मंत्रालय: 
गृह मामले

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल बहु-राज्यीय सहकारी समिति एक्ट, 2002 में संशोधन करता है। इसके तहत सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान किया गया है जोकि बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के बोर्ड्स के चुनाव कराएगी और उसकी निगरानी करेगी।

  • बहु-राज्यीय सहकारी समिति को उनकी शेयरहोल्डिंग को रिडीम करने से पहले सरकारी प्राधिकरणों की पूर्व अनुमति लेनी होगी।

  • बीमारू बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के पुनर्जीवन के लिए सहकारी पुनर्वास, पुननिर्माण और विकास कोष की स्थापना की जाएगी। लाभकारी बहुराज्यीय सहकारी समितियों के योगदानों से इस कोष का वित्त पोषण किया जाएगा।

  • बिल के तहत मौजूदा बहु-राज्यीय सहकारी समिति में राज्यों की सहकारी समितियों के विलय की अनुमति है, जोकि संबंधित राज्य कानूनों के अधीन होगा।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बीमारू बहु-राज्यीय सहकारी समितियों को एक ऐसे कोष से पुनर्जीवित किया जएगा, जिसे लाभकारी बहुराज्यीय सहकारी समितियों के योगदानों के जरिए वित्त पोषित किया जाएगा। इससे कुशलता से संचालित होने वाली समितियों को अतिरिक्त लागत का वहन करना पड़ेगा।

  • सरकार को यह शक्ति देना कि वह बहु-राज्यीय सहकारी समितियों में अपनी शेयरहोल्डिंग के रिडम्प्शन को सीमित कर सकती है, सहकारिता समितियों के स्वायत्तता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

सहकारी समितियां स्वैच्छिक, लोकतांत्रिक और स्वायत्त संगठन हैं जिन पर उनके सदस्यों का नियंत्रण होता है। ये सदस्य सहकारी समितियों की नीतियों और फैसलों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। भारत में औपचारिक सहकारी समितियों के गठन से पहले भी ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं, जिनमें ग्रामीण समुदाय पानी के टैंक और जंगलों जैसी परिसंपत्तियों का सामूहिक रूप से सृजन करते थे।[1] स्वतंत्रता के बाद पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) में भी इस बात पर जोर दिया गया था कि सामुदायिक विकास के विभिन्न पहलुओं को शामिल करने के लिए सहकारी समितियों को अपनाया जाए।1 बहु-राज्यीय सहकारी समितियां एक से ज्यादा राज्यों में काम करती हैं। ये कृषि, टेक्टाइल, पोल्ट्री और मार्केटिंग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में काम करती हैं। 

संविधान के अनुसार, राज्य सहकारी समितियों का गठन और उनका रेगुलेशन करते हैं और उन्हें बंद भी कर सकते हैं।[2]  संसद बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के गठन, रेगुलेशन और उन्हें बंद करने से संबंधित मामलों पर कानून बना सकती है।[3] बहु-राज्यीय सहकारी समिति एक्ट, 2002 में बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के गठन और कामकाज से संबंधित प्रावधान हैं।[4] 2011 में सहकारी समितियों को चलाने से संबंधित दिशानिर्देशों को निर्दिष्ट करने के लिए संविधान में संशोधन किया गया (इसमें भाग IX बी को जोड़ा गया)।[5] इन दिशानिर्देशों में निम्नलिखित का प्रावधान है: (i) सहकारी समितियों के बोर्ड्स का संयोजन, (ii) बोर्ड के सदस्यों का निर्वाचन, (iii) सहकारी समितियों के एकाउंट्स का ऑडिट, और (iv) बोर्ड का सुपरसेशन। जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भाग IX बी सिर्फ बहु-राज्यीय सहकारी समितियों पर लागू होगा, चूंकि राज्य स्तरीय सहकारी समितियों पर कानून बनाना, राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है।[6]  

