मंत्रालय: 
वित्त

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट, 1949, कॉस्ट और वर्क्स एकाउंटेंट्स एक्ट, 1959 तथा कंपनी सचिव एक्ट, 1980 में संशोधन करता है।
     
  • बिल इन एक्ट्स के अंतर्गत अनुशासनात्मक तंत्र में परिवर्तन करता है और अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं की समय सीमाओं को निर्दिष्ट करता है। यह अनुशासन बोर्ड और अनुशासनात्मक समिति में अधिक बाहरी प्रतिनिधित्व का प्रावधान भी करता है।
     
  • बिल एक समन्वय समिति (कोऑर्डिनेशन कमिटी) का गठन करता है जिसकी अध्यक्षता कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव द्वारा की जाएगी। कमिटी में एक्ट्स के अंतर्गत गठित तीनों संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। 
     
  • प्रत्येक परिषद के सचिव को चीफ एग्जीक्यूटिव (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) के रूप में और अध्यक्ष को परिषद के प्रमुख के रूप में नामित किया जाएगा। अध्यक्ष परिषद के निर्णयों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होंगे।
     
  • फर्म्स को अब संस्थानों के साथ पंजीकृत करना होगा। परिषदों को फर्म्स का एक रजिस्टर बनाना होगा जिसमें किसी भी कार्रवाई योग्य शिकायत के लंबित होने या जुर्माना लगाने जैसे विवरण शामिल होंगे।
     
  • बिल तीनों एक्ट्स के अंतर्गत कुछ जुर्मानों को बढ़ाता है। अगर किसी फर्म का पार्टनर या मालिक पिछले पांच वर्षों के दौरान दुर्व्यवहार का बार-बार दोषी पाया जाता है तो फर्म के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। 

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल बाहरी प्रतिनिधित्व को और बढ़ाने के लिए दोनों अनुशासनात्मक निकायों के संयोजन में परिवर्तन का प्रस्ताव रखता है। हालांकि इन बाहरी सदस्यों को तीनों परिषदों द्वारा तैयार पैनल में से चुना जाएगा। यह तीनों पेशेवर परिषदों के अनुशासनात्मक और प्रशासनिक कार्यों के बीच हितों के टकराव को दूर करने के उद्देश्य के खिलाफ हो सकता है।
     
  • प्रस्तावित समन्वय समिति और तीनों संस्थानों के कुछ कार्य थोड़े बहुत एक जैसे हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता के कारण इससे इन तीनों संस्थानों की स्वतंत्रता पर असर हो सकता है।
     
  • बिल में सदस्यों और फर्म्स के खिलाफ लंबित शिकायतों या कार्रवाई योग्य सूचना के खुलासे का प्रावधान है। अपराधी पाये जाने से पहले लंबित शिकायतों के विवरण के खुलासे से उनकी पेशेवर प्रतिष्ठा नष्ट हो सकती है।
     
  • हालांकि अध्यक्ष की भूमिका गैर कार्यकारी होगी, वह परिषदों के फैसलों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होगा। 

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

कंपनी एक्ट, 2013 के अनुसार, हर कंपनी को अपने एकाउंट्स को ऑडिट करने के लिए एक चार्टर्ड एकाउंटेंट या सीए फर्म को नियुक्त करना होता है। कुछ कंपनियों के मामले में केंद्र सरकार कॉस्ट एकाउंटेंट्स द्वारा कॉस्ट ऑडिट करने का सीधा निर्देश दे सकती है। कंपनी एक्ट, 2013 में कुछ श्रेणियों की कंपनियों के लिए एक्ट के प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए कंपनी सचिव (सीएस) को नियुक्त करना भी अपेक्षित है।

भारत में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, कॉस्ट एकाउंटेंट्स और कंपनी सचिवों को क्रमशः चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट, 1949, कॉस्ट और वर्क्स एकाउंटेंट्स एक्ट, 1959 और कंपनी सचिव एक्ट, 1980 के प्रावधानों के अनुसार रेगुलेट किया जाता है। ये तीनों एक्ट्स भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थानभारतीय कॉस्ट एकाउंटेंट्स संस्थान तथा भारतीय कंपनी सचिव संस्थान के गठन का प्रावधान करते हैं। इन संस्थानों के मामलों को उनकी संबंधित परिषदों द्वारा प्रबंधित किया जाता है। परिषदों में चयनित और नामित सदस्य शामिल होते हैं। एक्ट्स में संस्थानों के ऐसे सदस्यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की व्यवस्था है जो पेशेवर या दूसरे दुर्व्यवहार में शामिल हैं। यह व्यवस्था व्यापक रूप से सेल्फ रेगुलेटरी है, जिसमें संस्थानों के सदस्य केंद्र सरकार द्वारा नामित कुछ बाहरी सदस्यों के साथ इस अनुशासनात्मक प्रक्रिया में भाग लेते हैं।

