मंत्रालय: 
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल घरेलू कंपनियों के अनुपालन की शर्तों को आसान बनाने के लिए जैव विविधता एक्ट, 2002 में संशोधन करता है। 
  • संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान के उपयोगकर्ताओं और आयुष प्रैक्टीशनर्स को स्थानीय समुदायों से लाभों को साझा करने से छूट दी जाएगी।
  • बिल अनुसंधान और जैव-सर्वेक्षण की गतिविधियों को लाभ साझाकरण की शर्तों के दायरे से बाहर करता है।
  • उपयोगकर्ता और स्थानीय प्रबंधन समिति का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्रीय प्राधिकरण के बीच सहमत शर्तों पर लाभ साझाकरण आधारित होगा। 
  • बिल एक्ट के अंतर्गत सभी अपराधों को अपराध मुक्त (डिक्रिमिनलाइज) करता है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान को स्पष्ट नहीं किया गया है। इसकी व्यापक व्याख्या से सभी स्थानीय परंपरागत ज्ञान को लाभा साझाकरण की शर्त से छूट मिल सकती है। 
  • बिल लाभ साझाकरण के प्रावधानों को निर्धारित करने में स्थानीय समुदायों की प्रत्यक्ष भूमिका को खत्म करता है।
  • बिल एक्ट के अंतर्गत अपराधों को डिक्रिमिनलाइज करता है और उसकी बजाय, अनेक प्रकार के दंडों का प्रावधान करता है। इसके अतिरिक्त बिल सरकारी अधिकारियों को यह अधिकार देता है कि वे जांच कर सकते हैं और दंड निर्धारित कर सकते हैं। यह प्रश्न किया जा सकता है कि क्या सरकारी अधिकारियों को यह अधिकार देना उचित है।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

जैव विविधता का अर्थ है, पृथ्वी पर मौजूद विविध प्रकार का जीवन।[1] पृथ्वी पर मानव गतिविधियों ने जैव विविधता के लिए चुनौतियां पेश की हैं जैसे बसाहट का नुकसान, पारिस्थितिकी का बिगड़ना और प्रजातियों का लुप्त या लुप्तप्राय होना।[2] जैव-तस्करी जैसी चिंताएं भी पैदा हो रही हैं जिसमें जैविक संसाधनों और देशी समुदायों के संबंधित ज्ञान का अनाधिकृत इस्तेमाल किया जाता है।[3]  इन चिंताओं को दूर करने के लिए 1992 में जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (सीबीडी) जैसी बहुस्तरीय संधि की गई।[4]  इसमें जैविक संसाधनों पर संप्रभु अधिकारों को मान्यता दी गई है और सभी देशों को यह अनुमति दी गई है कि वे अपने राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार इन संसाधनों तक पहुंच को रेगुलेट कर सकते हैं।4  यह परंपरागत ज्ञान, पद्धतियों और नए प्रयोगों के जरिए संरक्षण तथा सतत उपयोग में स्थानीय और देशी समुदायों के योगदान को मान्यता देता है।1  यह कन्वेंशन इन लोगों के साथ संसाधनों के उपयोग से प्राप्त होने वाले लाभों को समान रूप से साझा करने का प्रावधान करता है।भारत ने 1994 में सीबीडी पर हस्ताक्षर किए थे।[5]  सीबीडी के अंतर्गत दो प्रोटोकॉल मंजूर किए गए थे: (i) जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल (2003), और (ii) पहुंच और लाभ साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल (2014)।[6]   भारत ने 2003 में कार्टाजेना प्रोटोकॉल और 2014 में नागोया प्रोटोकॉल को पुष्टि दी थी।5  

सीबीडी के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को देखते हुए संसद ने जैव विविधता एक्ट, 2002 को पारित किया। एक्ट जैविक संसाधनों और संबंधित परंपरागत ज्ञान तक पहुंच को रेगुलेट करता है। यह विदेशी और घरेलू संस्थाओं की पहुंच को रेगुलेट करने के लिए कुछ फ्रेमवर्क्स बनाता है। वह रेगुलेशन के लिए तीन स्तरीय संरचना बनाता है: (i) राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, (ii) राज्य स्तर पर राज्य जैव विविधता प्राधिकरण, और (iii) स्थानीय निकायों के स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियां। एक्ट जैव विविधता के संरक्षकों और संबंधित ज्ञान के धारकों और सर्जकों के साथ लाभों को साझा करने का प्रावधान करता है। लाभ विभिन्न प्रकार से साझा किए जा सकते हैं, जैसे: (i) आर्थिक क्षतिपूर्ति, (ii) बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) का साझाकरण, या (ii) प्रौद्योगिकी हस्तांतरण।  