पिछले कुछ वर्षों के दौरान विभिन्न विशेषज्ञों ने कहा है कि सहकारी समितियों के कामकाज में कई तरह की कमियां हैं।[7],[8],[9]  ये इस प्रकार हैं: (i) गवर्नेंस में कमियां, (ii) राजनीतिकरण और सरकार की बड़ी भूमिका, (iii) सक्रिय सदस्यता सुनिश्चित करने में असमर्थता, (iv) पूंजी निर्माण के प्रयासों का अभाव, और (v) कुशल पेशेवर लोगों को आकर्षित करने और उन्हें बहाल रखने में असमर्थता।9  इसके अतिरिक्त ऐसे मामले भी हैं जिसमें सहकारी समितियों के बोर्ड्स के चुनाव अनिश्चित समय के लिए स्थगित कर दिए गए हैं।[10] 

2022 का बिल एक्ट में संशोधन करने का प्रयास करता है ताकि उसे संविधान के भाग IX बी में प्रदत्त प्रावधानों के अनुरूप किया जा सके, और सहकारी समितियों के कामकाज और गवर्नेंस से संबंधित चिंताओं को दूर किया जा सके। 20 दिसंबर, 2022 को इस बिल को ज्वाइंट कमिटी के पास भेज दिया गया। बहु-राज्यीय सहकारी समिति (संशोधन) बिल, 2022 से संबंधित ज्वाइंट कमिटी (चेयर: चंद्र प्रकाश जोशी) ने 15 मार्च, 2023 को अपनी रिपोर्ट सौंपी और बिल के अधिकतर प्रावधानों से सहमति जताई।[11] 

मुख्य विशेषताएं 

  • बोर्ड के सदस्यों का निर्वाचन: एक्ट के तहत बहु-राज्यीय सहकारी समिति के बोर्ड का निर्वाचन उसके मौजूदा बोर्ड द्वारा किया जाता है। बिल इसमें संशोधन करता है और निर्दिष्ट करता है कि केंद्र सरकार सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण बनाएगी जोकि निम्नलिखित कार्य करेगा: (i) निर्वाचन करना, (ii) मतदाता सूची को तैयार करने से संबंधित मामलों का निरीक्षण, निर्देशन और उसका नियंत्रण करना, और (iii) अन्य निर्दिष्ट काम करना। प्राधिकरण में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन सदस्य होंगे। केंद्र सरकार चयन समिति के सुझावों के आधार पर इन सदस्यों की नियुक्ति करेगी।

  • सहकारी समितियों का एकीकरण: एक्ट में बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के एकीकरण और विभाजन का प्रावधान है। आम बैठक में एक प्रस्ताव पारित करके, ऐसा किया जा सकता है। इसके लिए मौजूद और वोट करने वाले कम से कम दो तिहाई सदस्यों की जरूरत होती है। बिल सहकारी समितियों को मौजूदा बहु-राज्यीय सहकारी समिति में विलय होने की अनुमति देता है जोकि संबंधित राज्य कानूनों के अधीन है। इस विलय की मंजूरी देने के लिए आम बैठक में सहकारी समिति के मौजूदा और वोट देने वाले दो तिहाई सदस्यों को प्रस्ताव पारित करना होगा।

  • बीमारू सहकारी समितियों के लिए कोष: बिल बीमारू बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के पुनर्जीवन के लिए सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण एवं विकास कोष की स्थापना करता है। बीमारू बहु-राज्यीय सहकारी समिति वह होती है: (i) जिसका संचयी घाटा उसकी चुकता पूंजी (पेड-अप कैपिटल), फ्री रिजर्व और अधिशेष के बराबर या उससे अधिक है, और (ii) जिसने पिछले दो वर्षों में नकद घाटा उठाया है। केंद्र सरकार समिति के पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिए योजना तैयार कर सकती है। इस कोष का वित्त पोषण उन बहु-राज्यीय सहकारी समितियों द्वारा किया जाएगा, जो पिछले तीन वित्तीय वर्षों से लाभ में रही हैं। ये समितियां कोष में एक करोड़ रुपए या अपने शुद्ध लाभ का एक प्रतिशत, जो भी कम होगा, जमा करेंगी।