हाल के वर्षों में भारत में धोखाधड़ी और घोटालों के कई मामले देखे गए हैं जिससे स्वतंत्र ऑडिटर्स की भूमिका और वैधानिक ऑडिट के प्रभाव की तरफ सबका ध्यान गया है।[1]  उदाहरण के लिए जनवरी 2009 में सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज़ लिमिटेड के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर ने खुलासा किया था कि कंपनी के खातों में 5,040 करोड़ रुपए की नकदी और बैंक बैलेंस फर्जी था।[2] अक्टूबर 2018 में केंद्र सरकार ने आईएलएंडएफस के बोर्ड को सुपरसीड करने का फैसला किया। इस गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी ने अगस्त और सितंबर 2018 में ऋण पुनर्भुगतान में कई चूक की थी।[3] कंपनी पर 91,000 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाने का दबाव था।3     

2018 में पंजाब नेशनल बैंक में बड़ी धोखाधड़ी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने कंपनी एक्ट, 2013 के अंतर्गत राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग अथॉरिटी (एनएफआरए) की स्थापना की।1 एनएफआरए को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स या चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की फर्म्स के पेशेवर या दूसरे दुर्व्यवहार के मामलों की जांच करने का अधिकार है। अब तक चार्टर्ड एकाउंटेट्स के पेशे में सेल्फ रेगुलेशन का प्रावधान रहा है, और यह इस प्रवृत्ति से अलग है। सीए, सीडब्ल्यूए और सीएस (संशोधन) बिल, 2021 अनुशासनात्मक तंत्र को अधिक स्वतंत्र बनाकर, फर्म्स का पंजीकरण और जुर्माने में बढ़ोतरी करके प्रैक्टीशनर्स और फर्म्स की जवाबदेही बढ़ाने का प्रयास करता है। 

मुख्य विशेषताएं 

अनुशासनात्मक तंत्र

  • एक्ट्स के अंतर्गत तीनों संस्थानों की संबंधित परिषदों में निदेशक (अनुशासन) की अध्यक्षता में एक अनुशासनात्मक निदेशालय होना चाहिए। संस्थान के एक अधिकारी को निदेशक बनाया जाएगा। दुर्व्यवहार के आधार पर, शिकायत मिलने पर निदेशक अनुशासन बोर्ड या अनुशासनात्मक समिति के समक्ष इस मामले को रखेगा। बिल निदेशालय को सदस्यों या फर्म्स के खिलाफ स्वतः जांच शुरू करने की शक्ति देने का प्रयास करता है। 
     
  • प्रत्येक परिषद में अनुशासन बोर्ड होगा। बोर्ड के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं(i) पीठासीन अधिकारी (कानूनी अनुभव और अनुशासनात्मक मामलों की जानकारी वाले), (ii) दो सदस्य, और (iii) सचिव के रूप में निदेशक (अनुशासन)। बिल तीनों परिषदों को कई बोर्ड्स बनाने का अधिकार देता है। पीठासीन अधिकारी और दो में से एक सदस्य को संस्थान का सदस्य नहीं होना चाहिए और उन्हें केंद्र सरकार द्वारा उस पैनल से नामित किया जाएगा जो उसे परिषदें प्रदान करेंगी। 
     
  • तीनों एक्ट्स के अंतर्गत परिषदें अनुशासन समितियों का गठन करती हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल होते हैं: (i) पीठासीन अधिकारी (परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष), (ii) परिषद से चुने गए दो सदस्य, और (iii) केंद्र सरकार द्वारा नामित दो सदस्य। बिल एक्ट्स में संशोधन करता है और प्रावधान करता है कि पीठासीन अधिकारी को संस्थानों का सदस्य नहीं होना चाहिए और उसे केंद्र सरकार द्वारा उस पैनल से नामित किया जाएगा जो उसे परिषदें प्रदान करेंगी। 

