिए आवंटन
मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही योजनाओं को 2021-22 में रैशनलाइज किया गया। पूर्ववर्ती अंब्रेला आईसीडीएस और महिलाओं के संरक्षण और सशक्तीकरण मिशन के घटकों को शामिल करने के लिए नई योजनाएं शुरू की गई हैं। विवरण के लिए, अनुबंध में तालिका 7 देखें। 2023-24 में मंत्रालय के कुल आवंटन का लगभग 99% तीन केंद्र प्रायोजित योजनाओं के बीच वितरित किया गया था। मंत्रालय का लगभग 81% आवंटन सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 योजना के लिए है, इसके बाद मिशन शक्ति (12%) आती है। 2022-23 में मंत्रालय के आवंटन का लगभग 6% मिशन वात्सल्य योजना के लिए है। राष्ट्रीय महिला आयोग, केंद्रीय दत्तक ग्रहण एजेंसी और बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग जैसे स्वायत्त निकायों के बीच लगभग 258 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। मंत्रालय के तहत प्रमुख योजनाओं की स्थिति को जानने के लिए तालिका 2 देखें।
तालिका 2: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत प्रमुख योजनाएं (करोड़ रुपये में)
मुख्य मद |
2021-22 वास्तविक |
2022-23 संअ |
2023 24 बअ |
22-23 संअ की तुलना में 23024 बअ में परिवर्तन का % |
सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 |
18,382 |
20,263 |
20,554 |
1% |
मिशन शक्ति |
1,912 |
2,280 |
3,144 |
38% |
मिशन वात्सल्य |
761 |
1,100 |
1,472 |
34% |
अन्य* |
99 |
250 |
258 |
3.5% |
महिलाओं के संरक्षण और अधिकारिता के लिए मिशन |
500 |
20 |
20 |
- |
कुल |
21,655 |
23,913 |
25,449 |
6.4% |
नोट: अन्य* में स्वायत्त निकायों जैसे कि राष्ट्रीय महिला आयोग, केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसी, और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में हस्तांतरण शामिल हैं।
स्रोत: मांग संख्या 101, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, केंद्रीय बजट 2023-24; पीआरएस।
व्यय के मुख्य क्षेत्र
सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0
सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 एक एकीकृत पोषण सहायता कार्यक्रम है।[5] यह योजना बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण की चुनौतियों को हल करने का प्रयास करती है। आंगनवाड़ी सेवाओं की योजनाओं, किशोरियों के लिए योजना, और पोषण अभियान को इसके तहत पुनर्गठित किया गया है ताकि अधिकतम पोषाहार परिणाम प्राप्त किए जा सकें। यह योजना तीन प्राथमिक कार्यक्षेत्रों को संबोधित करने के लिए गठित की गई है: (i) महिलाओं, बच्चों और किशोरियों को पोषण संबंधी सहायता, (ii) प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (3-6 वर्ष), और (iii) आंगनवाड़ियों का आधुनिकीकरण और उनका बुनियादी ढांचा। पोषण 2. में माताओं के पोषण, शिशु और छोटे बच्चों के आहार के मानदंडों, मध्यम तीव्र कुपोषण (एमएएम)/गंभीर तीव्र कुपोषण (एसएएम) के उपचार और आयुष के माध्यम से कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। 2023-24 में योजना को 20,554 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे जिसमें 2022-23 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 1% की वृद्धि है। यह योजना कुल केंद्रीय बजट का 0.5% है।
सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 के लिए आवंटन इसमें शामिल योजनाओं की तुलना में कम है
सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 में जिन योजनाओं को शामिल किया गया है, उनके लिए पिछले वर्षों में बजट आवंटन अधिक था, जबकि 2021-22 और 2022-23 में इन दो नई योजनाओं के लिए आवंटन कम है (रेखाचित्र 4)। 2023-24 में योजना को 25,449 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जोकि 2022-23 के संशोधित अनुमान (23,913 करोड़ रुपये) से 6% अधिक है।
रेखाचित्र 4: सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 में शामिल घटकों की तुलना में इन नई योजनाओं का आवंटन (करोड़ रुपये में)
नोट: 2022-23 के आंकड़े संशोधित अनुमान हैं। 2017-18 से 2020-21 तक, तीन योजनाओं के लिए इनसे आंकड़े लिए गए हैं- (i) आंगनवाड़ी सेवाएं (पूर्ववर्ती कोर आईसीडीएस), (ii) राष्ट्रीय पोषण मिशन (आईएसएसएनआईपी सहित), (iii) किशोरियों के लिए योजना। 2021-22 से, इन तीन योजनाओं को सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 योजना के तहत नया रूप दिया गया। 2021-22 में राष्ट्रीय क्रेच योजना को अंब्रेला योजना के तहत शामिल किया गया, उस वर्ष के आंकड़ों में राष्ट्रीय क्रेच योजना शामिल है।
स्रोत: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय विभिन्न वर्षों के लिए अनुदान मांग; पीआरएस।
आंगनवाड़ी सेवाएं: (i) बच्चों (6 वर्ष तक) के पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार करती हैं, और (ii) मृत्यु दर, रुग्णता, कुपोषण और स्कूल छोड़ने वाले मामलों को कम करती हैं। आंगनवाड़ी केंद्र (एडब्ल्यूसी) जन कल्याणकारी सेवाएं प्रदान करते हैं जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) टीकाकरण, (ii) पूरक पोषण, (iii) पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, और (iv) स्वास्थ्य जांच। एडब्ल्यूसी में प्रदान की जाने वाली सुविधाएं हैं: (i) पूरक पोषण, (ii) स्कूल पूर्व गैर-औपचारिक शिक्षा, (iii) पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, (iv) टीकाकरण, (v) स्वास्थ्य जांच, और (vi) स्वास्थ्य रेफरल सेवाएं।[6]
ढांचागत कमियां
महिला और बाल विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण में सुधार हेतु आंगनवाड़ी केंद्रों की केंद्रीय भूमिका होती है।3 उसने कहा है कि आंगनवाड़ी केंद्रों में पर्याप्त सुविधाओं के अभाव से निम्न आय वाले परिवार प्रभावित होते हैं क्योंकि उन्हें ऐसे विकल्पों को चुनना पड़ता है जहां उन्हें भुगतान करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट (2019) में कहा गया है कि आंगनवाड़ी केंद्रों में ढांचागत कमियां थी और बुनियादी सुविधाओं जैसे पेयजल, शौचालय, बिजली और आवश्यक दवाओं का अभाव था।[7]
