मंत्रालय: 
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल वन (संरक्षण) एक्ट, 1980 में संशोधन करता है और उसे कुछ प्रकार की भूमि पर लागू करता है। इसमें भारतीय वन एक्ट, 1927 या 1980 के एक्ट के प्रभावी होने के बाद सरकारी रिकॉर्ड्स के तहत वन के रूप में अधिसूचित भूमि शामिल है। एक्ट 12 दिसंबर, 1996 से पहले गैर वानिकी उपयोग के रूप में परिवर्तित भूमि पर लागू नहीं होगा।

  • यह कुछ प्रकार की भूमि को एक्ट के दायरे से छूट देता है। इसमें भारतीय सीमा के साथ 100 किलोमीटर के भीतर स्थित भूमि शामिल है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं, सड़क किनारे की छोटी सुविधाओं और बसाहट की तरफ जाने वाली सार्वजनिक सड़कों के लिए जरूरी हैं।  

  • राज्य सरकार को किसी निजी संस्था को वन भूमि देने से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होती है। बिल सभी संस्थाओं के लिए इस शर्त को लागू करता है, और कहता है कि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित नियमों और शर्तों के आधार पर ये भूमि सौंपी जाएगी। 

  • एक्ट निर्दिष्ट करता है कि वनों में कुछ क्रियाकलाप किए जा सकते हैं, जैसे चेक पोस्ट लगाना, फेंसिंग करना और पुल बनाना। बिल चिड़ियाघर चलाने, सफारी और इको-टूरिज्म सुविधाओं की भी अनुमति देता है। 

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल दो प्रकार की भूमि को एक्ट के दायरे से बाहर करता है: 25 अक्टूबर, 1980 से पहले वन के तौर पर रिकॉर्ड की गई, लेकिन वन के तौर पर अधिसूचित न की गई भूमि, और 12 दिसंबर, 1996 से पहले वानिकी उपयोग से गैर वानिकी उपयोग में परिवर्तित की गई भूमि। यह प्रावधान 1996 में सर्वोच्च न्यायालय के वनों की कटाई को रोकने से संबंधित निर्णय के खिलाफ हो सकता है।  

  • राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं के लिए सीमा क्षेत्र के निकट की भूमि को छूट देने से पूर्वोत्तर राज्यों में वन आवरण और वन्य जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

  • चिड़ियाघर, इको-टूरिज्म सुविधाओं और टोही सर्वेक्षणों जैसी परियोजनाओं के लिए पूरी छूट देने से वन भूमि और वन्य जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारतीय वन एक्ट, 1927 को लकड़ी और दूसरे वन संसाधनों के प्रबंधन के उद्देश्य से बनाया गया था।[1],[2]  यह कानून राज्य सरकारों के लिए यह प्रावधान करता है कि वे अपने स्वामित्व वाली किसी वन भूमि को आरक्षित या संरक्षण वन अधिसूचित कर सकती हैं। ऐसी भूमि पर सभी भू अधिकार एक्ट के प्रावधानों के अधीन हैं। वन (संरक्षण) एक्ट, 1980 को बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को रोकने के लिए लागू किया गया था।[3] अगर वन भूमि को गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए परिवर्तित करना है तो इस कानून के तहत केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी जरूरी है।[4]  

वन आवरण से तात्पर्य एक हेक्टेयर से अधिक आकार की भूमि से है जिसमें वृक्ष चांदवा घनत्व (वृक्ष के चांदवे से आच्छादित भूमि का प्रतिशत) 10% से अधिक है।[5] 2001 से 2021 तक भारत के कुल वन आवरण में 38,251 वर्ग किमी की शुद्ध वृद्धि हुई। यह वृद्धि मुख्य रूप से खुले वन आवरण में हुई थीजहां वृक्ष चांदवा घनत्व 10-40% है (तालिका 1 देखें)। इसी अवधि में 40% से अधिक चांदवा घनत्व वाले वन आवरण में 10,140 वर्ग किमी की गिरावट आई थी।

तालिका 1भारत का वन आवरण (वर्ग किलोमीटर में) 

वृक्ष चांदवा घनत्व 

2001

2021

परिवर्तन

10% से 40% (खुला)