  • सरकारी शेयरहोल्डिंग के रिडम्प्शन पर प्रतिबंध: एक्ट में प्रावधान है कि बहु-राज्यीय सहकारी समिति में किसी सरकारी प्राधिकरणों के शेयर्स को उस समिति के उप कानूनों के आधार पर रिडीम किया जा सकता है। इन सरकारी प्राधिकरणों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) केंद्र सरकार, (ii) राज्य सरकारें, (iii) राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम, (iv) सरकार के स्वामित्व वाला या उसके द्वारा नियंत्रित कोई निगम, या (v) कोई सरकारी कंपनी। बिल इसमें संशोधन करता है, और प्रावधान करता है कि केंद्र या राज्य सरकारों के शेयर्स को बिना उनकी पूर्व अनुमति के रिडीम नहीं किया जा सकता।  

  • शिकायतों का निवारण: बिल के अनुसार, केंद्र सरकार प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के साथ एक या एक से अधिक सहकारी ऑम्बुड्ज़्मैन की नियुक्ति करेगी। ऑम्बुड्ज़्मैन निम्नलिखित के संबंध में सहकारी समितियों के सदस्यों की शिकायतों की जांच करेगा: (i) उनकी जमा, (ii) समिति के कामकाज के उचित लाभ, या (iii) सदस्यों के व्यक्तिगत अधिकारों को प्रभावित करने वाले मुद्दे। ऑम्बुड्ज़्मैन शिकायत प्राप्त होने के तीन महीनों के भीतर जांच और अधिनिर्णय की प्रक्रिया को पूरी करेगा। ऑम्बुड्ज़्मैन के निर्देशों के खिलाफ एक महीने के भीतर केंद्रीय रजिस्ट्रार (जिसकी नियुक्ति केंद्र सरकार करती है) में अपील दायर की जा सकती है।

भाग ख : प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

बीमारू सहकारी समितियों को पुनर्जीवित करने से लाभकारी समितियों पर दबाव पड़ सकता है 

बिल बीमारू बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के पुनर्जीवन के लिए सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण और विकास कोष की स्थापना करने का प्रस्ताव रखता है। बीमारू बहु-राज्यीय सहकारी समिति वह होती है: (i) जिसका संचयी घाटा उसकी चुकता पूंजी (पेड-अप कैपिटल), फ्री रिजर्व और अधिशेष के बराबर या उससे अधिक है, और (ii) जिसने उसी और उससे पहले के वित्तीय वर्ष में नकद घाटा उठाया है। बहु-राज्यीय सहकारी समितियों, जिन्होंने पिछले तीन वित्तीय वर्षों में लाभ कमाया है, इस कोष में योगदान देंगी। उन्हें एक करोड़ रुपए या अपने शुद्ध लाभ का एक प्रतिशत, जो भी कम होगा, हर साल जमा कराना होगा। इस कोष में जमा धनराशि को बीमारू बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के पुनर्जीवन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ये सहकारी समितियां कारोबारी प्रतिस्पर्धी भी हो सकती हैं। बिल खराब तरीके से काम करने वाली समितियों को उबारने के लिए बेहतर तरीके से करने वाली समितियों पर खर्चे का भार डाल रहा है। कुशलता से काम करने और लाभ कमाने वाली सहकारी समितियों के लिए ऐसा वित्तीय दबाव अनिवार्य करना अनुचित हो सकता। इस प्रावधान का नतीजा यह हो सकता है कि लाभकारी और वित्तीय रूप से स्थिर सहकारी समितियां, बीमारू समितियों को पुनर्जीवित करें। इसकी तुलना में कंपनी एक्ट, 2013 के तहत स्थापित कंपनी को बीमारू कंपनियों को पुनर्जीवित नहीं करना होता।[12]