मार्च 2019 तक, 5,915 आंगनवाड़ी केंद्रों के निर्माण को पूरा करने में देरी हुई और 1,487 आंगनवाड़ी केंद्रों की हालत जीर्ण-शीर्ण थी, इसलिए उनका इस्तेमाल ही नहीं किया जा रहा था।7 2021-2022 में नौ राज्यों में दो-तिहाई से भी कम आंगनवाड़ी केंद्रों में शौचालय थे। अरुणाचल प्रदेश में तो सिर्फ 7% आंगनवाड़ी केंद्रों में शौचालय की सुविधा है (विवरण के लिए, अनुलग्नक में तालिका 10 देखें)।[8] मंत्रालय ने कमिटी से कहा कि वह सर्वोत्तम कार्यपद्धतियों के संबंध में जानकारी एकत्र करने के लिए देश भर में क्षेत्रीय बैठकें आयोजित कर रहा है।[9] कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह आंगनवाड़ी केंद्रों के बुनियादी ढांचे के विकास और क्षमता निर्माण की दिशा में राज्यों के परामर्श से एक खाका तैयार करे।9 वित्त पोषण के वैकल्पिक स्रोतों को जुटाने के लिए मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया कि राज्य आंगनवाड़ी केंद्रों के निर्माण के लिए किसी बाध्यता के बिना, प्रो-बोनो आधार पर व्यक्तियों, कंपनियों और सीएसआर फंड को पूरी तरह से शामिल कर सकते हैं।9
रेखाचित्र 5: मूलभूत सुविधाओं से रहित आंगनवाड़ी केंद्र (% में)
नोट: *जून 2021 तक।
स्रोत: रिपोर्ट संख्या 338: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की अनुदान मांग 2022-23, शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी, 16 मार्च, 2022; पीआरएस।
आंगनबाड़ी वर्कर्स और हेल्पर्स का मानदेय:
आंगनवाड़ी सेवा योजना में आंगनवाड़ी वर्कर्स (एडब्ल्यूडब्ल्यू) और आंगनवाड़ी हेल्पर्स (एडब्ल्यूएच) को स्थानीय समुदाय से 'मानद कार्यकर्ताओं' के रूप में शामिल किया गया है, जो अंशकालिक आधार पर अपनी सेवाएं देती हैं।3 केंद्र और राज्य सरकारों के बीच निर्धारित लागत साझाकरण अनुपात एडब्ल्यूडब्ल्यू और एडब्ल्यूएच को दिए जाने वाले मानदेय के लिए: (i) राज्यों/विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 60:40, (ii) उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों के लिए 90:10, और (iii) बिना विधायिका वाले केंद्रशासित प्रदेशों के लिए केंद्र द्वारा पूरी तरह से भुगतान किया जाता है।[10] सितंबर 2018 में केंद्र सरकार ने आंगनवाड़ी वर्कर्स और आंगनबाड़ी हेल्पर्स के मानदेय में बढ़ोतरी की (तालिका 3 देखें)।[11] प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन भी आंगनवाड़ी वर्कर्स को 500 रुपये और आंगनवाड़ी हेल्पर्स को 250 रुपये प्रति माह के हिसाब से दिया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्य अपने स्वयं के संसाधनों से अतिरिक्त मौद्रिक प्रोत्साहन/मानदेय भी देते हैं।[12] उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश, मार्च 2022 तक आंगनवाड़ी वर्कर्स को 7,000 रुपये और आंगनवाड़ी हेल्पर्स को 3,500 रुपये का अतिरिक्त मौद्रिक प्रोत्साहन देता है।[13] दिसंबर 2022 की स्थिति के अनुसार आंगनवाड़ी वर्कर्स एवं आंगनवाड़ी हेल्पर्स के मानदेय में वृद्धि पर विचार करने का कोई प्रावधान नहीं है।12
शिक्षा, महिला, बाल युवा और खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने मंत्रालय को मानदेय में बढ़ोतरी करने का सुझाव दिया ताकि उन्हें बेहतर सेवा शर्तें प्रदान की जा सकें।[14]
तालिका 3: सितंबर, 2018 के अनुसार आंगनवाड़ी वर्कर्स और आंगनवाड़ी हेल्पर्स के मानदेय में वृद्धि (रुपये प्रति माह में)
मौजूदा |
संशोधित |
|
प्रमुख आंगनवाड़ी में आंगनवाड़ी वर्कर्स |
3,000 |
4,500 |
प्रमुख आंगनवाड़ी में आंगनवाड़ी वर्कर्स |
2,250 |
3,500 |
आंगनवाड़ी हेल्पर्स |
1,500 |
2,250 |
स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 3992, राज्यसभा, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, 06 अप्रैल, 2022; पीआरएस।
आंगनवाड़ी केंद्रों में कुछ पदों के लिए सबसे ज्यादा रिक्तियां:
मार्च 2021 तक राष्ट्रीय स्तर पर 31% बाल विकास परियोजना अधिकारियों के पद रिक्त थे। मानव संसाधन विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2018) ने कहा था कि आंगनवाड़ी केंद्रों में कर्मचारियों और प्रमुख पदाधिकारियों की उपलब्धता निरंतर चिंता का विषय रहा है।[15] रिक्ति के विषय पर मंत्रालय ने कहा कि कर्मचारियों की भर्ती राज्यों द्वारा की जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को इस मामले पर राज्यों से बात करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रिक्तियों को जल्द से जल्द भरा जाए।
रेखाचित्र 6: आंगनवाड़ी केंद्रों में रिक्तियां (31 मार्च, 2021 तक)
स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 3068, लोकसभा, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, 6 अगस्त, 2021; पीआरएस।
पोषण 2.0 के तहत धन का कम उपयोग
पोषण 2.0 के तहत पोषण अभियान आउटरीच का प्रमुख आधार है। इसमें पोषण, आईसीटी संबंधी पहल, मीडिया एडवोकेसी और अनुसंधान, सामुदायिक आउटरीच, और जन आंदोलन से संबंधित इनोवेशंस शामिल हैं।18 केंद्र और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के बीच लागत साझाकरण अनुपात निम्नलिखित है: (i) राज्यों/ विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 60:40, (ii) उत्तर पूर्वी और हिमालयी राज्यों और जम्मू एवं कश्मीर के लिए 90:10, और (iii) विधायिका के बिना केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 100%। जिन राज्यों में धनराशि का सबसे कम उपयोग किया गया, वे हैं: (i) पंजाब (34%), (ii) उत्तर प्रदेश (34%), (iii) राजस्थान (43%), और (iv) ओडिशा (46%) (अधिक विवरण के लिए अनुलग्नक की तालिका 8 देखें)।