2,58,729

3,07,120

4,391

40% से अधिक 

4,16,809

4,06,669

-10,140

कुल वन क्षेत्र

6,75,538

7,13,789

38,251

नोट2001 के आंकड़ों में, 2021 के आंकड़ों से अलग, मध्यम सघन वन (40% से 70% बीच चंदवा घनत्व) और बहुत सघन वन (70से अधिक चांदवा घनत्व) के बीच अंतर नहीं किया गया था। इस तालिका में तुलना के लिए बहुत सघन और मध्यम सघन वनों हेतु 2021 के आंकड़े लिए गए हैं।
स्रोत
2001 और 2021 के लिए भारत की वन स्थिति रिपोर्टपीआरएस।

विज्ञान एवं तकनीक, पर्यावरण एवं वन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2019) ने कहा कि कई कारणों से वन भूमि पर दबाव बढ़ा है, जैसे उद्योगों की मांग, कृषि, और वन उत्पादों की मांग।[6]  1980 के एक्ट में वन भूमि को गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए परिवर्तित करने पर कई प्रतिबंध थे। बिल वन भूमि को एक्ट के दायरे में शामिल करने और उसे उस दायरे से बाहर करने वाले मानदंडों में परिवर्तन करता है।[7] यह उन क्रियाकलापों की सूची का भी विस्तार करता है, जिन्हें वन भूमि में अनुमति दी जाएगी। बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (चेयरश्री राजेंद्र अग्रवाल) के पास भेजा गया है। 

मुख्य विशेषताएं

  • एक्ट के दायरे में आने वाली भूमिबिल प्रावधान करता है कि दो प्रकार की भूमि एक्ट के दायरे में आएगी: (i) भारतीय वन एक्ट, 1927 या किसी अन्य कानून के तहत वन के रूप में घोषित/अधिसूचित भूमिया (ii) पहली श्रेणी में न आने वाली भूमि, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में 25 अक्टूबर, 1980 को या उसके बाद वन के रूप में अधिसूचित। इसके अलावाएक्ट 12 दिसंबर, 1996 को या उससे पहले वन उपयोग से गैर-वानिकी उपयोग में परिवर्तित भूमि पर लागू नहीं होगाजिसका आदेश किसी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश द्वारा अधिकृत अथॉरिटी ने दिया है।

  • भूमि की छूट प्राप्त श्रेणियांबिल एक्ट के प्रावधानों से कुछ प्रकार की भूमि को छूट भी देता है, जैसे रेल लाइन या सार्वजनिक सड़क, जिसका रखरखाव केंद्र सरकार करती है, के पास स्थित ऐसी वन भूमि जो आवास, रेल या सड़क किनारे सुविधा केंद्र (इनका अधिकतम आकार 0.10 हेक्टेयर है) तक पहुंच प्रदान करती है। जिस वन भूमि को छूट दी जाएगी, उसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अंतरराष्ट्रीय सीमाओंनियंत्रण रेखा या वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ 100 किमी के भीतर स्थित भूमिजिसे राष्ट्रीय महत्व या सुरक्षा के लिए सामरिक लिनियर प्रॉजेक्ट के निर्माण हेतु उपयोग करने के लिए प्रस्तावित किया गया है, (ii) 10 हेक्टेयर तक की भूमिजिसे सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए उपयोग हेतु प्रस्तावित किया गया है, और (iii) रक्षा संबंधी प्रॉजेक्ट्सअर्धसैनिक बलों के लिए शिविरया केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट पब्लिक यूटिलिटी प्रॉजेक्ट्स के निर्माण के लिए प्रस्तावित भूमि (वामपंथी अतिवादी प्रभावित क्षेत्र में पांच हेक्टेयर से अधिक नहीं)। ये छूट केंद्र सरकार द्वारा दिशानिर्देशों के तहत निर्दिष्ट नियमों और शर्तों के अधीन होंगी।

  • लीज़/अन्य किसी प्रकार से भूमि देनाएक्ट के तहत अगर राज्य सरकार को किसी संगठन को (जिस पर सरकार का स्वामित्व या नियंत्रण नहीं है) लीज़ या किसी और प्रकार से वन भूमि सौंपने का निर्देश देता होता है तो उसे पहले केंद्र सरकार की अनुमति लेनी होती है। बिल इस शर्त को सभी संगठनों के लिए लागू करता है, जिसमें सरकार के स्वामित्व और नियंत्रण वाले संगठन भी शामिल हैं। बिल में यह भी अपेक्षित है कि यह पूर्व मंजूरी केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित नियमों और शर्तों के अधीन होगी। 