दिसंबर 2021 में जैव विविधता (संशोधन) बिल, 2021 को लोकसभा में पेश किया गया था और इसके बाद बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी को भेजा गया था।[7] बिल जैव विविधता एक्ट, 2002 में संशोधन का प्रयास करता है ताकि: (i) भारतीय औषधि प्रणाली और जंगली औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित किया जा सके, (ii) अनुसंधानपेटेंट आवेदन और शोध परिणामों के हस्तांतरण के लिए प्रक्रियाओं की फास्ट-ट्रैकिंग की जा सके, (iii) अपराधों को डीक्रिमिनाइज किया जा सके, और (iv) क्षेत्र में विदेशी निवेशकों को बढ़ावा दिया जा सके। बिल नागोया प्रोटोकॉल के संदर्भों को शामिल करने के लिए भी एक्ट में संशोधन करता है।

मुख्य विशेषताएं

  • जैविक संसाधनों और संबंधित ज्ञान तक पहुंच: एक्ट के अंतर्गत भारत में मौजूद जैविक संसाधनों या संबंधित ज्ञान को हासिल करने के लिए रेगुलेटरी अथॉरिटी से पूर्व अनुमोदन लेना या उसे सूचना देना जरूरी है। कोई भी एंटिटी जिस संबंधित क्षेत्र में स्थित होगी, वहां के प्राधिकरण से मंजूरी लेनी होगी। इसके लिए एक्ट के अंतर्गत रेगुलेटरी अथॉरिटी राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) और राज्य जैव विविधता बोर्ड्स (एसएसबी) हैं। बिल इन संस्थाओं के वर्गीकरण तथा उन गतिविधियों की सूची में संशोधन करता है जिनके संबंध में सूचना देना जरूरी है। इसके अतिरिक्ति बिल में कुछ छूट भी प्रदान की गई है, जैसा कि तालिका 1 में दिया गया है।

तालिका 1जैविक संसाधनों या संबंधित ज्ञान तक पहुंच के लिए जरूरी मंजूरियां लेना/सूचना देना

जैव विविधता एक्ट, 2002

बिल में किए गए परिवर्तन

  • एनबीए से जरूरी मंजूरी (कुछ विदेशी संस्थाओं के लिए)

  • एंटिटी: (i) विदेशी व्यक्ति, (ii) अनिवासी भारतीय, (iii) ऐसी कंपनियां, जो भारत में पंजीकृत नहीं हैं, और (iv) भारत में पंजीकृत और शेयर पूंजी या प्रबंधन में अनिवासी भारतीयों की भागीदारी वाली कंपनियां।

  • गतिविधियां: (i) अनुसंधान, (ii) वाणिज्यिक उपयोग, या (iii) जैव सर्वेक्षण और जैव उपयोग के लिए भारत में जैविक संसाधनों या संबंधित ज्ञान को हासिल करना।

  • एसएसबी को पूर्व सूचना (कुछ घरेलू संस्थाओं के लिए)

  • एंटिटी: (i) भारतीय नागरिक, और (ii) भारत में पंजीकृत कंपनियां, उन्हें छोड़कर, जिनके लिए एनबीए की मंजूरी की जरूरत होती है।

  • गतिविधियां: भारत में जैविक संसाधनों को वाणिज्यिक उपयोग के लिए हासिल करना।

  • छूट: जैव विविधता के उत्पादकों और किसानों सहित स्थानीय लोगों और समुदायों, तथा देसी दवाओं की प्रैक्टिस करने वाले वैद्य और हकीमों द्वारा इस्तेमाल। 

  • एनबीए से मंजूरी

  • एंटिटी: आखिरी श्रेणी में संशोधन करता है, अब भारत में पंजीकृत ऐसी कंपनियां इसमें शामिल की गई हैं जो कंपनी एक्ट, 2013 के अंतर्गत ‘विदेशी नियंत्रित कंपनियां हैं।