2017-18 से मंत्रालय ने पोषण अभियान के तहत 5,403 करोड़ रुपये जारी किए हैं। इसमें से 34% धनराशि (3,573 करोड़ रुपये) का उपयोग नहीं किया गया है।18 कुल आवंटन का लगभग 17% स्मार्टफोन की खरीद पर खर्च किया गया है।[16]
इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों में पोषण अभियान के तहत राज्यों को धन के आवंटन में गिरावट आई है। नीति आयोग की रिपोर्ट (2021) में पाया गया कि 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में आधी से भी कम धनराशि का उपयोग किया गया था।[17] जिन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मोबाइल फोन और विकास निगरानी उपकरणों के कम वितरण किया गया, वहां धनराशि का उपयोग कम किया गया।
10 फरवरी, 2023 तक मंत्रालय ने वर्ष 2022-23 के लिए योजना के तहत धनराशि जारी नहीं की है।[18]
कुछ राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में बच्चों में कुपोषण बढ़ा है
शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा कि कुपोषण की चुनौतियों का समाधान करने में मिशन पोषण 2.0 का प्रभावी कार्यान्वयन अत्यंत महत्वपूर्ण है।3 कमिटी ने कहा कि 2015-16 और 2019-20 के बीच 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के बच्चों में कुपोषण काफी बढ़ गया है।[19] बच्चों में कुपोषण के स्थर को मापने के प्रमुख संकेतकों में निम्नलिखित समूह (पांच वर्ष से कम) शामिल हैं: (i) स्टंटेड (अपनी आयु के हिसाब से कम कद), (ii) वेस्टेड (अपने कद के मुकाबले कम वजन), और (iii) अंडरवेट। 22 में से 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का मूल्यांकन किया गया और उनमें 2015-16 और 2019-20 के बीच बच्चों में स्टंटिंग में वृद्धि दर्ज की गई। जिन राज्यों में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, वे हैं, गुजरात, केरल, लक्षद्वीप, नागालैंड और त्रिपुरा (बच्चों में कुपोषण पर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश-वार विवरण के लिए अनुलग्नक में तालिका 11 देखें)।
पोषण अभियान का एक लक्ष्य 2022 तक 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों में स्टंटिंग को 38% से कम करके 25% तक करना है।3 राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2022) के अनुसार, पांच वर्ष की आयु तक के 36% बच्चे स्टंटेड हैं।[20] सर्वेक्षण में यह भी कहा गया कि स्टंटिंग बच्चों में गंभीर कुपोषण का संकेत था।
रेखाचित्र 7: बच्चे (0-5 वर्ष की आयु) के कुपोषण के प्रमुख संकेतक (2019-21)
स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21); पीआरएस।
महिलाओं और बच्चों में एनीमिया बढ़ रहा है
एनीमिया वह स्थिति होती है जब खून में हीमोग्लोबिन के स्तर कम होता है।20 आयरन हीमोग्लोबिन का मुख्य घटक होता है और विश्व स्तर पर एनीमिया के आधे से अधिक मामलों में आयरन की कमी ही जिम्मेदार होती है। बच्चों में एनीमिया उनके ज्ञान संबंधी और शारीरिक विकास को बाधित कर सकता है और संक्रामक रोगों की स्थिति में रुग्णता को बढ़ाता है।
2015-16 और 2019-21 के बीच महिलाओं और बच्चों में एनीमिया के स्तर में औसतन 8% की वृद्धि हुई थी।20 2015-16 और 2019-21 के बीच महिलाओं और बच्चों के विभिन्न समूहों में एनीमिया में वृद्धि देखी गई है। उदाहरण के लिए, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया में 14.5% की वृद्धि हुई है (तालिका 4 देखें)। शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा कि बच्चों और महिलाओं में कुपोषण और अन्य संबंधित समस्याओं के फैलाव के आधार पर पोषण 2.0 के असर का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।4
तालिका 4: महिलाओं और बच्चों में एनीमिया (% में)
लक्ष्य |
एनएचएफएस-4 2015-16 |
एनएचएफएस-5 2019-21 |
एनीमिया के स्तर में परिवर्तन का % |
5 वर्ष से कम आयु के बच्चे |
58.6 |
67.1 |
14.5% |
महिलाएं, जो गर्भवती नहीं (15-49 वर्ष) |
53.2 |
57.2 |
7.5% |
गर्भवती महिलाएं (15-49 वर्ष) |
50.4 |
52.2 |
3.6% |
सभी महिलाएं (15-19 वर्ष) |
54.1 |
59.1 |
9.2% |
सभी महिलाएं (15-49 वर्ष) |
53.1 |
57.0 |
7.3% |
स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21); पीआरएस।
बच्चों (6-59 महीने की आयु) में एनीमिया सबसे अधिक गुजरात (80%) में था, इसके बाद मध्य प्रदेश (73%), राजस्थान (72%), और पंजाब (71%) थे।20 छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा, गुजरात, झारखंड, असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में महिलाओं में एनीमिया 60% या उससे अधिक था। महिलाओं और बच्चों में एनीमिया पर राज्यवार विवरण के लिए अनुलग्नक में तालिका 9 और 10 देखें।
मंत्रालय ने 2018 में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण से निपटने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए थे (तालिका 5 देखें)।
तालिका 5: पोषण अभियान के तहत लक्ष्य
श्रेणी |
लक्ष्य |
एनएफएचएस-4 2015-16 (% में) |
एनएफएचएस -5 2019-21 (% में) |
परिवर्तन का % |
बच्चों में स्टंटिंग (0-6 वर्ष) * |
2% प्रति वर्ष |
38.4* |
35.5* |
2.9 |
बच्चों में अंडरवेट (0-6 वर्ष)* |
2% प्रति वर्ष |
35.8* |
32.1* |
3.7 |
बच्चों में एनीमिया (6-59 महीने) |
3% प्रति वर्ष |
58.6 |
67.1 |
8.5 |
महिलाओं में एनीमिया (15-49 वर्ष) |
3% प्रति वर्ष |
53.1 |
57.0 |
3.9 |
नोट: *पांच साल से कम उम्र के बच्चों के आंकड़े।
स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 663, लोकसभा, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, 09 दिसंबर, 2022; पीआरएस।
मिशन वात्सल्य