2009 में प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के अंब्रैला संगठन और रिवाइवल फंड के गठन पर वर्किंग ग्रुप ने शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबीज़) के लिए रिवाइवल फंड बनाने का प्रस्ताव दिया था।[13]  वर्किंग ग्रुप ने कहा था कि कई बीमारू यूसीबीज़ को सॉल्वेंसी की मदद की जरूरत होती है। उसने अनुमान लगाया था कि नेगेटिव नेट वर्थ वाली किसी यूसीबी को पॉजिटिव नेट वर्थ में लाने के लिए 2,500 करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत हो सकीत है। वर्किंग ग्रुप ने इस बात पर विचार किया था कि इन बीमारू यूसीबीज़ को पुनर्जीवित करने के लिए एक फंड बनाया जाए जिसमें लाभकारी यूसीबीज़ अपना योगदान दें। हालांकि 2009 में इस क्षेत्र का कुल शुद्ध लाभ 1,000 करोड़ रुपए था, इसलिए इन योगदानों को बीमारू यूसीबीज़ की बहाली के लिए पर्याप्त नहीं समझा गया। 2020-21 में सभी यूसीबीज़ का कुल शुद्ध लाभ 2,749 करोड़ रुपए था।[14]  15 दिसंबर, 2022 तक सहकारी बैंकों सहित 76 बहु-राज्यीय सहकारी समितियां लिक्विडेशन में थीं।[15]  इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि यूसीबीज़ ऐसे रिवाइवल फंड में धनराशि देने का विरोध कर सकते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से योगदान न होने की स्थिति में, उसने यूसीबीज़ की बहाली के लिए अलग से कोष न बनाने का सुझाव दिया।13 हालांकि बैंकिंग का मामला अलग है क्योंकि वहां जमाकर्ताओं का धन दांव पर लगा होता है, और यह तर्क दूसरी सहकारी समितियों पर लागू नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए बैंकिंग कंपनियां (दूसरी कंपनियों से अलग) इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 के दायरे में नहीं आतीं।[16]  डिपॉजिट इंश्योरेंस जैसे विशेष प्रावधान बैंकिंग कंपनियों पर लागू होते हैं। 

सहकारी समितियों पर उच्च स्तरीय समिति (2009) ने सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार को बीमारू इकाइयों को पुनर्जीवित करने के लिए राष्ट्रीय सहकारी पुनर्वास एवं संस्थागत सुरक्षा कोष की स्थापना करनी चाहिए।9  उसने सुझाव दिया था कि राज्य को इस कोष में योगदान देना चाहिए।9

सरकार की शेयरहोल्डिंग के रिडम्प्शन को सीमित करना सहकारिता के सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है

एक्ट में प्रावधान है कि किसी बहु-राज्यीय सहकारी समिति में सरकारी प्राधिकरणों के शेयर्स को, समिति के उपकानूनों के आधार पर रिडीम किया जा सकता है। इन सरकारी प्राधिकरणों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) केंद्र सरकार, (ii) राज्य सरकारें, (iii) राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम, (iv) सरकार के स्वामित्व वाला या उसके द्वारा नियंत्रित कोई निगम, या (v) कोई सरकारी कंपनी। अगर उप कानूनों में इन संस्थाओं के शेयर्स के रिडम्प्शन पर कोई प्रावधान नहीं तो समिति और संस्था के बीच परस्पर सहमत प्रक्रियाओं के आधार पर ऐसा किया जा सकता है। बिल इसमें संशोधन करता है, और प्रावधान करता है कि केंद्र या राज्य सरकारों के शेयर्स को बिना उनकी पूर्व अनुमति के रिडीम नहीं किया जा सकता। हालांकि इससे खराब तरह से काम करने वाली सहकारी समितियों पर सरकारी नियंत्रण सुनिश्चित हो सकता है, लेकिन यह सहकारिता के स्वायत्तता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है। 

एक्ट में प्रावधान है कि केंद्र सरकार खराब तरह के काम करने वाली उन बहु-राज्यीय सहकारी समितियों को निर्देश दे सकती है और उनके बोर्ड्स को सुपरसीड कर सकती है, जहां उसकी शेयरहोल्डिंग कम से कम 51% है। सरकारी शेयरहोल्डिंग के रिडम्प्शन को सीमित करके, यह सुनिश्चित हो सकता है कि सरकार के बोर्ड को सुपरसीड करने से पहले ही बीमारू बहु-राज्यीय सहकारी समितियां सरकारी शेयर्स को रिडीम न कर लें। हालांकि बिल सरकार को यह अधिकार देता है कि अगर किसी बहु-राज्यीय सहकारी समिति में उसकी शेयरहोल्डिंग है, या उसने उसे कोई लोन, वित्तीय सहायता या गारंटी दी है तो वह उनके बोर्ड को सुपरसीड कर सकती है।