परिषद में अध्यक्ष की भूमिका

  • सीए एक्ट परिषद के अध्यक्ष को अपन मुख्य कार्यकारी अधिकारी निर्दिष्ट करता है जबकि अन्य दो एक्ट्स उनकी परिषदों या संस्थानों के एक अधिकारी को मुख्य कार्यकारी के रूप में नामित करने का प्रावधान करते हैं। बिल परिषदों के सचिवों को संबंधित मुख्य कार्यकारी बनाता हैऔर अध्यक्ष यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि परिषद द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू किया जाए।

समन्वय समिति

  • बिल कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की अध्यक्षता में समन्वय समिति के गठन का प्रावधान करता है। तीनों संस्थानों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव को भी समन्वय समिति में शामिल किया जाएगा। उनके कार्यों में निम्नलिखित शामिल होगा: (i) एकैडमिक्स की क्वालिटी में सुधार करना, (ii) पेशों के बीच सहयोग और समन्वय कायम करना, और (iii) पेशों के लिए रेगुलेटरी नीतियां बनाने का सुझाव देना।  

फर्म्स का पंजीकरण

  • बिल कहता है कि फर्मों को संस्थानों में पंजीकरण कराना होगा, और इसके लिए उन्हें संस्थानों की संबंधित परिषदों में आवेदन करना होगा। परिषदों को फर्मों का रजिस्टर बनाना होगा जिसमें किसी भी कार्रवाई योग्य शिकायत के लंबित होने या फर्मों के खिलाफ जुर्माना लगाने जैसे विवरण होने चाहिए।

सजा

  • एक्ट्स के अंतर्गत पेशेवर या दूसरे दुर्व्यवहार के मामलों में समितियां निम्नलिखित कर सकती हैं: (i) संस्थान के रजिस्टर से सदस्य का नाम हटाना या उसे फटकार लगाना, या (ii) पांच लाख रुपए तक का जुर्माना लगाना। बिल जुर्माने की अधिकतम राशि को दस लाख रुपए करता है। बिल यह भी जोड़ता है कि अगर फर्म का पार्टनर या मालिक पिछले पांच वर्षों में बार-बार दुर्व्यवहार का अपराधी पाया जाता है तो समिति फर्म के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। इस कार्रवाई में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) फर्म को चार्टर्ड एकाउंट, कॉस्ट एकाउंटेंट या कंपनी सचिव के पेशे से संबंधित कार्य करने से अधिकतम दो वर्ष के लिए, जैसा भी मामला हो, प्रतिबंधित करना, या (ii) अधिकतम 50 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाना।

भाग ख : प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

अनुशासनात्मक तंत्र 

स्वतंत्र अनुशासनात्मक प्रणाली का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता

जैसा कि ऊपर कहा गया है, बिल प्रस्ताव रखता है कि अनुशासन बोर्ड्स और अनुशासनात्मक समितियों के पीठासीन अधिकारी संबंधित संस्थानों के सदस्य नहीं होंगे। उन्हें केंद्र सरकार ऐसे लोगों के पैनल से नामित करेगी जिन्हें उनकी संबंधित परिषदों द्वारा तैयार किया जाएगा। इसके अतिरिक्त अनुशासन बोर्ड में एक बाहरी सदस्य और अनुशासनात्मक समिति में दो बाहरी सदस्यों को संबंधित परिषदों द्वारा तैयार किए गए व्यक्तियों के पैनल में से केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। यह बिल के उद्देश्यों के अनुरूप नहीं हो सकता।

बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन में कहा गया है कि यह संस्थानों की प्रशासनिक और अनुशासनात्मक शाखाओं के बीच हितों के टकराव को दूर करने का प्रयास करता है। इसके लिए बिल दोनों अनुशासनात्मक निकायों के संयोजन में परिवर्तन का प्रस्ताव रखता है ताकि बाहरी प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जा सके। हालांकि इन बाहरी सदस्यों को उस पैनल से चुना जाएगा जिन्हें तीनों परिषदों द्वारा तैयार किया जाएगा। इसलिए जबकि बिल अनुशासन बोर्ड और अनुशासनात्मक समिति में प्रतिनिधित्व के संबंध में तीन पेशेवर संस्थानों की भूमिका को कम करता है, यह बाहरी सदस्यों को नामित करने के लिए परिषदों पर निर्भर है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा संरचना के तहत तीनों पेशों की अनुशासनात्मक समिति के बाहरी सदस्यों को केंद्र सरकार द्वारा स्वतंत्र रूप से नामित किया जाता है। सीए एक्ट के तहत केंद्र सरकार अनुशासन बोर्ड के एक सदस्य को स्वतंत्र रूप से नामित करती है। यह स्पष्ट नहीं है कि अनुशासनात्मक और प्रशासनिक कार्यों के बीच हितों को टकराव को कैसे रोका जाएगा, अगर परिषदें यह सुझाव देने में शामिल रहेंगी कि इन अनुशासनात्मक निकायों में कौन होगा। 