मिशन वात्सल्य एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो निम्नलिखित का प्रावधान करती है: (i) बच्चों के लिए घरों में सहायता, (ii) देखभाल की आवश्यकता वाले बच्चों और कानून से संघर्षरत बच्चों के लिए किशोर न्याय, और (iii) सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए एकीकृत कार्यक्रम।[21] 2021 में पूर्ववर्ती बाल संरक्षण योजना को मिशन वात्सल्य में समाहित कर दिया गया।21 2023-24 में योजना को 1,472 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जो 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 34% अधिक है।
बाल देखभाल संस्थानों में असमानता
मंत्रालय किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) एक्ट, 2015 को प्रशासित करता है।[22] 2015 का एक्ट उन बच्चों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करके, उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है जिन्हें सुरक्षा की जरूरत है, और कानून के साथ संघर्षरत बच्चों की बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करता ह। बुनियादी जरूरतों को इस प्रकार सूचीबद्ध किया गया है; (i) देखभाल सुरक्षा, (ii) विकास उपाय, (iii) सामाजिक पुन: एकीकरण। एक्ट के सेक्शन 106 के तहत, कानून के कार्यान्वयन का जिम्मा राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का है।[23] ऑबजर्वेशन होम्स सहित चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस (सीसीआई) में से प्रत्येक में 50 बच्चे, और उत्तरपूर्वी एवं हिमालयी राज्यों के प्रत्येक होम में 25 बच्चे रहते हैं।22 मिशन वात्सल्य के तहत 50 बच्चों वाले प्रत्येक सीसीआई में एक एजुकेटर, एक आर्ट्स कम म्यूजिक टीचर और एक पीटी इंस्ट्रक्टर के लिए मदद दी जाती है।22 2020-21 में कुल 77,615 लाभार्थी और 2,215 सीसीआई थे।3
मार्च 2022 तक ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में एक भी किशोर ऑबजर्वेशन होम नहीं था।22 चंडीगढ़ के अलावा किसी अन्य केंद्र शासित प्रदेश में कोई किशोर ऑबजर्वेशन होम नहीं था। इसके अलावा मानव संसाधन विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने कहा कि किशोर ऑबजर्वेशन होम्स में रहन-सहन की स्थिति पर्याप्त नहीं है। इसके निम्न कारण हैं: (i) अपर्याप्त जगह, (ii) खराब क्वालिटी वाले बाथरूम, (iii) मनोरंजक गतिविधियों की कमी, और (iv) प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी।
महिलाओं और बच्चों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022-23) ने प्रभावशाली बाल संरक्षण सेवाओं के लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय के लिए एक तंत्र विकसित करने का सुझाव दिया।3 इसके अतिरिक्त उसने संबंधित बच्चों को मुख्यधारा के समाज में एकीकृत करने के लिए कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को विकसित करने हेतु कौशल विकास मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय के साथ समन्वय का सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना के तहत मंत्रालय को राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को समय पर धनराशि जारी करना सुनिश्चित करना चाहिए।
मिशन शक्ति
मिशन शक्ति महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए एक अंब्रैला योजना है।[24] इस योजना की दो उप-योजनाएं हैं, संबल और सामर्थ्य। संबल महिलाओं की सुरक्षा के लिए है और इसमें वन स्टॉप सेंटर (ओएससी), महिला हेल्पलाइन, बेटी बचाओ बेटी पढाओ और नारी अदालत जैसे घटक हैं। सामर्थ्य का संबंध महिलाओं के सशक्तिकरण से है और इसमें प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, महिला अधिकारिता केंद्र, शक्ति सदन और सखी निवास जैसे घटक हैं। इस योजना के लिए 2021-22 से 2025-26 तक कुल 20,989 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 15,761 करोड़ रुपये है।24 2023-24 में मिशन शक्ति को 3,144 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
तालिका 6: मिशन शक्ति से संबंधित व्यय (करोड़ रुपये में)
उप योजनाएं |
2021-22 वास्तविक |
2022-23 संअ |
2023-24 बअ |
परिवर्तन का % (बअ 2023-24/ संअ 2022-23) |
संबल |
183 |
333 |
562 |
69% |
सामर्थ्य |
1,729 |
1,947 |
2,582 |
33% |
कुल |
1,912 |
2,280 |
3,144 |
38% |
स्रोत: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय 2023-24 के लिए अनुदान मांग; पीआरएस।
2016-17 से सभी वर्षों में मिशन शक्ति के तहत आवंटित धन का कम उपयोग किया गया है। 2021-22 में मिशन शक्ति के तहत बजटीय अनुमान और वास्तविक व्यय के बीच 36% का अंतर था। धनराशि के लगातार कम उपयोग होने के बावजूद 2022-23 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 2023-24 के बजटीय अनुमानों में 38% की वृद्धि हुई है।
बेटी बचाओ बेटी पढाओ के तहत धनराशि का कम उपयोग
महिला सशक्तीकरण संबंधी पर स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा कि 1961 से बाल लिंगानुपात (सीएसआर) में गिरावट गंभीर चिंता का विषय है।[25] सीएसआर 1961 में 976 से घटकर 2011 में 927 और 2011 में 919 हो गया। लिंगानुपात में गिरावट जीवन-चक्र की निरंतरता में महिलाओं की कमजोरी को इंगित करती है।.25 सीएसआर में गिरावट स्वास्थ्य, पोषण और शैक्षणिक अवसरों में महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव का भी संकेत है।25
कमिटी ने कहा कि 2014-15 में शुरुआत से लेकर 2019-20 तक योजना के तहत 848 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इसी अवधि के दौरान राज्यों को लगभग 622 करोड़ रुपये जारी किए गए। हालांकि यह पाया गया कि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा केवल 25% धनराशि खर्च की गई थी। इसके अलावा कमिटी ने कहा कि मंत्रालय राज्यों को तब भी अतिरिक्त धनराशि जारी कर रहा था, जब उन्होंने मौजूदा धनराशि का इस्तेमाल नहीं किया था। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय के पास लक्ष्योन्मुख दृष्टिकोण होना चाहिए और राज्यों को समयबद्ध तरीके से अपनी धनराशि का उपयोग करना चाहिए।
बेटी बचाओ बेटी पढाओ के तहत धनराशि के विविधीकरण का अभाव