दूसरी तरफ केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी शेयरहोल्डिंग के रिडम्प्शन पर वीटो का अधिकार देना, लोकतांत्रिक सदस्य के नियंत्रण और स्वायत्तता के सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है, जैसा कि एक्ट की पहली अनुसूची में दिया गया है। ये सिद्धांत कहते हैं कि सहकारी समितियां ऐसे लोकतांत्रिक, स्वायत्त और स्वयं सहायता संगठन हैं जिन पर उनके सदस्यों का नियंत्रण होता है।4  अगर वे अन्य संगठनों/सरकारों के साथ समझौते करते हैं या बाहरी स्रोतों से पूंजी जुटाते हैं, तो वे ऐसा उन शर्तों के आधार पर कर सकते हैं, जहां उनकी स्वायत्तता और लोकतांत्रिक सदस्य नियंत्रण कमजोर न होता हो।  

सहकारी समितियों पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट (2009) में सहकारी समितियों की शेयर पूंजी में सरकारी भागीदारी के खिलाफ सुझाव दिया गया था, क्योंकि इससे सरकारी नियंत्रण कायम होता है, और यह सहकारी समितियों की स्वायत्तता के लिए नुकसानदेह हो सकता है।9 समिति ने सुझाव दिया था कि जहां तक संभव हो, सहकारी समितियों को अनुदान या ब्याज मुक्त ऋण के रूप में सरकारी सहायता प्रदान की जा सकती है।9  जिन मामलों में सरकार ने प्रारंभिक शेयर पूंजी प्रदान की है, वहां भी इसे जल्द से जल्द रिडीम किया जाना चाहिए।9 

[1]. The Cooperative Movement in India – A Brief History, Ministry of Cooperation, as accessed on March 15, 2023, https://cooperation.gov.in/sites/default/files/2022-12/History_of_cooperatives_Movement.pdf

[2]. Entry 32, List II-State List, Seventh Schedule, Constitution of India, https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI_English.pdf.

[3]. Entry 44, List I-Union List, Seventh Schedule, Constitution of India, https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI_English.pdf.

[4]. The Multi-State Co-operative Societies Act, 2002, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/1914/1/A2002-39.pdf.

[5]. Part IXB, The Co-operative Societies, Constitution of India, https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI_English.pdf.

[6]. Civil Appeal Nos.9108-9109 of 2014, Union of India versus Rajendra N Shah and Anr., Supreme Court of India, July 20, 2021, https://main.sci.gov.in/supremecourt/2013/21321/21321_2013_32_1501_28728_Judgement_20-Jul-2021.pdf.

[7]. Report of the Committee on Urban Co-operative Banks, Reserve Bank of India, December 1999, https://www.rbi.org.in/Scripts/PublicationReportDetails.aspx?FromDate=12/07/99&SECID=7&SUBSECID=0

[8]. Report of Task Force on Revival of Rural Cooperative Credit Institutions, National Bank of Agriculture and Rural Development, https://www.nabard.org/demo/auth/writereaddata/File/DCRR%20-%20Task%20Force.pdf

[9]. Report of the High-Powered Committee on Cooperatives, Ministry of Agriculture, May 2009, http://www.indiaenvironmentportal.org.in/files/hpcc2009new.pdf[10]. The Constitution (One Hundred and Eleventh Amendment) Bill, 2009, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2009/The_Constitution_111th_Amendment_Bill,_2009.pdf.

[13]. Report of the Working Group on Umbrella Organisation and Constitution of Revival Fund for Primary (Urban) Co-operative Banks, Reserve Bank of India, November 17, 2009, https://www.rbi.org.in/Scripts/PublicationReportDetails.aspx?UrlPage=&ID=576.

[14]. Developments in Co-operative Banking, Reserve Bank of India, December 28, 2021, https://rbi.org.in/scripts/PublicationsView.aspx?Id=20945.

[15]. Unstarred Question No 1603, Rajya Sabha, Ministry of Cooperation, December 21, 2022, https://pqars.nic.in/annex/258/AU1603.pdf.

[16]. The Insolvency and Bankruptcy Code, 2016, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2154/1/AA31__2016.pdf#search=companies%20act.

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