  • एसएसबी को पूर्व सूचना

  • गतिविधियां: वाणिज्यिक उपयोग के लिए संबंधित ज्ञान तक पहुंच के लिए भी पूर्व सूचना देना जरूरी होगा। 

  • छूट: निम्नलिखित को छूट दी गई है:(i) संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान, (ii) औषधीय पौधों तथा उनके उत्पादों की खेती, (iii) आयुष प्रैक्टीशनर्स; वैद्यों और हकीमों तथा आयुष प्रैक्टीशनर्स को यह छूट सिर्फ आहार और आजीविका के लिए इस्तेमाल करने पर मिलेगी।

स्रोत: जैव विविधता एक्ट, 2002; जैव विविधता (संशोधन) बिल, 2021; पीआरएस।

  • बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) को मंजूरी: एक्ट में निर्दिष्ट किया गया है कि (i) भारत से प्राप्त होने वाले जैविक संसाधनो से जुड़े आईपीआर के आवेदन, या (ii) पेटेंट की सीलिंग से पहले एनबीए की मंजूरी जरूरी है। बिल में प्रावधान है कि आईपीआर मिलने से पहले मंजूरी हासिल करनी जरूरी होगी, न कि आवेदन करने से पहले। बिल संस्था के मूल स्थान के आधार पर अलग-अलग मंजूरी प्रक्रियाओं को निर्दिष्ट करता है। विदेशी संस्थाओं को एनबीए से मंजूरी लेनी होगी, जबकि घरेलू संस्थाओं को एनबीए में पंजीकरण कराना होगा। हालांकि घरेलू संस्थाओं को आईपीआर के वाणिज्यिकरण के समय एनबीए से मंजूरी लेनी होगी। बिल संबंधित ज्ञान पर आईपीआर के लिए भी मंजूरी की शर्त लगाता है।

  • लाभ साझाकरण: एक्ट के अंतर्गत एनबीए लाभ साझाकरण की शर्तों को तय करता है और विभिन्न गतिविधियों के लिए मंजूरियां प्रदान करता है। लाभ साझाकरण का मतलब है, आवेदकों को लाभ का दावा करने वालों और स्थानीय लोगों से मौद्रिक और गैर मौद्रिक लाभों को साझा करना होगा। लाभ का दावा करने वालों में जैव विविधता के संरक्षक, या संबंधित परंपरागत ज्ञान के सर्जक या धारक शामिल हैं। एक्ट अनुसंधान, वाणिज्यिक उपयोग, साथ ही कुछ संस्थाओं के लिए जैव सर्वेक्षण और जैव उपयोग पर लाभ साझाकरण के प्रावधानों को लागू करता है। बिल अनुसंधान और जैव सर्वेक्षण और जैव उपयोग को इससे बाहर करता है। बिल कहता है कि एसएसबी घरेलू संस्थाओं को मंजूरी देते समय एनबीए के रेगुलेशंस के अनुसार लाभ साझाकरण को निर्धारित करेगा। एक्ट में प्रावधान है कि लाभ साझाकरण की शर्तें आवेदक, संबंधित स्थानीय निकायों और लाभ का दावा करने वालों के बीच परस्पर सहमति से निर्धारित नियम और शर्तों के अनुसार होनी चाहिए। इसके स्थान पर बिल में प्रावधान है कि शर्तें आवेदक और जैव विविधता प्रबंधन समिति (बीएमसी) जिसका प्रतिनिधित्व एनबीए करेगा, के बीच परस्पर सहमति से निर्धारित शर्तों के अनुसार होनी चाहिए।  

  • अपराध और दंडएक्ट के अनुसार, कई गतिविधियों के लिए मंजूरी न लेना या पूर्व सूचना न देना अपराधों में शामिल हैं। इन अपराधों के लिए पांच वर्ष की कैद या जुर्माने, या दोनों की सजा है। बिल इन अपराधों को डिक्रिमिनलाइज करता है और इन अपराधों के लिए एक लाख रुपए से लेकर 50 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान करता है। उल्लंघन दोहराने पर एक करोड़ रुपए तक का अतिरिक्त जुर्माना लग सकता है। एक एड्जूडिकेटिंग अधिकारी, जो कम से कम केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव स्तर का या राज्य सरकार के सचिव स्तर का अधिकारी हो, जांच करेगा और दंड को निर्धारित करेगा।  