महिला सशक्तिकरण पर स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा कि 2016-17 और 2018-19 के बीच बजट का लगभग 79% (447 करोड़ रुपये) मीडिया एडवोकेसी पर खर्च किया गया था।25 कमिटी ने मीडिया एडवोकेसी के महत्व को स्वीकार किया कि इससे बेटी बचाओ बेटी पढाओ के संदेश को फैलाने में मदद मिलती है। हालांकि उसने इस बात पर जोर दिया कि इस योजना के तहत स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी मूल्यांकन योग्य नतीजे हासिल करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय योजना के तहत मीडिया एडवोकेसी पर खर्च पर पुनर्विचार करे और शिक्षा और स्वास्थ्य में क्षेत्रीय कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करे। 2014-2023 से मीडिया एडवोकेसी और बहु-क्षेत्रीय कार्यक्रमों के लिए जारी की गई धनराशि के विवरण के लिए अनुलग्नक की तालिका 9 देखें।
समय पर न्याय के लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय
2014 से 2019 तक बच्चों के साथ होने वाले अपराधों की दर में वृद्धि हुई है (रेखाचित्र 8 देखें)।[26] जिन कुछ श्रेणियों में अपराध बढ़ रहे हैं, उनमें बलात्कार/सामूहिक बलात्कार के साथ हत्या, दहेज हत्या और मानव तस्करी शामिल हैं।26,[27] शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा कि महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों की संख्या बढ़ रही है।14 उसने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह गृह मामलों के मंत्रालय और राज्य सरकारों के साथ काम करे, ताकि महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों को कम किया जा सके और समय पर न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
रेखाचित्र 8: विभिन्न वर्षों में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों की दर
स्रोत: क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट (2014-2020); राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो; पीआरएस।
निर्भया फंड
महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ाने के उद्देश्य से निर्भया फंड की स्थापना की गई थी। यह महिला सुरक्षा संबंधी कार्यक्रमों को लागू करने के लिए एक डेडिकेटेड फंड है।3 यह एक नॉन-लैप्सेबल फंड है जोकि वित्त मंत्रालय के तहत आता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय फंड के तहत योजनाओं का मूल्यांकन करने और स्वीकृत योजनाओं की प्रगति की समीक्षा करने वाला नोडल मंत्रालय है। महिलाओं के संरक्षण और अधिकारिता मिशन के तहत 2023-24 के लिए 20 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
निर्भया फंड का कम उपयोग
निर्भया फंड के तहत परियोजनाएं/योजनाएं मांग आधारित हैं।[28] मंत्रालय के अनुसार, निर्भया फंड के फ्रेमवर्क के तहत परियोजनाओं का कार्यान्वयन कार्यक्रम अलग-अलग है। जबकि अधिकांश परियोजनाएं राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के माध्यम से कार्यान्वित की जाती हैं; कुछ परियोजनाएं केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा कार्यान्वित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, बिहार, आंध्र प्रदेश, लक्षद्वीप और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने 2016-17 और 2020-21 के बीच आवंटित/जारी की गई 50% से अधिक धनराशि का पूरा उपयोग नहीं किया।[29]
शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2019) ने कहा था कि निर्भया परियोजनाओं के तहत वित्तपोषित परियोजनाओं की गति सुस्त है और इसे तेज करने की आवश्यकता है।28 इसके अलावा शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने निर्भया फंड के प्रभावी उपयोग की आवश्यकता का उल्लेख किया था।3 यह कहा था कि महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा कम नहीं हुई है और कोविड-19 महामारी के प्रकोप ने महिलाओं की स्थिति को और खराब कर दिया है। कमिटी ने कहा था कि 35 परियोजनाओं के लिए फंड के तहत 9,177 करोड़ रुपये का मूल्यांकन किया गया है।3 इसमें से केवल 33% (2,989 करोड़ रुपये) का उपयोग किया गया था। कमिटी ने कहा कि धनराशि के कम उपयोग के कारणों की पहचान की जाए।
अनुलग्नक
तालिका 7: रीवैंपिंग/रैशनलाइजेशन के बाद योजनाओं के विवरण
1 अप्रैलस 2021 तक की योजनाएं |
रीवैंपिंग/रैशनलाइजेशन के बाद योजनाएं |
|
अब्रैला योजना |
योजनाएं |
|
अंब्रैला आईसीडीएस |
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना |
मिशन शक्ति |
महिलाओं के संरक्षण और सशक्तीकरण के लिए मिशन |
वन स्टॉप सेंटर |
|
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ |
||
वर्किंग विमेन हॉस्टल |
||
सूचना और जनसंचार |
||
महिला शक्ति केंद्र |
||
निर्भया फंड से वित्तपोषित अन्य योजनाएं |
||
स्वाधार गृह |
||
उज्जवला |
||
महिला हेल्पलाइन |
||
जेंडर बजटिंग और अनुसंधान, प्रकाशन और निगरानी |
||
विधवाओं के लिए आवास |
||
महिला पुलिस वालंटियर्स |
||
प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम के लिए सहायता (स्टेप) |
||
अंब्रैला आईसीडीएस |
बाल संरक्षण सेवाएं |
मिशन वात्सल्य |
अंब्रैला आईसीडीएस |
आंगनवाड़ी सेवाएं (तत्कालीन कोर आईसीडीएस) |
सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 |
राष्ट्रीय पोषण मिशन (आईएसएसएनआईपी सहित) |
||
किशोरियों के लिए योजना |
||
राष्ट्रीय क्रेच योजना |
नोट: आईसीडीएस- एकीकृत बाल विकास सेवाएं।
स्रोत: केंद्र प्रायोजित योजना की रीवैंपिंग/रैशनलाइजेशन, एक्सपेंडिचर प्रोफ़ाइल, 2022-2023, वक्तव्य 4एए, केंद्रीय बजट 2022-23; पीआरएस
तालिका 8: पोषण अभियान के तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा धनराशि का उपयोग (2017-18 से 2020-21 के लिए जारी धनराशि)
राज्य/यूटी |
31 मार्च तक धनराशि के उपयोग का % |
राज्य/यूटी |
31 मार्च तक धनराशि के उपयोग का % |
अंडमान व निकोबार द्वीप समूह |
45% |
लक्षद्वीप |