  • वन भूमि में अनुमत गतिविधियां: एक्ट वनों की कटाई या गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाता है। केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति से ऐसे प्रतिबंध हटाए जा सकते हैं। गैर-वानिकी उद्देश्यों में बागवानी फसलों की खेती या रीफॉरेस्टेशन के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए भूमि का उपयोग शामिल है। एक्ट कुछ गतिविधियों को निर्दिष्ट करता है जिन्हें गैर-वानिकी उद्देश्यों से बाहर रखा जाएगायानी गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के उपयोग पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा। इन गतिविधियों में वन और वन्यजीवों के संरक्षणप्रबंधन और विकास से संबंधित कार्य शामिल हैं जैसे चेक पोस्टफायर लाइन बनानाबाड़ लगाना और वायरलेस संचार स्थापित करना।

बिल इस सूची में कुछ और गतिविधियों को शामिल करता है, जैसे: (i) संरक्षित स्थानों के अतिरिक्त वन क्षेत्रों में वन्य जीवन (संरक्षण) एक्ट, 1972 के तहत सरकार या किसी अन्य अथॉरिटी के स्वामित्व वाले चिड़ियाघर और सफारी, (ii) इको-टूरिज्म संबंधी सुविधाएं, (iii) सिल्विकल्चरल ऑपरेशंस (वनों की वृद्धि) और (iv) केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट कोई अन्य उद्देश्य। इसके अलावा केंद्र सरकार उन नियमों और शर्तों को निर्दिष्ट कर सकती है जिनके जरिए किसी सर्वेक्षण (जैसे एक्सप्लोरेशन का काम, सेसिमिक सर्वे) को गैर वानिकी उद्देश्य के दायरे से बाहर किया जा सकता है।

  • निर्देश जारी करने की शक्तिबिल कहता है कि केंद्र सरकार एक्ट के कार्यान्वयन के लिए केंद्र, राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के तहत या उसके द्वारा मान्यता प्राप्त किसी अथॉरिटी/संगठन को निर्देश जारी कर सकती है।

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

कुछ प्रकार की वन भूमि को एक्ट के दायरे से हटाया जा सकता है

वन (संरक्षण) एक्ट, 1980 में वन भूमि के उपयोग पर कुछ प्रतिबंध लगाकर, वनों के संरक्षण का प्रावधान है। बिल कुछ वन भूमि को एक्ट के दायरे में लाने, और कुछ को उससे बाहर करने के लिए, एक्ट में संशोधन करता है। जिस भूमि को एक्ट के दायरे में लाया गया है, वे हैं: (i) भारतीय वन एक्ट, 1927 या किसी अन्य कानून के तहत वन के तौर पर घोषित/अधिसूचित भूमि, (ii) 25 अक्टूबर, 1980 को या उसके बाद सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में रिकॉर्डे की गई भूमि। इसका अर्थ यह है कि इस तारीख से पहले वन के रूप में रिकॉर्ड की गई, लेकिन राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित न की गई भूमि एक्ट के दायरे से बाहर होगी। बिल उस वन भूमि को भी अपने दायरे से छूट देता है, जिसे किसी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश प्राधिकरण ने 12 दिसंबर, 1996 को या उससे पहले गैर वानिकी उद्देश्य के लिए परिवर्तित किया है। यह प्रावधान दो तरह से सर्वोच्च न्यायालय के फैसले (1996) के खिलाफ जा सकता है।

25 अक्टूबर, 1980 से पहले वन के तौर पर रिकॉर्ड, लेकिन अधिसूचित नहीं की गई भूमि को एक्ट से बाहर रखना