भाग ख : प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान के संबंध में छूट में अस्पष्टता

2002 के एक्ट में जैविक संसाधनों और संबंधित ज्ञान के उपयोगकर्ताओं से यह अपेक्षित है कि वे स्थानीय समुदायों के साथ लाभ साझा करेंगे। बिल संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान के उपयोगकर्ताओं को इस शर्त से छूट देता है। बिल में संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान शब्दों को स्पष्ट नहीं किया गया है। जैव विविधता पर कन्वेंशन और उसके तहत नागोया तथा कार्टाजेना प्रोटोकॉल में भी इन शब्दों को स्पष्ट नहीं किया गया है। इनकी व्यापक व्याख्या से लगभग सभी परंपरागत ज्ञान के संबंध में लाभ साझा करने की शर्त से छूट मिल सकती है। 

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) के अनुसार, संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान, ऐसा परंपरागत ज्ञान है जोकि कुछ हद तक व्यवस्थित और संरचित रूप में है जिसमें ज्ञान को किसी तरह से व्यवस्थितसंगठितवर्गीकृत और श्रेणीबद्ध किया जाता है[8] एक्ट में भारत के प्रत्येक स्थानीय निकाय से अपेक्षित है कि वह एक जैव विविधता प्रबंधन समिति (बीएमसी) बनाए। जैविक विविधता नियम, 2004 कहते हैं कि बीएमसी का मुख्य काम लोगों का जैव विविधता रजिस्टर बनाना है।[9]  इस रजिस्टर में स्थानीय जैविक संसाधनों की उपलब्धता और ज्ञान, उनके औषधीय और अन्य उपयोग, या उनसे संबंधित परंपरागत ज्ञान की व्यापक जानकारी होगी। इसलिए इन रजिस्टरों में सभी प्रकार के स्थानीय परंपरागत ज्ञान को शामिल किया जा सकता है, और इससे वह डब्ल्यूआईपीओ की संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान की परिभाषा में सटीक बैठेगा। अगर इस परिभाषा का इस्तेमाल किया जाता है तो सभी प्रकार के स्थानीय परंपरागत ज्ञान का इस्तेमाल करने पर लाभ साझाकरण के प्रावधान से छूट मिल सकती है। 

लाभ साझाकरण में स्थानीय समुदायों की प्रत्यक्ष भूमिका समाप्त

बिल परस्पर सहमत शर्तों को निर्धारित करने में स्थानीय निकायों और लाभ का दावा करने वालों की प्रत्यक्ष भूमिका को समाप्त करता है। एक्ट कहता है कि विभिन्न गतिविधियों के लिए मंजूरी देते समय राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) लाभ साझाकरण की शर्तों को निर्धारित करेगा। यह मंजूरी आवेदक, संबंधित स्थानीय निकायों और लाभ का दावा करने वालों के बीच परस्पर सहमत शर्तों के अनुरूप होनी चाहिए। लाभ का दावा करने वाले वे लोग होते हैं जो जैविक संसाधनों के संरक्षक या संबंधित परंपरागत ज्ञान के सर्जक या धारक होते हैं। बिल इस प्रावधान में संशोधन करता है और कहता है कि मंजूरियां आवेदक और संबंधित जैव विविधता प्रबंधन समिति, जिसका प्रतिनिधित्व एनबीए करेगा, के बीच परस्पर सहमत शर्तों के अनुरूप होनी चाहिए। इसलिए नियम और शर्तें तय करने में लाभ का दावा करने वालों और स्थानीय लोगों की प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होगी।  

इसके अतिरिक्त स्थानीय और देशी समुदायों से पूर्व सूचित सहमति (इनफॉर्म्ड कन्सेंट) हासिल करने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। यह नागोया प्रोटोकॉल के फ्रेमवर्क के विपरीत है। नागोया प्रोटोकॉल में यह अपेक्षित है कि हस्ताक्षरकर्ता देश यह सुनिश्चित करे कि जेनेटिक संसाधन और परंपरागत ज्ञान को प्राप्त करने से पहले देशी और स्थानीय समुदायों से सूचित सहमति या मंजूरी हासिल की गई है, और इसमें उनकी संलग्नता है।6  दिव्या फार्मेसी बनाम भारत संघ (2018) मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय यह कह चुका है कि नागोया प्रोटोकॉल के अंतर्गत निष्पक्ष और समान लाभ साझाकरण की अवधारणा इस बात पर केंद्रित है कि स्थानीय और देशी समुदायों को लाभ हासिल हो।[10]  