67% |
आंध्र प्रदेश |
65% |
मध्य प्रदेश |
47% |
अरुणाचल प्रदेश |
25% |
महाराष्ट्र |
69% |
असम |
55% |
मणिपुर |
49% |
बिहार |
56% |
मेघालय |
98% |
चंडीगढ़ |
47% |
मिजोरम |
94% |
छत्तीसगढ |
54% |
नागालैंड |
98% |
दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव |
47% |
ओडिशा |
46% |
दिल्ली |
73% |
पुददूचेरी |
28% |
गोवा |
49% |
पंजाब |
34% |
गुजरात |
73% |
राजस्थान |
43% |
हरियाणा |
64% |
सिक्किम |
93% |
हिमाचल प्रदेश |
64% |
तमिलनाडु |
75% |
जम्मू और कश्मीर |
86% |
तेलंगाना |
83% |
झारखंड |
64% |
त्रिपुरा |
76% |
कर्नाटक |
78% |
उत्तराखंड |
58% |
केरल |
61% |
उत्तर प्रदेश |
34% |
लद्दाख |
31% |
पश्चिम बंगाल |
0% |
स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 3102, लोकसभा, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, 8 अगस्त, 2021; पीआरएस।
तालिका 9: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ* पर व्यय (करोड़ रुपये में)
वित्तीय वर्ष |
कुल व्यय |
मीडिया एडवोकेसी के लिए धनराशि |
बहु-क्षेत्रीय हस्तक्षेप के लिए धनराशि** |
2014-15 |
35 |
21 |
13 |
2015-16 |
59 |
21 |
38 |
2016-17 |
29 |
26 |
3 |
2017-18 |
169 |
136 |
33 |
2018-19 |
245 |
164 |
81 |
2019-20 |
86 |
26 |
60 |
2020-21 |
61 |
7 |
54 |
Total |
683 |
401 |
282 |
नोट: * महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा योजना के तहत किया गया व्यय।
** 2014-15 और 2015-16 के दौरान, बहु-क्षेत्रीय हस्तक्षेप संबंधी धनराशि राज्यों को राज्य-स्तरीय गतिविधि और जिला-स्तरीय गतिविधि के लिए जारी की गई थी। 2017-18 में दिशानिर्देशों में संशोधन के बाद से जिला स्तर की गतिविधियों के लिए सीधे जिलों को धनराशि जारी की गई है। राज्य स्तरीय गतिविधि के प्रावधानों को हटा दिया गया।
स्रोत: तारांकित प्रश्न संख्या 1, राज्य सभा, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, 02 फरवरी, 2022; पीआरएस।
तालिका 10: आधारभूत सुविधाओं के साथ आंगनवाड़ी केंद्रों का राज्य/केंद्र शासित प्रदेश वार विवरण (जून 2021 तक)
राज्य/यूटी |
चालू आंगनवाड़ी केंद्र |
पक्की इमारत रहित आंगनवाड़ी केंद्र (% में) |
पेयजल सुविधा रहित आंगनवाड़ी केंद्र (% में) |
शौचालय रहित आंगनवाड़ी केंद्र (% में) |
अंडमान व निकोबार द्वीप समूह |
719 |
9% |
0% |
6% |
आंध्र प्रदेश |
55,607 |
0% |
0% |
26% |
अरुणाचल प्रदेश* |
6,225 |
100% |
0% |
93% |
असम |
61,715 |
0% |
32% |
37% |
बिहार |
1,12,094 |
25% |
0% |
0% |
चंडीगढ़ |
450 |
0% |
0% |
0% |
छत्तीसगढ |
51,586 |
12% |
7% |
8% |
दादरा, नगर हवेली तथा दमन दीव |
405 |
13% |
0% |
0% |
दिल्ली |
10,755 |
0% |
0% |
0% |
गोवा |
1,262 |
0% |
0% |
0% |
गुजरात |
53,029 |
0% |
4% |
3% |
हरियाणा |
25,962 |
0% |
1% |
10% |
हिमाचल प्रदेश |
18,925 |
9% |
0% |
1% |
जम्मू और कश्मीर |
28,078 |
21% |
10% |
16% |
झारखंड |
38,432 |
18% |
29% |
34% |
कर्नाटक |
65,911 |
14% |
18% |
21% |
केरल |
33,115 |
0% |
12% |
1% |
लद्दाख* |
1,140 |
58% |
34% |
4% |
लक्षद्वीप* |
71 |
0% |
0% |
0% |
मध्य प्रदेश |
97,135 |
5% |
5% |
3% |
महाराष्ट्र* |
1,09,832 |
9% |
25% |
49% |
मणिपुर |
11,510 |
87% |
46% |
56% |
मेघालय |
5,896 |
3% |
37% |
5% |
मिजोरम |
2,244 |
0% |
8% |
8% |
नागालैंड* |
3,980 |
93% |
13% |
58% |
ओडिशा |
73,172 |
0% |
0% |
55% |
पुद्दूचेरी |
855 |
0% |
8% |
9% |
पंजाब |
27,304 |
0% |
0% |
9% |
राजस्थान* |
61,625 |
0% |
21% |
47% |
सिक्किम |
1,308 |
0% |
0% |
0% |
तमिलनाडु |
54,439 |
20% |
22% |
15% |
तेलंगाना |
35,580 |
17% |
5% |
51% |
त्रिपुरा |
9,911 |
0% |
8% |
17% |
उत्तर प्रदेश* |
1,89,309 |
0% |
3% |
7% |
उत्तराखंड* |
20,048 |
0% |
17% |
18% |
पश्चिम बंगाल |
1,19,481 |
18% |
26% |
17% |
कुल |
13,89,110 |
10% |
12% |
21% |
नोट: *आंकड़े मासिक प्रगति रिपोर्ट, जून 2021 से लिए गए हैं क्योंकि वार्षिक राज्य कार्यक्रम कार्यान्वयन योजना डेटा उपलब्ध नहीं है।
स्रोत: तारांकित प्रश्न संख्या: 298, राज्य सभा, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, 30 मार्च, 2022; पीआरएस।
तालिका 11: 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के प्रमुख संकेतक (% में)
|
5 वर्ष से कम उम्र के स्टंटेड बच्चे |
5 वर्ष से कम उम्र के वेस्टेड बच्चे |
5 वर्ष से कम उम्र के अंडरवेट बच्चे |
|||
राज्य/यूटी |
एनएफएचएस-5 |
एनएफएचएस-4 |
एनएफएचएस-5 |
एनएफएचएस-4 |
एनएफएचएस-5 |
एनएफएचएस-4 |
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह |
22.5 |
23.3 |
16.0 |
18.9 |
23.7 |
21.6 |
आंध्र प्रदेश |
31.2 |
31.4 |
16.1 |
17.2 |
29.6 |
31.9 |
अरुणाचल प्रदेश |
28.0 |
29.4 |
13.1 |
17.3 |
15.4 |
19.5 |
असम |
35.3 |
36.4 |
21.7 |
17 |
32.8 |
29.8 |
बिहार |
42.9 |
48.3 |
22.9 |
20.8 |
41.0 |
43.9 |
चंडीगढ़ |
25.3 |
28.7 |
8.4 |
10.9 |
20.6 |
24.5 |
छत्तीसगढ |
34.6 |
37.6 |
18.9 |
23.1 |
31.3 |
37.7 |
दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव** |
39.4 |
41.7 |
21.6 |
26.7 |
38.7 |
38.9 |
दिल्ली |
30.9 |
32.3 |
11.2 |
24.1 |
21.8 |
27.0 |
गोवा |
25.8 |
20.1 |
19.1 |
21.9 |
24.0 |
23.8 |
गुजरात |
39.0 |
38.5 |
25.1 |
26.4 |
39.7 |
39.3 |
हरियाणा |
27.5 |
34.0 |
11.5 |
21.2 |
21.5 |
29.4 |
हिमाचल प्रदेश |
30.8 |
26.3 |
17.4 |
13.7 |
25.5 |
21.2 |
जम्मू और कश्मीर* |
26.9 |
27.4 |
19.0 |
12.2 |
21.0 |
16.6 |
झारखंड |
39.6 |
45.3 |
22.4 |
29.0 |
39.4 |
47.8 |
कर्नाटक |
35.4 |
36.2 |
19.5 |
26.1 |
32.9 |
35.2 |
केरल |
23.4 |
19.7 |
15.8 |
15.7 |
19.7 |
16.1 |
लद्दाख* |
30.5 |
30.9 |
17.5 |
9.3 |
20.4 |
18.7 |
लक्षद्वीप |
32.0 |
27.0 |