1980 के एक्ट के दायरे को स्पष्ट करते हुए सर्वोच्च न्यायालय (1996) ने माना था कि एक्ट का उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना है जिससे पारिस्थितिकी का संतुलन बिगड़ता है। इसलिए एक्ट को सभी वनों पर लागू होना चाहिए, भले ही स्वामित्व या वर्गीकरण की प्रकृति कैसी भी हो[8]  इसमें वन के शब्दकोषीय अर्थ वाले सभी वन और सरकारी रिकॉर्ड में वन के तौर पर रिकॉर्ड कोई भी क्षेत्र शामिल हैं, चाहे उन पर किसी का भी स्वामित्व हो। इसलिए उस भूमि को एक्ट के दायरे से बाहर करना, जिसे 25 अक्टूबर1980 से पहले वन के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया थालेकिन सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज किया गया थाफैसले के खिलाफ जा सकता है। वनों को संरक्षित रखने वाले प्रतिबंध बिल के दायरे से बाहर की भूमि पर लागू नहीं होंगे। इससे वन आवरण और वन्य जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

12 दिसंबर, 1996 से पहले वन उपयोग से गैर वानिकी उपयोग के लिए परिवर्तित भूमि को छूट  

सर्वोच्च न्यायालय (1996) ने यह निर्देश दिया था कि वनों में चालू सभी गैर वानिकी गतिविधियों को रोका जाना चाहिए, अगर उन्हें सिर्फ राज्य सरकार से मंजूरी मिली है, केंद्र सरकार से नहीं। उसने कहा था कि ऐसी सभी गतिविधियां 1980 के कानून का उल्लंघन होंगी।8  बिल में कहा गया है कि फैसले की तारीख से पहले वन से गैर वानिकी उपयोग के लिए परिवर्तित भूमि को 1980 के एक्ट से छूट मिलेगी। यह छूट देते हुए बिल फैसले के खिलाफ जा सकता है। 

इसका यह अर्थ भी है कि जिस वन भूमि को 25 अक्टूबर, 1980 औऱ 12 दिसंबर, 1996 के बीच गैर वानिकी गतिविधियों को मंजूरी मिली थी (1980 के एक्ट के तहत), वह एक्ट के दायरे में नहीं आएगी। उदाहरण के लिए अगर इस अवधि के दौरान किसी वन भूमि पर खनन लीज़ को मंजूरी दी गई है तो वह भूमि एक्ट के दायरे से बाहर होगी (अगर वह लीज़ खत्म हो गई है तो भी)। इसलिए उस भूमि पर गैर वानिकी गतिविधियां चलाई जा सकती हैं, वह भी एक्ट के तहत मंजूरी की किसी शर्त के बिना। 

भूमि की छूट प्राप्त श्रेणियां

1927 के एक्ट के तहत वन भूमि को गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए परिवर्तित करने का फैसला राज्य सरकार द्वारा लिया जाता है।[9] 1980 का एक्ट केंद्र सरकार से अतिरिक्त पूर्व मंजूरी का प्रावधान करता है। बिल यह भी जोड़ता है कि इस मंजूरी की तब जरूरत नहीं होगी, जब वन भूमि को निम्नलिखित के निर्माण के लिए परिवर्तित किया जा रहा हो: (i) भारतीय सीमाओं के 100 किमी के भीतर राष्ट्रीय महत्व और संबंधित राष्ट्रीय सुरक्षा की कूटनीतिक लिनियर परियोजनाएं (जैसे सड़क या रेलवे), (ii) 10 हेक्टेयर तक की भूमि पर सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढांचा, या (iii) रक्षा संबंधी परियोजनाएं, अर्धसैनिक बलों के लिए शिविरया केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट सार्वजनिक सुविधा परियोजनाएं, वामपंथी अतिवादी प्रभावित क्षेत्र में पांच हेक्टेयर से अधिक नहीं।

ये छूट केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित नियम और शर्तों का विषय होंगी। इन छूटों के साथ कुछ समस्याएं हो सकती हैं। हम यहां इन पर चर्चा कर रहे हैं। 

सीमा क्षेत्रों के निकट छूट में पूर्वोत्तर क्षेत्र का बड़ा हिस्सा आ जाएगा

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अपने कुल भौगालिक क्षेत्र के लिहाज से वन आवरण का अनुपात सबसे अधिक है। मिजोरम में 85% वन आवरण है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश (79%), मेघालय (76%), मणिपुर (74%) और त्रिपुरा (74%) आते हैं।[10]  ये राज्य जैवविविधता के हॉटस्पॉट भी हैं।6 पिछले कुछ वर्षों में झूम खेतीपेड़ों की कटाईप्राकृतिक आपदाओंमानवजनित दबाव और विकासात्मक गतिविधियों के कारण पूर्वोत्तर राज्य़ों के वन आवरण में गिरावट आ रही है।2  