बिल अनुशासन संबंधी मामलों के शीघ्र निस्तारण में रुकावट पैदा कर सकता है 

बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन में कहा गया है कि यह अनुशासनात्मक तंत्र को मजबूत करके और मामलों के समयबद्ध निपटान के प्रावधान के जरिए संस्थानों के सदस्यों के खिलाफ मामलों का शीघ्र निपटान करना चाहता है। बिल तीनों परिषदों को अधिकार देता है कि वे कई अनुशासन बोर्ड्स और अनुशासन समितियों का गठन कर सकती हैं। हालांकि बिल केंद्र सरकार को यह अनुमति देता है कि वह अनुशासन बोर्ड्स और अनुशासन समितियों में एक ही व्यक्ति को पीठासीन अधिकारी या सदस्य के रूप में नामित कर सकती है। यह सदस्यों के खिलाफ मामलों के शीघ्र निपटान के उद्देश्य से मेल नहीं खाता। एक जैसे लोगों को अनुशासन बोर्ड्स या अनुशासनात्मक समितियों के सदस्य के रूप में नियुक्त करने से, संभव है कि ये निकाय एक साथ दुर्व्यवहार के मामलों की सुनवाई न कर पाएं। नतीजतन, मामलों के निपटान में देरी हो।

समन्वय समिति की भूमिका संस्थानों के समान हो सकती है

तीनों एक्ट्स संबंधित संस्थानों और परिषदों की स्थापना करते हैं। ये निकाय शैक्षिक पाठ्यक्रमों को मंजूरी देते हैं, उम्मीदवारों के लिए परीक्षाएं संचालित करते हैं, सदस्यों के पंजीकरण में नामों की प्रविष्टि के लिए योग्यता का निर्धारण करते हैं और उनके सदस्यों के दर्जे और पेशेवर योग्यता के मानदंडों को रेगुलेट करते हैं। इन तीनों निकायों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए संस्थानों की संबंधित समन्वय समितियां भी होती हैं।  

बिल में एक समन्वय समिति के गठन का प्रावधान है जिसकी अध्यक्षता कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव द्वारा की जाएगी। यह समिति तीनों संस्थानों के कार्यों और तीनों क्षेत्रों के पेशेवर विकास और रेगुलेटरी तंत्र के बीच समन्वय स्थापित करेगी। समन्वय समिति के प्रस्तावित कार्य और तीनों संस्थानों एवं परिषदों के मौजूदा कार्य थोड़ा बहुत एक जैसे हो सकते हैं। उदाहरण के लिए समन्वय समिति शैक्षिक, अनुसंधान तथा संस्थानों के सभी संबंधित कार्यों की क्वालिटी में सुधार सुनिश्चित करेगी। वह तीनों पेशों के बीच समन्वय और सहयोग पर ध्यान केंद्रित करेगी। वर्तमान में, संबंधित परिषदें और संस्थान ये कार्य करते हैं। चूंकि तीनों संस्थानों में आपस में समन्वय के लिए समितियां भी हैंयह स्पष्ट नहीं है कि बिल के तहत प्रस्तावित एक और समन्वय परिषद की स्थापना की आवश्यकता क्यों है। इसके अतिरिक्त प्रस्तावित समन्वय समिति की अध्यक्षता कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव करेंगे। यह प्रावधान तीनों संस्थानों की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।   