17.4 |
13.7 |
25.8 |
23.4 |
मध्य प्रदेश |
35.7 |
42.0 |
18.9 |
25.8 |
33.0 |
42.8 |
महाराष्ट्र |
35.2 |
34.4 |
25.6 |
25.6 |
36.1 |
36.0 |
मणिपुर |
23.4 |
28.9 |
9.9 |
6.8 |
13.3 |
13.8 |
मेघालय |
46.5 |
43.8 |
12.1 |
15.3 |
26.6 |
29.0 |
मिजोरम |
28.9 |
28.1 |
9.8 |
6.1 |
12.7 |
12.0 |
नागालैंड |
32.7 |
28.6 |
19.1 |
11.3 |
26.9 |
16.7 |
ओडिशा |
31.0 |
34.1 |
18.1 |
20.4 |
29.7 |
34.4 |
पुद्दूचेरी |
20.0 |
23.7 |
12.4 |
23.6 |
15.3 |
22.0 |
पंजाब |
24.5 |
25.7 |
10.6 |
15.6 |
16.9 |
21.6 |
राजस्थान |
31.8 |
39.1 |
16.8 |
23 |
27.6 |
36.7 |
सिक्किम |
22.3 |
29.6 |
13.7 |
14.2 |
13.1 |
14.2 |
तमिलनाडु |
25.0 |
27.1 |
14.6 |
19.7 |
22.0 |
23.8 |
तेलंगाना |
33.1 |
28.0 |
21.7 |
18.1 |
31.8 |
28.4 |
त्रिपुरा |
32.3 |
24.3 |
18.2 |
16.8 |
25.6 |
24.1 |
उत्तर प्रदेश |
39.7 |
46.3 |
17.3 |
17.9 |
32.1 |
39.5 |
उत्तराखंड |
27.0 |
33.5 |
13.2 |
19.5 |
21.0 |
26.6 |
पश्चिम बंगाल |
33.8 |
32.5 |
20.3 |
20.3 |
32.2 |
31.5 |
नोट: *दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के लिए एनएफएचएस-4 के आंकड़े उनके संबंधित एनएफएचएस-5 (2019-21) केंद्र शासित प्रदेश की फैक्ट शीट से लिए गए हैं। सभी तीन केंद्र शासित प्रदेशों की फैक्ट शीट्स जिला स्तर पर उपलब्ध हैं।
स्रोतः राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16), राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21); पीआरएस।
तालिका 12: 15-49 वर्ष की एनिमिक महिलाएं (% में)
एनएफएचएस-5 (2019-21) |
एनएफएचएस-4 (2015-16) |
|||
राज्य/यूटी |
शहरी |
ग्रामीण |
कुल |
कुल |
अंडमान व निकोबार द्वीप समूह |
57.2 |
57.6 |
57.5 |
65.8 |
आंध्र प्रदेश |
57.8 |
59.3 |
58.8 |
60.0 |
अरुणाचल प्रदेश |
36.5 |
41.0 |
40.3 |
43.2 |
असम |
65.2 |
66.0 |
65.9 |
46.0 |
बिहार |
65.6 |
63.1 |
63.5 |
60.3 |
चंडीगढ़ |
60.3 |
64.0* |
60.3 |
75.9 |
छत्तीसगढ |
56.5 |
62.2 |
60.8 |
47.0 |
दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव |
60.5 |
64.4 |
62.5 |
72.9 |
दिल्ली |
49.7 |
58.6 |
49.9 |
54.3 |
गोवा |
40.0 |
37.4 |
39.0 |
31.3 |
गुजरात |
61.3 |
67.6 |
65.0 |
54.9 |
हरियाणा |
57.4 |
61.9 |
60.4 |
62.7 |
हिमाचल प्रदेश |
51.0 |
53.3 |
53.0 |
53.5 |
जम्मू और कश्मीर |
61.4 |
67.5 |
65.9 |
48.9 |
झारखंड |
61.1 |
66.7 |
65.3 |
65.2 |
कर्नाटक |
43.9 |
50.3 |
47.8 |
44.8 |
केरल |
37.0 |
35.8 |
36.3 |
34.3 |
लद्दाख |
89.5 |
93.5 |
92.8 |
78.4 |
लक्षद्वीप |
26.4 |
23.7 |
25.8 |
46.0 |
मध्य प्रदेश |
51.5 |
55.8 |
54.7 |
52.5 |
महाराष्ट्र |
52.0 |
56.1 |
54.2 |
48.0 |
मणिपुर |
30.5 |
28.8 |
29.4 |
26.4 |
मेघालय |
51.8 |
54.3 |
53.8 |
56.2 |
मिजोरम |
30.8 |
39.9 |
34.8 |
24.8 |
नागालैंड |
27.3 |
29.8 |
28.9 |
27.9 |
ओडिशा |
61.5 |
64.9 |
64.3 |
51.0 |
पुददूचेरी |
52.3 |
61.4 |
55.1 |
52.4 |
पंजाब |
59.0 |
58.5 |
58.7 |
53.5 |
राजस्थान |
49.9 |
55.7 |
54.4 |
46.8 |
सिक्किम |
42.4 |
41.9 |
42.1 |
34.9 |
तमिलनाडु |
51.3 |
55.3 |
53.4 |
55.0 |
तेलंगाना |
55.2 |
58.9 |
57.6 |
56.6 |
त्रिपुरा |
66.1 |
67.6 |
67.2 |
54.5 |
उत्तर प्रदेश |
50.1 |
50.5 |
50.4 |
52.4 |
उत्तराखंड |
45.8 |
41.1 |
42.6 |
45.2 |
पश्चिम बंगाल |
65.1 |
74.4 |
71.4 |
62.5 |
स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21); पीआरएस।
तालिका 13: 6-59 महीने के एनिमिक बच्चे (% में)
|
एनएफएचएस-5 (2019-21) |
एनएफएचएस-4 (2015-16) |
||
राज्य |
शहरी |
ग्रामीण |
कुल |
कुल |
अंडमान व निकोबार द्वीप समूह |
47.8 |
33.3 |
40.0 |
49.0 |
आंध्र प्रदेश |
58.7 |
65.0 |
63.2 |
58.6 |
अरुणाचल प्रदेश |
52.8 |
57.1 |
56.6 |
54.2 |
असम |
66.4 |
68.6 |
68.4 |
35.7 |
बिहार |
67.9 |
69.7 |
69.4 |
63.5 |
चंडीगढ़ |
55.0 |
* |
54.6 |
73.1 |
छत्तीसगढ |
71.1 |
66.2 |
67.2 |
41.6 |
दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव |
75.0 |
76.8 |
75.8 |
82.0 |
दिल्ली |
68.7 |
81.7 |
69.2 |
59.7 |
गोवा |
53.3 |
53.1 |
53.2 |
48.3 |
गुजरात |
77.6 |
81.2 |
79.7 |
62.6 |
हरियाणा |
68.1 |
71.5 |
70.4 |
71.7 |
हिमाचल प्रदेश |
58.2 |
55.0 |
55.4 |
53.7 |
जम्मू और कश्मीर |
70.1 |
73.5 |
72.7 |
53.8 |
झारखंड |
65.5 |
67.9 |
67.5 |
69.9 |
कर्नाटक |
62.8 |
67.1 |
65.5 |
60.9 |
केरल |
38.9 |
39.8 |
39.4 |
35.7 |
लद्दाख |
84.1 |
95.1 |
92.5 |
91.4 |
लक्षद्वीप |
45.5 |
36.1 |
43.1 |
53.6 |
मध्य प्रदेश |
72.5 |
72.7 |
72.7 |
68.9 |
महाराष्ट्र |
66.3 |
70.7 |
68.9 |
53.8 |
मणिपुर |
44.0 |
42.2 |
42.8 |
23.9 |
मेघालय |
38.8 |
46.0 |
45.1 |
48.0 |
मिजोरम |
42.8 |
49.6 |
46.4 |
19.3 |
नागालैंड |
46.4 |
41.4 |
42.7 |
26.4 |
ओडिशा |
56.2 |
65.6 |
64.2 |
44.6 |
पुद्दूचेरी |
65.3 |
60.8 |
64.0 |
44.9 |
पंजाब |
71.0 |
71.1 |
71.1 |
56.6 |
राजस्थान |
68.3 |
72.4 |
71.5 |
60.3 |
सिक्किम |
54.8 |
57.1 |
56.4 |
55.1 |
तमिलनाडु |
53.7 |
60.4 |
57.4 |
50.7 |
तेलंगाना |
64.7 |
72.8 |
70.0 |
60.7 |
त्रिपुरा |
57.3 |
66.5 |
64.3 |
48.3 |
उत्तर प्रदेश |
65.3 |
66.7 |
66.4 |
63.2 |
उत्तराखंड |
63.8 |
56.6 |
58.8 |
59.8 |
पश्चिम बंगाल |
63.0 |
71.3 |
69.0 |
54.2 |
नोट: * प्रतिशत नहीं दिखाया गया; 25 से अंडरवेट मामलों पर आधारित। स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21); पीआरएस।
[1] “About the Ministry”, Ministry of Women and Child Development, as accessed on February 09, 2023, https://wcd.nic.in/about-us/about-ministry#:~:text=Ensuring%20development%2C%20care%20and%20protection,develop%20to%20their%20full%20potential.