सुरक्षा-संबंधित परियोजनाओं के निर्माण के लिए और अंतरराष्ट्रीय सीमा/एलओसी/एलएसी के 100 किमी के भीतर वन भूमि के परिवर्तन को मंजूरी देने से इन क्षेत्रों में वन आवरण में तेजी से गिरावट हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से 100 किमी की दूरी इनमें से अधिकांश राज्यों के साथ-साथ 47% वन क्षेत्र वाले सिक्किम और 45% वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड को भी कवर करेगी।

हालांकि अनिवार्य वृक्षारोपण से वन आवरण के इस नुकसान की भरपाई का प्रयास किया जा सकता है, लेकिन इससे जंगलों का प्राकृतिक वास जिस प्रकार नष्ट होगा, उससे जैव विविधता को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो पाएगी।[11]  इसके अतिरिक्त लिनियर परियोजनाएं अपने खुद के फुटप्रिंट्स से अधिक क्षेत्र की जैवविविधता को कम कर सकती हैं।[12] प्रत्येक एक किलोमीटर सड़क का 10 हेक्टेयर क्षेत्र के पर्यावास पर हानिकारक प्रभाव हो सकता है।12 

सुरक्षा परियोजनाओं के लिए वन मंजूरी से छूट इन परियोजनाओं में देरी को कम नहीं कर सकती 

बिल कुछ मामलों में वनों के परिवर्तन के लिए केंद्र सरकार की अनिवार्य मंजूरी की शर्त को हटाता है। इसका अर्थ यह है कि वन भूमि के परिवर्तन से संबंधित फैसले राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन द्वारा ही लिए जाएंगे। बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन के अनुसार, कूटनीतिक और सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं को फास्ट-ट्रैक करने की जरूरत है। हालांकि विभिन्न कारणों से इन परियोजनाओं में विलंब होता है। इसके अतिरिक्त सुरक्षा संबंधी सभी परियोजनाओं को पूरी तरह से छूट देना, वन आवरण और जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए उचित नहीं हो सकता है।  

वन मंजूरियों में विलंब का एक बड़ा हिस्सा राज्य स्तर पर होता है। रक्षा मंत्रालय (2019) ने कहा था कि 51 सीमा सड़क परियोजनाएं वन मंजूरियों के कारण लंबित हुई थीं।[13] इनमें से 29 राज्य सरकारों के पास लंबित थीं। मई 2023 तक वन मंजूरी के पहले चरण के अनुमोदन के लिए लंबित कुल 2,235 आवेदनों में से 1,891 राज्य सरकार के अधिकारियों के पास लंबित हैं और शेष केंद्र सरकार के पास हैं।[14] अन्य प्रक्रियाओं और अनुपालन, जैसे भूमि अधिग्रहण और वन्य जीवन मंजूरियों के कारण भी इन परिय़ोजनाओं में विलंब होता है।13 मंत्रालय ने कहा कि सीमा सड़क परियोजनाओं के संबंध में भूमि मुआवजे से संबंधित 593 मामले लंबित थे।13  विलंब के अन्य कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) जलवायु की स्थितियां, (ii) भूभाग, और (iii) दक्ष श्रमिकों और निर्माण सामग्री की कमी।13 चूंकि केंद्र सरकार रक्षा संबंधी परियोजनाओं में अधिकतर विलंब के लिए जिम्मेदार नहीं है, इसलिए उसकी मंजूरी के लिए व्यापक छूट की जरूरत स्पष्ट नहीं है।