गैर कार्यकारी अध्यक्ष कार्यान्वयन के लिए जवाबदेह हो सकते हैं

सीए एक्ट के तहत परिषद का अध्यक्ष उसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है। सीडब्ल्यूए एक्ट और सीएस एक्ट के अनुसार, संबंधित परिषदों के अध्यक्ष केवल उनके प्रमुख होते हैं; दोनों परिषदें मुख्य कार्यकारी के रूप में प्रशासनिक कार्यों को करने के लिए संबंधित परिषदों या संस्थानों के एक अधिकारी को नामित करती हैं। बिल में यह निर्दिष्ट करने के लिए सीए एक्ट में संशोधन करने का प्रस्ताव है कि अध्यक्ष परिषद का प्रमुख होगा। बिल तीनों परिषदों के संबंधित अध्यक्षों को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी देता है कि परिषदों के फैसलों को लागू किया जाता है। बिल यह प्रावधान भी करता है कि परिषदों के संबंधित सचिव मुख्य कार्यकारी अधिकारी के तौर पर संस्थानों के प्रशासनिक कार्यों को करने के लिए जिम्मेदार होंगे।

बिल तीनों परिषदों के अध्यक्षों के पद को गैर कार्यकारी पद में बदलने का प्रयास करता प्रतीत होता है। संबंधित परिषदों के सचिवों को मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नामित किया जा रहा है। हालांकि बिल परिषदों द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करने के लिए संबंधित अध्यक्षों को जिम्मेदार ठहराता है। यह स्पष्ट नहीं है कि अध्यक्ष यह कैसे सुनिश्चित करेगा कि परिषद द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू किया जाए, जबकि उसी समय सचिव को मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में संस्थान के प्रशासनिक कार्यों को संपन्न करने की जिम्मेदारी दी जा रही है। ऐसा लगता है कि बिल परिषद के अध्यक्ष और सचिव के लिए अलग-अलग भूमिकाएं निर्धारित करके, गवर्नेंस और कार्यान्वयन के काम को अलग-अलग करता है। लेकिन निर्णयों को लागू करने के लिए अध्यक्ष को जिम्मेदार ठहराना, जो कि एक कार्यकारी भूमिका है, बिल में प्रस्तावित शक्तियों के पृथक्करण की संरचना के खिलाफ हो सकता है।

जांच से जुड़े मामलों के खुलासे से प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है                                                     

बिल में संस्थान के सदस्यों और उनके साथ पंजीकृत फर्म्स के खिलाफ लंबित शिकायतों या कार्रवाई योग्य सूचना के खुलासे का प्रावधान है। तीनों पेशों के लिए अनुशासन बोर्ड या अनुशासनात्मक समिति तय करेगी कि क्या कोई सदस्य कथित दुर्व्यवहार का दोषी है। दोषी पाये जाने वाले सदस्यों या फर्म्स के विवरण (और जुर्माना लगाने) को प्रकाशित करना, संभावित और मौजूदा ग्राहकों के लिए उपयोगी सूचना हो सकती है। हालांकि अगर दोषी पाये जाने से पहले रजिस्टरों में सदस्यों और फर्म्स के खिलाफ लंबित शिकायतों को दर्ज किया जाएगा तो इससे उनकी प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल असर हो सकता है।    

डॉक्टर्स जैसे दूसरे पेशों के रेगुलेटर्स तभी ऐसे विवरण छापते हैं जब डॉक्टर्स को ब्लैकलिस्ट किया जाता है या प्रैक्टिस से सस्पेंड किया जाता है। नेशनल मेडिकल कमीशन एक्ट, 2019 के अनुसार, एथिक्स औऱ मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड और राज्य मेडिकल काउंसिल्स को क्रमशः नेशनल रजिस्टर और राज्य रजिस्टर रखने होते हैं।[4] इन रजिस्टर्स में लाइसेंसशुदा मेडिकल प्रैक्टीशनर्स के नाम, पते और सभी मान्यता प्राप्त योग्यताओं जैसे विवरण मौजूद होते हैं। जबकि भारतीय मेडिकल रजिस्टर में ब्लैकलिस्ट डॉक्टरों के विवरण, सस्पेंशन और सस्पेंशन को रद्द करने (अगर लागू होता है) की तारीखें दर्ज होती हैं, उसमें डॉक्टरों के खिलाफ लंबित शिकायतों का विवरण नहीं होता। 

 

[1]Consultation Paper on Enhancing Engagement with Stakeholders, Report of the Technical Advisory Committee, National Financial Reporting Authority, March 2021. 

 

[2]Writ Petition No. 37487 of 2012, High Court for the State of Telangana, December 31, 2018. 

[3]. “Firm and Decisive Government Action taken to preserve value and assets of IL& FS”, Press Information Bureau, Ministry of Finance, October 1, 2018.

[4]The National Medical Commission Act, 2019

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