[2] Demand No. 101, Ministry of Women and Child Development, Union Budget 2022-23, https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe101.pdf
[3] Report No. 338: Demands for Grants 2022-23 of the Ministry of Women and Child Development, Standing Committee on Education, Women, Children, Youth and Sports, March 16, 2022, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/16/162/338_2022_3_15.pdf.
[4] Report No. 338: Demands for Grants 2020-21 (Demand No. 100) of the Ministry of Women and Child Development, Standing Committee on Human Resource Development, March 06, 2020, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/16/144/314_2021_1_17.pdf.
[5] Mission Saksham Anganwadi and POSHAN 2.0 Scheme Guidelines, Ministry of Women and Child Development, August 2022, https://wcd.nic.in/sites/default/files/Final%20Saksham%20Guidelines%20with%20covering%20letter%20%281%29.pdf.
[6] Unstarred Question No. 135, Lok Sabha, Ministry of Women and Child Development, February 10, 2023, https://loksabha.nic.in/Questions/QResult15.aspx?qref=47137&lsno=17.
[7] Audit Report on General, Social, and Economic Sectors and PSUs for the year ended 31 March 2019, Comptroller and Auditor General of India, 2019, https://cag.gov.in/uploads/download_audit_report/2019/5_Chapter-1-Overview-06103f185910f48.91538073.pdf.
[8] Unstarred Question No. 942, Rajya Sabha, Ministry of Women and Child Development, December 14, 2022, https://pqars.nic.in/annex/258/AU942.pdf.
[9] Report No. 346: Action Taken by the Government on the Recommendations/Observations contained in the 346th Report on the Demands for Grants 2022-23 of the Ministry of Women and Child Development, Standing Committee on Education, Women, Children, Youth and Sports, March 16, 2022, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/16/167/346_2022_12_15.pdf.
[10] Unstarred Question No. 3992, Rajya Sabha, Ministry of Women and Child Development, April 06, 2022, https://pqars.nic.in/annex/256/AU3992.pdf.
[11] Revised Rates of Anganwadi Workers (AWWs)/ Anganwadi Helper (AWHs), Ministry of Women and Child Development, September 20, 2018, https://wcd.nic.in/sites/default/files/Revised%20rates%20of%20Honorarium_0.pdf.
[12] Unstarred Question No. 53, Lok Sabha, Ministry of Women and Child Development, December 09, 2022, https://pqals.nic.in/annex/1710/AS53.pdf.
[13] Unstarred Question No. 3184, Rajya Sabha, Ministry of Women and Child Development, March 30, 2022, https://pqars.nic.in/annex/256/AU3184.pdf.
[14] Report No. 326: Demands for Grants 2021-22 of the Ministry of Women and Child Development, Standing Committee on Education, Women, Children, Youth and Sports, March 16, 2021, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/16/144/326_2021_7_15.pdf.
[15] Report No. 304: Demands for Grants 2018-19 (Demand No. 98) of the Ministry of Women and Child Development, Standing Committee on Human Resource Development, March 9, 2018, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/16/98/304_2018_9_15.pdf.
[16] Unstarred Question No. 1749, Rajya Sabha, Ministry of Women and Child Development, March 16, 2022, https://pqars.nic.in/annex/256/AU1749.pdf.
[17] “Preserving Progress on Nutrition in India: POSHAN Abhiyaan in Pandemic Times”, NITI Aayog, July 2021, https://www.niti.gov.in/sites/default/files/2022-09/Poshan-Abhiyaan-Monitoring.pdf.
[18] Unstarred Question No. 1462, Lok Sabha, Ministry of Women and Child Development, February 10, 2023, https://pqals.nic.in/annex/1711/AU1462.pdf.
[19] Key Indicators: 22 States/UT Phase-I, National Family Health Survey (NFHS-5), 2019-20, India Report, Ministry of Health and Family Welfare, March 2022, https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/NFHS-5_Phase-I.pdf.
[20] National Family Health Survey (NFHS-5), 2019-21, India Report, Ministry of Health and Family Welfare, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5Reports/NFHS-5_INDIA_REPORT.pdf.
[21] Guidelines for Mission Vatsalya, Ministry of Women and Child Development, July 05, 2022, https://wcd.nic.in/sites/default/files/GUIDELINES%20OF%20MISSION%20VATSALYA%20DATED%2005%20JULY%202022.pdf.
[22] Unstarred Question No. 117, Rajya Sabha, Ministry of Women and Child Development, July 27, 2022, https://pqars.nic.in/annex/257/AS117.pdf.
[23] Section 106, The Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015, https://pqars.nic.in/annex/257/AS117.pdf.
[24] Unstarred Question No. 1488, Lok Sabha, Ministry of Women and Child Development, February 10, 2023, https://pqals.nic.in/annex/1711/AU1488.pdf.
[25] Report No. 5: Empowerment of Women through Education with Special Reference to Beti Bachao-Beti Padhao Scheme, Standing Committee on Empowerment of Women, December 09, 2021, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Empowerment%20of%20Women/17_Empowerment_of_Women_5.pdf.
[26] Crime in India 2021 Statistics Volume I, National Crime Records Bureau, Ministry of Home Affairs, 2022, https://ncrb.gov.in/sites/default/files/CII-2021/CII_2021Volume%201.pdf.
[27] Crime in India 2020 Statistics Volume I, National Crime Records Bureau, Ministry of Home Affairs, 2021, https://ncrb.gov.in/sites/default/files/CII%202020%20Volume%201.pdf.
[28] Report No. 334, ‘Actions Taken by the Government on Recommendations Contained in its Three Hundred and Sixteenth Report on Issues Related to Safety of Women”, Standing Committee on Education, Women, Children, Youth and Sports, February 04, 2022, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/16/162/334_2022_2_17.pdf.
[29] Unstarred Question No. 3233, Lok Sabha, Ministry of Women and Child Development, August 08, 2022, https://pqals.nic.in/annex/179/AU3233.pdf.
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