अपराध और दंड

एक्ट के अंतर्गत अपराध करने पर पांच वर्ष तक की कैद, या जुर्माना या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं। बिल अपराधों को डिक्रिमिनलाइज करता है और उन्हें जुर्माने के साथ दंडनीय बनाता है। जुर्माना एक लाख रुपए से लेकर 50 लाख रुपए के बीच है और उल्लंघन दोहराने पर अतिरिक्त जुर्माना लग सकता है जोकि अधिकतम एक करोड़ रुपए हो सकता है। बिल कहता है कि एक एड्जुडिकेटिंग ऑफिसर जांच करेगा और जुर्माने पर फैसला सुनाएगा। एड्जुडिकेटिंग ऑफिसर को केंद्र सरकार सरकार का कम से कम संयुक्त सचिव स्तर का या राज्य सरकार के सचिव स्तर का अधिकारी होना चाहिए। हम दंड की व्यवस्था से जुड़े कुछ मुद्दों पर यहां चर्चा कर रहे हैं। 

जुर्माने पर फैसला लेने के संबंध में वैधानिक सलाह का अभाव है

इसमें जुर्माने का दायरा व्यापक है जिसे वसूला जा सकता है। यह एक लाख रुपए से एक करोड़ रुपए के बीच है, यानी अधिकतम जुर्माना, न्यूनतम जुर्माने से 100 गुना ज्यादा है। एड्जुडिकेटिंग ऑफिसर को यह सलाह भी नहीं दी गई है कि वह इस व्यापक दायरे में जुर्माने का आकलन कैसे करे। बिल में अपराधों के प्रकार के आधार पर कोई अंतर नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए अनुसंधान या वाणिज्यिक उपयोग, दोनों के लिए मंजूरी न लेने की स्थिति में सजा एक समान है। यह इस बारे में भी अंतर नहीं करता कि अपराध परंपरागत ज्ञान तक पहुंच बनाने से संबंधित है या जैविक संसाधनों को हासिल करने से संबंधित। इसी प्रकार अनुसंधान के नतीजों को मंजूरी के बिना हस्तांतरित करना, और जैव सर्वेक्षण या पेटेंट के लिए मंजूरी न लेना, दोनों के लिए एक जैसी सजा है। 

प्रश्न यह भी है कि क्या कार्यकारिणी के सदस्यों को सजा का फैसला लेने की शक्ति देना उचित है

बिल एड्जुडिकेटिंग अथॉरिटी को जज से बदलकर सरकारी अधिकारी करता है। यानी अदालत में बहस के बाद निर्णय नहीं लिया जाएगा, जांच के आधार पर सजा पर फैसला लिया जाएगा। प्रश्न यह है कि क्या सरकारी अधिकारियों को यह अधिकार देना उचित है।

विसंगतियां और चूक

निम्नलिखित अनुच्छेदों में हम बिल की ड्राफ्टिंग में विसंगतियों और चूक के बारे में बता रहे हैं। 

यह अस्पष्ट है कि सेक्शन 7 के अंतर्गत गतिविधियों के लिए एसएसबी को सिर्फ पूर्व सूचना देनी है या मंजूरी लेनी है 

बिल का क्लॉज 9, एक्ट के सेक्शन 7 में संशोधन करता है। इसमें प्रावधान है कि कुछ एंटिटीज़ को वाणिज्यिक उपयोग के लिए किसी जैविक संसाधन या संबंधित ज्ञान तक पहुंच बनाने से पहले राज्य जैव विविधता बोर्ड (एसएसबी) को सूचना देनी होगी, जोकि सेक्शन 23 (बी) और सेक्शन 24 (2) के अधीन है। हालांकि सेक्शन 23 (बी) (बिल के क्लॉज 21 द्वारा संशोधित) में प्रावधान है कि एसएसबी के कार्यों में मंजूरियां देकर या उससे इनकार करके उपरिलिखित गतिविधियों को रेगुलेट करना शामिल है। इसके अतिरिक्त एक्ट के सेक्शन 24 (2) में एसएसबी से यह अपेक्षित है कि वह सेक्शन 7 के अंतर्गत गतिविधियों, जिनकी सूचना दी गई है, को प्रतिबंधित या सीमित करेगा। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या बिल सिर्फ पूर्व सूचना की अपेक्षा करता है या सेक्शन 7 के अंतर्गत विशिष्ट गतिविधियों के लिए एसएसबी की मंजूरी लेना जरूरी है।