केंद्र सरकार ने 1980 के एक्ट के दिशानिर्देशों के जरिए कुछ परियोजनाओं के लिए इसी तरह की छूट दी है, हाल ही में 2019 में।[15] इन परियोजनाओं में सीमा के निकट सुरक्षा संबंधी परियोजनाएं, वामपंथी अतिवादी प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा परियोजनाएं और लिनियर प्रॉजेक्ट्स शामिल हैं। ये छूट कुछ शर्तों के अधीन हैं, जैसे: (i) इसमें शामिल वन क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान और/या वन्य जीव अभयारण्य के भीतर स्थित नहीं होना चाहिए, (ii) यूजर एजेंसी को वन भूमि के उपयोग को कम से कम करने के लिए सभी व्यावहारिक विकल्पों को तलाश करना चाहिए, और (iii) कुछ उपयोगों, जिसमें सीमा सुरक्षा शामिल है, के लिए परिवर्तित भूमि को वन भूमि ही माना जाता रहेगा।  बिल छूट देते समय इन शर्तों को शामिल नहीं करता। 

वन संरक्षण और आर्थिक गतिविधियों के बीच संतुलन 

वन संरक्षण और आर्थिक गतिविधियों के बीच संतुलन सुनिश्चित करना1980 का एक्ट वनों की कटाई को रोकने के लिए लागू किया गया था। इसलिए गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के परिवर्तन के लिए केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी जरूरी होती है। इसके अतिरिक्त वनों में अनुमत गतिविधियां (ऐसी पूर्व मंजूरी के बिना) वनों और वन्य जीवन के संरक्षण औऱ प्रबंधन से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए अनुमत गतिविधियों में चेक पोस्ट और फायर लाइन बनाना शामिल है। बिल इस सूची में सिल्विकल्चरल गतिविधियां चलाना, सफारी और इको-टूरिज्म सुविधाओं जैसी गतिविधियों को शामिल करता है। बिल केंद्र सरकार को इस बात की अनुमति देता है कि वह मंजूरी के बिना कुछ सर्वेक्षण करने के लिए नियम और शर्तें निर्दिष्ट कर सकती है। इनमें टोहीपूर्वेक्षणजांच या अन्वेषण और भूकंपीय सर्वेक्षण शामिल हैं। ये गतिविधियां आर्थिक विकास में मदद कर सकती हैं, और खनिजों के पूर्वेक्षणों (जिनके बाद खनन हो सकता है) के मामले में राष्ट्रीय प्राथमिकताओं, जैसे ऊर्जा सुरक्षा और औद्योगिक वृद्धि में भी योगदान दे सकती हैं। हालांकि ऐसी गतिविधियों के आर्थिक लाभों को वनों के संरक्षण के साथ संतुलित करने की आवश्यकता हो सकती है। यह स्पष्ट नहीं है कि इस तरह के संतुलन को निर्धारित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मामले-दर-मामले जांच की आवश्यकता को व्यापक छूट से क्यों बदला जा रहा है।

वन के अंदर चिड़ियाघर का उद्देश्य अस्पष्ट है: बिल चिड़ियाघरों को 1980 के एक्ट के तहत पूर्व मंजूरी की शर्त से भी छूट देता है। वन के अंदर चिड़ियाघर की अनुमति देने का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय (2023) ने कहा है कि वह बाघ अभयारण्यों या राष्ट्रीय उद्यानों के अंदर चिड़ियाघर की जरूरत नहीं समझता।[16]  यह टिप्पणी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा बाघ अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के भीतर बाघ सफारी की अनुमति देने के संदर्भ में थी। ऐसे बाघ अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों का विचार यह है कि ऐसे जीव-जंतु अपने प्राकृतिक आवास में रहते हैंन कि कृत्रिम वातावरण में।16

 

[3]. The Forest (Conservation) Bill, 1980, as introduced in Lok Sabha.

[5]. Glossary, India State of Forest Report 2021Forest Survey of India, Ministry of Environment, Forest and Climate Change.

[6]. Report no. 324, Standing Committee on Science and Technology, Environment and Forests: “Status of Forests in India”, Rajya Sabha, February 12, 2019. 

[7]The Forest (Conservation) Amendment Bill, 2023, as introduced in Lok Sabha. 

[8]T.N. Godavarman Thirumulpad Vs. Union of India & Ors., Writ Petition (Civil) No. 202 of 1995, the Supreme Court of India, December 12, 1996. 

[10]Chapter 2, India State of Forest Report 2021Forest Survey of India, Ministry of Environment, Forest and Climate Change.

[14]Forest Clearance Dashboard, Parivesh, as accessed on May 16, 2023. 

[16]Contempt Petition (C) NO.319/2021, the Supreme Court of India, February 8, 2023.  

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