विदेशी नियंत्रण वाली कंपनी की परिभाषा में विसंगति

बिल में प्रावधान है कि भारत में निगमित कंपनी जोकि विदेशी नियंत्रित कंपनी है, उसे विशिष्ट गतिविधियों के लिए एनबीए से मंजूरी की जरूरत होगी। बिल के अंतर्गत विदेशी नियंत्रित कंपनी का अर्थ है, कंपनी एक्ट, 2013 के सेक्शन 2 (42) के अनुसार विदेशी कंपनी जोकि किसी विदेशी के नियंत्रण में है। कंपनी एक्ट के सेक्शन 2 (42) में विदेशी कंपनी का अर्थ ऐसी विदेशी कंपनी है जोकि भारत के बाहर निगमित कंपनी या बॉडी कॉरपोरेट है। इस प्रकार बिल विरोधाभास पैदा करता है कि भारत में निगमित कंपनी (बिल का क्लॉज 5), जोकि भारत के बाहर निगमित हुई है (कंपनी एक्ट के सेक्शन 2 (42)), को एनबीए की मंजूरी की जरूरत होगी।   

कुछ मामलों में एनबीए की मंजूरी के लिए आवेदन प्रक्रिया निर्दिष्ट नहीं है

बिल द्वारा संशोधित एक्ट के सेक्शन 3 में निर्दिष्ट व्यक्तियों से यह अपेक्षित है कि वे भारत में मौजूद जैविक संसाधनों या संबंधित ज्ञान तक पहुंच बनाने के लिए एनबीए से मंजूरी प्राप्त करें। यह मंजूरी निम्नलिखित कार्यों के लिए ली जाएगी: (i) अनुसंधान, (ii) वाणिज्यिक उपयोग, या (iii) जैव सर्वेक्षण और जैव उपयोग। बिल का क्लॉज 17 मंजूरी के लिए एनबीएन को आवेदन के तरीके को स्पष्ट करता है। हालांकि इसमें सिर्फ वाणिज्यिक उपयोग के लिए पहुंच बनाना शामिल है। अनुसंधान और जैव सर्वेक्षण एवं जैव उपयोग के लिए आवेदन के तरीकों को बिल में निर्दिष्ट नहीं किया गया है। 

बिल जैव उपयोग के संदर्भों को हटाने का प्रयास करता हैहालांकि कुछ संदर्भ रह गए हैं

एक्ट में जैव सर्वेक्षण और जैव उपयोग की परिभाषा दी गई है। बिल परिभाषा से और एक्ट में अन्य स्थानों से जैव उपयोग के संदर्भ हटाने का प्रयास करता है। हालांकि बिल द्वारा संशोधित एक्ट के सेक्शन 3 में जैव उपयोग शब्द मौजूद हैं।

 

[1]. “95th Report: Biodiversity Bill, 2000”, the Departmentally Related Standing Committee on Science, Technology, and Environment, Rajya Sabha, December 2001. 

[2]. “The Global Assessment Report on  Biodiversity and Ecosystem Services: Summary for Policymakers”, Intergovernmental Science Policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services (IPBES), May 2019. 

[3]Parliamentary Debates in Rajya Sabha on December 11, 2002. 

[4]Text of the Convention on Biological Diversity, United Nations Organisation, 1992. 

[5]Country Profile-India, Website of the Convention on Biological Diversity as accessed on January 25, 2022.

[7]The Biological Diversity (Amendment) Bill, 2021 as introduced in Lok Sabha. 

[8]Glossary of Key Terms Related to Intellectual Property and Genetic Resources, Traditional Knowledge and Traditional Cultural Expressions, Intergovernmental Committee on Intellectual Property and Genetic Resources, Traditional Knowledge and Folklore, World Intellectual Property Organisation, September 2021. 

[10]Divya Pharmacy vs Union Of India And Others, Writ Petition No. 3437 of 2016, Uttarakhand High Court, December 21, 2018.

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